सौत
प्रतियोगिता हेतू
विषय : कहानी
शीर्षक :"सौत"
सतरंगी जमीन को पैरों कुरेद रही थी ..।
जमींदार बैष्णौ ने सतरंगी को उसके मां -बाप से खरीदा था ,वह बेहद गरीब किसान की बेटी थी । सतरंगी उमर से दुगने साहूकार की पत्नी बनी, घर में अनाज के वास्ते । पीछे दो- दो बहनें थीं यह सोच घर का बोझ कम हो जाएगा ।
राजस्थान के जैसलमेर में बैष्णौ की अपनी धर्मशाला थी, हजारों हैक्टेयर जमीन और हवेलियां । कोई कमी ना थी ।
एक बार...
सतरंगी चूल्हे में रोटी बना रही थी..गर्मा गर्म परोस रही थी..साथ में छांछ मठ्ठा का गिलास ,मक्खन ,चोखा व कचौड़ी ..।
सतरंगी सौत को "बीबी"कहती थी ।
"बीबी और लेनी है क्या..?" सतरंगी पूछी ।
"नहीं रे.. सत्तो और नहीं बस ..!" बीरनी बोली...। कत्थई आंखों से सौत सौतियाढाह मन ही मन पी के रह जाती ..।
सोचती रहती बीरनी,"बीमार हूं , कौन सेवा करेगा भला..??"
याद पड़ता उसे जब वह नई -नई ब्याह कर आई थी--
पूरे राजस्थान में उस जैसी खूबसूरत क्षत्राणी नहीं थी..। दूर दूर तक मशहूर रही कहानियां उसकी खूबसूरती की..।
बहुत रिश्ते आए थे परंतु पिता को राजसी ठाठ और ऐशो आराम वाला परिवार पसंद था..उस श्रेणी में सर्वप्रथम बिष्णौ ही जंचा था..।
जब उसकी डोली जैसलमेर किले से होकर जा रही थी शाही ,राजशी ठाठ बाट शौनो -शौकत भरी बरात ।
खूबसूरत लहंगे से सजी नवेली दुल्हन ..घूंघट कड़ा था..मोहक यौवन अभी मोरनी की भांती पंख फैलाए उन्मुक्त गगन की ओर निहार रही था,एक चातक पक्षी की तरह स्वाति नक्षत्र सा इंतजार कर रही प्रेम का ..।
जब नौजवान बैष्णौ ने उसके हाथों में लिखा अपना नाम खुदा देखा था..तो मूछों में ताव देकर बोला," ओ म्यारी रानी ...तुझको का ला दूं ..जो तू खुश रह पावे..!"
शर्माते हुए बोली," कछु ना ..थार प्रेम ही घणा सा रे वीर..!"
चुड़ियों की खनक और वातावरण में हंसी गूंज उठी थी..।
कुछ वक्त बाद--
दो सुंदर बच्चे ..और वह बीमार रहने लगी..दवा दारू ..तंत्र मंत्र सभी तो कराया कुछ असर ना हुआ था..।
हड्डियों का ढांचा हो गई थी बीरनी..।
वह उठ ना पाती ..कोई ना कोई उसकी तिमारदारी में खड़ा रहता..।
घर जर्र -जर्र लगता...कितना चहचहाट रहती थी कभी..आज सुनियोजित मौत बन गई जैसे..."शरीर बिन आत्मा के"।
साहूकार की रियासत का विस्तार बहुत
था । वह बीरनी को देख दुखी रहने लगा था ।
एक दिन ---
बगल के मीणा गांव से मुखिया आए हुए थे.. । उन्होंने समझाया और कहा," ब्याह करलो ..दूसरा.. काम में जी लग जाएगा और घर भी सम्भल जाएगा..।"
वहाँ पर बीरनी भी बैठी थी..वह रो पड़ी थी..परंतु खुद को असहाय पाकर बोली," बींदणै कर ले ब्याह ..थारे वास्ते और घर के वास्ते..कोई नहीं रे..!'
उसकी अनुमति सोच बिष्णौ कर बैठा ब्याह ..दूसरा..।
पूरे एक साल हो गया बीरनी कभी कभी इतनी गंभीर हो जाती कि बिस्तर से नीचे रखना पड़ता था..।
स्वप्न में खोई सतरंगी भी कोई सुख ना देख पाई ससुराल में भी ..।
पहले ही ,छुए भी नहीं थे कि, उड़न छू हो गए..। कसक रह जाती ।
सतरंगी को स्मरण हुआ ..
बचपन में एक बार जब वह मेवाड़ के किराड़ू मंदिर गई थी ..जहां मान्यता थी कि ,एक संत के श्राप से पूरा गांव पत्थर का बन गया था ..।
जिस कुम्हारन ने संत की मदद की थी ,उसको पीछे देखने को मना करने पर मोह वश पीछे देखा था ,वह भी बुत बन गई थी ।
क्या भाग्य उन बुतों की तरह है,जहां नजर फेरती पत्थर ही पत्थर दिखता उसे ..।
अजमेर में पुष्कर मेला लग रहा था..
सतरंगी को मामा अजमेर से लेने आए थे । मायके जाने का उत्साह कुछ अधिक ही था..। उसके पास भी बहुत सुंदर आभूषण दिए थे वीर जी ने परंतु ,उतने सुंदर नहीं जितने बीरनी के पास थे..।
रात को वह चुपके से बीरनी के सिराहने से कमरे की चाबियों का गुच्छा निकाला और चुपके से कमरे में गई और बक्से से सुंदर -लहंगा चुनरी व आभूषण निकाल कर पहने ।
दर्पण में खूबसूरती को देखती है । मन ही मन मुग्ध होती है ,उसे लगता है वह रूपमती है,वह बाजबहादुर मांडू की रानी..।
लेकिन उसे पता था उसका बचपना व खूबसूरती गृहस्थी के भंवर जाल में फंस कर रह गई । वो कौन है..?? सौत की सुंदर दासी ना ??"
