रीवांश को अपने सामने देखकर, आकांक्षा उस से बचने के लिए विपरीत दिशा मे भागने लगी।
रीवांश फिर से उसके सामने आकर बोला, "आपका यह टॉर्च वही पर गिर गया था। इसे ऑन कर लीजिये, आपको देखने मे परेशानी नही होगी।"
"तुम पागल हो क्या?" आकांक्षा हाँफते हुए बोली, " यहाँ भागते भागते मेरी जान जा रही है। ना यहाँ खाने को खाना है, और ना ही पीने को पानी... अब मुझसे नही भागा जाएगा... तुम्हें मुझे मारना है, तो तुम मुझे मार लो। पर मैं अब और नहीं भाग सकती।"
आकांक्षा को भूख और प्यास की वजह से चक्कर आने लगे। वो चकरा कर नीचे गिरने लगी कि तभी रीवांश उसे अपनी बाहों में थाम लिया।"
"हम आपको क्यों मारेंगे? कितनी बार बताएं कि अगर हमें आपको मारना होता, तो हम आपको कब का मार चुके होते।"
"हां यह बात सुन सुनकर तो मेरे भी कान पक गए हैं। क्या मुझे थोड़ा पानी मिल सकता है?"
"आपने पहले क्यों नही बताया, कि आपको प्यास लगी थी।" कहकर रीवांश ने उसे अपनी गोद में उठा लिया। आकांक्षा ने धीरे से अपनी पलकें झपकाई ही थी कि अगले ही पल वो उसके साथ एक झील के आगे थी।
"चलो अब नीचे उतारो मुझे...! इतनी जल्दी तो एरोप्लेन भी किसी को नहीं पहुंचाता होगा। तुम इतना तेज कैसे दौड़ लेते हो मिस्टर डेविल?" आकांक्षा ने आँखे बड़ी करके पूछा।
"डेविल.... नोट बेड. ... हमें ये नाम पसंद आया एंजेल!" कहते हुए रीवांश ने उसे नीचे उतारा।
"अरे वाह तुम तो इंग्लिश भी बोल लेते हो।"
"आप शायद भूल रही है कि हमने विदेश में पढ़ाई की थी, तो वहां उनकी भाषा आना तो जाहिर है। चलिए अब जल्दी से पानी पी लीजिये। ये जगह सुरक्षित नही है।" रीवांश को उनसे कुछ दूरी पर वो गड्ढा दिखाई दिया, जहाँ उसने उस पिंजरे को गाड़ा था।
आकांक्षा ने जल्दी से वहाँ से पानी पिया और आराम करने वही झील किनारे बैठ गयी।
"वैसे कितने पिशाच रहते हैं यहां पर... और वह सब तुम्हारी बात क्यों मानेंगे ? कही किसी ने मुझे पकड़कर पार्टी कर ली तो..!"
"वो हमारी बात इसलिए मानेंगे क्योंकि हम इस जंगल के सबसे शक्तिशाली पिशाच है। हमसे पहले इस जंगल में और कोई पिशाच नहीं रहते थे।" रीवांश भी वही उसके पास बैठ गया।
"ओह तो दादागिरी एंड ऑल... अच्छा कभी ऐसा हो कि जंगल में कोई शिकार ना आए.... तो, तुम लोगों को क्या भूख नहीं लगती क्या?" आकांक्षा को अब रीवांश से डर नही लग रहा था।
"सारा इंटरव्यू आज ही ले लेगी क्या? जब आप हम पर भरोसा करने ही लगी हैं तो, लाइए हम आपको जंगल से बाहर फेंक देते हैं। आप सुरक्षित अपने घर पर पहुंच जाएगी। और अब आपको डर नही लग रहा है मुझसे?"
आकांक्षा ने हाँ मे सिर हिलाया और बोला, "लेकिन अब मुझे तुमसे बात करनी है। मै सच जानना चाहती हूँ रीवांश, उस रात का सच।"
"आपने तो सब उस किताब मे पढ़ ही लिया था, तो अब आपको हमसे क्या जानना बाकी रह गया?"
" क्या मैं थोड़ी देर तुम्हारा हाथ पकड़ सकती हूं?"
