Add To collaction

रजाई

भाग 8 


सबके आ जाने से घर में वापस से चहल पहल हो गई । सब लोग खाने पीने के काम में लग गये । गोकल ने श्यामू को अपने पास बुलाया और कहा "बेटा, ठंड बहुत बढ गयी है । सब मेहमान लोग यहीं सोयेंगे । बिस्तरों का इंतजाम कर ले । बाद में कहाँ भटकता फिरेगा रात में ? देख, घर में कितनी रजाई हैं और कितनी रजाइयों की जरूरत और पड़ेगी" । 
गोकल ने बात तो पते की कही थी । एक तो भयंकर सर्दी और उस पर फकर फकर चलती शीत लहर । ऐसा लग रहा था कि सर्दी रोज रोज नया रिकॉर्ड बना रही थी और अगले दिन पिछले रिकॉर्ड को तोड़ रही है । गोकल को इतनी ठंड तो खेतों में भी नहीं लगती थी जितनी उसे उस दिन लग रही थी । सब लोगों के मुंह से भाप निकल रही थी । सबके मुंह से सर्दी के मारे "सी सी" की आवाजें आ रही थी । बच्चे तो उछलकूद में लगे रहते हैं इसलिए उन्हें उतनी सर्दी नहीं लगती है मगर बाकी लोगों को तो लगती है ना । यह सोचकर गोकल ने आंगन में अलाव जला लिया । 

अलाव को देखकर सब लोग वहां आ गये और अलाव के चारों ओर गोल घेरा बनाकर बैठ गये । सब लोग  अलाव से हाथ पैर सेकने लगे । अलाव का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सब लोग एक.साथ बैठकर ना केवल हाथ सेंकते हैं अपितु गपशप भी करते हैं । रामू भी वहीं आ गया और वह भी सिकताव करने लगा । 

श्यामू और सरूपी बिस्तरों की व्यवस्था देखने में मशगूल हो गए । सब बिस्तर और व्यक्तियों को देखकर अनुमान लगया गया कि दो रजाई की कमी पड़ रही है । दो रजाई का इंतजाम करना पड़ेगा । श्यामू और सरूपी इस पर चर्चा करते करते अलाव के पास आ गये । 
"जा, झट से बाजार जाकर दो रजाई टेन्ट हाउस की ले आ" । गोकल ने श्यामू से कहा । 
"टेन्ट हाउस की रजाइयों में से बदबू आती है । मैं पड़ोस में से हेमा के  घर से ले आऊंगी" । सरूपी बोल पड़ी । 
"बाजार से ही देखभाल कर ले आएगा न श्यामू । यहां किस किससे मांगती फिरोगी तुम रजाई" ? 
"किस किससे क्या ? पड़ोसन से ही मांगूगी । और कहाँ जाऊंगी मांगने" ?

रामू काफी देर से सुन रहा था इस वार्तालाप को । बीच में ही बोल पड़ा "अरे, दो रजाइयों के लिए इतनी चिंता क्यों कर रहे है आप सब ? हमारे पास हैं , उनमें से ले लेना" । 
रामू की बात सुनकर एकदम से सन्नाटा सा छा गया । किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । तब गोकल ने एक बार और श्यामू को कहा 
"अभी तो बाजार खुला हुआ होगा । जा चला जा और ले आ दो रजाई । जाड़े में काम आ जायेंगी । जा , फटाफट जा, देर मत कर" । गोकल ने फिर से श्यामू से कहा । 
"रहने दे श्यामू , मत जा । अपने पास से ही ले लेना" । रामू ने इस बहस पर पूर्ण विराम लगा दिया । 

श्यामू भी निश्चिंत होकर अलाव के पास बैठ गया और गपशप में शामिल हो गया । रात काफी गहरी हो चुकी थी । रामू को खाने का बुलावा आ गया था इसलिए वह उठकर चला गया । इधर एक एक करके सब लोग खाना खाने लगे । बाजरे की रोटी और आलन का साग श्यामू को बहुत पसंद था । रचना को तो बनाना आता नहीं था इसलिए सरूपी ने बनाया था । मेहमानों के लिए देसी घी की पूरी और छोले की सब्जी । साथ में गाजर कख हलवा । ये रचना ने तैयार किये थे । गरम गरम खाने का मजा ही कुछ और होता. है ।अलाव के सहारे सहारे खाने का आनंद दुगुना हो जाता है ।

