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प्रायश्चित

प्रायश्चित 


प्रायश्चित

देवयानी अभी घर के काम काज से फ्री हुई ही थी कि अचानक डोर बैल बज उठी । देवयानी ने गेट खोला तो देखा कि उसकी बहू अरुंधति खड़ी है । "अरे, आज इतनी जल्दी कैसे आ गई बहू" ? अरुंधति चहकते हुए बोली

"वो सब बाद में बताऊंगी, मां जी । पहले ये लो "।
और उसने देवयानी के हाथ में एक मोमेण्टो थमा दिया ।

देवयानी ने देखा कि मां की गोद में बच्चे वाला यह मोमेण्टो कितना खूबसूरत है । मां अपने बच्चे को जिस ममता के साथ निहार रही है और उसके सिर पर हाथ फिरा रही है , वह अद्भुत है , अवर्णनीय है ।

"कहां से मिला यह मोमेण्टो" ? उसने मुस्कुराते हुए पूछा ।
"सब आपके आशीर्वाद का परिणाम है मां जी" । और अरुंधति देवयानी के चरणों पर झुक गई।

देवयानी ने उसे गले से लगा कर आशीर्वाद देते हुए कहा । "मेरी बहू है ही इतनी विदूषी कि उसे एक नहीं हजार मोमेण्टो भी कम पड़ेंगे । अच्छा, पहले हाथ मुंह धो लो , तब तक  मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं" ।

अरुंधति उसका हाथ पकड़ कर बैठते हुए बोली ।
"मां जी , पहले मेरी बात सुनो , फिर चाय बनाना" ।

देवयानी भी एक छोटे बच्चे की तरह आज्ञा पालन कर उसके सामने ही सोफे पर बैठ गई और बोली ।
"अच्छा मैडम जी। अब बताओ , क्या कहना चाहती हो" ?

अरुंधति बड़े गर्व के साथ बोली।
"मां जी। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है । आज़ हमारे आफिस में एक सेमिनार हुई थी जिसमें एक से बढ़कर एक वक्ताओं ने भाग लिया था ।विषय था " भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान " । आपकी बहू ने इस सेमिनार में मोर्चा मार लिया है और प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है" । इतना कहकर वह हर्षातिरेक में देवयानी से लिपट गई ।

देवयानी गदगद हो गई । बलाई लेते हुए बोली।" कहीं मेरी नज़र ना लग जाए मेरी बेटी को "। और इतना कहकर उसने 11 रुपये अरुंधति पर उबार कर एक जगह रख दिए। कहा । "साधना आयेगी ना बर्तन पोंछा करने , तो उसको दे देना "।
देवयानी अरुंधति पर फिदा हो गई।

"ठीक है मां जी । पर आपने पूरी बात तो सुनी ही नहीं "? उलाहना देते हुए अरुंधति ने कहा ।

"अच्छा ? मैंने तो सोचा था कि खत्म हो गई है" । देवयानी मासूमियत से बोली ।

"अभी कहां मां जी। बताने की बात तो अभी बाकी है । आपने मुझे अनुसुइया , अहिल्या, गार्गी , दुर्गावती, पद्मिनी, लक्ष्मीबाई आदि महान नारियों के बारे में जो जो भी बताया था ना , मैंने उन्ही का उदाहरण दे देकर अपना व्याख्यान दिया था । सबने मेरे व्याख्यान की बहुत प्रशंसा की" । अरुंधति ने मुस्कुराते हुए कहा

