Sonia Jadhav

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हॉरर सीरीज़ - मेरा साया

इस बार दिल्ली में भयंकर गर्मी पड़ रही है, पारा 45 डिग्री के पार पहुँच गया है। इस झुलसा देने वाली गर्मी में रोज़ भरी हुई बस में पसीने से लिपटे लोगों के बीच पिस कर ऑफिस जाना दिमाग और शरीर दोनों की वाट लगा देता है। मन नहीं करता अब दिल्ली में रहने का, हर तरफ गाड़ियों का शोर , धुआं। लगता है , न जाने कितने दिनों से सांस ना ली हो, ताज़ी हवा को महसूस ना किया हो।

काफी जग़ह नौकरी के लिए आवेदन दे रखा है , एक दो जगह तो इंटरव्यू भी दे आया हूँ। देखते है क़िस्मत कहाँ ले जाती है।
शुक्र है आज बस में सीट मिल गयी है, चलो जरा मेल ही चेक कर लेता हूं मोबाइल पर।

अरे वाह! एक  कंपनी है आयुर्वेदिक दवाइयों की उत्तरांचल में, उनका जवाब आया है। सुपरवाइजर की पोस्ट के लिए मेरा चयन हो गया है। 10 दिन बाद मुझे ज्वाइन करना है। रहने के लिए कमरा मिलेगा, मगर खाना खुद बनाना पड़ेगा। कोई बात नहीं , दिल्ली की गर्मी से तो छुटकारा मिलेगा।

अरे! मेरा स्टॉप आ गया, चलो घर पहुंचकर सबको ये खुशखबरी सुनाता हूँ और जाने की तैयारी करता हूं।
मम्मी पापा सभी खुश थे, क्योंकि हम असल में तो उत्तरांचल के ही हैं पर पापा की नौकरी के कारण दिल्ली में रह रहे थे। इस कारण वापिस अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका मिल रहा था।

यहाँ से इस्तीफ़ा दे, कुछ दिन बाद मैं उत्तरांचल के लिए निकल गया। नेशनल कॉर्बेट पार्क के पास एक छोटा सा गाँव पड़ता है मोहान, वहीँ यह आयुर्वेदिक दवाइयों की फैक्ट्री है, जहाँ मेरी नौकरी लगी थी।
मन खुश हो गया था मोहान पहुंचकर। सड़क के किनारे गाँव और दोनों तरफ  घना जंगल ।

फैक्ट्री का समय सुबह 8 से 4 बजे तक का था। फैक्ट्री के पास ही मुझे कमरा मिला था। पहाड़ी लोग बड़े ही सीधे होते हैं, तो काम करने में मज़ा आ रहा था। गाँव में शाम 7 बजे के बाद लोग ज्यादा बाहर नहीं निकलते, बसें भी आना  बंद हो जाती है, कारण बाघ और हाथी का खतरा। सुनने में आया था कि बाघ कई बार लोगों को अपना शिकार बना चुका था। यहाँ पर एक डर और था, और वो था भूत प्रेत, रात में घूमने वाली आत्माओं का, पिशाचों का.............

दिन में तो काम में व्यस्त रहता था, तो कुछ महसूस नहीं होता था। पर रात को कभी कभी कुछ असमान्य सा लगता था उस कमरे में।
मैं गहरी नींद में था एक दिन , अचानक से आँख खुल गयी। ऐसा लगा, मानो सिर पर कोई हाथ फेर रहा हो। पर आसपास कोई नहीं था। 

मैं भूत प्रेत में विश्वास नहीं रखता, मुझे लगा यह शायद मेरा वहम हो। हो सकता है, मैंने कोई डरावना सपना देखा हो। इसलिए किसी से मैंने इसकी चर्चा नहीं की।
पर धीरे धीरे लगने लगा कि मेरे घर में कुछ असमान्य गतिविधियां चल रही है।

मैं बड़ा व्यवस्थित किस्म का इंसान हूँ। फैक्ट्री जाने से पहले बिस्तर की चादर, घर साफ़ करके जाता हूं।
पर आज़ घर आया शाम को फैक्ट्री से , तो बिस्तर पूरा अव्यवस्थित पड़ा था, जैसे उस पर कोई सोया हो। एक-दो लंबे काले बाल भी गिरे पड़े थे तकिये पर।