खाने पीने में 9.30 बज गये । गोकल ने श्यामू को याद दिलाया कि अभी तक रजाइयों की व्यवस्था नहीं हुई है । इससे श्यामू को याद आया और श्यामू रजाई लेने रामू के कमरे में चला गया । वहां पर सब लोग खाना खा चुके थे । बतिया रहे थे आपस में । श्यामू को देखकर रामू ने कहा 
"कौन श्यामू ! अरे आ, इधर बैठ" । चारपाई पर एकतरफ बैठते हुये और श्यामू को जगह देते हुए  रामू ने कहा । ।
"भैया, मैं यहां बैठने नही रजाई लेने आया.हूं" ।
"अरे हां, मैं तो भूल ही गया था । जा सरला, दो रजाई ला दे" । 
सरला चुपचाप बैठी की बैठी रही । उसने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया । वह दूसरी बात करने लग गई । 
"आज तो सामने वाली जसोदा ने गजब ही कर दीयो । वाकी सास ने वाकूं कछु कह दी तो वानै सास कूं इत्ती गाली दीं कि उन गालियों को सुनकर सास रो पड़ी वाकी" । सरला बोली

"क्यों ? ऐसी कांई बात कह दी, सास ने" ? रामू ने पूछा । 

दोनों को आपस में बातें करते देखकर श्यामू सोचने लगा कि ये मुझे रजाई दें तो मैं लेकर जाऊं । मेहमान इंतजार कर रहे हैं सोने के लिए । मगर यहां तो बतकही चल रहीं हैं । उसने एक बार पुनः कड़ा मन करके कहा 
"भैया वो रजाई" ? 
रामू कुछ कहता इससे पहले सरला बोल पड़ी । 
"भैयाजी मैं कुछ बोलूं तो बुरा तो नहीं मानोगे" ? 

श्यामू बैठकर बात करने के मूड में नहीं था मगर मन मसोस कर रह गया । बोला "बुरा क्यों मानूंगा, भाभी । बोलिये" । 

"अच्छा एक बात बताओ भैयाजी , मैं एक दिन पानी भर रही थी तो मुझसे बाल्टी उठ नहीं रही थी । उस दिन मेरी तबीयत खराब थी । मां जी वहीं पास में खड़ी खड़ी देख रही थी मगर उन्होंने आगे बढकर बाल्टी उठाने में मेरी मदद नहीं की । ये भी कोई बात है क्या ? उनका फर्ज नहीं बनता है क्या ? हम ही हम करें क्या ? अब आप ही बताओ , ऐसे में हमारे मन पर क्या बीतती होगी" ? 

श्यामू को अंदाज तो हो गया था कि भाभी कोई न कोई "गढ़ा मुर्दा" अवश्य उखाड़ेगी । यह उसकी बहुत पुरानी आदत है । आज रजाई देने की बात आ रही है तो वह ऐसे कैसे दे देगी ? इससे तो अच्छा था कि मैं बाजार से ले आता टैन्ट हाउस की रजाई या फिर पड़ोसियों से ही मांगकर ले आता । मगर तब तो भैया ने रोक दिया था मुझे । अब यहां पर बतकहियों में मशगूल हो रहे है । 

सरला ने सीधे सीधे मां पर आरोप लगा दिये थे तो यह बात श्यामू को कब हजम हो सकती थी ? बल्कि रामू को ही सरला को टोकना चाहिए था कि पहली बात तो यह है कि ऐसी कोई बात हुई भी थी या नहीं, यह भी कोई पक्का नहीं है । जब मां सामने होंगी तभी तो सही बात पता चलेगी ? एकतरफा बात पर कैसे विश्वास करे कोई " ? 

इससे पहले कि श्यामू कुछ कहता रामू ने सरला से कहा "तूने मुझे क्यों नहीं बताई ये बात ? ये तो बहुत गलत किया मां ने । कम से कम उसे तो ऐसा नहीं करना चाहिए था ना" ।

"ऐसी तो हजार बातें होती हैं रोज । कहाँ तक बताऊं मैं ? ये तो आज जब रजाई की बात आई तब चली बात पर मुझे यह बात याद आ गयी इसलिए बता दी मैंने यह बात" । सरला बोली ।