"तो तुझे वो सब बातें याद रह गई जो मैंने तुझे बताई थी "?
"हां मां जी । मजा तो तब आया जब मैंने कहा कि नारी के चाहे कितने ही रूप क्यों न हों लेकिन उसका सर्वश्रेष्ठ रूप मां का ही होता है। और मैंने माता कौशल्या, देवकी, यशोदा , पार्वती, कुंती सहित मदर टेरेसा के बारे में जब बताया तो पूरे हाॅल में पांच मिनट तक तालियां बजतीं रही । उस क्षण को मैं कभी नहीं भूल सकती हूँ, मां जी । और यह सब चमत्कार आपके कारण हुआ है। आप मुझे इन सबके बारे में नहीं बतातीं तो मुझे तो पता ही नहीं चलता इन सब महान नारियों के बारे में ।  क्योंकि आजकल कोर्स में तो  इनको पढ़ाया ही नहीं जाता है "।

"हां बेटी । सरकारें धर्मनिरपेक्ष जो हो गई हैं आजकल । और इन सब नारी श्रेष्ठों को एक धर्म विशेष की बताकर सांप्रदायिक मान लिया गया है । खैर छोड़ो, अब तो चाय बना दूं "? देवियानी ने अरुधंति से पूछा ।

"हां मां जी। अब बना दो । मैं हाथ मुंह धोकर अभी आती हूं" ।

थोड़ी देर में चाय बन कर तैयार हो गई तो दोनों सास बहू ने साथ बैठकर चाय पी । फिर दोनों गपशप करने लग गई ।

शाम को जब आदित्य आया तो अरुंधति ने एक बार फिर अपनी उपलब्धियों का बखान करना शुरू कर दिया । हंसी खुशी में कब बारह बज गए पता ही नहीं चला । सब लोग सो गए ।

आदित्य और अरुंधति हैदराबाद में रह रहे थे। दोनों यहां जॉब कर रहे हैं । देवयानी जोधपुर रहती है लेकिन वह पिछले दो दिनों से अपने बेटे बहू के पास हैदराबाद आई हुई है ।

दो तीन दिन बीत गए। एक दिन देवयानी को महसूस हुआ कि अरुंधति थोड़ा चिड़चिड़ी हो रही है। उसने उससे पूछा मगर अरुंधति ने टाल दिया। देवयानी ने बेटे आदित्य से भी हंसते हंसते पूछा लेकिन उसने भी यह कह कर टाल दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है।

एक दिन देवयानी को कुछ खुसर-पुसर सुनाई दी । आदित्य और अरुंधति दोनों बहुत धीमे धीमे अपने कमरे में बात कर रहे थे। यद्यपि पति-पत्नी की बातें छिपकर सुनना सही नहीं है लेकिन पता नहीं क्यों , देवयानी ने मन कड़ा कर कान दीवार पर लगा ही दिये । उसे ज्यादा तो कुछ समझ नहीं आया लेकिन टैस्ट शब्द बार बार सुनाई दिया ।

थोड़ी देर बाद जब दोनों तैयार होकर अपने अपने आफिस जाने लगे तो देवयानी ने मन कड़ा कर पूछ ही लिया ।
"आज तबीयत खराब है क्या , बेटी" ?

अरुंधति एकदम चौंकी । बोली , "नहीं नहीं मां जी। ऐसी कोई बात नहीं है। सब कुछ ठीक है । आप चिंता ना करें" ।
"अरे, कैसे चिंता ना करुं बेटी । मैं देख रही हूं कि एक दो दिन से तेरा नेचर भी थोड़ा चिड़चिड़ा सा हो गया है" ।

अरुंधति एकदम से चौंकी । बात संभालते हुए बोली।
"मां जी। आजकल एक नया प्रोजेक्ट मुझे दे दिया है कंपनी ने । उसी को लेकर थोड़ा सा तनाव है" ।

"तनाव करने से तो कुछ नहीं होगा, बेटी । मन लगाकर काम कर । भगवान सब अच्छा ही करेंगे"। देवयानी ने माहौल हलका फुल्का करने की गरज से ऐसा कहा ।

आदित्य और अरुंधति दोनों आफिस चले गए । शाम को जब आये तो दोनों के चेहरे एकदम उतरे हुए थे। जैसे किसी ने नींबू की तरह निचोड़ दिये हों ।

