रजाई
रजाई
गतांक से आगे
सब लोग खाना खा चुके थे मगर सरला ने खाना नहीं खाया । दोपहर के दो बजने वाले थे । श्यामू बहुत परेशान हो गया था । उसने रचना से पूछा कि उसने सरला भाभी को कुछ कह तो नहीं दिया ? रचना ने इंकार में सिर हिला दिया । रामू भी वहीं बैठा हुआ था सबके बीच । वह ये सब बातें सुन रहा था मगर इन बातों पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा था । वह सबसे प्रेम से बातें कर रहा था । श्यामू ने रामू से कहा "भैया, भाभी को कहो ना खाना खाने के लिए । दो बज रहे हैं " । श्यामू का स्वर आर्द्र हो आया था ।
"तू ही कह दे । तेरी भाभी है न । तो मुझे बीच में क्यों लेता है" । रामू ने पल्ला झाड़ दिया ।
श्यामू के पास अब और कोई विकल्प नहीं था । वह सरला भाभी के पास गया । सरला उस वक्त रोटियां बना रही थी ।
"अरे भाभी ! ये रोटियां क्यों बना रही हो ? सब लोग कब से इंतजार कर रहे हैं आपका ? आओ, खाना खा लो" ।
"मेरा खाना तो तैयार हो गया, भैया जी"
"आपने खाना बनाया ही क्यों ? जब घर में एक छोटा सा कार्यक्रम है तो फिर ये खाना " ? श्यामू ने अचंभे से पूछा
"आपने मुझे कहा था क्या खाना खाने के लिये" ? सरला ने एक सवाल दाग दिया ।
"मैंने भाईसाहब को कह दिया था ना" ।
"तो वो आ गये ना"
"जब वो आ गये तब आप भी आ जाइये" ।
"आपने मुझे कहा ही नहीं तो मैं कैसे आऊं" ?
"तो क्या घर के सभी सदस्यों को अलग अलग कहा जाता तब आतीं आप" ?
"औरों का तो मुझे पता नहीं पर आपने मुझे नहीं कहा इसलिए मैं नहीं आ सकती हूं" । सरला ने सपाट शब्दों में अपना मंतव्य बता दिया ।
"पर मां ने तो कहा था ना आपको"
"उनकी बात अलग है । खाना उनके यहां थोड़े ही था । कार्यक्रम तो आपके यहाँ था न"।
"मैं और मां कोई अलग अलग हैं क्या ? जब घर के बड़े व्यक्ति ने कह दिया तो फिर अब नहीं खाने का कोई कारण तो नजर नहीं आ रहा है" ।
"वो तो जैसी आपकी मां वैसी ही इनकी मां । कोई फर्क थोड़े ना है दोनों में । खाना आपने तैयार करवाया है तो आपको कहना चाहिए था । उनके कहने की कोई वैल्यू नहीं" ।
यह सरासर मां का अपमान था । इन शब्दों को सुनकर श्यामू की आंखों में खून उतर आया मगर वह कर भी क्या सकता था उन हालातों में ?
"रचना ने भी तो कहा था आपसे भाभी" !
इस पर सरला जोर जोर से हंसने लगी । "वह तो बिचारी अभी आई थी जब मैं सब्जी बना रही थी । तब उसका कहना और ना कहना कोई मायने नहीं रखता है" । सरला ने आखिरी रोटी सेंकते हुये कहा ।
सरला के तर्क शास्त्र के सामने श्यामू निरुत्तर हो गया । गजब के तर्क थे उसके पास । एक से बढ़कर एक । अच्छा अच्छा वकील भी पानी भरने लगता था सरला के सामने । फिर श्यामू की तो औकात ही क्या थी ? निराश श्यामू वापस आ गया । उसका चेहरा देखकर ही बाकी सबने अंदाज लगा लिया था कि अब क्या होने वाला है ।
"उदास क्यों होता है बेटा, उसकी जैसी मरजी । हमें तो पहले ही अंदेशा था कि वह ऐसा ही करेगी । हमारी खुशियां कहाँ सुहाती हैं उसे । कोई बात नहीं । एक काम करो । एक थाली में खाना लगा लो । रचना दे आयेगी उसे" । सरूपी ने समाधान निकालने के लिए पहल की ।
श्यामू ने मां का मन रखने के लिए यह प्रस्ताव स्वीकार तो कर लिया मगर उसे कतई विश्वास नहीं था कि सरला खाना ले लेगी । मगर फिर भी औपचारिकता तो पूरी करनी ही थी ।
खाना लेकर रचना सरला के पास आई मगर सरला ने खाना नहीं लिया । अब बहुत हो चुका था । हर एक बात की भी कोई सीमा होती है । श्यामू ने भी रचना को वापस बुलवा लिया ।
मेहमानों को बिदा करना था । सबको आज ही वापस जाना भी था । इस चक्कर में चार बज गये थे ।
बिदा करने में एक घंटा लग गया । बिदा करके रचना चाय बनाने लग गई । सब लोगों को चाय पीकर जाना था । चाय पीने पिलाने में छ: बज गये थे । मेहमान एक एक कर जाने लगे । श्यामू के साले साली अपनी बहन रचना से बतियाने में लगे रहे । साढ़े छ: बजे घर से रवाना हुये थे वे । रचना शाम के खाने की तैयारी करने लगी ।
आठ बजे के करीब सब लोग तब चौंक गये जब शारदा अपने बच्चों सहित और श्यामू के ससुराल वाले वापस लौटकर घर आ गये ।
"अरे, ये क्या हुआ ? बस निकल गयी क्या" ? सब लोग एकदम से बोले । "जब जाना ही था तो समय से निकलते" । सरुपी ने भी उलाहना दिया ।
"बस तो तब निकलती ना जब आती ? जब बस आयी ही नहीं तो निकलती कैसे ? बस स्टैंड पर और क्या करते हम लोग ? सर्दी का मौसम है बच्चों को ठंड लगने के डर से वापस आ गये घर" । हंसते हुये शारदा ने कहा ।
"बहुत बढिया हुआ । जी भरकर बातें करेंगे आज की रात" ।
फिर सब लोग खाने की व्यवस्था में मशगूल हो गए ।
शेष अगले अंक में
हरिशंकर गोयल "हरि"
26.12.21
Seema Priyadarshini sahay
07-Jan-2022 08:15 PM
बहुत सुंदर भाग
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