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Jaane Kahaa ??? The Revolution

अपडेट 14

 

विक्रम के पिताजी गंगाधर रजवाड़े के काम से बाहर गये हुवे थे और सुबह तक आनेवाले नही थे और फिर कृष्णा को लेकर बोम्बे जाना था और ये कृष्णा की आखरी रात थी। विक्रम ने प्रिन्स को तो वो औषधि पिलाकर ख़तम कर दिया था, लेकिन कृष्णा भी बंसी के कहने पर यहा आई थी, ये राज़ विक्रम नही जनता था। बंसी हवेली के पिछे से प्रिन्स और कृष्णा का नज़ारा देख रहा था। उसे ये जान ना था की प्रिन्स क्या चाहता है और कौन है जो उसकी बहन को बर्बाद करना चाहता है इसीलिए उसने कृष्णा को ज़बरदस्ती यहा भेज दिया था। उसे बड़ा दुख हुवा था की कृष्णा की क्या ग़लती है की उसे विदेश भेजा जा रहा है।

 

जब बंसी ने देखा की प्रिन्स तो आउट है लेकिन विक्रम के खुद पर नशा सवार था। उसकी आग कृष्णा की जवानी देखकर और भड़की हुई थी। उसने रामेश्वर को रवाना कर दिया था। रामेश्वर की करतूत भी बंसी ने अपनी आँखो से देखी तब उसे पता चला की रामेश्वर बड़ी उची चीज़ है। लेकिन जब विक्रम की जिस्म की भूख कृष्णा के लिये जाग उठी तब बंसी से नही रहा गया उसने दौड़कर हवेली मे प्रवेश करके विक्रम को रोकने की सोची। उसे रूम मे पहुचने मे तीन या चार मिनिट्स लगनेवाले थे। लेकिन तब तक विक्रम ने कृष्णा को दबोच लिया था।

 

लेकिन कृष्णा ने ज़ोर से धक्का दे के विक्रम को गिरा दिया। उसी समय बंसी रूम तक पहुच गया, लेकिन उसे समय विक्रम  खड़ा हो के हस रहा था और बोला,“देखो कृष्णा ये तो कोई नही जानता की तू सचमुच मा बन ने वाली हो ही नही। प्रिन्स नामर्द है और किसी लड़की का कुछ नही बिगड़ सकता ये भी तुम अच्छी तरह जानती हो। अगर एक बार मेरा कहा मान लो फिर कल से तुम आज़ाद पंछी बनकर चली जाना।

 

विक्रमबाबू मेरा भरोसा सिर्क आप पर था, क्यूकी मैं आप से प्यार करती हू और शायद इसीलिए मैने आप का और मेरे बापू का कहना मानकर अपने आप को प्रिन्स के सामने खुला किया है। अगर आज आप मेरी ज़िंदगी बर्बाद करोगे तो मैं सच मे आत्महत्या करूँगी।कृष्णा रो पड़ी।

 

बंसी वही स्तब्ध होकर खड़ा रह गया। उस वक़्त उसने सपने मे भी नही सोचा था की प्रिन्स को फसाने का प्लान उसके पिता, विक्रम और कृष्णा का है। वो दीवार से सट गया और सबकुछ सुन ने को बेताब होकर खड़ा रहा।

 

विक्रम आगे बोला,“क्या तुम मूज़े प्यार करती हो ?“

 

कृष्णा ने रोते हुए हा मे सिर हिलाया।

 

विक्रम उसके नज़दीक गया और उसका चेहरा उठाया और बोला,“पहले क्यू नही बोली पगली       ?“

 

कैसे बोलती आप खुद ही मूज़े प्रिन्स के हवाले करते रहे, मैं और क्या करती जब मेरे खुद बापू की लालच और आप का ये रूप देखकर मैं हैरान थी इसीलिए मैने फ़ैसला किया था की जब भी कोई मेरी ज़िंदगी बर्बाद करेगा मैं उसी पल अपनी जान दूँगी। मेरी उम्मीद आप पर टिकी हुई थी, लेकिन आप भी मूज़े मार डालने पर तुले हुए थे। अब तक मैं मेरे बापू और आप के इशारे पर नाचती थी, आज मेरे भैया ने भी मेरी एक नही सुनी और इस दल दल मे मूज़े जौक दिया। सब दुनिया मे मतलबी है। ये तो भगवान की कृपा है की मे आज तक सुरक्षित हू। लेकिन ये जिस्म तो हज़ार बार खुला कर चुकी हू मे। एक वैश्या बन चुकी हू मे। किस किस को मूह दिखाउ, इस से तो अच्छा है की मे बाहर चली जाउ और वहा जाकर अपनी जान दे दु।कृष्णा फूटकर रोने लग गयी। विक्रम भी कुछ हैरान सा वही खड़ा रहा। बाहर बंसी रो रहा था।

 

थोड़ी देर चुप रहकर विक्रम बोला,”तुम क्या अपने भैया के कहने पर यहा आई हो ?”

 

कृष्णा ने रोते हुवे हा मे सिर हिलाया।

 

तब तो तेरा भैया भी यही होना चाहिए, कहा हैकहकर उसने उसने आवाज़ लगाई।

 

बंसी भी नीचा सिर कर के अंदर चला आया और खड़ा रह गया।

 

‘’तो तू ही है अपनी बहन को यहा भेजनेवालाविक्रम ने पुछा।

 

हा बाबा मे जान ना चाहता था की मेरी बहन की क्या मजबूरी है की हर बार उसे ही ग़लत साबित कर दिया गया।बंसी ने बोला।

 

तेरा अपना बाप ही है सुन लिया ना अपनी बहन के मूह से तूनेविक्रम अभी भी नशे मे  था।

 

‘’हा सुन लिया बाबा और ये भी सुन लिया की बिना किसी जुर्म के मेरी बहन बदनाम हो के कल चली जायेगी।’’ बंसी ने आँखे उठाकर रोते हुए कहा।

 

‘’बाबा आप भी तो इतना ही दोषी है जितना मेरे पिताजी और मेरी बहन।’’ बंसी ने पुछा।

 

‘’अपनी ज़बान पे काबु रख बंसी’’ विक्रम चीख उठा।

‘’मैं तो काबू रख लेता हू लेकिन बाबा मे कल से यहा नौकरी पे रहा हू और मेरी बहन भी चली जायेगी लेकिन शायद उसका दर्द आप को कभी चैन से जीने नही देगा’’ बंसी बोल    उठा।

 

‘’मूज़े कोई फ़र्क नही पड़ता बंसी’’ विक्रम यू ही रूखा खड़ा रहा।

 

