इतना कहकर विक्रम चुप हो गया और नीची नजर रख के कुर्सी पर बैठ गया | कुछ पल के बाद किशोरीलाल उठा और दो चक्कर लगाये उस रुम में और पूछा,” फिर क्या हुवा विकी?| मेरी बहन जब तक जीवित थी उस के एक एक मिनिट का हाल सुन ना चाहता हु |
अचानक तंद्रा से उठा विक्रम और किशोरीलाल की और देखा और फिर बोलने लगा:
विक्रम और सुनंदा दोनों धीरे धीरे टेरेस से नीचे उतरे | बाहर बिलकुल सन्नाटा था| एक कोने का रूम होने से किसी की नजर वहा जानी मुश्किल थी| पहेले विक्रम अन्दर गया और फिर सुनंदा को अन्दर आने का इशारा किया| नारायणप्रसाद और उन की पत्नी दोनों गहरी नींद में सोये थे| शायद उन लोगो को अपनी बेटी की चिंता अब नहीं थी| किन्तु उन्हें क्या पता था की आज उसकी बेटी की इज्जत मिट्टी में मिल चुकी थी|
सुनंदा ने बड़ी मुश्किल से बाथरूम में जाकर अपने आप को सम्भाला और उस के बाद विक्रम भी फ्रेश होकर वापस आ गया| फिर दोनों सो गये| सुबह जब नारायणप्रसाद ने उसे उठाया तब सुबह के ४ बजे थे और केवल 3.30 घंटे की नींद हुयी थी| बाकी तीनो को तैयार हुवा देखकर विक्रम ने ने नींद में ही पूछ लिया,”अन्कल क्या हुवा?”
“अरे भाई सूर्योदय देखने नही जाना है क्या ?” नारायणप्रसाद ने पुछा, “यहा का सूर्योदय देखने के लिए तो हज़ारो मिल दूर से लोग आते है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ हम बाहर खड़े है। फ्रेश होकर आ जाओ ।”
विक्रम धीरे से खड़ा हुवा और बोला,”ठीक है अंकल 10 मीनीट मे आया।”
तीनो रूम के बाहर जाने लगे। विक्रम फ्रेश होने चला गया। यहा नारायणप्रसाद ने सुनंदा को कुछ लाने के लिए वापस रूम मे भेज रखा था। विक्रम बाथरूम से बाहर आया तो सुनंदा बैठी थी। उसने आश्चर्य से पुछा,”क्यू अंकल कहा गये ?”
“नीचे खड़े है और बोला है जल्दी आप को लेकर नीचे चली जाऊ। पिताजी और माताजी नीचे चाय पीते बैठे है। । पिताजी की शाल लेने आई थी, सॉरी आई नही थी मूज़े भेजा गया है।“ सुनंदा ने जल्दी बोला और बाहर जाने लगी।
विक्रम ने जट से उसे पिछे से बाहो मे भर लिया और चेहरा घूमाकर होठो को चूम लिया। सुनंदा के मूह से हल्की चीख निकल गयी। विक्रम ने अब तेज़ रोशनी मे पहली बार सुनंदा को देखा। होठ पर काटने के निशान थे। चेहरे पर दो तीन जगह छाले पड चुके थे और बाकी का पूरा शरीर शाल के अंदर लपेटा हुवा था।
विक्रम ने पुछा,“अंकल ने कुछ पुछा नही ?“
“मैने बता दिया की हम दोनो के पैर फिसल गये थे और गिर पड़े तो थोड़ी सी चौट आ गयी है।’’ कहकर उसने नज़रे नीची कर दी।
“थेंक्स’’ कहकर विक्रम ने फिर उसे चूमना चाहा, लेकिन इस बार सुनंदा ने अपने हाथो से उसे रोकते हुये बोली, ”मैने जुठ बोला है, मूज़े ये नही पता की उन लोगो को स्वीकार हुवा की नही, अब आप मेहरबानी कर के थोड़े दिनों के लिए मूज़े छोड़ोगे, ता की मुज मे आप को और सहन करने की ताक़त वापस आ जाये।’’ कहकर सीधी नज़रो से उसने विक्रम बोला |
