खेल
"खेल"
भागते दौड़ते से
वो खेलते कूदते से
वो मासूमियत से
कभी लड़ते झगड़ते से
तो कभी मस्ती में डूबते से...
जो बह रहा था बचपन
एक निर्मल धारा सा
उस पर बंदिशों का
पहरा सा लगा है
देखो मासूम सा वो बचपन
घरों में कैद हुआ है...
दिखती नहीं कहीं भी
वो मासूम सी निगाहें
एक डर का साया सा
उन पर मड़राया है...
वो रंग बिरंगे फूल
नहीं दिखते कहीं पर
उनकी हंसी ठिठोली पर
सन्नाटा छाया है...
काश वो पहले जैसे दिन
फिर से लौट के आ जाएं
पहले की तरह बच्चे
सभी स्कूल जा पाएं...
एक दूसरे के साथ फिर से
नित नए खेल,खेल पाएं
इस अंजाने से डर से
वो छुटकारा पा जाएं...
मासूम से चेहरों पर
फिर से मुस्कान खिल जाए
मासूम से बचपन को
वो फिर से जी पाएं...
कविता गौतम... ✍️
प्रतियोगिता हेतु।
Swati chourasia
24-Dec-2021 11:20 AM
Very beautiful 👌
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Shrishti pandey
24-Dec-2021 08:16 AM
Nice
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Abhinav ji
23-Dec-2021 11:27 PM
बहुत बढ़िया
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