‘’हा बाबा आप को क्यू फ़र्क पड़ेगा, इज़्ज़त तो हम लोगो की जा रही है ना।’’ बंसी बोला।

 

‘’ये तेरे बाप का किया हुवा है तो आप को ही भोगतना होगा’’विक्रम गुस्से से बोला।

 

‘’आप भी उते ही गुनेह्गार है बाबा, मेरे बाप ने तो दौलत की लालच मे ये सब किया होगा लेकिन आप के पास तो दौलत भी है और सोहरत भी। रजवाड़े का साथ है फिर भी आप ने तो दोनो और धोखा किया है।’’ बंसी फिर   बोला।

 

‘’चुप हरामखोर, तेरी इतनी हिम्मत की मुज पर इल्ज़ाम लगा रहा है।’’विक्रम ने चिल्लाकर बोला।

 

‘’ये इल्ज़ाम मैं नही लगा रहा हू लेकिन आप के पिताजी को सब पता है और जो नही है वो भी शायद चल जायेगा इसीलिए आप के लिए नयी पाबंधी आनेवाली है।’’बंसी के मूह से निकल गया।

 

इतना ही सुनकर विक्रम का नशा उतर गया और चौकन्ने होकर पुछा,’’क्या कहा तूने? क्या पाबंधी आनेवाली है मुज पर ज़रा मे भी देखु तो’’विक्रम बोला।

 

अब बंसी चुप रहा और कृष्णा का हाथ पकडा और चलने लगा।

 

विक्रम ने उसे रोककर बोला,’’ऐसे नही बंसी पूरी बात बताकर ही जाना होगा वरना यहा से ज़िंदा वापस नही जा पाओगे’’ विक्रम बोला।

 

‘’बाबा आप मूज़े मार डालेंगे फिर भी मै नमकहरामी नही करूँगा लेकिन इतना कह देता हू की जिस बेरहम से आप ने मेरी बहन के साथ खिलवाड़ किया है ना कल शायद भगवान आप से सवाल करेगा और आप को उसे जवाब देना होगा। मेरी बहन तो सुरक्षित हो जायेगी लेकिन आप का रोना अभी बाकी है’’ बंसी ने करूण स्वर मे बोल दिया।

 

बंसी कृष्णा को लेकर रूम से बाहर निकल के नीचे दिवानखने मे जा पहुचा। विक्रम उसके पीछे पीची धीरे धीरे रहा था। वो शायद सोच रहा था की ज़रूर बंसी कुछ छिपा रहा है। उसने आवाज़ देकर बंसी को रोका और उसके सामने आकर बोला,“देखो बंसी मेरा तो जो होना है वो कल से होना ही है। मूज़े नही मालूम की मेरे पिताजी ने क्या सोचकर तुजे कल से यहा नौकरी पर रखा है। लेकिन तेरी बहन तो विदेश मे भी मारी जा सकती है। वो खुद कह रही है की वहा जाने के बाद खुद को ख़तम कर देगी।’’विक्रम ने जाल डाली।

 

अब बंसी के कदम रुक गये और असमंजस मे विक्रम को देखता रहा।

 

विक्रम ने थोड़ी देर के बाद बोला,’’देखो बंसी एक काम हो सकता है की तुम्हारी बहन भी आज़ाद हो जाये, ज़िंदा रहे और मूज़े भी कोई तकलीफ़ ना पहुचे, लेकिन अगर तुम दोनो चाहो तो’’ विक्रम ने जाल मे पंछी  को फासना चालू किया।

 

बंसी उसे देखता ही रहा। विक्रम ने टहेलते हुए बोला,’’बस एक नन्हा सा सौदा करना होगा हमे अगर तुमदोनो चाहो तो’’

 

बंसी और कृष्णा एकदुसरे के सामने देखते रहे।

 

’’मैं कृष्णा के साथ शादी कर के उसे पत्नी का दरज्जा देता हू और तुम मेरे नौकर नही बल्कि मेरे साथ काम करोगे और प्रिन्स के वफ़ादार साथियो मे तुम्हे स्थान मिलेगा और अच्छा वेतन भी, दूसरा हमेशा मेरे साथ रहोगे।’’विक्रम ने पासा फैका।

 

कृष्णा और बंसी एकदुसरे के सामने देखते रहे।

 

’’सोच लो तुम्हारे फायदे का सौदा है। और विश्वास रखो मै कृष्णा को बहुत प्यार करूँगा। कभी किसी मुसीबत आने नही दूँगा।’’ विक्रम ने तीरछी नजर से कहा।

 

’’लेकिन आप ने मूज़े कई बार प्रिन्स को अपने ही हाथो से सौपा है और आप मूज़े कैसे प्यार दोगे’’ कृष्णा बोल उठी।

 

बंसी ने उसकी आवाज़ मे विक्रम का प्यार देखा। वो अपनी बहन के लिए कुछ भी करने को तैयार था।

 

‘’मुज पर भरोसा तुम्हे करना ही होगा कृष्णा क्यूकी हम दोनो एकदुसरे का राज़ जानते है और तुम लड़की हो तुम्हारी बात अगर बाहर गयी तो तुम्हे जिंदगीभर कोई अच्छा लड़का नही मिलनेवाला।’’ विक्रम ने अब कृष्णा को दबोचना शुरु किया।

 

मजबूरी से कृष्णा की आँखे ढल  गयी।

 

‘’इसमे आप का क्या फायदा ?’’बंसी ने पुछा।

 

‘’तुम मेरा राज़ को राज़ ही रखोगे और मेरे पिताजी को बताओगे की मै सीधासादा आदमी हू मुज पर कोई पाबंधी ना लगाए।’’ विक्रम ने आखरी पासा फैका।

 

‘’बाबा आप के पिताजी आप को अच्छी तरह पहेचानते है, मै किस खेत की मूली की आप की सिफारिश करू और वो मान जायेंगे।’’ बंसी बोला।

 

‘’ये तुम्हारा काम नही है बंसी तुम्हे सिर्फ़ मेरे अंदाज़ को नज़रअंदाज़ करना होगा, मै तुम्हारी बहन की ज़िंदगी बर्बाद होते हुए से बचा सकता हू और उसे सहर्ष पत्नी के स्वरूप मे स्वीकार भी करूँगा, बोलो मंजूर है की नही’’ विक्रम ने और एक पासा फेककर बोला।

 

थोड़ी देर दोनो भाई बहन एकदुसरे को देखते रहे।

 

फिर बंसी बोला,’’आप मेरी बहन को मार नही डालोगे उसकी क्या गेरेंटी देते हो?’’

