डायरी ---- भाग - 3 हलचल ऐ फरवरी
लेखनी डायरी चैलेंज
विषय- फरवरी
शीर्षक- हलचल ए फरवरी
नित्यकर्म से निवृत्त होकर मैंने सोचा आज क्या करना चाहिए!! प्रात: 4.30 के आस-पास नींद
जो खुल जाती है,ज्यादा समय नहीं मिल पायेगा,
मुझे जरुरी काम से आउट आफ स्टेशन जाना है,
हालांकि शाम तक वापस भी आ जाऊंगी.....
सो पहले डायरी लिख दी जाए.....
फरवरी का महिना तो बड़ा सुहावना होता है.....
न ज्यादा ठंड और न ही गर्मी बस कहते हैं न
वो एक फिल्मी गीत याद आ गया.....
"मौसम है आशिकाना ऐ दिल कहीं से उनको
ऐसे में ढूंढ लाना"......
घूमने फिरने का भी मन करता है,क्यों कि मौसम
का तकाजा जो है......
फरवरी माह की कुछ खट्टी मीठी सी यादें हैं,
तो कुछ दुखद क्षण भी हैं.....
साल भर पहले की बात है- इसी माह की 12 तारीख को विवाह की वर्षगांठ थी, खूब अच्छे से मनाई हमने, अपने पूरे परिवार सहित....
हमारी शादी को 42 वर्ष हो चुके थे जो हमने
साथ साथ गुज़ारे चाहे सुख या दुख के क्षण हों,
जीवन में हर तरह की परिस्थितियों का सामना
करा हमने.....
फिर आई 15 फरवरी जो बहुत सी खुशियों की
सोगात लेकर आई.....
बड़े बेटे और बहू दोनों का ही जन्मदिन रहता है,
उस दिन हमारे घर के सामने सांई मंदिर में बाबा
का प्रगटोत्सव मनाया जा रहा था, जो कि बहुत धूमधाम से मनाया जाता है.....
वहाँ से दोनों बहुएं और बच्चियां आईं करीब रात
10.30 पर, फिर दोनों का जन्मदिन मनाया.....
खाना भंडारे का हम सभी खा चुके थे.....
बढ़िया दो केक भी काटे गए, सबने केक खाया,
दोनों बेटे बाहर से वीडियो कालिंग पर थे.....
रात के 12.30 हो चुके थे सब सोने की तैयारी
में थे, मुझे नींद नहीं आ रही थी सो हम पति-पत्नी
बातें कर रहे थे...हमारे पतिदेव तो वैसे भी रोज
ही 2बजे से पहले नहीं सोते थे......
रात 12 बजे के बाद दूसरा दिन लग जाता है...
मतलब 16 फरवरी का वो दिन जो हमारी खुशियों
पर ग्रहण लगा गया रात करीब 1 बजे.....
हमारा जन्म जन्म का साथ छूट गया अचानक,
अब नहीं लिख पाऊँगी... अश्रु धारा रुकने का नाम नहीं ले रही,पीछे छोड़ गये भरा पूरा परिवार.....
उनके जाने के बाद मेरा साहित्यिक सफ़र शुरु हुआ.....मेरी पहली काव्य रचना:--
" जिंदगी "
अन्तर्मन की पीड़ा को,
समाहित कर, नव पल्लवित,
आम्र तरु, नव जीवन की,
श्रृंखला का, ये सोपान लिए,
धरा पर, उतर आया,
प्रफुल्लित हो,
अपनी पहचान लिए ।
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इस रचना के बाद मेरी पहली गज़ल:--
"निशान ए अक्स"
निशान- ऐ- ज़मीं पर, वो आसमाँ में चल दिऐ,
इश्क़ का अपने ख़ुमार, बरपा के चल दिऐ,
ख़ुशहाल ज़िंदगी का आलम, मुसल्लम कर चल दिऐ,
गुमान था उन्हें ख़ुद पर, मुस्कुरा के चल दिऐ,
लबों पर थी हँसी, निशान ए जख़्म देकर चल दिऐ,
कम न थीं उनकी ज़हमते, रुसवा होकर चल दिऐ,
रहमते रब़ की उन पर, दुआऐं देकर चल दिऐ,
निशान थे क़दमों के, आहटों के बिना ही चल दिऐ,
निशाने -तीर -ए-नज़र, बना कर चल दिऐ,
क़ायनात में छबि उनकी, अक्स बना कर चल दिऐ,
मुक्कद्दर के थे धनी, आशियाँ बना के चल दिऐ,
निशान -ए-ज़मीं पर, वो आसमाँ में चल दिऐ ।
काव्य रचना -रजनी कटारे
जबलपुर (म. प्र.)