पहले तो लगा, शायद मैं भूल गया बिस्तर ठीक करना, लेकिन फिर मन में प्रश्न कौंधा क़ि यह लंबे काले बाल  आए कैसे तकिये पर ? अचानक ही मेरे में भूत प्रेत की बातें आने लगीं। दिमाग घूम रहा था, घबराहट के मारे पूरी शर्ट पसीने से भीग गयी थी क़ि अचानक से लाइट चली गयी । जिससे मैं बुरी तरह से डर गया था , साँसे भी शताब्दी की स्पीड से चलने लगी थी।

घर से बाहर भी भाग कर नहीं जा सकता था, अँधेरा हो गया था। बाहर घुप्प अँधेरा था, शहरों की तरह यहां कोई स्ट्रीट लाइट नहीं जलती और लोग भी जल्दी सो जाते हैं। 
मरता क्या ना करता, हनुमान जी की शरण में जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। मैंने ज़ोर ज़ोर से हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू कर दिया । थोड़ी ही देर बाद जब पंखा चलने की टक से आवाज आई तो आँख खुली। पंखा ज़ोरों से चल रहा था और बल्ब टिमटिमाता हुआ चमक रहा था। मैं थक चुका था इस सारे प्रकरण से, चुपचाप नीचे चादर बिछाकर सो गया ।  उस पलंग पर सोने की हिम्मत नहीं थी अब मेरी।

मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि जो कल मेरे साथ हुआ वो मेरा वहम था या मेरा डर मुझे मेरे ही बुने  भ्रमजाल में उलझा रहा था।

आज फैक्ट्री से आधे दिन की छुट्टी लेकर मैं जंगल की ओर चला गया था, सुकून की तलाश में। मैं थोड़ी शांति चाहता था, कल रात हुई घटनाओं का अवलोकन करना चाहता था, जानना चाहता था कि वो सत्य था या मेरे मन द्वारा फैलाया हुआ भ्रमजाल था।

पेड़ के नीचे बैठा था, कोसी नदी आज शांति से बह रही थी। कुछ ही देर में , मुझे ग़हरी नींद आ गयी और मैं सो गया। सपनें में मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा कोई हाथ खींच कर मुझे उठा रहा हो। इतनी ज़ोर से हाथ खींचा था, कि मेरे हाथ में दर्द होने लगा और मैं चिल्लाकर उठ गया। देखा तो शाम हो गई थी और मेरा हाथ दर्द कर रहा था,  हाथ पर निशान थे, जिसे देखकर मैं हड़बड़ा गया और बेतहाशा जंगल में भागने लगा, सड़क की ओर आने के लिए।

मेरा गला सूख रहा था। किसी तरह मैं गिरते पड़ते फैक्ट्री तक पहुंचा। अपने घर जाने की हिम्मत नहीं थी रात को। मैं अपने मैनेजर के घर चला गया। वो मुझे अपना छोटा भाई मानते थे। 

मेरी हालत देखकर उन्होंने मुझे अंदर बुला लिया और पूछने लगे यह क्या हाल बना रखा है? आखिर तुम्हें हुआ क्या है? 
मैंने कहा मुझे पहले पानी दीजिये, फिर मैं आपको सारा हाल बताता हूँ।
एक ही सांस में , मैं सारा पानी पी गया।

मैंने मैनेजर को सब बता दिया शुरू से लेकर अंत तक।
मुझे नहीं पता आप मेरी बात पर विश्वास करेंगे की नहीं, मगर यह सब सच है।

मेनेजर: पहाड़ों में अक्सर ऐसा होता है, शायद तुम्हारे ऊपर किसी आत्मा का साया आ गया है। मुझे लगता है , वो एक लड़की है और तुम्हें नुकसान पहुंचाना उसका मकसद नहीं है। 
अगर उसे नुकसान ही पहुँचाना होता तो वो तुम्हें जंगल में शाम के समय घर जाने के लिए उठाती नहीं।
कुछ तो है........................ 

कल सुबह एक आदमी के पास ले चलूंगा, हो सकता है तुम्हारी समस्या का कोई हल मिल जाये। तुम सो जाओ आराम से, हनुमानजी का नाम जपते रहना।

हनुमानजी का नाम जपते - जपते मुझे नींद आ गई।
अगले दिन जिस आदमी से मिलने जाना था, वो मिला नहीं। दूसरे गाँव गया हुआ था किसी की भूत पूजा के लिए।
मैं फैक्ट्री चला गया मैनेजर के साथ काम के लिए।
रोज़ की तरह काम करके मैं घर चला गया, मैनेजर के घर कितने दिन रुकता। आज घर पूरा व्यवस्तिथ था, बिस्तर पर एक भी सिलवट नहीं थी।