 

जल मे फसे हुए पंछीयो को देखकर मुस्कुराते हुए विक्रम बोला,’’बंसी अगर तुम्हारी बहन की मृत्यु तो मेरा राज़ का पर्दाफाश और मेरा जीवन बर्बाद। और मैं ऐसा होने नही दूँगा ये तुम समज सकते हो।’’ विक्रम ने अब दोनो भाइबहन की आँखो मे आँखे डाल कर बोला,’’कृष्णा मूज़े चाहती है और मैं उस प्यार को स्वीकार करता हू, सोच क्या रहे हो तुम्हारे फायदे मे ही है सबकुछ। जल्दी हा कर दो वरना कही पिताजी जायेंगे तो मै आप दोनो के लिये कुछ नही कर पाउंगा ’’

 

बंसी और कृष्णा बहुत देर तक बोल नही पाये। बंसी चाहता था की ऐसा सौदा करना बिल्कुल ठीक नही है लेकिन एक भाई मजबूर था अपनी बहन की किस्मत को लेकर। जब की कृष्णा सोच रही थी की वैसे भी उसके जीवन मे खुशिया कहा है अगर उसकी विक्रम से शादी हो गयी तो कम से कम उसके भैया की आबादी तो हो ही जायेगी  ना।

 

कुछ देर के बाद विक्रम बोला,“अरे सोच क्या रहे हो जल्दी बताओ की सौदा मंजूर है या नही ?’’

 

कृष्णा ने आख़िर मौन तोड़ते हुवे कहा,’’लेकिन कल तो मूज़े विदेश भेजा जा रहा है, आप कैसे सब रोक पाओगे।’’

 

’’देखो तुम्हे विदेश जाना ही होगा लेकिन अपनी शादी के बाद। मैं अभी इसी वक़्त मेरे पिताजी के सामने ही तेरे साथ शादी करूँगा और पिताजी को समजा लूँगा ता की आप दोनो को मुज पर भरोसा हो। थोड़े वक़्त के बाद तुजे वापस इंडिया आना होगा और सब के सामने हम शादी करेंगे और तब तक मे एक पति का हक़ कभी नही जताउंगा, ये मेरा वादा है तुमदोनो से। जब हमारी सारी शर्त पूरी हो जायेगी बाद ही तुम्हे यहा आना है और खुल्लेआम मेरी पत्नी बन के सारी ज़िंदगी आराम से बिताना है’’ विक्रम ने कहा।

 

थोड़ी देर चुप रहते हुए बंसी बोला,’’बाबा, लेकिन अगर कल आप के पिताजी ना रहे और आप ने वादा तोड़ दिया तब मेरी बहन का क्या होगा।’’

 

‘’मे सब शर्त लिखकर देता हू बंसी कल अगर मे मुकर गया तो मेरा लिखा तेरे कम आयेगा बोलो अब मंजूर है की नही।’’ विक्रम बोला।

 

कुछ पल बिताने के बाद बंसी बोला,’’मंजूर है बाबा लेकिन मेरी भी एक शर्त है की आप कृष्णा से शादी अभी नही लेकिन सब काम हो जाने पर विदेश से वापस आये तभी करेंगे।’’

 

कृष्णा ने अपने भाई के सामने देखा। बंसी ने उसके माथे पर हाथ फिराया और बोला,’’कृष्णा थोड़े महीनो की ही बात है फिर तुजे अपना मान-सन्मान वापस मिल जायेगा’’

 

कृष्णा ने हा मे सिर हिलाया और अपने भाई से लिपट गयी।

 

विक्रम बोला,’’ठीक है जैसे आप दोनो की मर्ज़ी।’’

 

 

इतना क़ेहकर उसने एक काग़ज़ पे पेन से लिखा और साइन कर के बंसी को वापस दिया और फिर मुस्कुराता हुवा वापस चला गया। दोनो भाइबहन वापस गये और फिर अगली सुबह कृष्णा को विदेश भेज दिया गया।

 

इतना कहकर बंसी रुका और थोड़ी सांस ली, किशोरीलाल आगे सुन ने के लिये बेताब था। वो सोच रहा था की विक्रम ने कीस कीस् को बर्बाद किया है। उसने बंसी को पुछा,’’फिर आगे क्या हुवा ?’’

 

बंसी थोड़ी देर चुप रहा और फिर आगे बताना चालू किया :

 

फिर दूसरे ही दिन विक्रम ने अपने वादे पे काम शुरु कर दिया और बंसी को प्रिन्स से मिलवाया और बोला की उसे अपने साथ ही रखा जाये। पहले तो प्रिन्स ने मना किया क्यू की उनलोगो और बंसी के उम्र मे 10 साल का फ़र्क था। बंसी 36 या 37 का होगा और कृष्णा अभी 22 साल की ही थी। बंसी और कृष्णा के कुल 4 भाइबहन के बीच मे जन्म लेकर मृत्यु हो चुकी थी। इसीलिए कृष्णा को बंसी बहुत चाहता था और उसके लिये किसी भी आग मे भी कूदने पर तैयार था। प्रिन्स ने वादा किया की वो बंसी को अच्छी नौकरी भी देगा और अच्छा वेतन भी।

 

लेकिन बंसी को विक्रम के सौदे पर कभी भी विश्वास नही था। वो विक्रम को उसके घर मे रेहते हुए केवल 1 महीने मे जान चुका था की विक्रम ने सिर्फ़ जाल बिछाई थी। लेकिन बंसी नमकहलाल था उसको तो कृष्णा को भी बचाना था और साथ मे विक्रम को भी सुरक्षित रखना था। उसने प्रिन्स के वादे को इसीलिए माना की अगर उसे विक्रम और प्रिन्स के साथ रहने का मौका मिले तो वो विक्रम को कुछ हद तक सुधार सके।

 

लेकिन अचानक जोधपुर के राजा और प्रिन्स दोनो मृत्यु हो गयी और यहा थोड़े ही दीनो मे गंगाधर भी भगवान को प्यारे हो गये। बाद मे तो जैसे विक्रम सबकुछ भूल ही गया और अपनी ज़िंदगी जीने लगा।

 

एक दिन बंसी ने उसे समजाने की कोशिश की और याद दिलाया की कुछ वादा किया था उसने।

 

विक्रम बोला,’’याद है बंसी लेकिन तूने भी अभी कहा बताया है की मुज पर क्या पाबंधी है और दूसरा मूज़े क्यू रुपये रेग्युलर नही मिलते कौन है जो मूज़े खर्चे करने से रौक रहा है?’’

