Arti Gaur

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जिन्दगी

                                                                   जिन्दगी

क्षीण हो गयी
अब जिन्दगी की शाम
दौड धूप है अधिक
रह गया कम काम
ओहदा इन्सान का छोटा
है बडा पदनाम
नही रही लिहाज उम्र की
लुप्त हो गया सम्मान
जितनी बडी है समस्यायें
घट गया उतना समाधान
बोल बोला है

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