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रजाई

रजाई 

भाग 4 

गतांक से आगे 
घी वाली घटन ने सरुपी को हिला दिया था । अब तक उसने केवल सुना था कि औरतें "एक हांडी में दो पेट" करती हैं मगर उसने तो इसके साक्षात दर्शन कर लिये थे ।  उसकी नजरों से सरला उतर गई । अगर दो भाइयों में इस तरह भेदभाव करेगी तो फिर कैसे निबाह हो सकेगा ? उसे सरला से ज्यादा गुस्सा रामू पर आ रहा था । 'कैसा निर्लज्ज निकला ये रामू ? खुद ने ही तो खोला था घी का पिटारा और बाद में खुद ही पलट गया । पलटूराम कहीं का । पूरा जोरू का गुलाम निकला । क्या क्या नहीं किये इसकी खातिर ? एक भी पीर, मजार, मंदिर नहीं छोड़ा । सब जगह मन्नत मांगी । व्रत, उपवास सब किये इसके लिए । और आज ? लुगाई के पल्लू में घुस गया । बेशर्म कहीं का '। सरूपी का गुस्सा शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था । 

गोकल ने समझदारी दिखाते हुये सरूपी को शांत कराने की चेष्टा की । "अभी तो बच्चे हैं दोनों जने । अभी क्या जानें ऊंच नीच ? हमारे घर में हमने कभी भेदभाव नहीं किया तो ये बच्चे भी क्यों करेंगे ? गलती हो गई बहू से , आगे से नहीं होगी । कह दिया ना उसने । अब बात यहीँ पर खत्म करो । आगे बढ़ाने. से कोई फायदा नहीं है । हम लोग तो समझते हैं ना सब कुछ । इसलिए इस विषय को यहीं पर ही खत्म कर दो , इसी में ही बुद्धिमानी है" । 

"और चढ़ा लो सिर पर । आज ये हालत है , कल का पता नहीं क्या होगा ? अगर ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा जब ये दोनों लोग लुगाई हम दोनों के सिर पर डंडे मारेंगे । फिर खाना डंडे रोज " । सरूपी क्रोध में भरी हुई थी ।.

सरूपी की बात सच लगने लगी । सरला और रामू के हाव भाव बदलने लगे । छोटी छोटी बातों पर सरला झगड़ा करने लगी । रामू हमेशा सरला का ही पक्ष लेता । सरूपी इससे और चिढ़ जाती । वह कहती "ऐसा लगता है रामू कि तुझे नौ महीने पेट में तो मैंने रखा, लेकिन पैदा तेरी बीवी ने किया है तुझे ।ये उम्मीद नहीं थी तुझसे । क्या तुझे पैदा इसी दिन के लिए किया है "? सरूपी के स्वर में उलाहना, हताशा, क्षोभ, वेदना , आक्रोश सभी कुछ थे ।

बात बढ़ती देखकर गोकल सरूपी को समझाता । रामू को झिड़कता और सरला को पुचकारता । मामला वहीं पर रफा दफा करवा देता । इस तरह समय गुजरता जा रहा था । 

एक दिन घर में खुशियों की बहार आ गयी । पूजा का जन्म हुआ । पूजा के आने से घर के मनमुटाव खत्म हो गये । गोकल दादा और सरूपी दादी बन गई थी । रामू पापा और सरला मम्मी बन गई । श्यामू भी चाचा और शारदा, कमला भी बुआ बन गयी थीं । 

पूजा पूरे परिवार की लाडली थी इसलिए गोदी में ही रहती थी । पूजा के पैदा होने से यद्यपि सरला खुश थी लेकिन वह चाहती थी कि बेटा हो  । काश कि बेटा हो जाता तो वह अलग तो हो जाती ! अब और नहीं रहना चाहती थी साझे में वह । पड़ोसन की बहू सुखिया से वह घंटों बतियाती रहती । ये सारी बातें सरूपी को अपनी पड़ोसन रामेती से पता चलती थी । वह रोज रात में ये सब बातें गोकल को भी बताती मगर गोकल सरूपी को झिड़क देता था क। और कहता था "ये वाहियात बातें मुझे ना बताया कर । दोनों बेटे बहू जमाने के लिहाज से बहुत अच्छे हैं । तू हमेशा उनकी बुराई ही करती है । कभी तो प्रशंसा के दो बोल बोल दिया कर । जब देखो तब उनके पीछे ही पड़ी रहती है" । गोकल उसे झिड़क कर करवट बदल कर लेट जाता और सरूपी बड़बड़ाती रह जाती । 

