बच्चे ट्रॉफी नहीं है.....
प्यारी सखी डायरी,
आज मेरी अपनी ममेरी बहन से बात हुई वीडियो कॉल पर। उसका बेटा 10 साल का है, गिटार बहुत अच्छा बजाता है और डांस भी काफी अच्छा करता है। वीडियो कॉल पर बात करते हुए उसने अपने बेटे को आवाज़ लगाई और कहने लगी....आशु जरा इधर आओ, मासी को अपनी परफॉरमेंस तो दिखाओ। आशु बेचारा पढ़ रहा था। मैंने कहा.....रहने दे....उसे पढ़ने दे। जब कभी घर आऊंगी तब देख लूँगी। वो ज़ोर देने लगी.....नहीं-नहीं दीदी ऐसे कैसे.... आशु बेटा जल्दी आओ, मासी को कल जो आपने नया गाना सीखा है ना गिटार पर, वो बजाकर दिखाओ। आशु के चेहरे से लग रहा था कि वो जबरदस्ती बजा रहा है।
यह देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। पता नहीं कब पेरेंट्स अपने बच्चों को ट्रॉफी की तरह दुनिया के सामने पेश करना बंद करेंगे। बच्चों का भी अपना मन होता है, जबरदस्ती अपने रिश्तेदारों के सामने उनकी नुमाईश करना कहाँ तक सही है? बच्चे सीखते हैं संगीत, नृत्य या फिर चित्रकारी क्योंकि उन्हें उसमे रूचि है, ना कि वो रिश्तेदारों को प्रभावित करने के लिए सीखते हैं।
बच्चों को अपनी उम्मीदों का पुलिंदा मत बनाइये। उन्हें उनके सपने देखने और पूरे करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें अपने अधूरे सपनों को पूरा करने का माध्यम समझना छोड़ दीजिए। ऐसा ना हो कि आपके सपनों को पूरा करते-करते वो भूल जाए कि उन्होंने भी सपने देखे थे कभी।
मैं सामने से अपनी ममेरी बहन को यह नहीं कह पायी। आजकल के रिश्ते बहुत नाज़ुक है, छोटी-छोटी बातों पर सबको बुरा लग जाता है और रिश्तों में तनाव आ जाता है। इसलिये कभी-कभी जो बातें खुलकर नहीं बोल पाती, वो डायरी के माध्यम से व्यक्त कर लेती हूँ।
आभार तुम्हारा डायरी, तुमने अभिव्यक्ति को एक माध्यम दे दिया है।
चलो फिर कल मिलते हैं कुछ नई बातों के साथ।
अलविदा सखी।
❤सोनिया जाधव
🤫
24-Dec-2021 09:49 AM
Sach me kuch paristhiyan hoti hi najuk hn. Samjhdari se sb samhaalna padta h
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