“नहीं रहा जाता है ना’’ कहकर विक्रम देखता रह गया। ’’सच कहू ना एक बार तुजे चख लिया है ना अब रहा नही जायेगा।’’
सुनंदा ने चेहरा उपर की तरफ घुमाया और दोनो हाथ जोड़े और बोली,” हे इश्वर अगले जनम मे इसे औरत बनाना और मूज़े मर्द और इसी जगह पे हमदोनो को ले आना और मे इस का..…” अभी वो पूरा करे इसके पहले विक्रम ने पूरा किया, बलात्कार करूंगी” और वो ज़ोर से हस पड़ा।
सुनंदा ने फिर दोनो हाथ जोड़कर अपने सर पर लगाये और बोली,”हे मेरे इश्वर अब अगर मन भर गया हो तो चलिये, वरना वहा मेरा बाप हम दोनो पे शक करेगा” और वापस जाने के लिए मुडी और फिर से चेहरा इस तरफ घुमाकर आगे कहा,”और हा आज से शादी के दिन तक सब बंध।’’
“ठीक है लेकिन हमारी शादी तो कल रात हो गयी तो आज तो हमारी सुहागरात होनी चाहिये ना ?” विक्रम ने बिलकुल सीरियस मुड बनाकर हँसी को मूह मे दबाकर बेशर्मी से पूछ लिया।
वो आप कल रात बुरी तरह मना चुके हो। और वो भी सात जन्मो की एकसाथ हो चुकी है। वो तो मैं अच्छी हू की शादी तक का इंतेज़ार का कह रही हू। आप को तो पूरी ज़िंदगी ऐसे ही रखना चाहिये।’’ सुनंदा बोल उठी और हाथ पकड़ के विक्रम को घसीटा और बोली,”अब चलो ना देर हो रही है, वहा सूर्योदय हो गया ना तो बाबा को गुस्सा आ जायेगा।’’
“मेरा तो सूर्योदय हो चुका।’’ कहकर विक्रम फिर लपका|
“प्लीज़ मूज़े छोड़ दो ना कम से कम मेरे शरीर पे तो रहम खाओ। अभी पूरे 4 घंटे भी नही बीते है। शरीर मे मूज़े जलन हो रही है। यहा (इशारों से सबकुछ बताते हुये) पता नही की क्या हुवा है मे ठीक तरह से चल भी नही पा रही हू। बाबूजी के सामने कुछ पॉल खुल ना जाए इसीलिए ठीक तरीके से चलने की कोशिश करती हू और आप को अभी भी वोही सब सूज रहा है। एक जानवर भी पेट भर जाने के बाद शिकार को छोड़ देता है। क्या पीछले जन्म मे कुते थे या शेर ?” सुनंदा ने दोनो हाथ जोड़कर ज़ोर से गिडगिड़ाई|
विक्रम ने हसकर उसे छोड़ दिया और दोनो होटल से बाहर आये। सब ने चाय पी और समुन्दर कीनारे पे चल पड़े।
इतना कहकर विक्रम ने किशोरीलाल को बताया,”इसीलिए सुनंदा की रिपोर्ट मैने तुज से छुपाई थी क्यूकी एक भाई अपनी बहन की लाचारी देखकर गुस्से से पागल ना हो जाये और आगे की कहानी मैं बता चुका हू कैसे उन लोगो का पैर फिसला और......’’ कहकर उसके आँखो मे आँसू आ गये।
किशोरीलाल ने पलटकर उसके सामने देखा। दोनो दोस्तों की आँखे भीगी हुई थी और विक्रम फिर से किशोरीलाल को लिपट गया| अब आवाज़ नही आ रही थी बल्कि दोनो की रूह रो रही थी। एक अपने आप को विधुर और अनाथ समजता था और दूसरा पहले तो अपने मातापिता एवं अपनी बहन के गम मे दुख उठा चुका था। लेकिन आज अपनी बहन की हालत पे उसे ज़्यादा गम हो रहा था। कम से कम उसके चेहरे भी देख नही पाया था। । किशोरीलाल की समज मे आ रहा था की सुनंदा की रिपोर्ट मे क्यू इन्जरी आई थी, वो सब अगले रात की विक्रम से मिली हुई सुनंदा को सप्रेम भेट थी। और ऐसी भेट बहुत कम दुर्भाग्यशाली पत्नी को अपने होने वाले पति से मिलतीं है।