 

पुछने पर बंसी को बहुत गुस्सा आया क्युकी उस की बहन क्रिष्ना को धोखा मिल रहा तहा और उस ने विक्रम के पिताजी गंगाधर और किशोरीलाल के पिताजी नारायणप्रसाद के बीच जो बात हुई थी वो गुस्से मे बता दी।

 

बस उसी दिन से विक्रम के स्वाभाव मे जादू सा परिवर्तन सा गया और अचानक से शराब छोड़ दी, आवारापन छोड दिया और बंसी रेग्युलर मेसेज नारायणप्रसाद को भेजता रहा।

 

बाद मे तीर्थयात्रा का किस्सा हुया और फिर विक्रम अचानक नशे मे डूब गया। आख़िरकार जब बंसी से ना रहा गया तो उसने किशोरीलाल को यहा बुलाने की तरकीब निकाल दी और बाद का किस्सा सब को मालूम था।

 

बंसी नीची नज़र रखकर बैठा था। किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी ने उसे हिम्मत दी लेकिन इस बार बंसी की आँखो मे आँसू नही बल्कि चमक थी जिस मे एक कर्तव्यनिष्ठ नौकर और भाई दोनो का संगम दिखाई दे रहा था।

 

रात को 2 बजनेवाले थे किशोरीलाल ने पुछा,”कृष्णा कहा है बंसी  ?’’

 

बंसी थोड़ी देर चुप रहा और फिर खड़ा हो के एक एक शब्द अलग कर के बोला,”..ही.. जो....पु.... मे.. ही... है।

 

 

आश्चर्य और आघात से किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी बंसी को देखते ही रह गये। किशोरीलाल ने आख़िर पुछा,”क्या तेरी बहन यहा है जोधपुर मे और तु अभी मूज़े बता रहा है ?”

 

बंसी की आँखो से गंगा जमुना बहने लगी। दोनो ने बंसी को कुछ देर तक रोने दिया, जब बंसी स्वस्थ हुवा तो बोला,”भैया सच कहु यही एक वजह है जिसके लिये मैने आप को यहा बुलाया, और इतने सालो से मैं यहा गुलामी कर रहा हू, गालिया सुन रहा हू, सबकुछ सह रहा हू।’’

 

किशोरीलाल ने कहा,”लेकिन कृष्णा तो विदेश चली गयी थी ना तो क्यू और कैसे यहा जोधपुर आई और ऐसा क्या हुवा की उसे यहा वापस आना पड़ा।

 

बंसी ने आसु पोछकर कहा,”वोही बताने के लिए ही शायद मे जिंदा हू अब तक। और जब आप लोगो ने अपने बेटे और बाबा की बेटी की शादी की बात की तो मेरी उम्मीद दुगनी हो गयी थी।

 

थोड़ी देर वो रुका और फिर बोला,”भैया, मे दो साल इसीलिये चुप रहा क्यूकी मेरे एक एक करके सारे सहारे टूटते चले गये और मे अकेला होता गया। सबसे पहले प्रिन्स साहिब की मृत्यु से बाबा की मेरी तरफ का सौदा टूट गया बाद मे गंगाधर बाबू की मृत्यु से मै अकेला पड गया, मेरे पिताजी भी चल पड़े थे, फिर भी आप के पिताजी से मे बहुत उम्मीद लगाये बैठा था लेकिन कहा बार बार वो जूनागढ़ से यहा पाते थे। दूसरा मेरी जुबान पे भी ताला लग चुका था। आप के पिताजी की मृत्यु के बाद के ढाई साल मैने बहुत मुश्किल से काटे है। आख़िरकार जो ज़ुबान मैने आजतक नही खोली है वो ज़ुबान मैने आप के सामने खोलने की हिम्मत की और आप को यहा बुला ने की साजिश की। लेकिन आप के यहा आने से मूज़े आप मेरे से भी ज़्यादा दुखी लगे, क्यूकी मेरी कृष्णा तो अभी तक ज़िंदा है लेकिन शायद सुनंदाबहन को तो किसी ने मार डाला है और साथ मे नारायणबाबु की मृत्यु से भी आप मुज से ज़्यादा दुखी थे। इसीलिए मैने आप को संभलने के ये दो-तीन दिन दिये। अब जब आप बहुत कुछ जान चुके हो, समज चुके हो तभी सही वक़्त आया है की मै कुछ आप को बोल सकु।’’

 

इतना बोलकर बंसी फिर रुका और फिर आगे बोलना शुरू किया,”उस दिन विक्रम के साथ सौदा कर के हम दोनो भाइबहन अपने घर चले गये। बाद मे गंगाधरबाबु सुबह ही कार लेकर मेरे घर आये और हमदोनो कृष्णा को लेकर बोम्बे के लिये रवाना हुए। बोम्बे जाकर हमने अकेली कृष्णा को विदा किया। बाद मे लौट गये और फिर समय ऐसे ही गुजरता गया। कृष्णा की चिठ्ठिया आती रहती थी और हम लिखा करते थे तो समाचार मिल जाता था। बाद मे गंगाधरबाबू, महाराजा और प्रिंससाहब की मृत्यु के बाद मैने एकबार बाबा को अपना वादा याद दिलाया। बाबा ने मूज़े बताया की वो अभी जूनागढ़ जा रहे है बाद मे बात करेंगे। लेकिन वहा से आने के बाद तीर्थयात्रा का बहाना बताया और फिर ये दुर्घटना हुई। इसके बाद बाबा हमेशा नशे मे ही रहते तो फिर बात करने का मौका ही नही मिला है।’’

 

वो तो है ही लेकिन कृष्णा का क्या हुवा?’’ किशोरीलाल ने आतूरता से  पुछा।

 

‘’वोही बताने जा रहा हू भैया’’ बंसी बोल उठा।

 

