Add To collaction

अंगारे

"अंगारे"

हर गुजरता दिन पूछ रहा है हमसे,
हाथों में ये अंगारे क्यों थामे हैं हमने?

अब आप ही बताइए क्या जवाब दें हम इसके सवालों का?
क्यों इन अंगारों को थामकर जलते जीवन में थोड़ा सुकून ढूंढने लगे हैं हम?

इन अंगारों को थामकर बैठे हैं इस आस में कि दर्द कम हो जाए थोड़ा।
हमारे हिस्से के खोए हुए स्नेह का ज़ख्म अंगारों की जलन से शायद सूख जाए थोड़ा।

भूलने की कोशिश बहुत करते हैं अक्सर ,
मगर इस कोशिश में खुदको ही भूलते से नजर आने लगे हैं हम।

हां जीने की कोशिशें करते हैं हर दिन ही,
मगर इस कोशिश में जीना ही भूलते जा रहे हैं हम।

थामकर इन अंगारों को खुदको जला रहे हैं,
कि इनकी तपिश को अपने आंसुओं की वजह बता रहे हैं?

मगर ये वक्त हर बार हमारी खिल्ली उड़ाकर चला जाता है,
कि थामा तो हमने अंगारों को है स्नेह तो रेत सा कहीं फिसलता जा रहा है...

आयुषी सिंह

   20
2 Comments

kapil sharma

28-May-2021 08:08 AM

Good

Reply

बेहतरीन अभिव्यक्ति..

Reply