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रजाई

रजाई 


भाग 2 पिछले अंक से आगे 
गोकल जब बीस साल का था तब उसका विवाह सरूपी से हो गया था । दांपत्य जीवन के ये 35 साल कैसे बीत गये , पता ही नहीं चला उन दोनों को । ऐसा नहीं है कि गोकल और सरूपी में कभी कोई झगड़ा ही नहीं हुआ । हर पति पत्नी के बीच झगड़ा होता है । गोकल और सरूपी कोई अलग तो नहीं थे । मत भिन्नता होना स्वाभाविक है । लेकिन मत भिन्नता के कारण परिवार टूटना नहीं चाहिए । दोनों पति पत्नी को ही समझदारी दिखानी पड़ती है । कभी किसी मामले में पति झुक जाता है तो कभी किसी मामले में पत्नी । जिंदगी की गाड़ी ऐसे ही चलती रहती है । गोकल और सरूपी की गाड़ी भी ऐसे ही चलती रही ।

गोकल के पहला बेटा हुआ रामू । चूंकि पहला बेटा था इसलिए दोनों का बहुत लाडला था । सरुपी की तो जैसे जान बसती थी उसमें । सरूपी उसे गोद से नीचे उतारती ही नहीं थी । गोकल कहता भी था कि इतना लाड़ मत लड़ाया कर । मगर सरूपी कहती "क्यों ना लड़ाऊँ लाड़ ? इतने दिनों के बाद भगवान ने मेरी गोद भरी है तो लाड़ तो लड़ाऊंगी ही । आखिर पहलौठी संतान है ये" ।

"अरी भागवान ! वो तो ठीक है मगर कहीँ ये नालायक निकल गया तो फिर बहुत रोयेगी तू । इसलिए इससे हेत कम रखा कर जिससे बाद में दुख भी कम ही होगा" । 

"जब देखो तब ऐसी ओछी बात बोलते रहते हैं आप तो । मेरा बेटा नालायक क्यों होगा ? हमारे खानदान में तो कोई नालायक आज तक नहीं हुआ । फिर ये रामू ही नालायक क्यों निकलेगा" ? 
"जमाना बदल रहा है आजकल । अब पहले जैसा जमाना नहीं रहा कि बाप ने जो कहा बेटा बिना ना नुकर किये मान लेता था । अब नहीं मानता बेटा बाप की भी । और अभी तो रामू छोटा है । जब तक यह बड़ा होगा तब तक तो घोर कलयुग आ जायेगा । फिर मेरी क्या तेरी भी कौन सुनेगा" ? 

"आप तो ऐसे कह रहे हैं कि अगले पच्चीस सालों में जैसे दुनिया ही बदल जायेगी । अभी कौन सा कम कलजुग है जो और आयेगा । देख लेना , मेरा रामू मेरा पूरा ध्यान रखेगा" । 

और इस तरह रामू को लेकर दोनों में तकरार चलती रहती । दिन बीतते रहे । रामू के बाद शारदा , शारदा के बाद कमला और कमला के बाद श्यामू का पदार्पण और हो गया । रामू और श्यामू में पूरे दस साल का अंतर था । श्यामू को खिलाने के लिए रामू और शारदा में खूब लड़ाई होती थी । कौन ज्यादा खिलाये , इसके लिये लड़ते थे दोनों । रामू कहता "मैं सबसे बड़ा भाई हूँ इसलिए मैं ज्यादा खिलाऊंगा" । शारदा कहती "मैं सबसे बड़ी बहन हूँ इसलिए मैं ज्यादा खिलाऊंगी"

कमला तो अभी तीन साल की ही थी इसलिए उसे केवल दूर से ही खेलने की अनुमति थी । बस वह अपने दोनों भाई बहन के झगड़ों को देखती रहती थी । 

रामू और शारदा स्कूल जाने लगे थे ।.रामू का मन पढने में कम और मटरगश्ती करने में ज्यादा लगता था । दिन भर उछलकूद करना , धमाचौकड़ी मचाना उसकी आदत थी । बिना बात शारदा के थप्पड़ रसीद कर देता था । एक दिन गोकल को गुस्सा आ गया तो उसने रामू की जबरदस्त धुनाई की । तब सरूपी ने ही बचाया रामू को । नहीं तो पता नहीं क्या कर जाता उस दिन गोकल । सरूपी रामू की ढ़ाल बन गई थी । गोकल पीट भी रहा था और चिल्ला भी रहा था "ना तो पढ़ता लिखता है और ना ही खेत में हाथ बंटाता है । बस, जब देखो तब छोरियों को मारता रहता है बेशरम "। 

