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वसीयत के जूते


                     एक परिवार में 4 लोग रहते थे। उसमें पति पत्नी ओर उनके दो बच्चे रहते थे। दोनों बच्चे बहुत होनहार थे परंतु बहुत सी गलतियां किया करते थे। तो उनके पिता उनको डाट के साथ साथ अपने जूतों का डर भी दिखा दिया करते थे। यह बात दोनों भाइयों को बहुत बुरी लगती थी। कि उनके पिता उनको जूतों से मारते हैं, परंतु कर क्या सकते थे दोनों । फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि दोनों बच्चों को गलती पर पिता जी ने आज जूता से नहीं मारा । दोनों बच्चे आपस मे आज पिताजी मे जूता क्यों नहीं उठाया। पाता नहीं छोटे तब ही पिताजी एक कपड़े में बंधा हुआ कुछ लेकर आते हैं । भाई इसमें क्या है, हे ईश्वर अब तू ही जाने हमारे पिताजी क्या करने वाले हैं। दोनों बच्चे हाथ जोड़ कर बोलते है। पिताजी आज से हम दोनों कोई भी गलती नहीं करेगें आज छोड़ दीजिए। बेटा यह लो इसको सम्भला कर रखना ज़िन्दगीभर मेरी याद दिलाया करेगा। जब भी कोई गलती करोगे तो इसे देख कर तुम्हें आपनी ग़लती का अनुभव हो जायेगा ,किन्तु याद रहे इस वसीयत को तभी खोलना जब में इस संसार को छोड़ जाऊ । हम दोनों आप कि बात को हमेशा याद रखेंगे । कई वर्ष तक दोनो बच्चे बिना किसी गलती के आपना जीवन जिते रहे । दोनों अच्छी तरह से आपने आपने काम में लग गए । एक दिन पिताजी ने भुलाया और कहा कि अब मेरा अंत समय आ गया है। 

                 दोनों बच्चे बहुत घबरा गए ओर रोने लगे पर कर क्या सकते थे। होनी को कौन टाल सकता है जो होना है वह होके ही रहेगा। पिताजी का देहांत हो गया। अब घर परिवार कि जिमेदरी दोनों पर आ गई। कई दिनों तक दोनों भाई हिलमिल कर रहे , पर यह कब तक हो सकता था। एक ना एक दिन दोनों में अनबन हो जायेगी , और हुआ भी कुछ ऐसा ही दोनों भाईयो मे झगड़ा बड़ गया दोनों ने एक दूसरे से बात करना भी बन्द कर दिया। दोनों भाईयो ने अलग अलग रहने के लिऐ फैसला लिया , गाव में पंचायत बिठाई गई पचों ने दोनों भाईयो से अपना अपना पक्ष रखने को कहा।
दोनों ने बारी बारी से अपना पक्ष रखा , पंच आपके पिताजी की कोई वसीयत हो तो वो ले आओ ठीक है हम वसीयत ले कर आते है। वसीयत को पचों के सामने खोला जाता है उस वसीयत को देख कर सब लोग दंग रह जाते है।
                       अब आपके मन में एक प्रश्न उठ रहा होगा ऐसा क्या था उस वसीयत में ? तो आपके प्रश्न का उत्तर इस कहानी के सुरुअत में देखे गए फोटो में है।


                          दोनों भाईयो ने वसीयत को ले कर घर चलें गए और दोनों भाईयो ने आपने पिताजी को दिए हुए वादा याद किया। दोनों भाई आजीवन आपने पिताजी के सिकाए हुऐ आदर्श पर चल पड़े।

                       अब आप को बतात हूं उस वसीयत में क्या था ? उस वसीयत में उनके पिताजी के जूते थे। और वह वही जूते थे जिन जूतों से पिताजी उनकी गलतियों पर मारा करते थे।

                                   Writer
                Gopal Krishna Sharma"GK"

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1 Comments

Apeksha Mittal

02-Jun-2021 08:21 AM

बेहतरीन लेख सर ।

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