Anjali agarwal

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लक्ष्य

"अरे हुआ तो बेटा ही है" बच्चे को जन्म देने के बाद दर्द के कारण बेहोश हुई मेरी आंख इसी खुसर पुसर से खुली .एक सुकून सा मिला ....क्योंकि परंपरा की बेड़ियों में बंधे मेरे परिवार को बेटे की अभिलाषा थी .बेशक मेरी ममता इस पक्षपात से निर्लिप्त थी 
अचानक एहसास हुआ सब के चेहरे पर वो खुशी नजर नहीं आई जिसे बेटा होने के बाद उनके चेहरे पर विद्यमान होना चाहिए था .फिर जो बज्रपात हुआ उसने आसमान में उन्मुक्त उड़ती हुई मुझे जमीन पर ला पटका .मेरा बेटा शारीरिक रूप से विकलांग था .  वह ना चल सकता था और ना ही  उसके हाथ ठीक से काम करते थे. जैसे कि एक  मांस का लोथड़ा. 
अब घर के लोगों को वह कांटे की तरह  चुभने लगा .हर दिन मिलने वाले तानों ने  मेरे अंदर की औरत को तोड़ कर रख दिया .जिंदा  रही तो सिर्फ एक मां जिसका एक ही लक्ष्य था अपने विशेष बेटे को सब में विशेष बनाना. जब वह गिरता मैं उसे संभालती... उसे कहानियां सुनाती... आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती ...कभी हार ना मानने की हिम्मत देती. चाहे मैं खुद कितनी ही बार टूट जाती है और फिर अंदर से आवाज आती है ऐसे कैसे टूट जाऊं ?अभी तो मुझे अपनी उम्मीदों को पूरा होते हुए देखना था .
और फिर अचानक किसी ने मेरा कंधा थपथपाया  और मैं वर्तमान में लौट आई .सामने मंच पर मेरा नाम पुकारा जा रहा  था . "Priya जी मंच पर आइए "आज मेरे बेटे को बेस्ट मोटिवेशनल स्पीकर का अवार्ड मिला था और वह मेरे हाथ से लेना चाहता था मेरा रोम-रोम पुलकित हो गया .वह बच्चा जिसे खुद कभी मोटिवेशन की जरूरत थी आज दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया था .आज एक मां को उसका लक्ष्य मिल गया और एक बेटे को उसका खुला आसमान|

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6 Comments

Naman Kumaar

09-Jun-2021 11:11 AM

Bahut khub

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Sonali negi

03-Jun-2021 03:14 PM

Osm

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Shaba

31-May-2021 11:32 PM

उत्कृष्ट रचना।

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