समय का पंछी अपनी गति से उड़ता रहा । शारदा की शादी हो गयी थी । घर की जिम्मेदारी अब कमला ने संभाल ली थी । अब तो रोज रोज ही झगडा होने लगा था घर में । श्यामू भी अब दसवीं कक्षा में आ चुका था । वह घर का मंजर देख ही रहा था लेकिन कर कुछ नहीं सकता था । मन मसोस कर रह जाता था वह । 

जिसका इंतजार सरला को था , एक दिन वह घड़ी आ ही गई । फूल सा राजकुमार उसकी गोदी में आ गया । सरला को अब किसी की भी परवाह नहीं थी । उसे घमंड आ गया । उसने घोषणा कर दी कि यह दीपावली सबके साथ मनाई जाने वाली अंतिम दीपावली है । दीपावली के बाद वह अलग रहेगी । सरुपी भी तंग आ गई थी रोज रोज की लड़ाई से । सब मौहल्ले वाले रोज तमाशा देखते थे । हर घर में तमाशा होता है और लोग तो तमाशा देखने के शौकीन हैं इस देश में । और अगर ये तमाशा सास बहू के झगड़े का हो तो इससे बेहतर मनोरंजन और क्या होगा ? शायद इस मूलभूत भाव को देखकर ही टेलीविजन पर सास बहुओं के धारावाहिक बनाने का आइडिया आया हो ? सारे चैनलों पर ऐसे घर तोड़ू धारावाहिकों की बहार लगी हुई है ।  

सारे पड़ोसी अपने अपने घरों से निकल कर अपने घर की छत पर आ जाते । फिर फ्री का तमाशा देखते । कुछ तो इतने अच्छे दर्शक और श्रोता होते थे कि नीचे आकर वे ऐसा ही तमाशा खड़ा कर देते और फिर लड़ते लड़ते ऊपर आ जाते । फिर बाकी लोग उनका तमाशा देखते । सरूपी और गोकल भी जब पडोसियों को लड़ते झगड़ते देखते तो फिर खुद झगड़ना छोड़कर उनकी लड़ाई देखने लग जाते और दोनों का उत्साह वर्द्धन करते रहते । 

दीपावली के बाद आखिर एक दिन रामू ने कह दिया "अब बहुत हो गया बापू । अब और नहीं सह सकता हूँ । सरला बेचारी कब तक सहन करेगी इतने अत्याचार ? मेरा तो बंटवारा कर दीजिए आप । अलग रहेंगे तो कम से कम चैन से रोटी तो खा सकेंगे" । रामू ने.अपना फैसला सुना दिया था । 

गोकल भी तैयार था इसके लिए । वह भी जानता था कि अब और निबाह नहीं हो पायेगा । इसलिए उसने भी बंटवारा करने का मन बना लिया था । पर इसमें भी पेंच फंस गया था । रामू आधा खेत चाहता था मगर गोकल तीसरा हिस्सा ही देना चाहता था । एक खुद का, एक रामू का और एक श्यामू का । खूब जद्दोजहद हुई । पंच बैठाये गये । रामू ने पंचों को भी येन केन प्रकारेण अपने पक्ष में कर लिया था । पंचों ने समवेत स्वर से फरमान सुना दिया कि रामू को आधा खेत और आधा घर देना पड़ेगा । पंचों के इस फैसले सो गोकल और सरूपी हतप्रभ रह गये । मरता क्या न करता वाली कहावत के अनुसार दोनों ने मन मारकर वह फैसला मान लिया । 

घर और खेत के दो हिस्से हो गये । दो कमरों का घर था । एक कमरा रामू को दे दिया तो दूसरा गोकल के पास रहा । खेत में भी बीचों बीच मेढ़ बनाकर बंटवारा कर दिया । गोकल , सरूपी, कमला और श्यामू एक कमरे में तथा रामू, सरला और उनके बच्चे दूसरे कमरे में । इस तरह बंटवारा करके फौरी तौर पर लड़ाई को टाल दिया गया । मगर चिंगारी तो राख में रहकर भी जलाने की क्षमता रखती है । 

क्रमश: 

शेष अगले अंक में 

हरिशंकर गोयल हरि
12.12.21 


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