Sunanda Aswal

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रेनू



आज की प्रतियोगिता हेतू


विषय : ओपन टॉपिक

शीर्षक :रेनू


"ओ रेनू..! तुम बहुत खूबसूरत हो...चांद की तरह ...! कायनात भी शरमा जाए तुम्हारी झुकी नजरें...उफ्फ ..! ये गोल -गोल मस्त आंखें ,शरारत सी ,पर शर्म हया से झुकी हुई .. शोख चंचल...सुंदर...!" आपस में सहेलियां खिलखिलाती हंसी ठिठोली करती..!


"तुम भी ना ",--रेनू  थोड़ी शर्मीली थी..! थोड़ा मुस्करा कर रह जाती सिर्फ..!


"ओ रेनू ..! तुम्हारा पति कितना भाग्यशाली होगा जिसे तुम जैसी पत्नी मिलेगी..!" वह अक्सर कहतीं ।
सभी कुछ तो आता था रेनू को ड्रोइंग ,पेंटिंग. सिलाई सभी कुछ में पारंगत । मां का पसंदीदा डायलॉग रहता,--" जो मेरी बेटी से ब्याह करेगा उसका सोता नसीब जाग जाएगा..!"


मां कहती थी..हमेशा ..! ये तो मां का प्यार था.. जो आता था बाहर..!

जब लड़का मिला तो क्यों करते देरी भी ..मात्र अठारह साल की  छोटी उम्र में ब्याह कर दिया ,आर्मी के मेजर से ।

वह शिमला में पोस्टिड थे..!


ब्याह के बाद वह पति के साथ चली गई .! अपने सपनों के राजकुमार के प्यार में खोई थी रेनू..! सारा दिन पति अपने आर्मी फील्ड ड्यूटी में रहते..रेनू अकेले रहती घर में..!

बहुत समय तक मन की बात पति से ना कर सकी, वह  सहती रही, पति से दूरियां बढ़ती गई..।

मेजर  साहब उसकी तरफ ध्यान ही ना देते..बहुत सीधी सादी भोली थीं..रेनू..!


कभी कभी  बहुत देर से  क्लब से पीकर आते ,वह उनको बिस्तर तक कंधे का सहारा देती और लिटा देती..जूते उतार रख देती..मेजर साहब होश में ना रहते...! सुबह उससे बिना कुछ बताए निकल पड़ते..!


वह खिड़की से उनके जाने का रास्ता भर देखती.. सोचती "कुछ तो कहेंगें मेजर साहब"...लेकिन उसका सोचा भला क्या होने वाला था..!


"--,क्या यह विवाह समझौता था या मजबूरी उसे समझ नहीं आया ..! मेजर साहब एक बार उसे अपने साथ क्लब में ले गए और बुरी तरह उसकी बेज्जत की," तुम गंवार हो रेनू...तुम आर्मी अफिसर की बीबी बनने लायक नहीं थींं समझीं....! तुम्हारे दांत बाहर को हैं..और तो और अंग्रेजी भी नहीं बोल पाती हो..! तुम्हें डांस नहीं आता  यहाँ सभी आर्मी ऑफिसर की पत्नियों डांस करती हैं.. तुम कर सकती हो क्लब में डांस क्लब में ,दूसरों के बाहों में बाहें डाले ? मां ने किस गंवार के पल्ले बांध दिया..  तुमको वापस भेजना होगा ..! वहीं तुम रहो ..वहीं के लायक हो तुम ..!"


रेनू के पैरों तले जमीन खिसक गई,यह हकीकत है..पति की...! मन अत्यंत भावुक, द्रवित हो उठा था...!


हद तो तब हो गई.. जब एक दिन मेजर साहब ने गाड़ी मंगाई और उसे अपनी मां के पास पठानकोट भेज दिया..!


मेजर साहब ने कुछ पैसे हाथ में कुछ पैसे रखे कहा," काम आएंगे तुम्हारे..!"उसे समझ नहीं आया किस जुल्म की सजा मिली उसे...! वह रो पड़ी थी ..!

"मौत भी ना आई...
ये सब देख...!" सोची ..।

अपने ससुराल गई.. सास ने स्वागत किया...और प्यार से पुचकारा," आ गईं तुम...मैंने कब से नहीं देखा तुम्हें.. !"

और हंसते हुए गले लगा दिया..!


यहां पठानकोट में छः महीने से अधिक हो गए थे,मेजर साहब का कॉल भी आता तो मां के नाम..! वह कौन थी ..उनकी स्त्री...?? या औरत? पत्नी ? या कुछ नहीं..!!