"ताकि आप सब कुछ जान सके कि हमारे साथ क्या हुआ था?"
रीवांश की बात सुनकर आकांक्षा चौक गई।
"तुम्हें कैसे पता कि मेरे पास कुछ शक्तियां.....! मैंने तो तुम्हे इस बारे में नही बताया?"
"हम कोई आम इंसान नहीं है, जिसे कुछ बताने की जरूरत पड़े। जिस समय आपने जंगल में कदम रखा था, उसी के साथ हमें एहसास हो गया था कि आप कोई आम इंसान नहीं है। आप की अच्छाई की शक्तियों का कवच, जो कि आप की रक्षा कर रहा था, उसी की वजह से हमे आपके खास होने का अहसास हुआ। जंगल के घनघोर अंधेरे में पहली बार रोशनी की कोई किरण दिखाई दी। आप इस जंगल में नींद में चलकर नहीं आई है .... ना ही अनजाने में। आपका लक्ष्य आपको यहां तक खींचकर लाया हैं शहजादी..!" रीवांश ने जैसे ही अपनी बात खत्म की, आकांक्षा उसकी तरफ हैरानी से देखने लगी।
"कैसा लक्ष्य रीवांश? तुम क्या कहना चाह रहे हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।"
"आपका लक्ष्य तो हम नहीं जानते, लेकिन हम चाहते हैं कि आप हमारे बारे में जाने। वर्तमान हमारे इतिहास बारे में जाने, कि ना तो हम कल गलत थे और ना ही आज। गलत तो हमारे साथ हुआ था, जो आज हम यह शापित जीवन बिताने पर मजबूर हैं।" रीवांश के बातों से उसका दर्द साफ छलक रहा था।
"भले ही तुम कल गलत नहीं होंगे। लेकिन आज तुम गलत हो.... तुमने अपनी भूख मिटाने के लिए पता नहीं कितने लोगों की जान ली है। तुमने कहा था ना कि इस जंगल में तुमसे पहले और कोई पिशाच नहीं थे, तो बाकी पिशाच कहां से आए? मैंने पढ़ा था कि अगर एक पिशाच किसी आम आदमी को काट ले, तो वो भी पिशाच बन जाता है। जो शापित जीवन तुम्हें नसीब हुआ, वही तुमने कईयो के नसीब मे लिख दिया।" आकांक्षा ने गुस्से मे कहा।
उसकी बात सुनकर रीवांश को बहुत बुरा लगा। उसने आकांक्षा को अपने करीब खींचकर कहा, "आप हमे ऐसा कैसे बोल सकती हो? देखिए, हमारी आंखों में..! क्या आपको इन आंखों में एक शैतान नजर आता है?"
"तो वो क्या था, जो मैंने कल रात को देखा था?" आकांक्षा ने रीवांश की पकड़ से छुटने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
"आप पिछले 2 दिनों से इस जंगल में है। आपको खाना नहीं मिला, तो आप तड़प उठी। सोचिए... हम तो पिछले कई सौ सालों से जंगल में कैद होकर रह गए हैं। इस जंगल के बाहर एक कदम तक नहीं रखा। इस अंधेरे में दम घुटता है हमारा। आप नही जानती, हमें भी इस जीवन से कितनी घिन्न आती है। लेकिन मजबूरी में हमने यह सब करना पड़ता है। आप इंसान तो खाना ना मिलने की वजह से मर भी सकते हो। लेकिन हम.... हमारा क्या.... हमें तो तब भी सिर्फ और सिर्फ तकलीफें ही मिलनी है। और जानना चाहती है ना आप कि जंगल के बाकी पिशाच कहां से आए?" रीवांश ने आकांक्षा के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, "अपनी आंखें बंद कीजिए.... और देखिए ..... कि हमेशा जो दिखता है वह सच नहीं होता। कई बार सच 100 पर्दों के पीछे भी छिपा होता है। जिन्हें देखने के लिए आंखें नहीं, मन की शुद्धि चाहिए होती है।"
रीवांश के हाथ पकड़कर जैसे ही आकांक्षा ने अपनी आंखें बंद की, वैसे ही उसे वो सब कुछ दिखाई देने लगा,जो उस रात को हुआ था।
उस रात का भयंकर मंजर देखकर, आकांक्षा की रूह कांप गयी। रीवांश के साथ हुए धोखे को देखकर, उसकी आँखो मे आँसू आ गए।
रीवांश ने आकांक्षा के आँसू पोंछकर कहा, "क्या हुआ आकांक्षा? अब आपकी आँखो में आँसू क्यों आ गए?"
