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रजाई

रजाई 

भाग 5 


गतांक से आगे 
रामू यद्यपि अलग हो गया था पर रहता तो उसी घर में था । और जब घर एक ही हो तो फिर लड़ने के सौ बहाने तैयार रहते हैं । एक एक कमरा दोनों के बंट में आ गया था इसलिए उन दोनों कमरों की सफाई तो बहुत बढ़िया हो जाती थी । मगर बाहर चौक को कौन साफ करे ? शामिलाती जगह बेचारी अनाथ जैसी पड़ी रहती है । कोई धणी धोरी नहीं होता है उसका । सरूपी समझती थी कि सरला करेगी मगर सरला सोचती थी कि उसे तो एक कमरा ही दिया है और वह उसकी साफ सफाई रोज ही करती है , बाकी का मकान जिसका है , वह करे सफाई । मेरा क्या लेना देना ? इस चक्कर में गंदगी का ढ़ेर लग जाता जो लड़ाई का कारण बन जाता था ।

इसी तरह बिजली पर भी झगड़ा हो जाता था । सरला तो यही कहती थी कि उसका तो एक कमरा है बस, उसका ही बिल देगी वह । बाकी से उसे क्या मतलब ? एक दिन चौक का बल्ब फ्यूज हो गया । नया बल्ब कौन लाये ? अंधेरे में बैठना, आना जाना मंजूर लेकिन पांच रुपए का बल्ब नहीं ला सकते ? बस, इसी बात पर सरूपी और सरला में झगड़ा हो जाता था । कभी कभी रामू भी बीच में कूद पड़ता था तब सरूपी को महसूस होता था कि बेटा पैदा करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी उसे ।  बेटे की चाह ने उसे कहाँ कहाँ नहीं दौड़ाया था ? सबसे मन्नतें मांगी तब जाकर ये रामू नामक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । और आज ये निर्लज्ज मुझसे ही जबान लड़ाता है । बेटा चाहिए , बस बेटा ही चाहिए । यही तो ख्वाहिश थी ना उसकी । मगर बेटा होकर क्या मिला उसे ? क्या इसी दिन के लिए हुआ था रामू ?  क्या जी जलाने के लिये पैदा हुआ था ? क्या बेइज्जती करवाने के लिये हैं मंदिर मंदिर परिक्रमा की थी ? इससे तो बेहतर बेटियां ही हैं । कम से कम मुंहजोरी तो नहीं करती हैं वे । सरुपी मन ही मन कुढ़ती रहती थी ।

दिन बीतते रहे । दोनों परिवार एक ही घर में रहते हुये लड़ते भी रहते और एक दूसरे के हाल चाल पूछते भी रहते थे । इस सबके आदी हो चुके थे दोनों परिवार । कमला की भी शादी हो गयी थी और श्यामू दिल्ली चला गया था पढने के लिए । श्यामू ने घर की हालत देख रखी थी । पांच बीघा जमीन में दिन रात मेहनत करके खाने को रोटी भर मिल पाती थी बस । गोकल को मजदूरी भी करनी पड़ती थी जिससे श्यामू की पढ़ाई का खर्च चल सके । गोकल की उमर भी खूब हो गई थी और हाथ पांवों में अब वो ताकत भी नहीं रही थी । मगर जब तक जीना तब तक सीना । काम तो करना ही पड़ेगा और कोई विकल्प नहीं था गोकल के सामने । 

श्यामू ने तय कर लिया था कि वह खेती नहीं करेगा । पढ़ लिखकर कोई नौकरी करेगा । खेती से काम चलने वाला नहीं है । उसने कड़ी मेहनत करनी प्रारंभ कर दी । उसके अच्छे नंबर आने लगे । इसी बीच दिल्ली सरकार ने पुलिस उप निरीक्षक के पदों पर भर्ती करने के लिए वैकेंसी निकाल दी । श्यामू ने इस पद के लिए अपना भाग्य आजमाने का निश्चय कर लिया । 

