आइना

आईना


रिदित आज बहुत खुश था, कितने समय बाद दोस्तों के साथ पिकनिक पर जो जाना था।
दो साल होने आए, जब से कोरोना का कहर बरपाया है कितने समय तक तो कॉलेज ही बंद रहे, फिर धीरे धीरे  खुलने का समय आया तो फिर से दूसरी लहर आ गई। और इस बार तो मानो चारों ओर हाहाकार ही मच गया, जिधर देखो हर तरफ से बुरी खबरें ही सुनाई देती थी, ये तो अच्छा हुआ वैज्ञानिकों के प्रयास से कोरोना का टीका इजाद हो गया और फिर सरकार ने पूरी मुस्तैदी से और लोगों के सहयोग से जगह जगह टीकाकरण अभियान शुरू किया गया और जल्द ही एक बड़ी आबादी को टीका लग गया।
इधर दूसरी लहर का कहर थोड़ा कम हुआ और लोगों का ध्यान अपने अपने काम धंधे पर जाने लगा।
ज्यों ज्यों स्तिथि नियंत्रण में आनी शुरू हुई शैक्षणिक संस्थान वापस खुलने लगे। स्कूल कॉलेज की रौनक वापस लौटने लगी।
अब तो लगभग सभी शिक्षा संस्थान खुल चुके थे। बहुत समय से रिदित और उसके दोस्तों ने सोच रखा था की घर से दूर कहीं पिकनिक पर जाया जाए।
आखिर सबके घरवाले मान भी गए। तय हुआ की शहर से थोड़ी दूर स्तिथ नवलगढ़ घूम के आया जाए, वहां पर एक पुराना किला था जिसके बारे में लोगों में तरह तरह की भ्रातियां फैली हुई थी, कोई कहता वहां एक खजाना छुपा है, कोई कहता वहां भूत प्रेतों का डेरा है, कोई कहता वो किला ही शापित है, यानी जितने मुंह उतनी बातें।
रिदित, विरेन, श्याम, राघव, नीरा, रिदिमा, कोमल और आशा आज की सदी के नौजवान थे, उन सभी को भूत प्रेत और शापित जैसी बातों पर ज्यादा विश्वास नहीं था। भूविज्ञान और पुरात्व में उन सभी की बहुत रुचि थी। सब के सब 19 से 21 बरस के नवयौवन से भरपूर उत्साहित लोग थे जिन्हे नई नई जगह जाना, और मौज मस्ती बहुत पसंद थी।
हां किले में खजाने की बात भी उन्हें आकर्षित करती, साथ ही उस पुराने किले की वास्तुकला और भव्यता को देखने की लालसा भी।
अगली ही सुबह सारे मित्र उस रहस्यमय किले की तरफ निकल पड़े। जहां लड़कियां अपने अपने घरों से खूब सारे परांठे, अचार, चटनी, और फल इत्यादि लेकर आई थी, वहीं लड़के साथ में चिप्स, नमकीन, कोल्ड ड्रिंक और सिगरेट और शाम के लिए पीने का सामान ले आए थे।
साथ ही रहने के लिए टेंट और दूसरा जरूरी सामान भी इक्ट्ठा कर लिया था और साथ ही म्यूजिक सिस्टम भी। कुल मिला कर पिकनिक का अच्छा खासा इंतजाम था।
नवल गढ़ उनके शहर से करीब 150 मील दूर एक सुंदर पहाड़ी के उपर बना किला था, जिसे उस समय के राजपूत राजाओं ने बनवाया था। किले के चारों ओर एक गहरी नहर थी और आसपास घना जंगल।
कहते है उस जमाने में नवलगढ़ को अभेद किला कहा जाता था। वैसे देखा जाए तो आज भी पहाड़ी के शीर्ष पर खड़ा नवल गढ़ किला किसी राजपूत की तरह ही सीना ताने गर्व से सर ऊंचा किए ही खड़ा था। पर्यटकों के लिए नवलगढ़ पुराने राजसी ठाठ बाट और शानो शौकत का जीता जागता नमूना था।
दोस्तों का कारवां राघव की बड़ी suv कार में सवार होकर हंसता, गाता, ठहाके लगाता, बतियाता नवलगढ़ के रोमांच कारी सफर पर निकल पड़ा।
सभी क्योंकि काफी समय से साथ साथ पढ़ रहे थे इसलिए सब एक दूसरे से भलीभांति परिचित थे।
रास्ते में एक जगह रुक कर सबने पराठे, अचार और गरमागरम चाय का भरपेट नाश्ता किया और एक बार फिर सब के सब गाते बतियाते सफर पर चल पड़े।
दोपहर होते होते तक उनका कारवां नवल गढ़ गांव पहुंच गया।
गांव के बाहर ही एक बुजुर्ग से उन्होंने किले का रास्ता पूछा। उन्होंने बताया की किले तक गाड़ी तो नही जा पाएगी पर हां पहाड़ी के नीचे तक एक छोटी सड़क है, जहां से किले की ओर एक पथरीला सीढ़ी नुमा रास्ता जाता है जो करीब 2 मील की चढ़ाई के बाद उन्हें नवलगढ़ किले के मुख्यद्वार तक पहुंचा देगा।
उनका धन्यवाद करके आगे बढ़ने ही वाले थे कि बूढ़े बाबा ने आवाज देकर उन्हें रोक दिया।
धीर गंभीर वाणी में बाबा बोले बेटा, शाम होने से पहले किले से बाहर आ जाना, सुना रात में वहां प्रेतों का वास होता है।
पहले भी कुछ लोग गए पर लौट कर नहीं आए।