तभी उसे आवाज सुनाई दी," पानी पानी...पा....आ...नी..।"
सतरंगी चौंकी सुना,बीरनी आवाज दे रही है वह तुरंत कपड़े व आभूषण वापस रख वहाँ से चली गई..।
उसने बीरनी को पानी दिया और चाभी को जगह पर रख दिया ।
एक कपड़े से बीरनी का मुंह पोछा । उसको आराम से लिटा दिया था ।
बीरनी बोली," ओ री..! तू सुंदर से ..मेरा नौ लखा हार बहुत सजे रे तुझ में..ले जा अपने अजमेर पुष्कर मेला पहन जाना । और हां..कपड़े भी ले जा कुछ मेरे..।
अब मोहे तन फबता नहीं है ना.. सब!"
उसकी बातें सुन ना जाने क्यों उसकी कजरारी आंखें छलछला आईं..। "कौन सा भाग्य लिखा प्रभु तूने..? मैं ठहरी मजबूर यह भी मजबूर.. दोनों अपनी जगह हैं ।"
तभी उसका ध्यान टूटा बीरनी बोली,"सुण रे सत्तू ! भोर तुझे जाना है । जा सो जा ..कलेवा बनना है सुबह..।" आंखों के गड्ढे में स्याह घेरों के निशानों की पीड़ा वह समझ रही थी ।
कह दी थी वह भी," बींदणी जल्दी ही आऊं मैं । चलूं अच्छा ।"
गले लगा चल दी मामा के साथ अजमेर।
मां और पिता के लिए बीरनी ने काफी सामान बंधवा दिया था। वह बहुत प्रसन्न थी ।
अगले दिन ,
पूर्णिमा का दिन -
सहेलियों को देख सतरंगी बहुत खुश हुई सज्जो,छिंगरी,मंदीरा व श्यामवती भी आई थी ।
उनके साथ पुष्कर मेले के लिए तैयार हुई और निकल पड़ी । वह उस महौल को भूल जाना चाहती थी, जिसमें रहकर दम घुटने लगा था ।
वे सभी..
झूले पर खूब हंस रही थी मस्त गीत गाती चहक रही थीं..मानो पूरा पुष्कर नाच रहा हो उनके साथ..।
गीत गा रहीं थीं सभी..
"ओ.....जी ओ...मनवा डोले..रे,
गाय रे गीत चहुं दिशा बोल्ये रे..!!
घाघरा और चुंदड़ी..
मनवो ला द्यों देवर जी..!!
जामैं..
राजस्थानी गीत..
बस जा मनमें प्रीत...!!
ओ ..जी...ओ..जी..!!
झांझर बाजै ,पायल बाजै ..
गोटा लाग्यौ सखी री...!!
मैं बींदणी.ओ...ओ मैं सुंदर..!!
काजल लाग्यौ करूं मैं श्रृंगार..!!
जी ओ...!!"
शाम को पुष्कर झील में स्नान आदी कर निकल पड़ी ब्रह्मा जी के दर्शन करने मंदिर । फिर सहेलियों के साथ घर लौट चलीं ।
दो दिन बाद---
दिन खबर आई कि बीरनी चल बसी ..। वह तुरंत दौड़ चली जैसलमेर को..मामा छोड़ने चले ।
वहाँ रोना पीटना हो रहा था । उसे कुछ समझ ना आया आखिर क्या हुआ अचानक बीबी (बीरनी)को ..??
शव का दाहसंस्कार कर दिया गया..।।
आखिर --
रो पड़ी वह भी...!
उसने बक्सा खोला ,सजन नैनों से चोली भीग चुकी थी ..। वह बुदबुदाई," नौलखा हार कपड़े सभी तो बीरनी का है ..। सभी तो..ओहह बीरनी तेरे बच्चे मेरे रहे अब । मैं पालूं उनको । गरीबी और रोग का रिश्ता रहा हमारा ।
अगर गरीब ना होते हम तो बापू यों पल्ले ना बांधता और तू बीमार ना होती मैं क्या यहाँ आ पाती..बीबी.. ।
तू बहुत अच्छी थी..म्यारी सौत..। तूने मुझे अपनेे कपड़े पहने देखा परंतु ,तू बोली को नी । थारो दिल बड़ौ सा । तू भी पिस रही थी और मैं भी रे...मेरी बीरनी ..। "
कहते हुई बीरनी की सिलवट पड़ी हुई चुनरी को तह करने लगी ,एक बूंद आंसू उसके गोटे पर लग गया था , सतरंगी सतरंग बन गई थी ..!!
#लेखनी
#लेखनी कहानी
#लेखनी कहानी का सफ़र
सुनंदा..💗✍
Seema Priyadarshini sahay
28-Dec-2021 08:30 PM
बहुत ही सुंदर कहानी
Reply
Sunanda Aswal
28-Dec-2021 09:46 PM
धन्यवाद हृदय से आभार 🌺🙏🤗
Reply
Ali Ahmad
28-Dec-2021 10:00 AM
Achchi kahani h
Reply
Sunanda Aswal
28-Dec-2021 09:46 PM
धन्यवाद हृदय से आभार 🌺
Reply
Shrishti pandey
28-Dec-2021 08:36 AM
Nice
Reply
Sunanda Aswal
28-Dec-2021 09:46 PM
धन्यवाद हृदय से आभार 🌺
Reply