--",कौन सा दर्जा है उसका..?"दर्पण में लंबी मांग को निहारती खूबसूरत गोरे रंग को एक टक देखती..और मुंह घुमाती आड़ा टेढ़ा..!
खुद ही उधेड़बुन में लगी रहती कहती "बकवास है सब..! दुल्हन वही जो पिया मन भाए..! मैं कैसी दुल्हन पिया की हूं ,जो बेगाना है मेरे लिए..!" 


बहुत समझाया बुझाया खुद को ..उम्र की छोटी थी तो बात उतनी समझ से परे थी ,बस राजकुमार सपनों का ही समझ पा‌ई थी अभी तक ..।


ऋतुऐं बीती सावन भादो,जाड़ा आने को था...पर उसकी सुध ना ली मेजर सा ने..! सारे दिन सासु मां के साथ कितना बैठती नव विवाहिता...!


एक दिन पूस के महीने बाबू उसको लिवाने आ ही गए...!

बेटी को देख बहुत रूलाई आई बोले," --बेटा मुझे ना मालूम था तुम इतने दुख में हो चलो कल मेरे साथ मैं तुमको लेने आया हूं..!" 


इतने दिनों बाद किसी अपने को देखा रुलाई फूट पड़ी और जाकर सामान बांधने लगी..!

सासू मां से आज्ञा ले और पति को ट्रंक कॉल में सूचना दे चल दी माइके..!


आज वो खुद को अनचाहे बंधन से मुक्त देख रही थी...उसे यकीं नहीं हो रहा था उस आजादी का कैसे जश्न मनाए...!

मां-पिता पूरा हाल समझ चुके ,बेटी को वापस नहीं भेजना चाहते थे..!


जब शादी हुई तो इंटरमिजियेट पास थी..पिता ने बी.ए.ऑनर्स का फार्म भरा फिर एम ए ,बी.एड., एम.एड. भी किया ..।


किसी जाने माने कॉलेज में प्रवक्ता हो गई थी,इस दौरान सासू भी नहीं रही ,पति से तलाक भी नहीं हुआ था..!
मेजर साहब बीच -बीच में बुलाने भी आए.. फिर कभी नहीं गई वापस...! अपनी आन मर्यादा स्वाभीमान जो था...स्त्री का स्त्रीत्व था..!


जीवन में जिसने जिंदगी के तारों को विक्षिप्त किया था ..उसी को बजाने वो नहीं जाना चाहती थी...! उसका मान का सवाल हो गया ..।


रेनू ने साफ शब्दों में उन्होंने कह दिया था,"-- तुमने जो सत्रह साल मेरी जिंदगी के खत्म किए ,उनकी कीमत तलाक से नहीं ली जा सकती..! मैं तुमको तलाक नहीं दूंगी.. क्योंकि तुम जैसे मर्द को दूसरी शादी का मौका मिल जाएगा...! तुम भी मेरी तरह ही प्रेम के लिए तरसोगे...जैसे मैं मंगलसूत्र पहने विधवा रही...मेरा बदला एक समूल स्त्री जाती के लिए है...तुम जैसे पुरूषों के लिए यही सबक होगा..!"


और मेजर साहब को वापस खाली हाथ कर दिया...ना तलाक दिया ना ही गई कभी और ना ही शादी की दूसरी...! ये रेनू की सीमा थी ..। क्या सोचते हैं आप प्रतिक्रिया जरूर दें ..। एक स्त्री के स्वाभिमान के लिए जरूरी है ..।


स्त्री का स्वाभिमान..
उसकी आन..!
ना गिरे सम्मान...
चिरायु हो मान..!
ऐ स्त्री ...!
तुमको नमन्..!


#लेखनी
#लेखनी कहानी
#लेखनी कहानी का सफर


सुनंदा☺️

   10
7 Comments

🤫

31-Dec-2021 11:38 AM

काफी अच्छा लिखा आपने, लेकिन सही गलत की परिभाषा अपने अपने नजरिए पर निर्भर करती है। हो सकता है रेनू ने जो निर्णय लिया वह उसके नजरिए से बिलकुल सही हो।

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Sunanda Aswal

01-Jan-2022 09:42 PM

धन्यवाद अपूर्वा जी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए ❤️🙏🌺

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Shrishti pandey

31-Dec-2021 12:02 AM

Very nice

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Sunanda Aswal

01-Jan-2022 09:43 PM

धन्यवाद सृष्टि जी आभार 🙏🌺❤️

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Gunjan Kamal

30-Dec-2021 07:58 PM

वाह मैम शानदार प्रस्तुति 👌

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Sunanda Aswal

01-Jan-2022 09:43 PM

धन्यवाद गुंजन जी आभार बहुत-बहुत 🙏🌸🌺❤️

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