मैं हैरान था, क्योंकि मैंने उस दिन घर ठीक किया ही नहीं, यूँ ही छोड़ कर चला गया था डर के मारे।
नीचे बिछी हुई चादर पर सिलवटें थी, और दो-तीन काले लंबे बाल भी।
मैं आज डरा नहीं, आज मुझे मेरे सवालों के जवाब जानने थे।
जो कुछ भी होगा मेरे साथ, मैं उसके लिए तैयार था।
इतना तो समझ ही चुका था, वो मुझे नुकसान नहीं पहुंचा सकती थी।

रात गहराती गई, मैंने खाना खाया और एक कोने में बैठ गया आंखें बंद करके। ना जाने कब आँख लग गयी।
आधी रात हो चुकी थी, बाहर सन्नाटा था। सुनाई दे रही थी तो बस झिंगुर की आवाज। ऐसा लगा जैसे मैं किसी की गोद में लेटा हूँ, और वो मेरे सिर पर हाथ फेर रही है।
मैं झटके से उठ गया और एक कोने में दुबक कर बैठ गया।
हिम्मत करके मैंने ज़ोर से पूछा " कौन हो तुम और मुझसे क्या चाहती हो? "
"मुझे रोज़-रोज़ डराकर मारने से तो अच्छा है, एक बार में ख़त्म कर दो।"
तभी रोने की आवाज़ आने लगी....
तुम्हें याद है कि तुम बचपन में अपने माता पिता के साथ कुनखेत गाँव में रहते थे, एक लड़की थी लक्ष्मी , जिसके साथ तुम खेला करते थे, जंगल में गाय चराने जाया करते थे, कोसी में नहाया करते थे। एक ही कक्षा में पड़ते थे वो और तुम। 

पाठशाला से आते वक़्त तुम कोसी के किनारे आधी बची हुई मंडवे की रोटी और चटनी खाया करते थे। जब तुम 14 साल के हुए, तुम्हारे पिता की अच्छी नौकरी लग गयी दिल्ली में और तुम्हारा सारा परिवार दिल्ली चला गया। तुम लोग कभी वपिस लौटकर नहीं आये।

यह सब सुनकर मैं सन्न रह गया और बचपन का एक एक दृश्य मेरी आँखों के सामने आ गया।
मैंने घबराकर पुछा, तुम यह सब कैसे जानती हो, जबकि इतना तो मुझे भी याद नहीं।

मैं कैसे भूल सकती हूँ, मैं वही लक्ष्मी हूँ । तुम्हारे साथ बचपन का लगाव, बड़े होते होते तक प्यार में बदल गया और मैं सोचती शायद तुम कभी तो वापिस आओगे गाँव और मैं तुमसे अपने मन की बात कहूँगी।

मुझे नहीं समझ आ रहा था, मैं क्या कहूँ? दिल्ली के माहौल में घुलने की जद्दोजहद में गाँव को लगभग भूल ही चुका था और पापा ने भी कभी रुचि नहीं दिखायी गाँव जाने में।
एक बात जानना चाहता हूँ, तुम इस रूप में कैसे और मुझसे क्या चाहती हो? मेरा डर लगभग ख़त्म हो चुका था।
उसने कहा ..... " मैं एक दिन अपनी सहेलियों के साथ जंगल में घास काटने गयी थी और गलती से पीछे छूट गयी, सब लोग आगे निकल गए।
मैंने सोचा छोटे रास्ते से जाऊंगी तो जल्दी अपनी सहेलियों को पकड़ लूंगी रास्ते में, पर वो छोटा रास्ता मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल बन गया।
कुछ अंग्रेज लोग कुनखेत के रिसोर्ट में ठहरे हुए थे, और वो जंगल में घूम रहे थे। उनमें से मैं दो को जानती थी। रिसोर्ट मे सफाई करने जाती थी, तो देखा था वहां। बहुत गन्दी नजर थी उनकी।

वही गन्दी नजऱ मुझ पर पड़ गयी उनकी और मुझे अकेला देखकर उन्होंने मेरे साथ जबरदस्ती की और फिर मुझ पर छुरी से कई वार किए और मै मर गयी।
उस डरावने घने जंगल में कौन सुनता मेरी आवाज और मैं ख़ामोशी से मर गयी।

