Sonia Jadhav

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हॉरर सीरीज़ - अमावस्या और पितृदोष

शादी का माहौल है घर में। रिश्तेदारों की भीड़, खूब सारी गपशप, हँसी मजाक, छोटे से लेकर बड़े तक हर कोई किसी ना किसी काम में व्यस्त है। हाँ यह माहौल मेरे ही घर का है क्योंकि आज से 2 दिन बाद मेरी शादी है और कल सगाई है। बारात बैंगलोर से आनी है चंडीगढ़।


मेरा प्रेम विवाह है मानव के साथ। ये भी क्या संयोग है उसका नाम मानव है और मेरा मानसी, दोनों नामों में बड़ी घनिष्ठता लगती है…..जैसे हम में है। आज शाम को आखिरी फैशियल के लिए जाना है पार्लर। थोड़ा चेहरा और निखार जायेगा। मेरा यही सपना है कि मैं अपनी शादी में बेस्ट लगूँ और मेरी फोटोज सबसे बढ़िया आएं।

फैशियल करवाते-करवाते शाम के 7 बज गए थे। बाहर अँधेरा हो गया था, आज चाँद की भी रोशनी नहीं थी क्योंकि आज अमावस्या थी और उस पर सर्दियों की रातें , अँधेरा जल्दी हो जाता था। मेन रोड से जाती तो घर पहुंचने में देर हो जाती, सोचा क्यों ना पार्क से निकल जाऊँ, घर जल्दी पहुँच जाऊँगी।

पार्क बिलकुल सुनसान पड़ा था, लोग सैर करके जा चुके थे। पार्क की लाइट भी आज ख़राब पड़ी थी बस आसपास के घरों से आती हुई रोशनी पार्क का अंधेरा कम कर रही थी। पार्क से निकलते हुए मुझे भी डर लग रहा था। एक तो मैं बाल बांधना भूल गयी थी और उस पर मेरा रबर बैंड भी पार्लर में छूट गया था और आज मानव ने जो परफ्यूम गिफ्ट दिया था मोगरे की खुशबू वाला वो भी लगा रखा था। माँ कहती है खुशबू से, आपके बालों से नकारात्क ऊर्जाएं आपकी तरफ जल्दी आकर्षित होती हैं।


मेरे मम्मी-पापा को पसन्द नहीं था कि मैं रात को खुले बाल करके रखूं। घर में भी कभी पापा मुझे खुले बालों में देखते थे तो डाँटते थे। मेरी मम्मी हमेशा कहती हैं बाहर खुले बाल रखकर नहीं घूमने चाहिए, नजर लग जाती है। मैंने भी कभी इस बात का विरोध नहीं किया क्योंकि मुझे नजर बहुत जल्दी लग जाती है।

जैसे-तैसे घबराते हुए मैंने वो पार्क का रास्ता पार किया। सर्दी में भी माथे से पसीने की बूंदे टपक रही थी और दिल की धड़कन तेज़ थी। घर पहुंचते ही चैन की साँस ली।
रात को 7 बजे की फ्लाइट से मानव और मानव का परिवार चण्डिगड़ पहुंचने वाला था। उनके रहने के इंतजाम होटल हयात में करवाया हुआ था, शादी भी उसी होटल में थी।

उसी रात मेहँदी और संगीत भी था। हर तरफ बस ख़ुशी ही ख़ुशी थी। मानव का फोन आ गया था, बताने के लिए कि वो लोग पहुँच चुके है। मानव का नाम सुनते ही होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट होठों पर बिखर जाती थी। बड़ी धूमधाम से हमारी शादी हुई। मानव और मेरी जोड़ी परफेक्ट लग रही थी।शादी के दिन अचानक ही मेरी तबियत खराब हो गयी थी, पेट में दर्द और लूज़ मोशन शुरू हो गए थे, बस दवाई खाकर शादी की रस्में पूरी हुई।
शादी के दिन मेरी अचानक हुई तबियत को खराब देखकर  मम्मी-पापा थोड़ा परेशान थे।

फेरे लेते समय पंडित जी ने कहा था... जिस दिन से लड़की का रिश्ता लड़के से तय हो जाता है, उसी दिन से दोनों की किस्मत एक दूसरे से जुड़ जाती है।
मेरी किस्मत भी मानव की किस्मत के साथ जुड़ चुकी थी। जिंदगी आगे क्या दिन दिखाने वाली थी उससे हम दोनों अंजान थे। हम बस खुश थे अपने जीवन में आयी इस खुशी से।