बहार खड़ा हुवा बंसी भी उन दोनो के साथ रो पड़ा था।
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थोड़ी देर मे विक्रम शांत हो गया और फिर किशोरीलाल ने बोला, “चल दोपहर 12 बजे है । फ्रेश हो जा फिर खाने पर बात करते है। मूज़े कुछ और भी जानना है।“
विक्रम बोला,“ठीक है के.पी. मैं अभी 15 मींनीट मे फ्रेश होकर आता हू फिर बाते करते है।
किशोरीलाल रूम से बाहर निकल गया लेकिन जाते जाते उसकी नज़र उस तस्वीर पर पड़ी जो विक्रम के पिताजी की थी, कल उसे थोड़ी तिरछी नज़र आ रही थी लेकिन आज मानो किसी ने उसे सही ढंग से रखी हो ऐसी सुव्यवस्थित टंगी हुई थी। वो थोड़ी देर खड़ा रहकर कुछ सोचता रहा लेकिन फिर रूम से बाहर निकल के अपनी पत्नी के पास आ गया। बंसी तो कब का र्रसोइघर मे चला गया था, वो खाने के लिये ही बुलाने आया था लेकिन विक्रम और किशोरीलाल की आखरी बाते सुनकर वो भी वापस चला आया था।
किशोरेलाल ने आते ही राजेश्वरीदेवी को 15 मिनिट में सारी कहानी बता दी तो उन की आँखों में भी आँसू थे| किशोरीलाल ने पलटकर देखा और बोल दिया,” अब रोने से क्या फ़ायदा, देख मै इकलौता भाई होते भी अपने ही दोस्त के हाथो से उसे नहीं बचा पाया, सोच मेरे मन पर क्या बीत रही होगी ? लेकिन लाचार हु, आखिर सूरत भी नहीं देखने को मीली मेरी बहन की”|
राजेश्वरीदेवी ने कहा,”लेकिन उस अत्याचार के वक़्त वो कैसे सहन कर पाई होगी ? कितना दर्द सहा होगा, विक्रम भैया ने बहुत बुरा सुलूक कीया है अपनी होनेवाले पत्नी से|”
“अभी भी मुझे कुछ और जान ना बाकी है, लेकिन देखना चाहता हु विक्रम कितना मुज से खुलता है और सच्चाई कितनी है उसकी बातो में”|
10 मिनिट में बंसी खाने के लिये बुलाने आया और सब खाने के टेबले पर बैठे थे| विक्रम पहेले से ही वहा बैठा हुवा था| विक्रम की नजर २ साल के नन्हे जय पर पडी और वो खड़ा हुवा और राजेश्वरीदेवी से जय माँगा| राजेश्वरीदेवी ने जय को विक्रम की गोद में दिया और विक्रम जय के साथ खेलने लगा | उसके चेहरे पर थोड़ी सी खुशी की जलक दीखाई दे रही थी| मानो उसे कोई नया जीवनदान मिला हो| उसने एक सोने की चैन जय के गले में डाल दी और कहा,”ये अपने अंकल की और से मुह दीखाई मेरे बच्चे||” अभी भी उसके चेहरे पर रोती सूरत ही थी| किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी ने बहुत मनाया फिर भी विक्रम माना नहीं और बोल दीया,”मुन्ना आज पहेलीबार मेरे घर आया है, यु कोई अपना मुह अंकल को थोड़े ही दिखाता है, पैसे लगते है मुह दिखाइ के लिए, क्यु मुन्ने राजा?” वो फिर से जय को सहलाने लगा था| फिर सब खाना खाने लगे।
अचानक किशोरीलाल ने कुछ बात याद आई तो बोल दिया,”अरे हां विक्रम तू अभी कीस के साथ खेल रहा था?”