देवयानी ने हिम्मत करके पूछा लेकिन दोनों ही टाल गये । अब और कुछ पूछने की हिम्मत उसमें नहीं थी । लेकिन समस्या क्या है , इसका तो पता लगना ही चाहिए ना । पर कैसे ? लाख टके का सवाल था ।

उसने आज भी कान दीवार पर लगा दिये । दोनों आपस में बातें कर रहे थे । आपरेशन का जिक्र बार बार आ रहा था । ऐसा लगता था कि दोनों में किसी बात को लेकर मतभेद है । अरुंधति का स्वर तीखा था । आदित्य उसे धीमे-धीमे कुछ समझाना चाह रहा था लेकिन वह किसी छोटे बच्चे की तरह जिद पर अड़ी हुई थी ।

अचानक उसे याद आया । और ऐसा सोचते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई । काश , ऐसा ही हो । भगवान से प्रार्थना की कि काश  ऐसा ही हो और वह यही बात सोचकर सो गई ।

दूसरे दिन नाश्ता करने जब वो डाइनिंग टेबल पर बैठे तो देवयानी ने देखा कि दोनों चुपचाप बैठे एक दूसरे को देख रहे हैं। अरुंधति का चेहरा कुछ सख्त है और आदित्य चिरौरी करने के अंदाज से आंखों ही आंखों से कुछ कह रहा था । जिसे अरुंधति स्वीकार नहीं कर रही थी।

देवयानी उन दोनों के पास आकर बैठ गई। तंद्रा भंग करते हुए  मुस्करा कर बोली , "ये लड़ाई कब तक चलेगी "?

दोनों चौंके । "लड़ाई ! कैसी लड़ाई ? किस से "? अरुंधति बड़ी मुश्किल से कह पाई ।

"मैंने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किये हैं, बहू । बहुत होशियार समझती हो अपने आप को" ? वह हंसते हुए बोली ।
दोनों ने कहा, "ऐसी कोई बात नहीं है मां।आपको कोई गलतफहमी हुई है" ।

देवयानी कहने लगी। "यदि तुम मुझे मां समझते हो तो फिर कोई बात मुझसे छुपा क्यों रहे हो" ?

आदित्य हिम्मत कर बोला । "मां , अरुंधति का प्रिग्नैंसी टैस्ट करवाया था , वह पॉजिटिव आया है । लेकिन अरुंधति अभी मां बनना नहीं चाहती है" । उसके स्वर में हताशा साफ दिख रही थी ।

"क्या बात है बेटी" ? अरुंधति से पूछते हुए बोली। "शादी को भी अब तो दो साल से ज्यादा हो चुके हैं । अब तो बच्चा होना ही चाहिए न" ।

"आपको तो ऐसा लगता है मां जी कि जैसे बच्चा ऐसे ही हो जाता है ? कितना कष्ट होता है प्रसव के दौरान। औरत की तो जैसे जान ही निकल जाती है । दूसरा जन्म मिलता है उसको । कहते हैं कि बीस हड्डियों के एक साथ टूटने पर जितना दर्द होता है , प्रसव के समय उससे भी कहीं अधिक दर्द होता है । मुझसे तो वह दर्द सहन नहीं होगा , मां जी" ।

देवयानी बोली । "अभी तीन चार दिन पहले तो तू कह रही थी कि नारी का सर्वश्रेष्ठ रूप मां का ही होता है । यशोदा , कौशल्या , पार्वती आदि का नाम ले रही थी तू । अब क्या हो गया है तुझे ? वो केवल व्याख्यान ही था या तेरे दिल के उद्गार ? माना कि प्रसव पीड़ा असहनीय होती है लेकिन अगर तेरी मां भी यही सोचती तो तू कैसे पैदा होती "? गंभीर प्रश्न उछाल दिया था देवयानी ने ।