अगली सुबह हम फ्लाइट से बैंगलोर के लिए निकल गए।

घर में मेरा बहुत अच्छे से स्वागत हुआ, सभी को मैं पहले से जानती थी इसलिए कुछ हिचक नहीं हुई। सभी को लगा कि शादी की थकावट की वजह से मेरी तबियत खराब हो गयी है और मुझे भी ऐसा ही लगा था। इसलिए इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। मानव के मम्मी-पापा भी कुर्ग चले गए, वहां उनका घर था। रह गए मैं और मानव अकेले बैंगलोर में। जिंदगी बहुत खूबसूरत मोड़ से गुजर रही थी, हम हनीमून के लिए माउंट आबू चले गए। मैं तो बस इतना ही चाहती थी कि वक़्त यही थम जाए, अपनी खुशियों को जी भर कर महसूस कर लूँ। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मँजूर था।

तबियत खराब होने के कारण हम जल्दी वापिस आ गए थे। धीरे-धीरे मेरा वज़न गिरना शुरू हो गया था। जो भी खाती थी पचता ही नहीं था। दो कदम चलने पर भी सांस फूलने लगी थी। मेरी खराब तबियत का सुनकर मेरी मम्मी मुझसे मिलने के लिए बैंगलोर आ गई थी। मम्मीके आने से मानव थोड़ा निश्चिन्त सा हो गया था यह सोचकर कि चलो कोई तो है उसके ऑफिस जाने के बाद मेरा ख्याल रखने के लिए।

सोमवार को  मम्मी ने पूछा…..मानवी तेरे लिए खाने में क्या बनाऊं, मेरा तो आज उपवास है।


आज किसका उपवास रखा है माँ?


सोमवती अमावस्या का उपवास है आज मेरा……


भूल गयी क्या कि मैं अमावस्या के दिन उपवास रखती हूँ।


क्या करूँ माँ, जबसे तबियत खराब रहने लगी है तबसे कुछ याद ही नहीं रहता।
कोई बात नहीं जल्दी ठीक हो जायेगी।


रात 10 बजे करीब मानव और मैं एक दूसरे से बातें कर रहे थे कि अचानक से मुझे ऐसा लगा कि मुझे साँस नहीं आ रही है, जैसे गले को किसी ने अंदर से बांध दिया हो। मैं बोलने की कोशिश कर रही हूँ लेकिन बोल ही नहीं पा रही हूँ।

मानव मेरी हालत देखकर घबरा जाता है, उसे समझ नहीं आता वो मुझे कैसे संभाले, वो मम्मी को आवाज़ लगाता है…. मम्मी, मम्मी जल्दी आइए देखो तो मानवी को क्या हो गया है?
मम्मी भागी भागी आती है कमरे में……मुझे पानी देती है पीने के लिए लेकिन मैं पानी भी नहीं पी पा रही होती हूँ। मेरी आँखों से बस आंसू निकल रहे होते हैं और मैं बार-बार अपने गले को सहला रही होती हूँ कि मुझे थोड़ी सी साँस आए। मम्मी भगवान का नाम लेते हुए मेरी पीठ सहलाने लगती है। तब मुझे जोर से डकार आती है और मैं साँस लेने लगती हूँ। मैं इतनी थक जाती हूँ इसके बाद कि बेहोश सी पड़ जाती हूँ। मम्मी मेरे माथे पर भगवान का तिलक लगाती हैं और अपने कमरे में चली जाती हैं।

मानव सुबह मम्मी से कहता है…..मम्मी जब तक मानसी की तबियत ठीक नहीं हो जाती आप चंडीगढ़ वापिस मत जाओ। कल रात के बाद से मैं बहुत डर गया हूँ।


मैं भी यही सोच रही थी बेटा…… तू तो ऑफिस चला जायेगा और रात जैसी स्थिति फिर से हो गयी मानसी की, तो उसे कौन संभालेगा?

सुबह मानसी बिलकुल सामान्य होती है। धीरे-धीरे मानसी को रोज ही ऐसा होने लगता है। कई बार यह दौरा 5 मिनट तक रहता था और कभी-कभी 15-20 मिनट तक और इस दौरान वो बिलकुल निढाल हो जाती थी जैसे किसी ने उसकी पूरी ऊर्जा निचोड़ ली हो। फिर ठीक होते ही सामान्य रूप से हँसने बोलने लग जाती थी। मानव ने कई डॉक्टर्स को दिखाया लेकिन सबने कहा…..कुछ नहीं है, पेट के सारे टेस्ट करवाये वो सब भी नार्मल थे। सब कुछ नॉर्मल था लेकिन मानसी के साथ जो हो रहा था वो नार्मल नहीं था।

