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रजाई

रजाई 

भाग 3 

गतांक से आगे 
ज्यों ज्यों समय आगे बढ़ता गया घर के मामलों में रामू का दखल भी बढ़ता चला गया । अब घर के लगभग हर मामलों में रामू की सलाह ली जाने लगी । हालांकि अभी तक रामू को वीटो पॉवर नहीं मिली थी मगर उसकी सलाह बहुत महत्वपूर्ण अवश्य होती थी । इससे रामू का दंभ सातवें आसमान तक जा पहुंचा था । रामू अब घर रूपी गाड़ी की ड्राइविंग सीट संभालना चाहता था मगर गोकल ने अभी तक ड्राइविंग सीट छोड़ी नहीं थी । "सत्ता के हस्तांतरण" को लेकर नोंकझोंक होने लगी । रामू को लगता था कि उसके निर्णय बेहतर होते हैं । उनसे कमाई ज्यादा होने लगी है इसलिए घर के सभी निर्णय उसी के द्वारा लिए जाने चाहिए । लेकिन गोकल को लग रहा था कि एक बार चाबी अगर रामू कुछ हाथों में आ गयी तो पूरा परि उसकी कृपा पर निर्भर हो जायेगा । अभी तो तीनों बच्चों को सैटल करना बाकी है । ऐसा कैसे होगा ? इसी उधेड़बुन में समय निकलता चला गया । धीरे धीरे रामू के व्यहवार में परिवर्तन आने लगा । अब वह एक आज्ञाकारी पुत्र नहीं होकर एक मुखिया की हैसियत वाला आदमी बनने की ओर अग्रसर होने लगा । 

जब गोकल ने देखा कि अब रामू उसकी बातों को इगनोर करने लगा है । उससे सवाल जवाब भी करने लगा है तो कभी कभी गुस्से में आकर गोकल रामू को खरी खोटी सूना भी देता था  "तू मेरा बेटा है या बाप ? ज्यादा अकल मत लगाया कर और बीच बीच में तीन पांच मत किया कर । मुझे पता है कि तू कितना हुनरमंद है । मेरे सामने तू चुप ही रहा कर "। लेकिन इन सब बातों से रामू बेअसर रहता था । गोकल की बातों पर वह खी खी खी खी करके हंसता रहता । इससे गोकल और भी ज्यादा चिढ़ जाता था । 

उधर रामू की पत्नी सरला का अलग ही अंदाज था । बात बात में मायके की प्रशंसा और ससुराल की बुराई करना उसका पसंदीदा शगल था । "हमारे मायके में तो ऐसा होता है हमारे मायके में वैसा होता है" । सरूपी, शारदा और कमला को बहुत चुभती थी उसकी बातें । शायद वह उन सबको चिढ़ाने के लिए ही कहती हो वह सब । कारण चाहे जो भी हो मगर सरला की बातों से घर का माहौल कसैला होने लगा था । 

सरला ने पहले ही कह दिया था कि उसे खेती का काम बिल्कुल नहीं आता है । उसके मायके में गाय भैंस रखने का रिवाज बिल्कुल नहीं है इसलिए वह इनका काम जानती ही नहीं है । बाकी बचा घर का काम । तो उसमें भी थोड़ा बहुत ही कर सकती है वह । क्योंकि उससे ज्यादा काम नहीं हो सकता है । आखिर बड़े घर की बेटी है वह । सरूपी ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह तो बहुत ऊंचे खानदान से आई थी मगर यहां आकर उसने खेत खलिहान, गाय भैंस सब कुछ सीख लिया था । अगर मन में सीखने की भावना हो तो कभी भी सीखा जा सकता है । लेकिन यदि कामचोरी की प्रवृति आदमी में भरी पड़ी हो तो वह कभी भी कुछ भी नहीं सीख सकता है । 

