लेखनी प्रतियोगिता -07-Jan-2022
शीर्षक : ख़त
ख़त पढ़ना जो चाहा उनका
हाथ जरा थम से गए
जो दम भरा करते थे
हमसे प्यार का इकरार का
वो हमसे बेवफाई कर गए
गैर की बाहों के सहारे
वो हमसे इस कदर
रुसवाई कर गए
पढ़ना भी चाहा ख़त
जो उनका हमने
तो हाथों से खत भी उनके
पंक्षी बन हवा में उड़ गए
इससे ज्यादा बेवफाई का
आलम भी क्या कहिए जनाब
जो हुए वो रूबरू हमसे
तो बादल भी देखो
आज जम कर बरस गए
न ख़त ही रह गए हाथों मे
न तस्वीर ही मुक्कल हुई
दिल में थी जो
धुंधली सी तस्वीर उनकी
उनके भी रंग आज उतर गए
ख़त जो पढ़ना चाहा हमने
तो देखा.....
हवाओ के भी रूख़ बदल गए।।
शीतल शैलेन्द्र "देवयानी"
इन्दौर
Punam verma
08-Jan-2022 08:40 AM
Nice
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Niraj Pandey
08-Jan-2022 12:13 AM
बहुत खूब
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Shrishti pandey
07-Jan-2022 11:47 PM
Nice
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