सरूपी रामू को बचाकर एक कमरे में ले गई और वहां उसे खूब समझाया कि चाहे पढ़ लिख मत । पर छोरियों को तो मत मारा कर । तब रामू भी कह देता था कि नहीं मारूंगा मगर बिल्ली अपनी आदत से बाज आती है क्या ? फिर रामू ही अपनी आदत क्यों बदले ? 

दिन बीतते जा रहे थे । गोकल खेती किसानी से ही अपना परिवार चला रहा था । सरूपी घर का, खेत का और जानवरों का भी काम किया करती थी । घर में अब एक गाय , एक भैंस दो बैल और दो बछड़े थे । सब जानवरों को चारा खिलाना , कुट्टी कूटना , उनके लिए बांट रांधना , खल भिगोना, सानी तैयार करना , दूध निकालना , गोबर समेटना और ऊपले थापना । बहुत सारा काम हो जाता था जानवरों का । खेत में भी सरूपी कंधे से कंधा मिलाकर काम करती थी गोकल के । तब जाकर घर चल रहा था गोकल का । 

रामू अब अठारह बीस साल का हो गया था । शारदा ने घर संभाल लिया था । कहते हैं कि बेटियां जल्दी बड़ी हो जाती हैं । शारदा देखती थी कि मां किस तरह लगी रहती है दिन रात । इसलिए बिना कुछ सिखाये सारा काम खुद ही सीख गई थी वह । वह घर का सारा काम कर लेती थी । दोनों छोटे भाई बहनों को तैयार कर स्कूल भेज देती थी । कमला भी थोड़ी बड़ी हो गई थी । वह भी शारदा का हाथ बंटाने लगी थी घर में । 

धीरे धीरे समय बीत रहा था । एक दिन वह दिन भी आया जब रामू की शादी हो गई । गोकल के घर में रामू की पत्नी के रूप में सरला आ गयी । सरला नाम से ही सरल थी मगर थी बहुत चालाक । गोकल का घर अब तक पारिवारिक एकता के रास्ते पर चल रहा था । रामू स्वभावतः उद्दंड अवश्य था मगर जहां कहीं परिवार की मान मर्यादा का प्रश्न होता वह मरने मारने पर उतारू हो जाता था । अब उसने खेत में गोकल का हाथ बंटाना शुरू कर दिया था । 

रामू प्रयोग धर्मी था । उसका मानना था कि फसलों को पानी चाहिए और पानी का कोई साधन नहीं है उनके पास । कब तक बरसात के पानी पर निर्भर रहेंगे हम ? कभी न कभी तो कुंआ खुदवाना ही पड़ेगा या फिर ट्यूबवेल लगवानी पड़ेगी । मगर गोकल कहता "अभी पैसे कहाँ हैं ? थोड़ा बहुत जो पैसा इकट्ठा किया है वह शारदा की शादी को चाहिए । ऐसा करते हैं कि शारदा की शादी के बाद ट्यूबवेल खुदवायेंगे" । इस तरह दिलासा देने की कोशिश करता था गोकल ।

मगर रामू को चैन कहाँ ? उसने तो आव देखा ना ताव । उनके पड़ोस में इन्दर काका का खेत था । उसमें ट्यूबवेल लगा हुआ था । रामू ने इंदर काका से बात की और दो हजार रुपये में पानी का सौदा कर लिया । कुल तीन पानी देने की बात हुई । एक पानी से पिलाई करके सरसों बो दी । एक महीने बाद दूसरा पानी दे दिया और दो महीने बाद तीसरा । सरसों की भरपूर फसल हुई उस साल । दस हजार रुपये में बिकी थी वह । पांच हजार रुपये का नैट प्रोफिट हुआ था उससे । आंगन में खुशियां बरसने लगी । गोकल ने रामू की बुद्धिमानी की भूरि भूरि प्रशंसा की । रामू की बुद्धि और कार्यशैली की चर्चा होने लगी गांव में । 

शेष अगले अंक में 



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