‘’कन्याकुमारी की दुर्घटना के बाद मैने कुछ समय बाबा को कुछ नही कहा, लेकिन बाद मे बाबा जैसे जी रहे थे मै सोच मे पड गया की क्या बाबा से कृष्णा की शादी हुई तो कृष्णा खुश रह पायेगी ? और वैसे भी अगर कृष्णा यहा आती है और बाबा से शादी करती है तो मेरी ज़िम्मेदारी दुगनी हो जाती थी क्यूकी मूज़े बाबा का भी ख़याल रखना था और एक भाई के नाते कृष्णा के देखभाल भी मूज़े ही करनी पड़ती। इसीलिए मैने बाबा से कृष्णा का अनुरोध करना ही बंध कर दिया। और अपना सारा ध्यान बाबा पर ही लगाया। वो क्या करते है, सही है या ग़लत। उसकी किन किन लोगो से जान पहचान है वो सब मै ध्यान रखने लगा। जब मूज़े दो साल के अभ्यास से ऐसा लगा की पतंग मेरे हाथो से निकल जायेगी तब मैने सोचा की अब मैं आप को कुछ लिखु। लेकिन क्या लिखु मेरे पास कुछ वजूद नही था की बाबा क्या करते है और कैसे जीते है। सिर्फ़ अंदाज़ा था ठोस सबूत नही थे मेरे पास। बाबा को मिलने जोधपुर के कई नामी अनामी आदमी, रामेश्वर, मिलिटरी के लोग आते जाते रहते थे। वैसे बाबा नौकरी की वजह से पिछले ढाई साल मे मुश्किल से एक साल यहा रहे होंगे। इसीलिए ज़्यादा अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल था। लेकिन उसकी शराब की आदत बढ़ गयी और मै समज नही पाया की ये नारायणबाबु का सदमा है या बाबा की खुद की मर्ज़ी है। जब मैने अपना पूरा ध्यान बाबा की तरफ लगाया तो मैं कृष्णा को भूलता चला गया और हमारा सौदा तो वैसे ही टूट के बिखरा पड़ा था।’’

 

इतना कहकर सांस लेने के लिए बंसी रुका और फिर आगे बताना शुरू किया,’’लेकिन एक दिन मुज पर तूफान गिरा जब मै और कृष्णा आमने सामने       आये।’’

 

‘’आमने सामने आये ?, क्या मतलब क्या तु विदेश गया था ?’’ किशोरीलाल ने आश्चर्य से पुछा।

 

‘’नही भैया मै विदेश जा के कृष्णा से मिलु या कृष्णा को विदेश से यहा बुला लु इतना पैसा और ताक़त मुज मे नही थी। दूसरा हमारा पत्रव्यवहार भी कुछ कम हो गया था। मैने जब बाबा की ओर ध्यान लगाया तब मूज़े कृष्णा की कोई चिंता नही थी क्यू की मैं यही समजता था की कृष्णा विदेश मे सुरक्षित है और अगर वो यहा नही आती है तो ज़्यादा सुरक्षित है।’’बंसी बोला।

 

‘’अगर आप विदेश नही गये और क्रिष्नाबहन को यहा नही लाया जा शकता था तो क्रिष्नाबहन जोधपुर आई कैसे ?’’राजेश्वरीदेवी ने पहलीबार बीच मे बोला।

 

‘’आप जब यहा जोधपुर आये उस से 7 दिन पहले विदेश से कृष्णा वापस आई है’’बंसी बोल उठा।

 

किशोरीलाल ने फिर पुछा,’’लेकिन वो अकेली आई कैसे, और कैसी है वो?’’

 

‘’भगवान की दया से बिल्कुल सलामत है, लेकिन मैने अभी बाबा से कुछ नही कहा, क्यूकी मूज़े बाबा और उसको मिलनेवाले हर एक आदमी से हमेशा डर लगा रहता है। और वहा विदेश मे उसने दो चार जगह पे नौकरी की तो जो पैसे उसने बचाये थे उस से अकेली ही वो यहा वापस गयी। उसने पत्र इसीलिये नही लिखा की वो भी बाबा से कुछ बताना नही चाहती थी।’’ बंसी ने जवाब दिया।

 

रात को 3 बज चुके थे। लेकिन किशोरीलाल के कमरे के नाइट लेंप मे अभी भी सब के मूह पर बारह बजे हुए थे।

 

‘’लेकिन तूने विक्रम को क्यू नही बताया की कृष्णा वापस चुकी है और उसे याद क्यू नही दिलाया की तुम लोगो का यही तो सौदा हुवा था की वो कृष्णा से शादी करेगा’’किशोरीलाल बीच मे बोला।

 

‘’ऐसा मे अभी करना नही चाहता हू भैया’’ बंसी ने जवाब दिया।

 

‘’लेकिन अगर आप बात नही करोगे तो विक्रम भैया को पता कैसे चलेगा।’’ राजेश्वरीदेवी ने भी बीच मे बोला।

 

‘’और बंसी हम भी यहा है, चलो हम विक्रम से बात करेंगे और उस से कृष्णा का विवाह करवायेंगे।’’ किशोरीलाल ने कहा।

 

‘’अगर ऐसा हो सकता है तो मेरा बड़ा सौभाग्य होगा, क्यूकी अगर जूनागढ़ वाले साधुबाबा की वाणी मे शक्ति है तो मेरी बहन की कुख से जो लड़की होगी वो बड़ी भाग्यशाली होगी और आप जैसे पवित्र लोगो के साथ रिश्ता बन जायेगा और बाबा के लिए मेरी चिंता भी बिल्कुल नही रहेगी।’’ बंसी बोलकर अटक  गया।

 

‘’तो फिर तकलीफ़ किस बात की, कल ही विक्रम से बात करते है’’किशोरीलाल बोल उठा।

 

‘’लेकिन एक तकलीफ़ है भैया जो सब से बड़ी वजह है की मैने आप लोगो को यहा बुलाया है और पिछले कई दीनो से मै इसी के बारे मे परेशान हू’’ बंसी बोलकर फिर रुक गया।

 

‘’ऐसी कौन सी बात है बंसी हमे तो बता।’’किशोरीलाल ने बंसी के कंधे पर हाथ रखकर बोला।

 

थोड़ी देर बंसी चुप रहा और फिर बोला,’’कृष्णा अकेली नही है भैया उसकी गोद मे एक बच्चा भी है।’’

 

सन्नाटा छा गया रूम मे। बंसी के इस वाक़य से जैसे बॉम्ब विस्फोट हुवा था। तीनो कुछ देर तक कुछ बोल नही पाये।

 

क्या, कृष्णा की गोद मे बच्चा ?’’ राजय्श्वरी देवी ने मौन तोड़ा और फिर कुछ समय के लिए सब खामोश हो गये।

 

थोड़ी देर तक एकदुसरे के सामने देखने के बाद बंसी बोला,’’भैया आप लोग जो पूछने से संकोच मे है वही मेरा हाल था जब मैने पहलीबार कृष्णा को बच्चे सहित देखा। वो आई थी तो पूरा सोच समजकर और जब विक्रम यहा ना हो तब आई और मुंबई एरपोर्ट से ट्रेन मे अकेली सफ़र करके यहा तक पहुची। विदेश मे बहुत सारी हिम्मत उसने अकेले जुटा ली है। लेकिन कुछ समय के लिये मै भी उसे पुछ नही पाया की ये बच्चे का बाप कौन है ?’’