"मुझे माफ कर दो। मुझे नही पता था कि तुम्हारे साथ इतना बड़ा धोखा हुआ था। लेकिन फिर भी तुम्हें बाकी लोगों को पिशाच नहीं बनाना चाहिए था। तुमने भी वही किया, जो तुम्हारे साथ हुआ...!"
रीवांश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हम क्या आपको ऐसे लगते हैं? यह हमने नहीं किया। भले ही हमें मजबूरी में किसी की जान लेनी पड़ती है, लेकिन हम किसी को भी पिशाच नहीं बनाते। यह सब उन चारों कपटियों ने किया है। जब भी वह किसी का खून पीते हैं, तो अपने खून का कुछ अंश उनके अंदर डाल देते हैं ... और उनकी आत्माओं को शैतान का गुलाम बना देते हैं। जिससे वह लोग भी पिशाच बन जाते हैं। ऐसा करने से शैतान उन से खुश हो जाते है।"
"उन चारों से तुम्हारा मतलब, तुम्हारे धोखेबाज दोस्तो से है ना? क्या वो चारों भी इसी जंगल मे है?"
"जी..! उन को बंदी बनाकर रखा हुआ है। अब पता चल गया कि बाकी के पिशाच आज हमारी बात क्यों मानते हैं? क्योंकि हम उन्हें सभी तकलीफों से बचाते हैं। वो चारों इनके मालिक है, लेकिन हम उन्हे इनके अत्याचारो से बचाते है।"
रीवांश का अतीत जानने के बाद भी आकांक्षा का मन अशांत था। उसके मन में रीवांश के अतीत से जुड़े कई सवाल चल रहे थे, जिन्हे वो पूछने से हिचकिचा रही थी।
"आपकी शक्ल साफ बता रही है कि अभी भी आपकी जिज्ञासा शांत नही हुई है। आप के मन मे जो भी है, आप बेझिझक होकर पूछिये।" रीवांश के कहते ही आकांक्षा सहज हो गयी।
"तुम्हारे दोस्त तुम्हें बोल रहे थे, तुमसे कुछ ऐसी गलती हुई है कि जिसकी वजह से तुम्हारी बाकी सारी अच्छाइयां पर उस पाप की बुराई हावी हो गई .... और तुम्हें यह पिशाच का जीवन मिला। तुमने ऐसा क्या किया था, जिसकी वजह से तुम्हे एक पिशाच का जीवन बिताना पड़ रहा है?" उसने पूछा।
"ये तो हमें भी याद नहीं है... अगर हमें याद होता तो हम उसका पश्चाताप जरूर करते। कहते हैं पश्चाताप करने से बड़े से बड़ा गुनाह माफ हो जाता है। अनजाने में किए एक पाप की हमें इतनी बड़ी सजा मिलना, कहां का न्याय है?" रीवांश ने उदास स्वर मे जवाब दिया, "चलिए.. अब यहाँ से चलते है। ये जगह सुरक्षित नही है। यहीं से कुछ दूरी पर हमने उन चारों को कैद किया था।"
बोलते हुए रीवांश का हाथ आकांक्षा के हाथ से जा टकराया। उसे अचानक छूने से वो थोड़ा सकुचा गयी।
"तुम सिचुएशन एडवांटेज मत उठाओ। मै खुद से भी खड़ी हो सकती हूँ..!" आकांक्षा ने खड़े होकर बोला।
"वो गलती से हमारा हाथ आपके हाथ को छू गया। वैसे आप बहुत खूबसूरत हैं.... मन से भी और तन से भी।"
"यहां पर तो इतना अंधेरा है, फिर मै तुम्हें कैसे दिखाई दी?" आकांक्षा ने हैरानी से पूछा।
"अंधेरा तो औरों के लिए है...अंधेरे के लिए क्या अंधेरा? हम अंधेरे में भी देख सकते है। अब तो आपको आपके सारे सवालों का जवाब मिल गया ना... लाइए हम आपको जंगल के बाहर फेंक देते हैं, ताकि आप सुरक्षित अपने घर पहुँच सके।"
"अरे तुम बार-बार मुझे फेंकने की बात क्यों कर रहे हो ? मुझे चोट लग गई तो.!" आकांक्षा ने आँखे तरेरकर कहा।
"हमारे होते हुए तो, बिल्कुल नही..!"