अब श्यामू को बीच में बोलना पड़ा "भाभी, पता नहीं मां ने आपको कठिनाई में देखा या नहीं ? अगर वो देख लेती तो अवश्य मदद करतीं । वे अभी इस जगह पर हैं नहीं इसलिए हम नहीं मान सकते कि उन्होंने ऐसा किया होगा । अगर आमने सामने बात हो तब तो बात की तह तक जा सकते हैं । एकतरफा में कोई फैसला नहीं ले सकते हैं । ये बातें तो होती रहेंगी , पहले रजाई दे दो जिससे मेहमानों को सुला दें , इन बातों पर बाद में विचार करते रहेंगे" । श्यामू ने दो टूक शब्दों में अपनी बात कह दी । 

सरला कहाँ मानने वाली थी । उसने रजाई की बात को तो गोल कर दिया और अपनी बात को लेकर ही बैठी रही । तुनक कर बोली "आपने तो मुझे झूठी बता दिया भैयाजी" । 

श्यामू ने आश्चर्य से सरला भाभी की ओर देखा फिर कहा "मैंने आपको झूठी कब कहा" ? 
"अभी अभी तो कहा है आपने । आपने ही तो कहा है कि पता नहीं मां ने देखा भी है या नहीं ? इसका मतलब हुआ कि मैं झूठ बोल रही हूँ" । 

श्यामू कुछ कहता इससे पहले ही रामू बीच में कूद पड़ा "इतना बड़ा आदमी होकर अपनी भाभी को झूठी बोलते हुये तुझे शर्म नहीं आई" ? 

रामू कघ बात सुनकर श्यामू अवाक् रह गया । उसे उम्मीद नहीं थी कि रामू ऐसी वाहियात बात करेगा । वह बोला "मैंने भाभी को झूठी कब कहा ? आपने बहुत बड़ी बात कह दी भैया । ऐसी उम्मीद नहीं थी आपसे" । 
"अच्छा , तो कैसी उम्मीद थी मुझसे ? ये उम्मीद थी कि मैं तेरी भाभी को बुरा भला कहूँ, इसे मारूं ? घर से बाहर निकाल दूं" ? 
"कहाँ की बात को कहाँ ले जा रहे हो भैया । बात का बतंगड़ बना रहे हो आप" । 
"अच्छा ! तू अब थानेदार बन गया तो अब तू हमें बतायेगा ? बात का बतंगड़ तो तू बना रहा है और नाम मेरा लगा रहा है । तू अगर थानेदार है तो दिल्ली में होगा । यहां पर तो तू मुझसे छोटा है और छोटा ही रहेगा । ये थानेदारी की धौंस और किसी को देना" । 

घर में तूफान खड़ा हो गया था । रजाई गई भाड़ चूल्हे में । यहां तो बात थानेदारी और बड़प्पन की आ गयी थी । तीनों जोर जोर से बोलने लगे । दरवाजे के बाहर से बाकी लोग सब बातें सुन रहे थे और डर रहे थे कि पता नहीं अब क्या होगा ? 

सरूपी सारा माजरा समझ गई । यह जाल सरला का बिछाया हुआ है । वह चाहती है कि मेहमानों को पता चले कि किस तरह लड़ाई होती है इस घर में । और मेहमान बिना रजाई के ही ठंड में मरते रहें और हमारी हालत पर जिंदगी भर ताने देते रहें । सरूपी को डर लगने लगा कि कहीं दोनों भाइयों में हाथापाई ना हो जाये । वैसे तो वह श्यामू को जानती थी कि वह इतना बेवकूफ नहीं है । मगर लड़ाई का क्या भरोसा ? जोश जोश में हाथ उठ जाये ? उसने आवाज देकर श्यामू से कहा 
"अरे , मेहमानों को सुलाना है या नहीं ? ये बातें तो फिर कभी कर लेना । इन बातों का कोई अंत है क्या ? जिंदगी भर ही चलती रहेंगी ये बातें । आजा और सोने की व्यवस्था कर" । 
श्यामू ने देखा कि ग्यारह बज रहे हैं । सभी मेहमान इंतजार कर रहे हैं । यहां तो ये दोनों ही गढ़े मुर्दे लेकर बैठे हैं । इन्होंने शायद पहले ही मन बना रखा था इसीलिए यह सब नाटक खड़ा किया । उसने मन ही मन अपने आपको कोसा "मैं भी किनकी बातों में आ गया था । भैया की ? घर में उनकी चलती है क्या ? अगर चलती तो आज ये नौबत नहीं आती । खैर अब इज्ज़त तो नीलाम हो ही गई है पर कम से कम मेहमानों को सुलाने की व्यवस्था तो करनी पड़ेगी ना "। 
और वह बिना रजाई के ही वापस कमरे से बाहर आ गया ।

शेष अगले अंक में 

   4
0 Comments