अगले दिन मेरे माता पिता के साथ गाँव वाले जंगल आये मुझे ढूंढने। मेरी आधी खायी हुई लाश मिली उन्हें। सबने यह समझ लिया कि मैं शेर का शिकार बन चुकी हूँ। जबकि मैं आदमियों का शिकार बन चुकी थी। मेरी कहानी इसी तरह ख़त्म हो गयी। तबसे मैं ऐसे ही भटक रही हूँ पिशाच बन.........
मैंने पूछा.... उन अंग्रेजों का क्या हुआ?
" उन्हें भी शेर ने खा लिया मेरी तरह, यह कहते हुए वो ज़ोर से हंसने लगी"। 
मैं समझ गया उनको लक्ष्मी ने ही मारा था।
मुझे थोड़ा डर लगने लगा था अब, मैंने फिर पूछा, मुझसे क्या चाहती हो तुम?
उसने कहा, मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी पत्नी बनकर रहना चाहती हूँ, तुमसे बहुत प्यार करती हूँ मैं।
मैं सकपका गया एकदम। अगर झट से उसे ना कहता तो वो हिंसक हो सकती थी।

मैंने समझाते हुए कहा, तुम हवा की तरह हो, जिसे मैं महसूस तो कर सकता हूँ, मगर छू नहीं सकता। ऐसे में शादी का रिश्ता कैसे टिकेगा? समाज को कैसे समझाऊंगा, लोग मुझे पागल कहेंगे।

वो झट से बोली..." दो रास्ते हैं या तुम मेरी तरह आत्मा बन जाओ यानि की तुम्हारी आकस्मिक मौत हो जाये या जिससे तुम शादी करोगे, मैं उसके शरीर में प्रवेश कर जाऊँ। शरीर उसका होगा मगर आत्मा मेरी होगी। "
बोलो.... कौनसा रास्ता मंजूर है तुम्हें?

अगर मैं ना करता तो मै उसी वक़्त स्वर्ग सिधार जाता। मैंने कहा मुझे थोड़ा वक़्त चाहिए और इसी तरह सुबह हो गयी। वो चली गयी।
मैनेजर शाम को मुझे अपने घर ले गया , जहां मैंने उसे कल की घटना सुनाई।

वो भी बहुत डर गया था। उसने घर में भूत पूजने वाले को बुलाया था, वो थोड़ी देर में ही आ गया। उसका नाम सोमनाथ था। 
उसने कुछ चावल के दाने हाथ में लिए और गढ़वाली मे मंत्र बोलने लगा और चावल मेरे ऊपर फैंक दिए। जिससे मैं तिलमिला उठा। 

जिससे बचने आया है तू, वो तेरे कंधे पर बैठी है।  और उसे सब पता है तू कहाँ जाता है, क्या करता है। पर केवल रात में ही उसकी शक्तियां जाग्रत होती हैं। इसलिए दिन मे तुझे कुछ महसूस नहीं होता।

वो मेरे शरीर पर पानी के छीटे मारता है और मैं जोर से चिल्लाता हूं, बेहोश हो जाता हूं। थोड़ी देर बाद जब मुझे होश आता है तो वो मेरे नाखुन के टुकड़े, सर के दो तीन बाल, मेरे पहने हुए कपडे लेकर एक गठरी में बाँध देता है। मुझे नहाकर साफ़ कपडे पहनने को कहता है। उसके बाद मेरे गले में एक ताबीज़ बांध देता है और कभी न उतारने की ताक़ीद देता है। 
उसने कहा सुबह होते ही मोहान छोड़कर दिल्ली निकल जाओ, यहाँ रहोगे तो फिर से आ सकती है तुम पर। उसे ज्यादा दिन तक बांधकर रखना मुमकिन नहीं है।
मैंने मैनेजर की तरफ देखा। 
वो बोले... जान से ज्यादा कुछ अनमोल नहीं, मैं सब संभाल लूंगा यहाँ। तू जा............

मैंने सोमनाथ और मेनेजर का धन्यवाद किया और सुबह की बस से दिल्ली निकल गया बिना अपना सामान लिए उस घर से...............