"तुम्हे मुक्ति चाहिए ना?" आकांक्षा के मुक्ति का नाम सुनकर रीवांश ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "अब नहीं ... आपको देखकर हमें भी जीने का मन करता है।"
"तुम तो मर चुके हो ना? तुम्हारा सिर्फ शरीर तुम्हारे पास है, आत्मा तो शैतान के पास कैद है ना?"
"और जिसे खुद भगवान भी आजाद नही करवा सकते।" कहते हुए रीवांश की आवाज की भारी हो गयी और वो वहाँ से उठकर जाने लगा।
★★★★
जंगल मे जो भी चल रहा था, भले ही राजपुरोहित जी उस से पूर्णतया अंजान थे, लेकिन मौसम मे पल-पल हो रहे बदलाव को देखकर होने वाले अनिष्ट से वो बेखबर भी नही थे।
उनके कहे अनुसार राजवीर जी, जानवी के साथ पूजा करने के लिए रात के 12:00 बजे मंदिर के प्रांगण में उपस्थित हो गए। उन तीनों के अलावा उस वक्त मंदिर के कुछ खास पंडित मौजूद थे।
राजवीर जी ने वहाँ लोगों के होने की मौजूद उम्मीद नहीं की थी। उन्होंने राजपुरोहित जी पूछा, "राजपुरोहित जी, इतने सारे लोग...!"
"डरिए मत श्रीमान, यह सब पूजा को संपन्न कराने के लिए ही आए हैं।" राजपुरोहित जी ने उन्हे आश्वस्त किया।
पूजा शुरू होने से पहले वहाँ मौजूद पंडितों के समूह ने मंदिर के चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बनाया। उसके पश्चात वो लोग पूजा मे बैठे ही थे कि आसमां का रंग काला हो गया और बादलों की भयंकर गड़गड़ाहट के साथ बिजली कड़कने लगी।
मौसम मे अचानक हुए बदलाव को देख कर जानवी घबरा गयी।
"मुझे बहुत अजीब लग रहा है। आकांक्षा ठीक तो होगी ना?"
" देखिए मैं आपसे कुछ छुपाना नहीं चाहता। यह पूजा एक विशेष शस्त्र को जागृत करने की पूजा है। आकांक्षा की जान को खतरा है। हम यज्ञ करके शस्त्र जागृत करेंगे.... अगर वह शस्त्र उस तक पहुंच गया और आज वो उस बुराई को खत्म कर देगी, तो उसका लक्ष्य पूर्ण हो जाएगा। आज या तो वो बुराई जड़ से खत्म हो जाएगी... ये वो खुद..!"
राजपुरोहित जी कहते ही राजवीर जी ने डर कांपते हुए कहा, "ऐसा तो मत कहिए राजपुरोहित जी। एक आप से ही तो उम्मीद..!"