 

‘’यही तो मै पुछ नही पाया बंसी, लेकिन तू ही कुछ बता ना’’किशोरीलाल ने कहा।

 

‘’भैया कृष्णा कहती है ये बच्चा बाबा का है लेकिन वो आगे कुछ भी बोलने को तैयार नही है। ये कैसे संभव हुवा वो मै एक बड़े भाई होकर ज़्यादा पुछ नही पाया हू। और बाबा से भी पुछ नही सकता। लेकिन ये काम अगर आपलोग कर दोगे तो मैं कुछ आगे सोच सकता हू।’’ बंसी ने हाथ जोड़कर विनंती की और रो दिया।

 

थोड़ी देर सब सोचते रहे फिर राजेश्वरीदेवी बोली,’’बंसी भैया मूज़े कृष्णा के पास कल ले जाना, एक मा का दाद सिर्फ़ एक मा ही जान सकती है। मै कोशिश करके देखती हू।’’

 

बंसी ने हा मे सिर हिलाया। थोड़ी देर सब खामोश रहे और फिर रात बहुत हो चुकी थी बंसी भी खामोशी से नीचे चला आया और किशोरीलाल ने रूम की बाल्कनी से जाका की कल रात की तरह अगर कोई दिख जाए तो लेकिन कोई नही था। 10 या 15 मीनट के बाद देखकर वापस आया और फिर सब सो गये।

*****

 

दूसरे दिन सुबह भी किशोरीलाल थोड़ी देर से उठा लेकिन राजेश्वरीदेवी तो पहले से ही तैयार थी सुबह का कार्यक्रम निपट के सब दिवानखाने मे आये। अभी विक्रम उठा नही था, सो रहा था। बंसी ने आकर बताया की कल बाबा ने शराब नही पी है। किशोरीलाल सोच रहा था की चलो कुछ तो शुरुआत हुई, आगे आगे देखते है क्या होता है। राजेश्वरीदेवी ने बंसी को बोला,’’बंसीभैया आप का क्वॉर्टर कहा है, चलो क्रुष्नाबहन्से मिलते है    ?’’

 

बंसी बोला,’’भाभीजी कृष्णा अगर यहा होती तो कब की बाबा की नज़र मे चुकी होती, वो तो यहा से दूर है।’’

 

‘’कहा है ?’’ किशोरीलाल ने पुछा।

 

‘’मै आप को ले चलता हू और भैया फिर भाभीजी को वहा छोड़कर हमे एक दूसरी जगह भी जाना है।’’ बंसी बोला।

 

‘’लेकिन हम कृष्णा से तो मिल ले पहले।’’ किशोरीलाल ने पुछा।

 

‘’नही, बंसी भैया ठीक कह रहे है वहा आप लोगो की हाजरी मे क्रिष्नाबहन  को बताने मे संकोच होगा, आप मूज़े वहा छोडकर चले जाइये।’’ राजेश्वरीदेवी ने बताया।

 

‘’हा,ये ठीक रहेगा।’’ किशोरीलाल ने कहा।

 

‘’लेकिन बाबा को क्या बोलकर जायेंगे?’’ बंसी ने पुछा।

 

’’उसके उठने से पहले ही चले जाते है, वो फ्रेश होगा तब तक शायद हम वापस जायेंगे।’’ किशोरीलाल ने कह दिया।

 

सबलोग 15 मीनट के बाद निकल पड़े।

 

जोधपुर डिस्ट्रिक्ट के आसपास 5 डिस्ट्रिक्ट अभी है, नॉर्थ मे बीकानेर, साउथ मे पाली और अजमेर, ईस्ट मे नागौर और वेस्ट मे जैसलमेर। लेकिन पुराने जमाने मे जोधपुर एक किल्ला था और अभी जो शेरगाह इलाक़ा है वहा विक्रम की हवेली थी और वहा से एक बगी मे सब बैठ गये (हॉर्स कार्ट) मे बैठकर हवेली की दाई और से जोधपुर के साउथ छोड की ओर् चल पड़े। करीब 25 मीनिट के बाद वे लोग हाल मे दूरीदरा नाम से जानी जाती जगह पर पहुचे। वहा थोड़ा पहाड़ी इलाका था और बहुत छोटे छोटे ज़ोपडे जैसे घर थे। वहा लगता था की ग़रीबो की बस्ती थी। वहा जाकर एक जगह पे बंसी ने बगी को रोक दिया और सब उतर गये और फिर बंसी ने बागी को 15 मीनिट के लिये रुकने को कहा। सबलोग एक ज़ोपडे पर पहुचे वहा बंसी ने आवाज़ लगाकर अंदर गया। किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी नन्हे से जय को लेकर वहा खड़े रहे। थोड़ी देर बाद बंसी वापस आया और बोला,’’अरे भैया वहा क्यू रुक गये आइये ना।’’

 

दोनो अंदर गये। अंदर एक सुंदर कन्या बैठी हुई थी। कृष्णा विदेश मे रहकर थोड़ी गोरीचिट्टी हो चुकी थी। बदन गठरीला, लंबे से घने बाल को खुल्ले रखा था। लगता था की अभी अभी नहा कर आई हो। ज़ोपडे के कोने मे चूल्हा, थोड़े बर्तन और पास मे ही छोटी से खटिया थी और थोड़े नन्हे से मिट्टी से बने हुए खिलौने से एक मासूम छोटा सा लड़का खेल रहा था। युरोपियन जैसा गोरा बच्चा, गहरी नीली आँखे, मछली के आकर सी आँखे और गालो मे खंजन, थोडे से गंदे कपड़े पहने हुये    था।

 

कृष्णा ने राजस्थानी चोली और कब्जा पहना हुवा था और सिर पे ओढनी रखी हुई थी। कमर सटी हुई और गठरीला बदन था इसीलिए बहुत आकर्षक दिख रही थी कृष्णा। उपर से विदेशी हवा लग चुकी थी तो बड़ी प्यारी दिख रही थी। बंसी नो किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी को खटिया पर बिठाया और कृष्णा ने दो हाथ जोड़कर प्रणाम किया और जल्दी ही पानी लेकर सब को पिलाया।

 

थोड़ी देर बाद बंसी ने पहचान कराई और राजस्थानी अंदाज़ मे बोला,’’तारो काम अभी बाजू मे रख दे और भाभिषा आई है तो दिल खोल के सब बता दे, हम दोनो कही जावे है बाद मे आव जावेंगे, तारी सारी चिंता इसे बोल दे। तारे से जी हल्का हो जावे,      समजी।’’

 

कृष्णा कुछ नही बोली सिर्फ़ देखती रही और हा मे सिर हिलाया। बंसी बोला,’’भैया, हमे चलना चाहिए कही देर हो गयी तो बाबा उठ जायेंगे और फिर गालीया खानी पड़ेगी।’’

 

किशोरीलाल हसकर खड़ा हुवा और कृष्णा के छोटे बच्चे को उठाकर प्यार दिया और हाथ मे चवन्नी दे दी (उस टाइम मे चवन्नी मतलब चार-आना बहुत बड़ी रकम हुवा करती थी) बंसी ने कितना मना किया लेकिन किशोरीलाल उसका हाथ पकड़कर बाहर चला आया। दोनो बगी मे बेठकर ओसियान की ओर चल दिये। ओसियान अब जोधपुर के मध्य मे स्थित इलाक़ा था जहा अब जोधपुर डिस्ट्रिक्ट का मुख्य कार्यालय, नगरपालिका, कोर्ट वगैरह था। रास्ते मे किशोरीलाल ने पुछा,’’बंसी हम कहा जा रहे है?’’