"भाषण की बात अलग होती है मां जी और हकीकत अलग । हम जो भी बात सार्वजनिक रूप से कहते हैं उसे करते थोड़े ही हैं । मैं अभी बच्चे के लिए तैयार नहीं हूं । कम से कम तीन साल और लगेंगे अभी मुझे तैयार होने में" । अरुंधति ने जैसे अपना फैसला सुना दिया ।

"क्यों ? अब तक तू 30 वर्ष की हो गई है। कोई छोटी बच्ची तो नहीं है । ज्यादा उम्र में मां बनना  सही नहीं होता है "। देवयानी ने उसे समझाना चाहा ।

"नहीं । अभी मुझे कैरियर बनाना है । अभी मेरा प्रोमोशन पेंडिंग है । पहले वो हो जाये , फिर बच्चे के बारे में सोचेंगे। मैं आज ही आपरेशन करा कर इसे निकलवा देती हूं "। अरुंधति ने अंतिम निर्णय सुना दिया ।

देवयानी घबराकर चीख पड़ी। "ना बेटी ना । ऐसा भूल कर भी मत करना "।
देवयानी की बात से अरुंधति एकदम घबरा गई लेकिन प्रतिवाद करते हुए बोली
" क्यों , क्या बुराई है इसमें ? सभी लोग तो करते हैं । मैं कोई पहली औरत तो हूं नहीं ऐसा करने वाली। जब हम बच्चे के लिए तैयार ही नहीं हैं तो उसे पैदा क्यों होने दें "?
"वो सब ठीक है बहू । केवल कैरियर बनाना ही तो जीवन का उद्देश्य नहीं है ? नारी का काम है सृजन करना, नष्ट करना नहीं ।एक जीव की हत्या करने से पाप नहीं लगेगा , तुझे ? भ्रूण हत्या अपराध है , बहू "।

"कौन जमाने की बात कर रही हो , मां जी। ये सब दकियानूसी विचार हैं । कौन मानता है आज कल इनको ? पाप पुण्य की बात तो रहने ही दो मां जी ।आदित्य , आप ही समझाओ ना मां जी को "।  अरुंधति ने इस बहस में आदित्य को घसीट लिया ।

आदित्य चुपचाप ही बैठा रहा । कुछ नहीं बोला

अरुंधति गुस्से से बिफर पड़ी। "ये ठीक नहीं है आदी । सारा दोष मेरे सिर मंढ कर खुद सेफ गेम खेल रहे हो , आदी । अपनी बात पहले ही हो चुकी है इस संबंध में। पांच वर्ष तक बच्चा नहीं लेने की बात तय हुई थी। तुम अब बीच से ही भाग जाना चाहते हो तो ये फाउल है। पर मैं कहे देती हूं कि ये बच्चा में किसी भी सूरत में नहीं लूंगी मैं" । और अरुंधति गुस्से में उठकर जाने लगी ।

देवयानी एकदम घबड़ा गई। उसने अरुंधति का हाथ पकड़ा लेकिन उसने झटक दिया । अचानक देवयानी उठी और अरुंधति के चरणों में लेट गई। उसके दोनों पैर कस कर पकड़ लिये ।

इस व्यवहार से अरुंधति हक्का बक्का रह गई। उसने इसकी कल्पना भी नहीं की थी। वह वहीं पर धम्म से बैठ गई और देवयानी के हाथों को छुड़ाने की कोशिश करने लगी ।

"मां जी। मां जी। ये क्या कर रही हो मां जी । ये आपको शोभा नहीं देता है मां जी । मेरे पैर छोड़ो मां जी" ।

"अच्छा । और जो तू करने जा रही है वह तुझे शोभा देता है ? एक जीव की हत्या करने की बात सोचना भी जघन्य अपराध है । और तू वही करने जा रही है । मुझसे कहती है कि ये शोभा नहीं देता ? अरे, भगवान ने नारी को एक माध्यम बनाया है , एक नये जीव को इस धरती पर लाने के लिए । ये तो प्रकृति की रचना है । तू तो केवल माध्यम है । तेरे माध्यम से प्रकृति मां अपनी संतति में वृद्धि करना चाह रही है और तू इस नेक काम में बाधा डाल रही है । तुझे तो गर्व होना चाहिए कि तू सृजन का माध्यम बन रही है लेकिन तू तो हत्यारिन बनने जा रही है । ये पाप का बोझ लेकर कैसे जियेगी तू" ?