मानसी की मम्मी मानसी को लेकर चंडीगढ़ चली जाती है। एक दो दिन बाद फिर से रात को मानसी की तबियत बिगड़ जाती है और वो संभलने को ही नहीं आती। मानसी को हॉस्पिटल में इमरजेंसी में दाखिल करवाना पढ़ता है। यहाँ भी सारे टेस्ट होते है लेकिन फिर सब नार्मल होते हैं। हॉस्पिटल से आने के बाद कुछ दिन तक मानसी ठीक रहती है लेकिन फिर से उसे वही परेशानी शुरू हो जाती है…..उसे ऐसा लगता है जैसे किसी ने उसका गला पकड़ लिया हो, उसे साँस ही नहीं आती और वो बस रोती रहती है।

मानसी के पापा मानसी की मम्मी से कहते हैं….. ये डॉक्टर का नहीं, ये ऊपरी चक्कर है कोई। सिर्फ 6 महीने में मेरी लड़की का वजन 60 किलो से 45 किलो का हो गया है। सारी रिपोर्ट्स नार्मल हैं और डॉक्टर के पास कोई जवाब नहीं है।

मेरा एक दोस्त उत्तराखण्ड से है। वो बता रहा था कि रामनगर में एक औरत है पार्वती नाम की जो ऊपरी चक्कर जैसी समस्याओं का निवारण करती है। उसने फोन नंबर दिया है पार्वती जी का, शाम को उन्हें फोन करता हूँ।

शाम को मानसी के पापा पार्वती को फोन करते हैं और उसे मानसी की हालत के बारे में बताते हैं। पार्वती पूछती है…..ये सब होना शुरू कब से हुआ मानसी को?
जी बहनजी शादी के बाद से।

ठीक है आप उसके पति को बोलो कि वो अपने घर की थोड़ी मिट्टी और थोड़े चावल लेकर आपके साथ रामनगर आ जाए अमावस्या के दिन और हाँ मानसी को लाने की जरूरत नहीं है। वो ठीक हो जायेगी आप चिंता ना करें।
मानसी के पिता मानव को फोन पर सब सच्चाई बता देते हैं। मानव थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, फिर मानसी के पापा कहते हैं….सारे बड़े-बड़े डॉक्टरों को दिखा लिया लेकिन किसी के पास कोई जवाब नहीं है उसे ये सब क्यों हो रहा है? पूरा जीवन तो वो ऐसे नहीं काट सकती ना। इतनी कमजोर हो गयी है। किसी से बात नहीं करती, किसी के सामने नहीं बैठती इस डर के मारे कहीं उसे फिर से दौरा ना पड़ जाए। मैं अपनी बेटी को ऐसी हालत में नहीं देख सकता।

ठीक है पापा, मैं कल ही सुबह कुर्ग के लिए निकल जाऊंगा और फिर वहां से सीधा दिल्ली आ जाऊंगा।
मानव आज से 3 दिन बाद अमावस्या है और हमें उसी दिन रामनगर पहुंचना है।

ठीक है पापा, मैं उससे पहले ही पहुँच जाऊंगा।
अगले दिन मानव कुर्ग पहुँच जाता है अपने मम्मी-पापा के घर। मानव का अपना फार्म हाउस होता है और उसी जगह पर उन्होंने बड़ा सा बंगला बनाया हुआ होता है।
घर पहुंचकर जो मानसी के पापा ने कहा था, वो सब अपने मम्मी-पापा को बताता है। मानव के पापा गुस्सा हो जाते है….ये क्या अन्धविश्वास वाली बातें कर रहे हैं समधी जी। मानसी तो शादी के दिन से ही बीमार थी। क्या पता उनकी बेटी को पहले से ही कोई बीमारी हो, जिसे ना उन्होंने बताना जरूरी समझा, ना मानसी ने और तू प्यार के चक्कर में पागल बन गया।
ओह हो पापा बस भी करिये। मानसी और मैं 3 साल से एक दूसरे को जानते थे। अगर उसे कोई बीमारी होती तो मुझे तो पता चलती।

मानव के पापा मानव ठीक कह रहा है और पता करवाने में हर्ज ही क्या है….दूध का दूध और पानी का पानी अपने आप हो जायेगा।
ठीक है तुम माँ बेटे को जो करना है करो, मुझे इन सब बातों से दूर रखो।
मानव घर के आँगन से मिट्टी और घर से थोड़े से चावल लेकर चंडीगढ़ चला जाता है।