 

‘’भैया, हमारे वकिलबाबू के पास।’’ बंसी ने जवाब दिया।

 

‘’वकिलबाबू के पास क्यू जाना है ?’’ किशोरीलाल ने पुछा।

 

‘’वकिलबाबू ने कहा है की जब भी आप जोधपुर आओ तब मै आप को उसके पास ले चलु या तो हवेली मे उसे बुला लु। अब बाबा उठे उसके पहले अगर आप ही वकिलबाबू से मिल लो तो मूज़े लगता है की कुछ बेहतर होगा।अगर कुछ गंभीर बात होगी तो ही वकिलबाबू ने आप को वहा बुलाया होगा।’’ बंसी ने उत्तर दिया।

 

फिर दोनो बाते करते हुए वकिलबाबू के घर की ओर चल दिया।

 

और इधर राजेश्वरीदेवी ने कृष्णा के सामने देखकर बोला,’’बहुत सुंदर हो तुम’’

 

‘’थेंक्स भाभी,” कुछ पल के बाद क्रिष्ना बोली,”मै आप को भाभी कह सकती हू ना’’ एक स्वीट आवाज़ कृष्णा के गले से निकली।

 

‘’ये तुम्हारा हक है क्रिष्नाबहन।’’ राजय्स्वरी देवी ने कहा।

 

‘’लेकिन आप मूज़े बहन नही सिर्फ़ क्रिष्ना ही कहेगी तो नही चलेगा क्या ?’’ हसकर क्रिष्ना ने कहा।

 

‘’ठीक है मै तुजे क्रिष्ना ही कहूँगी।’’ राजेश्वरीदेवी ने कहा।

 

‘’मै चाय बनाती हू।’’कहकर कृष्णा उठ खड़ी हुई।

 

‚’अरे नही क्रिष्ना इतना टाइम नही है मै यहा तुजे कुछ पुछने आई हू।’’ राजेश्वरीदेवी ने कहा।

 

’’मुज़े पता है आप इस के बाप कौन है ये जान ने के लिये यहा आई है और पूरी कहानी सुन ने यहा आई है।’’ क्रिष्ना ने नज़र नीचे रख  दी।

 

’’तुजे कैसे पता है ?’’राजेश्वरीदेवी ने आश्चर्य से पुछा।

 

‘’मैने ही बंसी भैया को बोला था की इसका बाप विक्रम बाबू है लेकिन फिर आगे मे कुछ नही बता पाई। वो मेरे बड़े भैया है। मै अपनी इज़्ज़त की बाते कैसे बता सकती हू अपने भैया को। इसीलिए बंसी भैया ने आपलोगो को यही बुलाया है और मूज़े यहा छुपाकर रखा है।’’ कृष्णा धीरे से बोली।

 

‘’ठीक है ये सही है कोई भी औरत अपने भाई के सामने ऐसी बातो मे मूह नही खोल सकती। लेकिन क्या मूज़े बताओगी ता की हम तुम्हारी कुछ मदद कर सके।’’ राजेश्वरीदेवी ने क्रिष्ना का हाथ पकड़कर      पुछा।

 

‘’एक भाभी को ज़रूर बताउंगी लेकिन मूज़े कोई मदद नही चाहिये, मूज़े कभी भी उस हवेली मे नही आना है। बस रहने को जगह मिल जाये और विक्रमबाबु मेरे जीवन मे कभी ना आये इतना ही बस है मेरी ज़िंदगी मे।’’ कृष्णा जूठा हसकर बोली।

 

‘’लेकिन हुवा क्या था, ये कैसे हुवा ?’’ राजेश्वरीदेवी ने पुछा।

 

फिर कृष्णा ने जो बात बताई वो कुछ इस तरह थी तब तक दोनो के बच्चे साथ मे मिट्टी के खिलोनो से खेलते रहे:

*******

 

जब विक्रम के पिताजी गंगाधर, बंसी और कृष्णा मुंबई कृष्णा को छोड़ने के लिये पहुचे और क्रिष्ना जब विदेश पहुच गयी वहा गंगाधर के वकिलबाबू श्री महर्षि सेन के रिलेटिव्स के यहा उसे रखा गया था और वहा रहकर कृष्णा ने अपनी नयी ज़िंदगी शुरू की। लगातार कृष्णा और बंसी के बीच पत्रव्यवहार चलता रहा। कृष्णा भी धीरे धीरे अपनी पिछली ज़िंदगी से उभरने लगी थी। वहा रहकर कृष्णा ने ज़िंदगी के नये तौर तरीके सीखे और आज़ाद कैसे रहा जाता है वह जाना। ज़िंदगी की असलियत वहा सीखी।

 

लेकिन एक दिन कृष्णा की ज़िंदगी मे फिर ज़लज़ला आया।

 

एक बार विक्रम और प्रिन्स कीसी को बीना बताये विदेश मे गये थे और इस यात्रा का किसी को पता नही था। एक चार्टर प्लेन मे वे लोग पहुचे और अपना काम निपटाकर वापस आने के लिये एक बड़े आलीशान कोठी मे रुके हुवे थे। ये काम ख़तरनाक था इसीलिये किसी को खबर नही होनी थी की प्रिन्स और विक्रम वहा आये है। तभी प्रिन्स ने क्रिष्ना को याद किया और बोला,’’यार वीकी बुला ले ना उसको, काफ़ी दिन हो गये उसे देखे हुए।’’

 

विक्रम ने लाख कोशिश की लेकिन प्रिन्स माना नही और आख़िरकार विक्रम ने पता लगाकर जहा कृष्णा काम कर रही थी वहा जाकर उसके सामने खड़ा हो गया।

 