“मेरे भतीजे के साथ, क्यु?” विक्रम ने हसकर पूछा|
“हा, ये तेरा अभी तो भतीजा है लेकिन तू नहीं जनता ये क्या होनेवाला है तेरा“ किशोरीलाल ने हसकर बोला और अपनी पत्नी के सामने देखा तो दोनों हस दिये|
“मै कुछ समजा नहीं के.पी., कुछ तो बात है बता तो सही आखिर कहना क्या चाहता है?” विक्रम ने खाते खाते रुक कर पूछा|
“अरे ये तेरा होनेवाला दामाद है” इतना बोलकर किशोरीलाल ने वो गिरनारवाले बाबा की कहानी बतायी और बोला,”इसीलिए तुजे अब शादी करनी पड़ेगी”|
“तेरा बेटा मेरा दामाद बने इस से बड़े सौभाग्य की बात क्या हो सकती है लेकिन तू विश्वास करता है ऐसे ढोंगी बाबा की बातो पर? और दुसरा अब तो मेरा मन शादी के लिये बिलकुल मना करता है क्युकी मै अपनी बीवी को खो चूका हु.” इतना कहकर विक्रम सुन्न हो गया और अचानक वातावरण ग़मगीन हो गया|
कुछ पल बाद राजेश्वरीदेवी ने बोलना शुरू किया,”देखो विक्रम भैया, जो हो गया उसे हम लौटा तो नहीं पायेंगे, लेकिन पुरी ज़िंदगी ऐसे तो नहीं बीताई जाती ना| आप को भी तो कोई सहारा चाहिये, कब तक यु ही अकेले यहाँ रहेंगे? अगर कोई अच्छा पात्र मील जाये तो आप को और सुख शांती देने का प्रयास करेगा और ज़िंदगी फिर से आसान बन जायेगी| इश्वर पर श्रद्धा रखो वो सबकुछ ठीक कर देता है|”
विक्रम के हाथ खाते खाते रुक गये थे क्युकी उस की आँखों में फिर एक बार आंसू थे,”भाभी मेरी ही गलती का नतीजा है की इसी इश्वर ने मुज से मेरी सुनंदा को छीन लिया| कीस मुह से दूसरी लड़की की बात करू? मुज से कोई दूसरी लड़की कैसे स्वीकार हो सकती है, जब की मै पहेली को नहीं भूल पाया हु”|
अब किशोरीलाल ने बोला, "वीकी अगर तूने बीवी खोई है तो मैंने भी तो अपनी बहन खोई है| वो इतना सहन करने के बाद भी तुज से प्यार करती थी ये तू खुद बता चुका है| अगर तू पुरी जिन्दगी ऐसे उदासी में बीतायेगा तो उस की आत्मा को शांती मिलेगी क्या? हम हमारे लिये ही जीये वो ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं खुदगर्जी कहलाती है| जब हम दुसरो के लिये जीते है वोही ज़िन्दगी, ज़िंदगी है| मैंने मेरी ज़िंदगी मेरे बेटे के नाम कर दी है| अगर वो बाबा सही है तो मेरा बेटा और तेरी बेटी से ऐसी संतान धरती पर आनेवाली है जिस का खुद परमात्मा, वो सुपर नेचरल पावर को भी इंतज़ार है| तो क्या हमें उस परमात्मा के कारण नहीं जीना चाहिये? उसने हमें ज़िंदगी दी, तो हमें भी बदले में वापस देने का वक़्त आया है तो क्या हमें पीछे हट जाना चाइये?|
उसके बाद आधे घंटे तक बहस चलती रही। विक्रम ने आख़िर मे बताया की अभी तो वो शादी के बारे मे सोच ही नही पा रहा लेकिन जब वक़्त से घाव भर जायेंगे तो वो ज़रूर अच्छा पात्र देख के शादी के लिये सोचेगा|
उस के बाद राजेश्वरी देवी फिर से जय को सुलाने चली गयी और बंसी रसोईघर में काम के लिए व्यस्त हो गया और दोनों दोस्त बाहर बगीचे में आये और आमने सामने कुर्सी पर बैठ गये| कुछ पल के बाद विक्रम ने कहा,” KP अब पूछ जो भी पूछना चाहता है तू| आज सोच लिया की मै अपना दिल खाली कर ही दू तेरे जोली में”|
