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मन की कुंडलियां

सावन के अंधन दिखै, हरियाली चहुँ ओर।
कैसे कोइ भला लगै, जब मन ही में चोर।।
जब  मन ही  में चोर, कैसे  देखे  भलाई।
भरते  फिरे हैं  हामी, जहां  मिले  मलाई।।
कह मनोज कविराय, सबै जग होगा पावन।
अंधन की न सोचिए, हरा रहने दो सावन।।

#MJ
#प्रतियोगिता

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6 Comments

Sandhya Prakash

03-Jan-2022 08:16 PM

Good...

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Thank You

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Sunanda Aswal

03-Jan-2022 07:42 PM

बहुत सुंदर

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Thank You

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Swati chourasia

03-Jan-2022 05:56 PM

Very nice 👌

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Thank You

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