क्रिष्ना उसे देखते ही हैरान रह गयी और खुश हो गयी की शायद उसके शादी के दिन नज़दीक चुके है। लेकिन जब विक्रम ने उसे बताया की वो प्रिन्स के लिये आया है तो क्रिष्ना की बोलती बंध हो गयी। क्यूकी अगर नही जाती तो प्रिन्स के हाथो मरती और अगर जाती है तो फिर एक बार हरामी प्रिन्स के आगे अपने जिस्म की नुमाइश करनी पड़ेगी ।

 

क्रिष्ना ने विक्रम को पुछा,”आप को शर्म नही आती,आप अपनी होनेवाली बीवी का सौदा उस हरामी से करने आए है। मै वो ज़िंदगी को भुला चुकी हू और आप ने ही हम से वादा किया था की जल्दी ही आप मूज़े भारत वापस बुला के मेरे साथ शादी करोगे।’’

 

विक्रम ने हाथ जोड़कर माफी मांगते हुये कहा,’’देखो क्रिष्ना उस टाइम मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नही था की मै कुछ बोल सकु। देखो मे तो ऐयाश ही हू ही और क्यू हू वो सिर्फ़ मै ही जनता हू। बचपन से मेरी मा नही है और मेरे बाप को रजवाड़े के सिवा कभी अपने बेटे की ओर ध्यान देने की फुरसद नही है। दूसरा मैने तुम्हे यहा इसीलिये भेजा है की तुम प्रिन्स के हाथो से सुरक्षित रह सको। वरना तुम्हारे बापू की लालच ने कब के तुम्हारे जान को ले लिया होता। मै जानता हू की तुम आज भी एक कन्या ही हो। प्रिन्स क्या तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती करेगा वो आदमी ही नही है ये सिर्फ़ हम दोनो जानते है। आज भी वो औषध मै अपने साथ लाया हू, प्रिन्स कुछ नही कर पायेगा प्लीज मेरे साथ चलो ता की मेरी जान बच सके।’’

 

‘’लेकिन अब मै आप की हाजरी मे उसके सामने अपना जिस्म नही दिखा सकती, कल तक मेरा कोई नही था, आज आप मेरे सामने मेरे होने वाले पति हो, ऐसे कैसे किसी गैर आदमी के सामने अपना जिस्म दिखाउ।’’ कृष्णा ने दलील की।

 

’’ क्रिष्ना मूज़े माफ़ कर देना मै तुम्हारे साथ शादी नही कर सकता।’’ विक्रम ने नज़र नीची कर के बोला।

 

’’क्यू ?’’ कृष्णा ने पुछ् तो लिया और फिर बोली,’’मै समज गयी एक गंदी लड़की को कौन अपने घर की शोभा बनायेगा। आख़िर हू तो मै एक जिस्म खोलने वाली लडकी ही ना।’’

 

विक्रम ने क्रिष्ना का हाथ पकड़ के बोला,’’नही क्रिष्ना तुजे इस स्थिति मे पहुचाने मे मै ही ज़िम्मेदार हु ना, ये तेरी अकेली की थोड़े ही चाल थी। मै भी तो शामिल था। लेकिन तुज से शादी नही करने मे बात कुछ और है।’’

 

’’क्या बात है ?’’ क्रिष्ना ने पुछा।

 

‘’मैं अपने दोस्त की बहन सुनंदा को चाहता हू।’’ विक्रम ने नज़र नीची रखकर बोला।

 

‘’ओह,’’ कहकर क्रिष्ना ने दूसरी तरफ देख लिया। क्रिष्ना ने चेहरा पलट के दुर खडी हो गइ।

 

थोड़ी देर दोनो चुप रहे फिर विक्रम ने पुछा,’’क्या प्रिन्स के पास जाने के लिए तैयार हो?’’

 

क्रिष्ना ने धीरे हा मे सिर       हिलाया।

 

विक्रम का ध्यान फिर उस की तरफ गया वो दूसरी तरफ मूह कर के खड़ी थी और उसकी आँखो मे आँसू थे।

 

‘’क्यू क्या हुवा?’’ विक्रम ने पुछा।

‘’कुछ नही मै ऐसे ही मन ही मन आप सेमूज़े पता नही था की आप की ज़िंदगी मे कोई और भी है, कोई बात नही, यही काफ़ी है मेरे लिये की मैं यहा सलामत हू। चलिए मै चलने के लिये तैयार हू।’’

 

दोनो चुपचाप कोठी पे गये और विक्रम ने दूसरे रूम मे कृष्णा को आराम करने को कहा और बताया की जब वो पुकारे तभी आना है, तब तक वो प्रिन्स को कैसे भी कर के वो औषधी पीला देगा।

 

फिर जा के विक्रम और प्रिन्स ने बहुत शराब पी। विक्रम ने प्रिन्स को कहा था की थोड़ी देर मे क्रिष्ना जायेगी। बात बात मे वो औषधी भी प्रिन्स पी चुका था। लेकिन एक ग़लती और हो चुकी थी और जिस का अंदाज़ा इन दोनो को नही था की इस का अंजाम क्या होनेवाला है?

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8 Comments

Rohan Nanda

05-Jan-2022 05:48 PM

Wao... Ek part aur h, lekin ye bhi suspenceful... Sir, kya likhte hn aap bhi sach me bahut badhiya kahani

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PHOENIX

05-Jan-2022 05:55 PM

धन्यवाद आप का।

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Ab ye kya nya jhol h🧐🧐🧐 Vikram kitna bura h, bas apne hi matalab me mashgul rhne wala selfish admi.😡😡😡 Bechari Krishna ka kya hoga. Kitna ghatiya plan bnaya usne.☹️😤😤 Mil jaye to pakad kar mendhk bna du, krta rhe tarr tarr ..😡😡😡😡

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PHOENIX

05-Jan-2022 05:29 PM

अरे बाप रे। इतना गुस्सा......कहानी खत्म होने दीजीये....देखिये विक्रम का क्या हाल होता है और कौन उसे हराता है। धन्यवाद आप का। बने रहिये इस कहानी पर।

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🤫

05-Jan-2022 04:51 PM

अरे ये क्या नया किस्सा, ये विक्रम तो बड़ा जालसाज निकला। कृष्णा की सच्चाई भी कुछ और निकल कर आई सामने। कृष्णा वापस आ गई है और जोधपुर में ही है। यह भी खबर नही है किसी को। इंट्रेस्टिंग और सस्पेंस से भरी कहानी है आपकी। वेटिंग फॉर नेक्स्ट पार्ट

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PHOENIX

05-Jan-2022 05:27 PM

धन्यवाद एंजेलजी। आप के पढने का इंतेजार आज ही खत्म कर देते है। एक और अपडेट दे देते है।

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