बस में बैठ तो गया था लेकिन अभी तक दिमाग से लक्ष्मी की बातें जा नहीं रही थी। मुझे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। आजकल के ज़माने में भूत-पिशाच सोचकर ही अजीब लगता है ।लेकिन जो मेरे साथ हुआ उसे  कैसे जहन से दूर करूँ? यही सब सोचते-सोचते कब आंख लग गयी पता ही नहीं चला। सीधा दिल्ली पहुंचकर ही आँख खुली। अपना बैग लेकर मैं बस से उतर गया और घर जाने के लिए ऑटो पकड़ लिया। 

यूँ घर में अचानक आया देखकर मम्मी-पापा परेशान हो गए। मैंने बहाना बना दिया कि मेरी तबियत खराब हो गयी थी अचानक वहाँ और मेरा मन भी नहीं लग रहा था मोहान में। इसलिये नौकरी छोड़कर घर आ गया। अभी और सवाल मत पूछिए आप लोग। मैं नहाकर आता हूँ, माँ आप खाना लगा दो।
मैं सच बताता तो वो चिंता में पड़ जाते, जो मैं नहीं चाहता था।

कुछ ही दिनों में सब सामान्य हो गया और मैंने दिल्ली में ही नौकरी ढूंढ ली और रोज़ काम पर जाने लगा। 
घर आता था तो रोज़ कमरा साफ़-सुथरा सजा हुआ मिलता था। मैं भूल चुका था लक्ष्मी को पूरी तरह से।
3 महीने बाद मेरी शादी हो गयी स्मिता से और हमारा वैवाहिक जीवन शुरू हो गया। 
जिंदगी के इस खूबसूरत मोड़ पर मैं पिछला सब कुछ भूल चुका था।

आज रात को स्मिता सब काम निपटाकर कमरे में आयी तो मुझसे ऐसे गले से मिली जैसे ना जाने कितने महीनों बाद मुझसे मिली हो और रोने लगी।
मैंने पूछा.....आज क्या हो गया तुम्हें? कुछ अलग लग रही हो आज...रो ऐसे रही हो गले लगकर जैसे महीनों बाद मिल रहे हो हम।

तुम नहीं समझोगे कहकर..... फिर से वो मेरे सीने से लगकर सो गई। मैं समझ नहीं पा रहा था उसका यह व्यवहार।
सुबह जब स्मिता सोकर उठी तो मैंने फिर से बीती रात के बारे में उससे जिक्र किया, तो वो हँसने लगी और बोली .....मजाक मत करो सुबह-सुबह, मैं क्यों रोऊंगी भला? हम तो साथ ही रहते हैं, रोने का तो सवाल ही नहीं उठता। इतना कहकर वो नहाने चली गयी।

यही सब सोचते-सोचते हाथ गले पर चला गया, देखा तो गला खाली था.....हे भगवान मेरी ताबीज़ कहाँ गयी? मैं घबराकर बिस्तर पर देखने लगा कहीं सोते समय बिस्तर पर तो नहीं गिर गयी। स्मिता वाली साइड पर उसके तकिये पर दो-तीन काले लंबे बाल पड़े थे। 
यह देखकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा क्योंकि स्मिता के बाल छोटे थे और उसने हल्के सुनहरे रंग से कलर करवा रखे थे बाल।

मैं समझ गया कल जो मेरे साथ थी रात भर मेरी बाँहों में वो स्मिता नहीं , स्मिता के शरीर में लक्ष्मी थी। मेरा पूरा शरीर पसीने से भीग चुका था। मुझे बचाने के लिए अब मेरे पास मेरी ताबीज़ भी नहीं थी। मुझे स्मिता की चिंता होने लगी थी। 
तभी स्मिता की चिल्लाने की आवाज़ आती है बाथरूम से..... स्मिता बाथरूम में बेहोश पड़ी थी। शरीर नीला पड़ चुका था, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो। मैंने उसे झट से गोद में उठाया और बिस्तर में जाकर लेटा दिया और मम्मी-पापा को आवाज लगायी।
मम्मी-पापा तो देखकर हैरान ही हो गए स्मिता की हालत।
मैने स्मिता और अपने माथे पर हनुमान जी का तिलक लगाया और फिर हम उसे हॉस्पिटल ले गए। मैंने मम्मी-पापा को शुरुवात से लेकर अंत तक की सारी कहानी सुना दी, जिसे सुनकर दोनों सुन्न रह गए। पापा ने कहा स्मिता के ठीक हो जाने के बाद हमें सपरिवार उत्तराखंड जाना होगा पूजा के लिए।
मैं भी इस खेल को खत्म करना चाहता था अब।
लक्ष्मी की आत्मा प्यार की प्यासी थी और वो मुझे पाने के लिए कुछ भी कर सकती थी।
लक्ष्मी अपना खेल शुरू कर चुकी थी और इस खेल का अंत अब उत्तराखंड जाकर ही हो सकता है यह तो मैं भली भांति समझ चुका था।

❤सोनिया जाधव

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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

09-Jan-2022 12:58 AM

बहुत खूबसूरत लिखा

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Shrishti pandey

08-Jan-2022 04:50 PM

Very nice mam

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