देवयानी की रुलाई फूट पड़ी । आदित्य और अरुंधति ने बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया । देवयानी को उठाकर पलंग पर लिटाया । वह बेहोश हो चुकी थी।

आदित्य ने ठंडे पानी के कुछ छींटे मारे तो उसे होश आ गया । वह फफक फफक कर रो पड़ी ।

"भगवान मेरे पापों की सजा दे रहा है मुझे । मैं इसी लायक हूं, भगवन । दो। और दो सजा मुझे  । मेरे पाप तो बहुत बड़े हैं भगवन । ये सजा तो बहुत ही छोटी है" । और उसकी दोनों आंखों से गंगा-जमुना बह निकली ।

आदित्य और अरुंधति दोनों ही आश्चर्य से उसका मुंह देख रहे थे । आदित्य बोला, "ये क्या कह रही हो मां ? मैं कुछ समझा नहीं । कौन से पाप की बात कर रही हो तुम " ?

वो बोली । "तू समझेगा भी कैसे बेटा ? जब तुझे कुछ पता ही नहीं है । मैंने कभी अपने पापों को बताया थोड़ी है जो तू जानेगा "। देवयानी सुबकते हुए बोली ।

आदित्य एक गिलास पानी लेकर आया। देवयानी ने पानी पिया। थोड़ी देर में संयत होकर कहने लगी ।

"आज तुमने मुझे विवश कर दिया है  सब कुछ बताने के लिए । इस सच को मैं कब तक छिपाऊंगी । अब ये सच तुमको भी पता चलना ही चाहिए "।

दोनों अवाक होकर देवयानी की बात सुनने लगे ।

"मैं बचपन से ही बहुत सुंदर थी । इसीलिए मेरे पिताजी ने मेरा नाम देवयानी रखा था । कॉलेज के दिनों में सब लड़के मेरे आगे पीछे घूमते थे । मेरे रंग रूप और यौवन ने मुझे अहंकारी बना दिया था । मैं रूप गर्विता बन बैठी थी । कॉलेज में व्याख्याता के रूप में मेरा चयन हो गया था । अब तो मैं आसमान में उड़ने लगी । एक तो सुंदरता उस पर इतना अच्छा जॉब ? मेरे पैर जमीन पर पड़ते ही नहीं थे । मेरे पिताजी ने मेरा विवाह तुम्हारे पिताजी से कर दिया । ये भी कॉलेज में व्याख्याता थे । इनके परिवार में केवल इनकी मां ही थी । इनके पिताजी सेना में तैनात थे । छुट्टियों में एक दिन नौकरी से जोधपुर अपने घर आ रहे थे लेकिन ट्रेन में आतंकियों ने बम ब्लास्ट कर दिया और तेरे दादाजी की मृत्यु उसमें हो गई थी। तेरे पिताजी उस समय दो बरस के थे । उनकी मां ने उन्हें बड़ी मुसीबतें उठा कर पाला पोसा । मां और बाप दोनों का प्यार इन्हें दिया "।

"तेरे पिताजी अपनी मां को भगवान की तरह पूजते थे। मैं चूंकि रूप और यौवन के मद में चूर थी तो मुझे यह सहन नहीं होता था कि तेरे पिताजी का बंटवारा हम दोनों में हो इसलिए उनका अपनी मां के प्रति स्नेह मुझे अच्छा नहीं लगा । मैंने मन ही मन उनकी मां से दुश्मनी कर ली । मैं सोचती थी कि ये केवल मेरे हैं । इन पर और किसी का कोई अधिकार नहीं है । अब मैंने ठान लिया था कि मैं इनको अपने वश में करके ही रहूंगी । अपने रंग रूप का जाल इस कदर फैलाया कि तेरे पिताजी उसमें पूरी तरह फंस गए। हमारी शादी को पांच साल हो चुके थे । अब वो मेरी हर बात मानने लगे । पांच साल तक कोई बच्चा नहीं हुआ था। होता भी कैसे ? मैं चाहती तो होता"  ।