उनकी बात सुनकर सब ऐसे जोर से हंसे मानो उन्होंने कोई चुटकुला सुना दिया हो।
राघव बोल पड़ा चिंता न करो बाबा हम उस प्रेत से ही मिलने जा रहे हैं, है ना दोस्तों, फिर बाबा की तरफ आंख मार कर बोला, सुना है वहां एक खजाना भी गड़ा है, उसको भी ढूंढ लेंगे, आप इंतजार करना हमारा।
चलो दोस्तों, जल्दी चलो सब, कह कर वो सब गाड़ी में सवार हो गए।
बूढ़ा आदमी, सिर झुका कर बड़बड़ाता हुआ चलता बना, ना मानो मेरा क्या, जब देखोगे तो जानोगे.....
कुछ देर बाद वो पहाड़ी की तलहटी में पहुंच गए, जहां से किले की तरफ रास्ता जा रहा था।
सबने तुरत फुरत गाड़ी से सारा सामान निकाला और पथरीले रास्ते से होते हुए अगले करीब 1 घंटे में किले के मुख्यद्वार पर पहुंच गए।
किला जीर्ण शीर्ण होने के बावजूद बहुत बुलंदी से खड़ा था, मुख्य द्वार पर एक भारी भरकम दरवाजा था जिसे खोल पाना शायद 10 हाथियों के बस का भी नहीं था, उसमे लोहे की बड़ी बड़ी कीलें लगी हुई थी। वहीं नीचे की तरफ एक छोटा दरवाजा था जिसमे से होकर आप किले में प्रवेश कर सकते थे।
अंदर जाकर सबसे पहले एक खुली जगह पर और पानी के स्त्रोत के पास लड़कों ने टेंट लगाने का काम शुरू किया और लड़कियां आस पास से लकड़ियां पानी इत्यादि का इंतजाम करने लग गई। इसके बाद क्यूंकि सब लोग थक चुके थे तो थोड़ी देर आराम से सुस्ताने लगे।
शाम 4 बजे सब एकबार तरोताजा होकर किले को देखने के लिए तैयार हो गए।
4 टोलियों में बंट कर चारों दिशाओं में जाने का निर्णय हुआ, तय ये हुआ की सब किले को उनकी दिशा में घूम कर शाम को वापस लौट आएंगे और फिर रात में खाना पीना खाकर मस्ती करेंगे।
रिदित और नीरा, वीरेन और रिदिमा, श्याम और कोमल, राघव और आशा सबने अपने साथ एक एक पानी की बोतल, टॉर्च, एक कुदाल और रस्सी रख ली थी और साथ ही एक दिशासूचक यंत्र भी। इस जंगल में मोबाइल तो बेकार थे क्योंकि कोई नेटवर्क नहीं था।
वैसे भी साल के इस समय नवलगढ़ घूमने कम ही लोग आते थे।
एक दूसरे को शुभकामना देकर और ताकीद करके की यदि जरूरत हो तो आवाज देकर संकेत जरूर दें, चारों जोड़ियां अलग अलग दिशा में चल पड़ी।
थोड़ी ही देर में सब अलग अलग हो गए और एक दूसरे की नजरों से ओझल हो गए।
श्याम और कोमल हाथ में हाथ लेकर टहलते हुए आगे बढ़े, दोनों बातों में मस्त खोए चले जा रहे थे अचानक उन्हें  किसी के धीमे धीमे रोने की आवाज सुनाई दी। आवाज किसी लड़की की थी और ऐसा लगता था वो किले के अंदर से आ रही थी।
दोनो हैरान थे इस वीरान किले में कोई लड़की अकेली कैसे आ गई। पर उस आवाज में इतना दर्द था की दोनो को अपनी तरफ खींच रहा था।
दोनो ही आवाज की दिशा में बढ़े। सामने एक पुराना दरवाजा था, आवाज उसी के पीछे से आ रही थी। आसपास तो कोई दिखाई नहीं दे रहा था। दरवाजे को धक्का मारा तो वो चरमरा कर खुल गया।
दरवाजे के पीछे एक बड़ा सा दालान था, अब तो रोने की आवाज दोनो को साफ सुनाई आ रही थी। दालान के उस तरफ 3/4 कोठरियां थी, शायद आवाज वहीं से आ रही थी। दोनो एक दूसरे का हाथ थामे कुछ देर दालान में खड़े रहे फिर नजरों नजरों में सहमति जताते हुए कोठरियों की तरफ बढ़ चले।
ऐसा लगता था की वो आवाज उन्हें अपनी ओर खींच रही थी, उसमे एक अजीब सा दुख और कशिश थी।
आवाज बीच वाली कोठरी से आ रही थी, जिसके दरवाजे पर एक भारी सांकल कुंडी में चढ़ी हुई थी।
श्याम ने आगे बढ़ कर सांकल खोल दी और दरवाजे को धक्का दिया, दरवाजा चरमराता हुआ खुल गया और वातावरण में एक अजीब सी कसैली दुर्गंध फैल गई। कोठरी में घुप्प अंधेरा था, श्याम ने बाहर से ही टॉर्च जला कर कोठरी का मुआयना किया, आवाज अब और तेज सुनाई दे रही थी, पूरा यकीन हो चला था कोई कोठरी में बंद है, मगर क्यों, कैसे, किसने बंद किया होगा??
श्याम और कोमल समझ नहीं पा रहे थे, सामने एक बड़ी अलमारी थी जिसपर एक शीशा जड़ा था, ऐसा लगता था आवाज वहीं से आ रही है।
कोमल और श्याम एक दूसरे का हाथ थामे टॉर्च जला कर अंदर प्रवेश किए और आवाज दी, कौन है वहां.... जवाब दो, क्या हुआ है..... हमे बताओ..... हम आपकी मदद को आए हैं.....