किशोरीलाल थोड़ी देर देखता रहा और फिर कहा,”देख वीकी, मै सबकुछ इसीलिए पूछना चाहता हु क्युकी मै अपने माता-पिता और बहन को खो चुका हु| अब मेंरी ज़िंदगी के दो ही मकसद है एक मेरे बेटे की ज़िंदगी, क्युकी मै उसे परमात्मा की अमानता मानता हु| और दूसरी क्युकी मेरे बेटे के साथ तेरी भी ज़िदगी भी जुडी हुई है और तेरी औरे मेरी जिंदगी में आमने सामने तेरे और मेरे सेवा कोई और नहीं है तो तेरी सारी मुसीबते और दुःख अब मेरे है”|
विकम ने कुछ न बोलकर सिर्फ हां में सर हीलाया|
इसीलिए किशोरीलाल ने पूछ लिया,”तो वीकी अब मुझे रामेश्वर और बीजली के बारे में सबकुछ जानना है”|
विक्रम थोड़ी देर देखता ही रहा और फिर बोला,”ठीक है तो सुन तेरी गैरहाजरी में रामेश्वर मूज़े एक अच्छा दोस्त की खोट पूरी करता है।’’ कहकर विक्रम ने रामश्वर और बीजली के बारे मे बताना शुरू किया जो कुछ ऐसे था :
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जोधपुर के प्रिंस और विक्रम की दोस्ती पहले से ही गहरी थी इसीलिए वो दोनों साथ में घुमने बहुत जाया करते थे| एक दिन वे दोनों UP सैर करने गये और वहा उस की मुलाक़ात एक जंगल के आदमी से हुयी| एक जोशीला नौजवान, काले गुन्गराले बाल, कटीला शरीर और पूछने पर उस ने अपना नाम रामेश्वर बताया| वो जंगल खाते में वर्ग 4 की नौकरी करता था| जंगल, वनस्पती, प्राणी, खेत, औषधी के बारे में उस का ज्ञान सुनकर प्रिंस और विक्रम चकित रहे गये| उस की जानकारी और दिलचश्पी ऐसे थी की अगर पुस्तक लिखी जाये तो एक ग्रन्थ बन जाये|
उस को एक विशेष ज्ञान चरस, अफीन, सिगारेट, गांजा के बारे में भी था और शौख भी था| मतलब एक रजवाड़े के सारे शौख उस में मौजूद थे| प्रिंस ने उसे राजस्थान आने के लिये कहा| वैसे भी UP में कोलसे की खाने बढ़ रही थी तो जंगल को खतरा था और साथ साथ रामेश्वर का ट्रांसफर भी तय था| अब एक तरफ प्रिंस को अपने शौख के लिये ऐसे ही घर बैठे आदमी की जरुरत थी तो रामेश्वर को प्रिंस जैसे बड़े आदमी की छत्रछाया मील रही थी और बात बन गई और उसका ट्रांसफर राजस्थान में करवा लिया| वैसे तो राज्स्थान की मिट्टी में पानी कम होता है| फिर भी राजस्थान की जमीन में रेत, मट्टी और नाइट्रोजस प्रकार की है| मगर जैसलमेर, भरतपुर में अभी भी जंगल है जहा रामेश्वर आसानी से आ सकता है और प्रिंस के साथ रह सकता था|
उस दिन रामेश्वर, प्रिंस और विक्रम को अपने क्वार्टर ले गया ज़हा रामेश्वर और बीजली दोनों अकेले रहते थे| रामेश्वर की पत्नी कोई कारन से भाग गई थी और बीजली जन्म से ही गूंगी थी| उम्र में दोनों जुड़वा थे| प्रिंस की नजर बीजली पर पडी और उसने विक्रम को इशारा कर दीया की बीजली का इन्तेजाम उस के लिये हो जाना चाहिये| बचपन से रामेश्वर ने बहुत दुनिया देखी थी| बस दुनियादारी सीखते सीखते अब उसने दुनिया को सीखाना चालु कर दीया था| जब बीजली के बारे में प्रिंस ने इशारा कीया तो विक्रम को अच्छा नहीं लगा की जिस थाली में खाये उस थाली में थूकना नहीं चाहिये| उस ने मौक़ा देखकर रामेश्वर को बता दीया|
रामेश्वर ने हसकर जवाब दीया,”अरे विक्रम बाबू, अगर तुम ना ही कहते तो भी हमरी समज में सबकुछ आ ही गवा था| हुजुर की आंखे ही बताई देत है की ना जाने कीतनी हवस पडत रही आँखों में| हम तोहार उपकार कभी ना भुलात की हमरी कान तक आप सब बताये दियेत हु| किन्तु आप तनिक भी चिंता ना करे| अब देखे, हुजुर आप के दोस्त है इसीलिए हम कछु ना करत है वरना इ रामेश्वर इस जंगल मा सबकुछ कर सकत है| हम तोहार खातिर सिरफ इतना करेत की हुजुर कछु कर ही ना पाये|
