लक्ष्य
उंचे उंचे उडानों की मेहनत रंग लाती हैं
किस्मत भी हाथ ठोंक कर सलामी लगाने आती हैं
खवाबों को हकीकत बनाने में जो लग जाते है
कामयाबी भी उन्ही के घर दस्तक लगाने आती है ...।।
छोटे से कस्बे में जिसकी किलकारियां गूंजी, झोपड़ी में जिसका बचपन बीता, माँ का लाडला ,बाबा का दुलारा,एक भाई और दो बहनों का राजा भैया, संजय ।
ऐसे साधारण-सी जिन्दगी जीने वाले परिवार में जन्मे एक लडके की कहानी है, जहाँ मुश्किल से एक वक्त का चूल्हा जलता था ।बाबा मजूरी करके थोड़ा सा कमाकर लाते और गुजारा चलाते, छोटे छोटे चार बच्चों को भी संभाल कर माँ खेत में हल चलाने जाती।
दिन बीते, महिने, साल गुजरने लगे, बेटा संजय बडा हो रहा था, अपने परिवार के संघर्ष से वो अंजान नहीं था ।सरकारी स्कूल से चौथी तक शिक्षा की अब बढते खर्च की वजह से स्कूल बंद करने की नौबत आई। भाई और बहनों ने तो पढाई छोड़ दी ।
इधर उन नन्ही सी आखें ख्वाब देखने लगी थी, अपने परिवार को अच्छी जिन्दगी देने का लक्ष्य बनाने लगी थी। पढ लिखकर उसे डाक्टर बनना था ।पढाई में शुरू से उसकी रूचि अधिक थी।
पर जब बात स्कूल बंद करने पर आयी तब उस छोटे से बच्चे ने एक हॉटेल में वेटर का काम शुरु किया ।
दिन मे काम, रात में पढाई करता ।घर में बिजली न थी तो सडक के किनारे बैठकर अपना अभ्यास करता।
ऐसे ही जीवन गुजर रहा था, बोर्ड की परीक्षा हुई और प्रथम श्रेणी से पास हुआ। अब माँ बाप का सीना फूलकर चौडा हुआ था...
सपनों को सींचता हुआ संजय अब मेहनत और लगन से बारहवी कक्षा में भी अव्वल आया। अपने सपनों के रास्ते में उसने गरीबी को रूकावट बनने नहीं दिया और अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढता रहा।
अब गाँव छोड़ कर बडे शहर में जाना पढा पर संघर्ष अभी भी जारी था ,डाक्टर की पढाई करते करते पेपर बाँट ने घर घर जाना, चाय के गल्ले पर कप प्लेट धोना,ऐसे छोटे छोटे काम करता रहा ,कभी कंपाउंडर बना तो कभी वाॅचमन ।
वक्त बीता अब संजय जीत चूका था, अब वह एम एस ऑर्थो डाकटर बन गया था ... उसका लक्ष्य पूरा हुआ था।यह एक साधारण परिवार के असाधारण बच्चे की अद्वितीय साहस की सत्य कहानी है ।।।
सीख = सपनों को देखने का साहस है तो उसे पूरा करने का जुनून भी जरूरी है ।।