कोठरी में चारों तरफ टॉर्च घुमाने पर बड़े बड़े जाले नजर आ रहे थे, लगता था बहुत समय से कोई वहां नहीं आया, फिर ये आवाज, ये कौन है......??
दोनो सधे कदमों से उस अलमारी के पास पहुंचे, आवाज यकीनन अलमारी के अंदर से आ रही थी। एक बड़ा सा हत्था अलमारी के दरवाजे पर लगा हुआ था।
श्याम ने आगे बढ़ कर उस हत्थे को पकड़ कर खोलना चाहा, अचानक कोठरी का दरवाजा बंद हो गया और चारों तरफ अंधकार छा गया।
कोठरी से किसी के रोने की आवाज बदस्तूर आ रही थी...........
करीब 5.30 बजे तक रिदित– नीरा, वीरेन– रिदिमा, राघव – आशा अपने कैंप के पास वापस लौट आए पर श्याम और कोमल नहीं, थर्मस में से चाय निकाल कर सब बातें करते हुए चाय पीने लगे और अपने अपने अनुभव बताने लगे। शाम गहराने लगी थी, जंगल में जंगली जानवरों की आवाजें आने लगी थी, आसपास का वातावरण शांत और सुंदर था, किले के साए लंबे होते जा रहे थे। सब मौज मस्ती में खोए हुए थे।
अचानक रिदिमा ने पूछा, guy's कोमल और श्याम नहीं लौटे अब तक, थोड़ी देर में अंधेरा हो जायेगा। कहीं रास्ता तो नहीं भटक गए।
अरे नहीं नहीं उनके पास campass है ना, कर रहे होंगे मौज मस्ती कहीं वैसे भी दोनो मंगेतर हैं ना, लुत्फ उठा रहे होगें एक दूसरे की कंपनी का, let them enjoy yaar, रिदित बोल पड़ा।
हां हां आ जायेंगे, बच्चे थोड़ी ना हैं, राघव बोला.. आओ थोड़ा म्यूजिक का मजा लें। अगर दोनो भटके भी होंगे तो भी म्यूजिक की आवाज सुन कर आ जायेंगे।
सिस्टम पर एक डांस नंबर लगा कर सब डांस करने लगे...
शाम के गहराते साए में आसपास का माहौल थोड़ा शांत सा था......
धीरे धीरे सूर्य की रोशनी मद्धम होकर खतम हो चली और पूनम का चांद चमकने लगा.....
अचानक रिदिमा ने आगे बढ़ कर सिस्टम बंद कर दिया, म्यूजिक बंद होते ही चारों ओर एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया......
यार 7 बजने वाले हैं, कहां हैं ये दोनो, मुझे चिंता हो रही है.... वो बोली।
हां हां यार बहुत देर हो गई उन दोनो को अब तक आ जाना चाहिए था....आशा और नीरा भी बोल पड़ी। कहीं कुछ गडबड है.... कहां रह गए ये दोनो, चिंता होने लगी है।
इतना सुन कर सारे लड़के भी मस्ती छोड़ चिंता करने लगे।
राघव बोला, ऐसा करते हैं। तुम लोग यहीं रुको, मैं और वीरेन उनको देख कर आते हैं।
रिदित बोला, क्यों न हम सब मिल कर उनको ढूंढें, इतना बड़ा इलाका है तुम दोनो कैसे कवर कर पाओगे।
सब लोग फिर से दो दो की टोली में चलते हैं और उनकी दिशा में ढूंढते हैं।
हम सब लोग एक दूसरे से ज्यादा दूर नहीं रहेंगे और हर 5/10 मिनट में एक दूसरे को आवाज देते रहेंगे, रात गहराना शुरू हो चुकी है, और आस पास जंगली जानवर भी है, सावधान रहने की जरूरत है।
हमको जल्दी उनको ढूंढना होगा, ok, let's get going guys.
एक बार फिर सब अपने अपने साथी के साथ चल पड़े, इस बार सबके चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं चिंता का भाव था।
थोड़ा आगे चलने के बाद सब एक दूसरे से दूर होते चले गए रात क्यूंकि गहरी होती जा रही थी, चांद की रोशनी थी पर पेड़ों की छाया में कभी कभी अंधेरा बढ़ जाता था।
कुछ दूर चलने के बाद वीरेन का अचानक पैर किसी पत्थर  से उलझा और उसका संतुलन बिगड़ गया, वो और रिदिमा  एक साथ रपट गए और एक गहरी सी खाई की तरफ तेजी से फिसलने लगे। करीब 100 या 150 मीटर ढलान पर फिसल कर वो जंगल के ऐसे हिस्से में आ गए जहां उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था किस तरफ जाएं।
उन्हें अपने बाकी साथियों की आवाजें भी नहीं सुनाई दे रही थी। बस चारों ओर झींगुर और सियारों की आवाजें आ रही थी। रिदिमा डर के मारे वीरेन से लिपट गई।
जब कुछ देर तक कुछ भी समझ नहीं आया तो दोनो ने एक पेड़ पर चढ़ कर समय बिताने की सोच ली। बदकिस्मती से दोनो के हाथ से फिसलते वक्त टॉर्च भी न जाने किधर चली गई थी, अंधेरी रात में बिना रोशनी आगे बढ़ना बहुत मुश्किल था इसलिए दोनो जंगली जानवरों से बचने के लिए पेड़ का आश्रय लेना ही उचित समझा।