जैसे ही घर की घँटी बजाता है, मानसी दरवाजा खोलती है। मानसी का चेहरा देखकर वो हैरान हो जाता है। वो बहुत कमजोर हो चुकी होती है, वो मानसी को गले से लगा लेता है और दोनों मिलकर रोने लगते हैं। मानसी के मम्मी-पापा की आंखे भी नम हो जाती हैं।
उसी रात मानसी के पापा और मानव रामनगर के लिए निकल जाते हैं और ठीक अमावस्या के दिन पार्वती के घर पहुँच जाते हैं। गाड़ी सड़क पर पार्क करनी पड़ती है क्योंकि उसका घर गाँव में काफी अंदर जाकर होता है। घर के चारों तरफ पेड़ ही पेड़ होते हैं और उसके बीच उसकी छोटी सी झोपड़ी होती है। झोपड़ी के अंदर एक जगह पर उसने देवी का स्थान बनाया होता है, जहाँ काली माता की बड़ी सी फोटो रखी हुई होती है और उसके पास दिया जल रहा होता है।

घर पर मिट्टी की लिपाई हुई होती है। पार्वती जी देखने में साधरण एक छोटे कद की महिला होती हैं।हम पार्वती जी को प्रणाम करते हैं।
मानसी के पापा कहते हैं मैं अमित शर्मा और ये मेरा दामाद मानव है। हम चंडीगढ़ से आये हैं, मेरी बेटी मानसी के लिए।
अच्छा-अच्छा चंडीगढ़ से आए हो, हाँ-हाँ याद आ गया। कैसी है आपकी बेटी की तबियत?
ऐसी ही है बहनजी, क्या कहूँ अब आपसे?

मेरी तरफ देखकर बोलती है…..चावल और घर की मिट्टी लाए हो तुम?
हाँ जी लाया हूँ….… मैं बैग से निकाल कर मिटटी और चावल दे देता हूँ।
शर्मा भाईसाहब आपकी बेटी के साथ कौन है घर में?
….जी उसकी मम्मी है।
आज अमावस्या है, आपकी बेटी की तबियत और दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा ख़राब होगी। आपकी बीवी उसे अकेले संभाल नहीं पायेगी। किसी रिश्तेदार को मदद के लिए घर बुला लीजिये।
यह सुनकर तो मेरा दिल जोरों से घबराने लगता है। तभी पापा फोन करके अपने भाई के लड़के नमन को घर जाने के लिए कहते हैं और सारी बात समझा देते हैं।

फिर पार्वती जी चावल और मिट्टी लेती हैं हाथों में, आंखें बंद कर लेती हैं और अपनी पहाड़ी भाषा में कुछ बोलने लगती है जो हमें समझ में नहीं आता। उनके माथे से पसीने की बूंदे टपकने लगती हैं और वो जोर से आवाज करती हैं। मैं तो डर के मारे पापा से चिपक जाता हूँ। करीब 5-10 मिनट बाद वो आंखें खोलती हैं और मेरी तरफ देखकर कहती हैं….जिस घर में तुम्हारे माता-पिता रहते हैं, वो घर तुम्हारी बुआ दादी के नाम था पहले जिसकी कोई औलाद नहीं थी। तुम्हारे दादा और उनके भाई ने जबरदस्ती सारी जमीन और घर अपने नाम पर करवाने के लिए उन पर ज़ोर डाला और जब वो नहीं मानी तो तब तुम्हारे दादा और भाई ने उसे खाना-पीना देना बंद कर दिया, उसे एक कमरे में कैद करके रख दिया, जहाँ हवा आने के लिए खिड़की भी नहीं थी। उसका दम घुटता था वहाँ, वो ठीक से सांस भी नहीं ले पाती थी।

कई बार तेरे दादा और उसके भाई ने उसे गला घोंटकर मारने की कोशिश भी की। वो दिन रात तेरे खानदान को बददुआएँ देती थी, उसने तुम्हारी कुलदेवी से गुहार लगाई कि तुम लोगों के खानदान का सर्वनाश हो जाये और आने वाली पीढ़ियां कभी फल फूल ना पाए। जैसे मेरे साथ हुआ वैसे तुम्हारे घर में तुम्हारी बहुओं के साथ हो और तुम सब लाचार हो जाओ।

बोल सच है कि नहीं ये…..
मुझे नहीं पता…
फोन लगा अपने घर पर और अपने बाप से पूछ असलियत में घर किसके नाम पर था?
मानव घबराकर फोन लगाता है और अपने पापा को सारी बात बताता है और पूछता है।

मानव हैरान रह जाता है यह सुनकर कि असलियत में यह घर दादाजी की बहन के नाम पर ही था, फिर उन्होंने दादाजी के नाम कर दिया क्योंकि उनकी कोई औलाद नहीं थी। लेकिन दादाजी और उनके भाई ने ऐसा किया था अपनी बहन के साथ , इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी।
मानव फोन रखने के बाद पार्वती जी से पूछता है…लेकिन बुरा हमारे साथ ही क्यों हो रहा है, मेरे दादा जी के भाई तो अपने परिवार सहित खुश हैं?