विक्रम ने आश्चर्य से पूछा,”मै तुम्हारा मतलब नहीं समजा, क्या करेगा तू? देखो कुछ ऐसा वैसा करोगे तो ये प्रिंस है कुछ भी कर सकते है| देखना कही लेने के देने ना पड जाये”|
“अरी ऐसन वैसन हम कछु नहीं करेंगे विक्रमबाबू, आप देखत जाओ, हम ऐसा जादू करूंगा की साले प्रिंस सीधा सोता ही रहेत और हमरी बहन की इज्जत को कछु नहीं कर पायेत|
“क्या मतलब? विक्रम ने अब डर के मारे पूछा|
“अरे विक्रमबाबू नहीं समजत का? देखो जैसन जानवर का शिकार के लिए हथ्यार चाहिये की ना ही, अब जब हथ्यार ही पलट जाये तो का होगा” रामेश्वर ने विक्रम को पूछा|
“तो जानवर का शिकार ही नहीं होगा|” विक्रम ने बोल दीया|
“ठीक वैसन ही होगा विक्रमबाबू“ इतना कहकर रामेश्वर ने एक औषधियों का रस दीखाया और इशारो से समजा दीया की इसे पीने के बाद प्रिंस होश में ही नहीं रहेगा और बीजली को कुछ नहीं होगा|
और सच में रामेश्वर ने 10 मिनिट मे वो औषधियों का रस प्रिंस को पीला दीया और प्रिंस कुछ ही देर में वही गीर पडा था| इतना देखते ही रामेश्वर ने अटटहास्य कर दीया|
दुसरे ही दिन प्रिंस और विक्रम वहा से चले आये और कुछ ही दिनों में रामेश्वर का ट्रान्सफर हो गया| प्रिंस के एक्सीडेंट के बाद विक्रम और रामेश्वर में गहरी दोस्ती हो गयी और विक्रम का ख़ास आदमी भी बन गया| रामेश्वर कभी कभी विक्रम में घर आकर जंगल की बाते कीया करता था और विक्रम का बगीचा भी उस ने ही संभाल के रखता था|
बस इतना कहकर विक्रम ने बात ख़तम की, थोड़ी देर चुप रहेते हुये बाद में किशोरीलाल ने पुछा,”और रामेश्वर की बहन बीजली कहा है?”
विक्रम चौक पड़ा और कहा,”मूज़े क्या मालूम KP?, लेकिन ये सवाल तो मैने भी कभी रामेश्वर से नही पुछा है तो तू मूज़े क्यू पूछ रहा है ये मेरी समज मे नही आया है।’’
“देख विकी, मुझे रामेश्वर में दाल में कुछ काला नजर आ रहा है” किशोरीलाल ने कहा|
अरे नही रे KP तू खामाखा उस पर शक कर रहा है। वो तो अपनी ज़िंदगी मे मस्त रहता है।’’ विक्रम बोला।
“हा अपनी ज़िंदगी मे मस्त रहता है और तेरे शौख भी बढाता है।’’ किशोरीलाल बोला। ‘’देख मूज़े सब मालूम है तेरे शौख भी बढ़ते जा रहे है, मैं समजता हू की तू अकेला है, तुजे पूछनेवाला कोई नही है, लेकिन रीस्पोंसीबीलीटी भी तो एक बात होती है। इसीलिए कहता हू शादी कर ले| आनेवाली अपने आप तुजे सुधार देगी।’’
विक्रम हस पड़ा, ”KP क्यू मेरे दर्द को बढाने का काम करते हो? मूज़े अब शादी मे बिल्कुल इंटरेस्ट नही है।’’
‘’तू शादी नही करेगा तो क्या मेरा बेटा कवारा रहेगा?, वो बाबा की वांणी क्या जूठी रहेगी?” किशोरीलाल बोला।
“मै नहीं मानता ऐसे ढोंगी बावा की कोई कहानी को, हा अगर मेरी शादी हुई और बच्ची हुई तो हमारा रिश्ता पक्का” ,विक्रम धीरे से हस के बोला|
किशोरीलाल उठकर खड़ा होके विक्रम की बाह पकड़कर उसकी नजरो मे नज़रे मिलाकर बोला,”देख दोस्त मूज़े तुज से कोई ज़्यादा उम्मीद नही है बस तू शादी कर ले मेरा काम आसान हो जायेगा मैं कभी तुजे कोई सलाह देने नही आउंगा| आनेवाली ही तुजे सुधार सकती है ये बात तो तय ही है। तो वादा कर अगर बच्ची हुई तो मेरे घर ही विदा लेगी।’’