राघव और आशा बहुत ध्यान से फूंक फूंक कर कदम बढ़ा  रहे थे, बीच बीच में रूक रूक कर दोनो श्याम और कोमल को आवाज भी देते पर उनकी आवाज गूंज कर लुप्त हो जाती। चलते चलते अचानक पास की झाड़ी से कोई जंगली जानवर चौंक कर भागा, अंधेरे में हुई इस आवाज से दोनो ही बुरी तरह चौंक गए और कुछ देर सांस रोक कर वहीं खड़े हो गए।
अचानक आशा ने जोर से राघव का हाथ दबाया, और बोली तुमने कुछ सुना..... किसी के रोने की आवाज....
नहीं तो, तुम्हारा वहम है, चलो आगे बढ़ते हैं।
थोड़ा आगे बढ़ने पर फिर से आवाज आई, इस बार राघव ने भी साफ सुना....
दोनो आवाज की दिशा में श्याम और कोमल का नाम पुकारते बढ़े।
जैसे जैसे कदम बढ़ रहे थे आवाज साफ होती जा रही थी कोई लड़की रो रही थी.....
अचानक सामने एक पुराना जर्जर दरवाजा आ गया, अब आवाज और साफ आ रही थी....
राघव ने धक्का देकर दरवाजा खोला, और दोनो ने दालान में कदम रखा...... अचानक किसी ने राघव के कंधे पर हाथ रखा, राघव चौंक कर पीछे मुड़ा..... रिदित और नीरा सामने खड़े थे.....
क्या हो रहा है यहां...... राघव ने पूछा,
नहीं मालूम मैं और नीरा कुछ देर पहले ही आए हैं।
सामने से आवाज आ रही है, रिदित ने टॉर्च से इशारा किया..... पर कोई जवाब नहीं देता।
कहीं ये भूत प्रेत का चक्कर तो नहीं..... आशा ने पूछा।
आओ चल कर देखते हैं..... रिदित बोला.....
तुम दोनो यहीं रुको, मैं और राघव जा कर देखते है।
ना ना हम भी साथ चलेंगे, मुझे तो डर लग रहा है.....नीरा झट से बोली, मैं यहां नहीं रुकूंगी।
चारों आवाज की दिशा में बढ़ चले। बीच वाली कोठरी की सांकल खोल कर अंदर प्रवेश किया, अब रोने की आवाज और जोर से आ रही थी।
राघव ने सामने अलमारी की तरफ इशारा किया, सब एक साथ अलमारी की तरफ बढ़े।
आवाज तो अलमारी के अंदर से आ रही है, पर ये कमरा देखो पता नहीं कब से कोई आया नहीं, आशा बोली।
श्याम...... कोमल....... क्या तुम लोग हो बंद इस अलमारी में......राघव बोला, मैं आगे बढ़ कर अलमारी खोलता हूं।
उसने बढ़ कर अलमारी का हत्था पकड़ा और उसे खोलने की कोशिश की, उसे समय कोठरी का दरवाजा बंद हो गया, अचानक जैसे रौशनी की लहर सी आई, अगले ही पल कोठरी में अंधेरा छा गया, कुछ देर किसी को कुछ समझ नहीं आया पर देखा तो राघव गायब हो चुका था।