"सासू मां ने बार बार कहा लेकिन मैंने एक ना सुनी। तेरे पिताजी को भी उन्होंने कई बार कहा लेकिन वे तो मेरे शिकंजे में थे ना । वो क्या कर सकते थे"।

"एक दिन मुझे ऐसा लगा कि कुछ दिन चढ़ गये हैं । मैंने टैस्ट करवाया तो पॉजिटिव आया। मैं तो जिद पर अड़ गई। तेरे पिताजी ने भी बहुत समझाया कि अब तो पांच साल भी हो चुके हैं। लेकिन मैं तो घमंड में चूर थी ना। ऐसे कैसे मान जाती । सासू मां ने बहुत दुहाई दी । लेकिन मुझे तो उनको जलाने में आनंद आता था । नहीं मानी और आपरेशन कराने चली गई। साथ में तेरे पिताजी भी चल दिये "।

"अस्पताल से वापस आये तो घर में बाहर से कुंडी लगी हुई थी । पड़ौस का एक बालक वहां बैठा हुआ था। उससे पूछा तो उसने बताया कि सासू मां उसे बैठाकर कहीं चली गईं हैं । हमने सोचा कि पडौस में गई होंगी, आ जायेंगी। लेकिन शाम तक नहीं लौटीं तो चिंता होने लगी । मेरे मन में पता नहीं धकधकी सी होने लगी थी। तेरे पिताजी ने उनको आसपास सब जगह ढूंढा लेकिन वो कहीं भी नहीं मिली । मैंने खाना बनाया लेकिन तेरे पिताजी ने खाना नहीं खाया । वे गुमसुम बैठे रहे"।

"दूसरे दिन वे थाने में रिपोर्ट दर्ज करा आये और अखबारों में गुमशुदा की तलाश का विज्ञापन लगा आये । दिन पर दिन बीतते चले गये लेकिन उनका कोई पता नहीं चला । कोई भी सुराग नहीं लगा। तेरे पिताजी अब गुमसुम रहने लगे थे। इस घटना का जिम्मेदार वो स्वयं को मान रहे थे । एक दिन वो कॉलेज से आये और सीधा दूसरे कमरे में चले गए और अंदर से कुंडी लगा ली । मैं एकदम से घबरा गई । मुझे लगा कि वो कहीं कुछ कर ना बैठें । मुझे अपनी गलती का अब अहसास होने लगा था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मेरा परिवार खत्म सा हो गया था। तेरे पिताजी ने मेरा परित्याग तो नहीं किया लेकिन उन्होंने शारीरिक संबंध समाप्त कर लिये थे । मैंने उनके पैरों में गिरकर अपने अपराध के लिए बहुत बहुत माफी मांगी । लेकिन उन्होंने कहा कि अपराधी तुम नहीं मैं स्वयं हूं। मेरी मां ने मेरी खातिर क्या क्या कष्ट नहीं भोगे और मैं इतना कृतघ्न हो गया कि उन्होंने मेरा परित्याग कर दिया । अब ये जीवन मैं किसके लिए जीऊंगा " ?