श्यामू ने अपने पिता के पैर छूकर वह फॉर्म भर दिया और रात दिन एक कर वह पढ़ने लगा । पढते पढते कब रात हो जाती , कब सुबह पता ही नहीं चलता था । मगर धुन का पक्का था श्यामू । परीक्षा का दिन भी आ गया । धड़कते दिल से परीक्षा दी उसने और भगवान का स्मरण किया । परीक्षा देकर वह अपने गांव चला आया । गांव में आकर वह खेती बाड़ी में गोकल का हाथ बंटाने लगा । 

तीन चार महीने में उस परीक्षा का परिणाम आ गया और उसमें श्यामू पास हो गया । पूरे गांव में हो हल्ला मच गया । श्यामू अब दिल्ली पुलिस में थानेदार बन गया था । रातोंरात किस्मत बदल गई थी उसकी । गोकल की किस्मत, सरूपी की प्रार्थना और श्यामू की मेहनत रंग लाई । खुशी तो रामू को भी बहुत हुई । अलग रहता है तो क्या हुआ आखिर है तो छोटा भाई । बहुत दिनों बाद दोनों भाई गले मिले थे । ऐसा लग रहा था जैसे राम और भरत का मिलन हो रहा हो । मगर सरला को यह अच्छा नहीं लग रहा था । श्यामू की सफलता से वह मन ही मन जल रही थी पर अपनी भावनाओं को चेहरे पर आने नहीं दिया उसने । उसे पता था कि उसकी सबसे बड़ी ताकत रामू ही है और आज रामू के दिल में अपने भाई के लिए प्यार का सागर उमड़ रहा है । यदि उसने आज कुछ भी कह दिया तो रामू बहुत बिगड़ जायेगा । इसलिए उसे चुपचाप ही रहना होगा । सही मौके का इंतजार करना ही होगा । इसलिए वह मन ही इस आग को दबा गयी । 

श्यामू ने दिल्ली में नौकरी शुरू कर दी । पहली ही पोस्टिंग में उसे बढिया थाना मिल गया था । थाने में ही क्वार्टर बना हुआ था । तीन कमरों का क्वार्टर था वह । इतना बड़ा मकान कभी देखा नहीं था श्यामू ने । किचन भी मोड्युलर । काम करने को दो दो अर्दली । ऐसा लगता था जैसे वह किसी रियासत का जागीरदार बन गया है । वह चाहता था कि गोकल और सरूपी भी यहां पर आ जायें और तीनों जने खूब मजे से इतने बड़े मकान में रहें । मगर गोकल ने गांव छोड़ने से मना कर दिया । उसका मन शहर में नहीं लगता था । सरूपी की तो इच्छा थी कि वह श्यामू के साथ दिल्ली चली जाये और अपने बेटे की थानेदारी के ठाठ देखे । मगर गोकल को अकेला छोड़कर नहीं जा सकती थी वह । इसलिए वह मन मसोसकर रह गई । 

श्यामू के थानेदार बनते ही उसके लिये रिश्तों की बाढ़ सी आ गयी थी । तरह तरह के रिश्ते आने लगे । एक से बढ़कर एक रिश्ते आने लगे । रिश्तों के कारण रामू का जुड़ाव फिर से घर की ओर होने लगा । जो भी आदमी रिश्ता लेकर आता था उससे रामू ही बातें करता था । विशेषकर क्या लेना देना है ? रामू ही बताता था । रामू सही में बड़े भाई की भूमिका में आ गया था । 

एक अफसर की बेटी रचना से श्यामू की शादी हो गई । शादी खूब धूमधाम से संपन्न हुई । रचना का बाप पुलिस महकमे में उप अधीक्षक के पद पर पदस्थापित था । खूब शानदार स्वागत हुआ बारात का । तरह तरह के व्यंजन बनवाए गये । खूब दिल और तिजोरी खोलकर शादी की थी रचना के पिता ने । ऐसी शादी किसी की भी नहीं हुई थी अब तक गांव में । उस शादी के बंदोबस्त और मेहमाननवाजी के चर्चे महीनों तक होते रहे चौपालों पर । गांव की गलियों में और खुसर पुसर में भी । जब भी कोई लुगाई उस शादी का जिक्र करती सरला के तन बदन में आग लग जाती थी । उसके मायके वालों की तो कोई बात करने को तैयार ही नहीं था । मन ही मन में उसने अपनी दौरानी रचना से गांठ बांध ली थी . 

शेष अगले अंक में 


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