ये देख कर दोनो लड़कियां जोर जोर से रोने लगी, पर रिदित कुछ सोचने लगा।
अचानक उसका हाथ अपने गले के लॉकेट पर गया, कुल देवी का अभिमंत्रित ॐ का लॉकेट उसके गले में लटका हुआ था।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:
ये जाप करते हुए उसने उस लॉकेट को हाथ में ले लिया मन ही मन कुल देवी के मंत्र का जाप करते हुए उसने ॐ को जोर से सामने शीशे पर दे मारा।
अचानक शीशा चकनाचूर होकर जमीन पर बिखर गया।
शीशे के पीछे एक बड़ा सा तहखाना था, जहां राघव, श्याम, कोमल और तीन चार लोग बेहोश पड़े हुए थे।
नीरा ने झट पट पानी के छींटे मार कर सबको होश में लाया।
रात के करीब करीब 12 बजने आए थे, कोठरी का दरवाजा खुला पड़ा था।
रिदित की सुझबुझ और बहादुरी से शापित आईने का तिलिस्म टूट चुका था।
अगली सुबह वीरेन और रिदिमा भी कैंप में वापस आ गए।
नवलगढ़ की वो रात उनकी यादगार रात बन गई थी।

समाप्त

आभार – नवीन पहल – २९.१२.२०२१ 🙏🏻🙏🏻

# PAT

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5 Comments

RISHITA

29-Sep-2023 07:22 AM

Amazing story

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Gunjan Kamal

30-Dec-2021 12:07 AM

शानदार प्रस्तुति 👌

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धन्यवाद जी

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