"मेरा सारा घमंड चकनाचूर हो चुका था । मैं इतनी शर्मिंदा थी कि तेरे पिताजी से आंख तक नहीं मिला सकती थी । मां के साथ किये गये दुर्व्यवहार ने उनको तोड़ दिया । वो बीमार रहने लगे और एक दिन वो चल बसे" ।

दोनों अवाक होकर सुन रहे थे ।

"मैं अपराधिनी थी । दंड उनको मिला । मैंने प्रायश्चित करने का फैसला किया । एक दिन मैं एक अनाथालय गई और तुझे गोद ले आई । उस समय तू चार पांच साल का था । अब तेरी पढ़ाई-लिखाई में मेरा समय गुजरने लगा । थोड़ा बड़ा होने पर मैंने एक एनजीओ खोल लिया जिसमें नव विवाहितों को काउंसलिंग का काम करने लगी । कॉलेज से आकर कुछ समय मैं एनजीओ को देने लगी। औरतों को समझाने लगी कि परिवार ही सही मायने में दौलत है । परिवार से बड़ा कुछ नहीं होता। सास ससुर, पति, नन्द, देवर सबकी सेवा करना ही हम औरतों का धर्म है । नारी का दूसरा नाम सेवा ही है । नारी मां बनकर ही पूर्ण होती है । अपने अपराधों को कम तो नहीं कर सकती थी लेकिन उनको धोने का काम कर सकती थी । मुझे इसमें आनंद आने लगा । आदित्य पढ़ लिख कर अच्छे जॉब पर लग गया। इसकी शादी कर दी । रिटायरमेंट के बाद अपने एनजीओ में पूरी लगन के साथ काम करने लगी थी मैं" ।

"इसीलिए कह रही हूं कि जो गलती मैं ने की थी वही गलती तुम मत करो । नारी को मां बना कर भगवान भी प्रसन्न होते हैं कि उसके व्यक्तित्व को उसने पूर्णता प्रदान कर दी है । इसलिए उस प्रभु का शुक्रिया अदा करो कि उसने यह महान कार्य नारी को सौंपा है । प्रसव पीड़ा से यदि सब औरतें घबराती तो यह सृष्टि कैसे चलती ? नर और नारी का तो जोड़ा है । एक के बिना दूसरा अधूरा है । ऐसा नहीं है कि पुरुषों को स्त्री की पीड़ा का भान नहीं है । वह कहता नहीं है ।  स्त्री की कोख में अगर कोई बच्चा पलता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि समस्त अधिकार स्त्री को मिल जाते हैं । अगर मां के पेट में बच्चा पलता है तो उसी तरह पिता के मस्तिष्क में भी वही बच्चा पलता है । वह भी बच्चे के साथ तिल तिल बढ़ता है । मां की जिम्मेदारी है तो पिता भी दायित्व हीन नहीं है । अतः यह मत सोचो कि कौन ज्यादा त्याग करता है कौन नहीं ? दोनों में से किसी एक के बिना बच्चा अनाथ जैसा ही होता है । अब ये तुमको सोचना है कि इस बच्चे का क्या करना है । इसे दुनिया में लाना है अथवा नहीं ? मुझे लगता है कि मेरा प्रायश्चित अभी तक पूरा नहीं हुआ है । मैंने पाप भी तो कम नहीं किये थे । दंड तो भोगना ही पड़ेगा ना उन पापों का" । कहते कहते वह फफक पड़ी ।

आदित्य और अरुंधति ने देवयानी के पैर कस कर पकड़ लिए और दोनों के सिर उसके चरणों में समा गये ।
"हमें क्षमा कर दो मां । हमने आपको बहुत कष्ट दिये हैं । आपने हमें पाप और अपराध करने से बचा लिया, मां । सचमुच आप बहुत महान हैं मां ।

और उन दोनों ने देवयानी को  वचन दिया कि वो अब ऐसी बात कभी सोचेंगे भी नहीं ।

देवयानी के चेहरे पर अब संतोष के भाव थे ।

आज देवयानी की मरूभूमि की तरह दग्ध छाती को थोड़ी राहत मिली है । शायद उसका प्रायश्चित पूरा हो गया है ।


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2 Comments

Abhinav ji

23-Dec-2021 11:52 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

25-Dec-2021 07:50 AM

🙏🙏

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