विक्रम गले लग गया और बोला,”मूज़े, तूने और अंकल ने ही सम्भाला हुवा है तो अगर मेरी बेटी हुई तो मूज़े उसका रिश्ता तुज से मांगना चाहिए यहा तो उल्टी गंगा मेरे घर आ रही है। मैं खुशी खुशी तेरे घर ही विदा करूँगा ये मेरा वादा है एक दोस्त से।’’
दोनो दोस्त गले मिल गये। फिर थोड़ी देर वो बैठे रहे और फिर विक्रम अंदर चला गया। किशोरीलाल उसे देखते ही रह गया। थोड़ी देर मे बंसी आया और किशोरीलाल के सामने खड़ा हुवा।
किशोरीलाल ने बंसी को पुछा,”तू तो कह रहा था की रामेश्वर को मेरे पिताजी ले आये है लेकिन विक्रम तो कहेता है की उसे प्रिन्स यहा लाये थे।’’
बंसी ने जवाब दिया, ”पता नही लेकिन आप के बाबूजी के जाने के बाद ही इसका यहा आना जाना ज़्यादा हो गया। पहेले तो बहुत कम आया करता था।’’
किशोरीलाल ने पुछा,”वो यहा आ के करता क्या है। विक्रम तो कहता है की वो यहा का गार्डेन संभालता है।’’
“हा भैया उसे खेत और खल्यान, पौधों, प्राणियों, औषधियों में बहुत दिलचश्पी है| उस की याददाश्त भी गज़बकी है| लेकिन उस से ज्यादा वो बाबा के साथ कमरे में ज्यादा रहेते है| बाबा के साथ शराब और बहुत कुछ पीते रहते है|” बंसी बोल उठा|
किशोरीलाल बोला,”अजीब प्राणी है ये रामेश्वर लेकिन उसकी बहन बीजली कहा है ?’’
“पता नही मूज़े तो ऐसा ही जान ने को मिला था की वो अपने गाव चली गयी है।’’ बंसी बोला।
“अरे बंसी उसके गाव मे उसका कोई सगा नही है तो वहा कहा जायेगी ज़रूर कुछ दाल मे काला है दूसरा ये रामेश्वर ने ऐसा क्या किया की उसकी नौकरी चली गयी और वो यहा आकर पड़ा रहता है वो भी जान ना पड़ेगा’’ किशोरीलाल कुछ सोच मे पड गया थोड़ी देर मे फिर बोला,”कुछ अजीब वातावरण है यहा बंसी। तेरा बाबा कुछ अजीब ज़िंदगी जी रहा है यहा।’’
“क्या मतलब भैया”’ बंसी ने कुछ आशंका से पुछा।
“अरे तू चिंता मत कर, ये सब वैसे भी मेरी जिम्मेदारी है, मूज़े वीकी को वापस तो ज़रूर ला के ही शांति मिलेगी, देखना ये है की कुदरत मूज़े कीतना साथ देती है।’’ किशोरीलाल उपर आकाश मे देखते हुये बोल पड़ा। लेकिन कुदरत आगे कौन जाने कहा और क्या खेल खेलनेवाली होती है ये किसे पता रहता है।
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Seema Priyadarshini sahay
07-Feb-2022 04:35 PM
बहुत रोचक और शानदार
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PHOENIX
07-Feb-2022 05:34 PM
धन्यवाद।🙏
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Arman Ansari
15-Jan-2022 06:11 PM
इतना यकीन भी नही करना चाहिए किसी पर की आँखे भी बंद कर लो
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PHOENIX
15-Jan-2022 07:14 PM
बिल्कुल सही कहा आप ने। धन्यवाद
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Sandhya Prakash
02-Jan-2022 11:25 AM
Ye kaisi dosti h jo vikram ko galat bhi nahi samjh rahe hai. Sach me suspence se bhari kahani h
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PHOENIX
02-Jan-2022 11:51 AM
ये दोस्ती अक्सर नही देखने को मिलती।
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