"उम्मीद तो उस माता रानी से लगाइए श्रीमान। जिस तरह उन्होंने स्वयं बुराई का विनाश किया था.... वैसे ही आप की पोती आज बुराई का नाश करें। चलिए पूजा प्रारंभ करते हैं। हो सकता है हमें रोकने के लिए आज यहां पर शैतान के बाशिंदे भी आए, लेकिन हम मे से कोई भी इस प्रांगण से बाहर कदम नही रखेगा... और ना ही यज्ञ की पवित्र अग्नि के अलावा किसी और चीज को देखेगा। मंदिर के बाहर छल की शक्ति चरम पर होगी, लेकिन आज छल को श्रद्धा और भक्ति से हराना है।" कहकर राजपुरोहित जी ने पूजा आरंभ की।
जैसा कि उन्होंने सोचा था कि ये सब करना इतना आसान नही होगा, वहाँ मंदिर के सुरक्षा कवच के बाहर अजीब तरह के जानवरो के रूप मे शैतानी शक्तियाँ आ गयी। लेकिन राजपुरोहित जी इस तरह की स्थिति से भली भाँति परिचित थे, इसलिए उन के बनाये अभेद्य कवच को तोड़ना इतना आसान नही था। हजारों मुसीबतें आने के बावजूद वहाँ मौजूद एक भी शख्स ने पूजा से पल भर के लिए ध्यान नही हटाया।
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जंगल के अंदर पिंजरे में कैद चारों पिशाच संजय, विजय, रघु और रवि तड़प रहे थे। पहले ही उन्हें पिंजरे में कैद होने की वजह से तकलीफ हो रही थी, ऊपर से रीवांश ने उस पिंजरे जमीन में भी गाड़ दिया था। इस वजह से उनका कोई बस नहीं चल पा रहा था ।
"हमें कैसे भी करके इस पिंजरे से बाहर निकलना होगा। आज के दिन के लिए हमने इतनी सारी योजनायें बनाई थी। याद है ना आज कौन सा मुहूर्त है?" रघु ने तड़पते हुए कहा।
"हां हां सब याद है...और भूल भी कैसे सकते हैं। अभी कुछ समय पश्चात पाताल लोक मे चंद्र ग्रहण शुरू हो जाएगा, जिसमे चंद्रमा अपने सबसे अशुभ नक्षत्र भरिणी मे स्थित होगा।" संजय ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा।
"और इस समय मे शैतान के सभी गुलाम बराबर शक्तिशाली होते है", विजय ने कहा, "तभी उन बेवकूफ पिशाचों को अपनी तरफ करने की कोशिश की। लेकिन सब व्यर्थ रहा।" गुस्से में उसने पैर पटके।
"लेकिन हमे कुछ भी करके इस अवसर का लाभ उठाना ही होगा। अगर आज हमने कुछ नहीं किया, तो फिर कभी यह मौका आसानी से हाथ नहीं आएगा। चलो, अब एक साथ मिलकर अपनी पूरी ताकत लगाते हैं और यहाँ इस कैद से बाहर निकलते है।" रवि के कहने पर तीनों उसके साथ मिलकर वहां से बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर मारने लगे।
वही दूसरी तरफ रीवांश अपनी मुक्ति का सोच कर दुखी हो गया। वो अच्छे से जानता था कि उसकी ये मुक्ति की तड़प कभी नही मिट पायेगी। जब से आकांक्षा ने उसका हाथ पकड़कर उसकी सच्चाई देखी थी, तब से उसे उसके दर्द का भी एहसास होने लगा था। वह रीवांश के साथ उसके पीछे-पीछे बिना कुछ बोले चल रही थी।
अपने दर्द और तकलीफ मे रीवांश ये भूल गया कि वो जिस दिशा मे बढ़ रहा था, वहीं उसने जमीन मे पिंजरे मे कैद रवि, रघु, संजय और विजय को डाला था।
रीवांश बिना किसी डर के दिशाहीन आगे बढ़ रहा था। उसके पीछे आते हुए आकांक्षा का पैर जैसे ही उस गड्ढे पर पड़ा, वहाँ एक जोर के झटके के साथ वो चारों पिंजरे सहित बाहर आ गए। धरती फटने से जोर का झटका हुआ और आकांक्षा उछल कर दूर जा गिरी। पिंजरा बाहर आते ही खुल गया और चारो पिशाच उसकी कैद से आजाद थे।
Art&culture
04-Jan-2022 12:09 AM
बेहतरीन कहानी है आपकी, रीवांश नाम अच्छा लगा ma'am
Reply
Sandhya Prakash
03-Jan-2022 08:14 PM
Kahani intresting h lekin part aadha hi aya h
Reply
Jahnavi Sharma
03-Jan-2022 11:19 PM
Kr diya hai thik... Website me bht glitch hai..
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