मायके की बढ़चढ़ कर बड़ाई करने , कामचोरी, झूठ बोलने के अलावा एक खासियत और थी सरला में । एक दिन शाम को एक चारपाई पर बैठकर रामू खाना खा रहा था ।.दूसरी चारपाई पर श्यामू भी खाना खा रहा था । कमला खाना परोस रही थी और सरला रोटियां सेक रही थी । अचानक रामू ने कहा "अरे, ये कैसी चुपड़ी रोटी दी है तू ने । इसमें तो घी बहुत ही कम लगाया है " 
सरला बोली "मैंने तो खूब घी लगाया था । एकदम गलगच्च रोटी दी थी । आपको कोई गलतफहमी हो गई है" । 
" कोई गलतफहमी नहीं हुई । ध्यान तो पता नहीं कहाँ रहता है तेरा और रोटियां बनाने बैठ जाती है" । 

इतने में श्यामू ने अपनी रोटी देखी । घी से गलगच्च थी वह । तभी उसने जोर से कहा " अरे, इस बार मेरी रोटी गलगच्च आई है । पहले तो बस चुपड़ी सी थी । पता नहीं क्या हुआ इस बार जो यह रोटी घी से सराबोर होकर आई है मेरे पास"। 
अब सबको सारा माजरा समझ में आ गया था । दरअसल सरला रामू और श्यामू की रोटियों में घी लगाने में भेदभाव कर रही थी । रामू के लिए रोटी गलगच्च होती और श्यामू के लिए रोटी साधारण सी चुपडी हुई होती थी । कमला की गलती से यह चोरी पकड़ी गई वरना पकड़ में कैसे आती ? कमला गलती से रामू वाली रोटी श्यामू को दे आई और श्यामू वाली रोटी रामू को दे आई । कितनी घटिया सोच थी सरला की । रामू की रोटी गलगच्च और श्यामू की साधारण । क्या हो जाता इससे ? मगर आदमी की प्रवृत्ति जब भेदभाव करने किया हो तो वह हर जगह दुभांत करता है ।  श्यामू तो रामू से दस साल छोटा था लेकिन सरला उस बच्चे से भी छल कर रही थी । 

इस घटना से सरूपी का खून खौल उठा । उसके बच्चों से भेदभाव वह सहन नहीं कर पाई और उसने सरला को खूब खरी खोटी सुनाई । उसे रोटी बनाने से जबरन उठा दिया । उस दिन पूरा महाभारत हो गया था घर में । अड़ोसी पड़ोसी भी आ गये थे घर में बीच बचाव के लिए मगर महाभारत खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था । 

तब रामू को अपनी गलती का अहसास हुआ । उसने जल्दबाजी में घी की बात छेड़कर अपनी पत्नी सरला को सबके सामने जलील कर दिया था । अगर एक रोटी कम घी वाली खा लेता तो उससे कोई फर्क पड़ जाता क्या ? अब वह क्या करे ? मां का कहना सही है । हम दोनों भाइयों में भेदभाव क्यों किया सरला ने ? यह तो गलत बात है । इसका दंड तो उसे मिलना ही चाहिए  । 

लेकिन अगले ही पल उसके दिल से आवाज आई कि पगले उस बेचारी सरला का क्या दोष ? उसने तो प्रेमवश यह काम किया । वह चाहती है कि मुझे अच्छा पौष्टिक खाना मिले । बस इतनी सी बात है । पर अब जो भी हो आखिर है तो उसकी पत्नी ही । रामू ने बात संभालते हुये कहा "अरे, मेरे पास तो थोड़ी सी चुपड़ी रोटी आ रही थी और यह श्यामू तो अभी बच्चा है । यह जानता ही क्या है ऊंच नीच के बारे में ? फालतू में ही बात का बतंगड़ बना दिया इस श्यामू के बच्चे ने " 
सरूपी गरज उठी "एक तो तेरी लुगाई ने 'एक हांडी में दो पेट' कर दिये । उससे कहने से तो तू डर रहा है बल्कि उस मासूम बच्चे पर इल्जाम लगा रहा है । बेशर्म कहीं का" । सरूपी के मुंह से झाग निकलने लगे । 

शेष अगले अंक में 


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

28-Dec-2021 08:00 PM

सुंदर भाग👌👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

28-Dec-2021 09:10 PM

🙏🙏🙏

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