वो लोग इसलिए खुश हैं क्योंकि वो अपने परिवार सहित वो घर छोड़कर जा चुके है और यह घर अब तुम्हारे पिता के नाम है। जिसके नाम पर घर रहेगा वही तो भुगतेगा। एक तरह से पितृ दोष का मामला भी है यह। जैसे दुआएं खाली नहीं जाती वैसे बददुआएँ भी खाली नहीं जाती।

तुम्हारे मम्मी-पापा की तबियत कैसी रहती है? दो साल पहले माँ का एक्सीडेंट हुआ था कि नहीं और ठीक 1 साल बाद बाप को दिल का दौरा पड़ा था?

हाँ हुआ था? लेकिन आपको कैसे पता यह सब?
तुम जो मिटटी और चावल लाए हो ना, उसी से पता चला है ये सब।
पापा और मैं एक साथ बोल पड़ते है…. अब इस समस्या से बचने का उपाय क्या है?

वो मानसी के पापा को कहती है….आपको कुछ नहीं करना, जो करना है मानव और इसके माँ-बाप करेंगे।
मानव तुम अपने परिवार सहित हरिद्वार जाओ और अपनी बुआ का श्राद्ध करो और वो घर बेच दो।
जितनी तकलीफ तुम्हारी बुआ ने सही है उतनी मानसी को भी सहनी पड़ेगी। इसलिए यह काम जल्द से जल्द कर दो।

हर अमावस्या के दिन तुम्हें अपने पितरों की पूजा करनी होगी, उन्हें भोजन अर्पण करना होगा।

यह ताबीज़ मानसी के गले में बाँध देना, काली माँ सब ठीक करेगी।

मानसी के पिता और मानव चंडीगढ़ लौट आये। पूरे रास्ते उन्होंने कोई बात नहीं की, दोनों को विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।
घर आकर मानसी को मानव ने गले में ताबीज पहना दी और उसे रामनगर में होने वाली सारी बातें बताई।
मानसी भी हैरान थी यह सब सुनकर।

फिर मानव ने अपने पापा को फोन लगाया और सब कुछ बताया। पहले तो उसके पापा यह मानने को तैयार ही नहीं हुए कि दादाजी अपनी बहन के साथ ऐसा कर सकते हैं। लेकिन फिर मानव ने कहा जो भी हो यह बात तो पार्वती जी की सच है कि घर पहले बुआ दादी के नाम था, आपके दिल के दौरे वाली बात और मम्मी के एक्सीडेंट वाली बात भी सच है। जब इतना सब वो सच कह सकती है तो फिर बाकि भी सच ही होगा।
मुझे मेरी मानसी ठीक-ठाक चाहिये और उसके लिए जो करना पड़ेगा मैं करूँगा।
ठीक है मानव कल मैं और तेरी मम्मी चंडीगढ़ पहुँच जायेंगे।
थैंक यू पापा मेरी बात समझने के लिए।
तेरी ख़ुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ नहीं।

फिर मानव और मानसी परिवार सहित हरिद्वार जाते हैं श्राद्ध के लिए।
मानव के पिता भी घर को बेचने के लिए राजी हो जाते है। हरिद्वार से आने के बाद मानसी के दौरे रूक जाते हैं और उसकी तबीयत में सुधार होने लगता है।
मानव के माता-पिता उनके साथ ही बैंगलोर में सेटल हो जाते हैं। मानसी और मानव के जीवन में खुशियाँ फिर से लौट आती हैं।

❤सोनिया जाधव

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4 Comments

Shrishti pandey

08-Jan-2022 04:49 PM

Nice

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Punam verma

08-Jan-2022 09:18 AM

Nice

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🤫

04-Jan-2022 11:08 AM

Nice story h apki... Lekin kuch chije aspasht h. Jaise banglore me manasi ko samasya kyu aai. Jabki last me apne kaha h ki ghar me jo rahega samasya usi ko hogi, ghar jisake nam hoga. Vah bhi.. aur dusri bat kahani me apne kahin third person ka use Kiya h to kahin manav ko story teller bataya h.

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