Archana Tiwary

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इंसानियत

रविवार का दिन था. टीवी पर मेरी पसंदीदा फिल्म पड़ोसन आ रही थी .जल्दी जल्दी अपना काम खत्म करके अपने बेटे रवि के साथ मूवी देखने लगी .अचानक फोन की घंटी बज उठी ,देखा तो मां का फोन था .मां इस समय कभी फोन नहीं करती थी क्योंकि दोपहर में यह समय उसके आराम का होता था .मन में थोड़ी आशंका हुई .मैंने फोन उठाया तो उनकी आवाज में वह खनक नथी. बुझी बुझी की आवाज आ रही थी. उन्होंने मेरा हाल चाल पूछा .मैंने पूछा आपकी तबीयत तो ठीक है न उन्होंने कहा कि पिछले दो दिनों से उन्हें पेट में दर्द हो रहा है. मैंने कहा आपने खाने में कुछ उल्टा सीधा खाया होगा इसलिए ऐसा हो रहा है फिर भी डॉक्टर को दिखा दीजिए .फोन रखने के बाद भी मेरा मन मूवी देखने में नहीं लग रहा था. दूसरे दिन मैंने अपने भाई को फोन किया तो उसने बताया के मां को मत बताना पर डॉक्टर को दिखाने के बाद उन्होंने कैंसर जैसे भयानक रोग होने की आशंका जताई है. उसने यह भी कहा कि मैं दूसरे  डॉक्टर से भी सलाह ले लूंगा ,तब तक तुम मां को कुछ मत बताना .मेरी आंखों से आंसू बहने लगे , मैं तुरंत मां से बात करना चाहती थी पर भाई ने ठीक ही कहा था अगर उस वक्त मैं बात करती तो अपने आपको शायद रोक न पाती और रो पड़ती लेकिन कैंसर वाली बात सुनकर मन बेचैन हो रहा था .माँ को कैंसर कैसे हो सकता है वो तो बड़े ही संयम से रहती है .खाने पीने का भी बहुत ध्यान रखती है फिर ये कैंसर .ज़रूर डॉक्टर को कोई गलती हो गयी होगीं .मै जल्द से जल्द मां के पास जाना चाहती थी पर मेरी स्कूल की नौकरी मेरे आड़ेआ रही थी .उस वक्त स्कूल में बच्चों की परीक्षा चल रही थी और छुट्टी के लिए कहना भी मानो बहुत बड़ा अपराध माना जाता . प्राइवेट  नौकरी  में   अक्सर  येे अहसास कराया जााता है कि आपकी अहमियत   वहां कुछ भी नहीं है पर छुट्टी की मांग करते ही यह जताया जाता है की आपके बिना कोई काम ही ना होगा .मुझसे रहा न गया तो मैंने रवि को यह बात बताई वह भी घबरा गया और मुझे  वहाँ जाने की सलाह देने लगा. मैंने बहुत हिम्मत  जुटा कर प्रिंसिपल मैडम को सारी बात बताई .उन्होंने कहा कि परीक्षा के बाद आप जाकर माँ से मिल लेना .तब मैंने भी यही उचित समझ कर हामी भर दी .अब ट्रेन की टिकट एक बड़ी समस्या थी .इतनी जल्दी टिकट मिलना नामुमकिन था .इतने दूर का सफर  बिना रिजर्वेशन के टिकट के संभव न था तभी मुझे आर्मी से रिटायर्ड अंकल की याद आयी वो हमेशा कहते थे की वीआईपी कोटा में टिकट कराना हो तो मैं करवा दूंगा .मैनेउन्हें फ़ोन किया तो उन्होंने तुरंत कहा टिकट की चिंता मत करो मैं करवा दूंगा. ये सुन मन आश्वस्त हो गया मैंने छुट्टी ले ली .मेरी टिकट दो हफ्ते बाद की थी. इस बीच हर दिन माँ से बात होती पर मैंने इस बात का ध्यान रखा की उनकी बीमारी का जिक्र न हो .पर मुझे महसूस होने लगा की मां अब पहले जैसे बातोंं में रुचि नहीं लेती थी .मैंने भाई से बात की तो उसने कहा कि मां से बातेंं कम करो. उन्हें अब आराम की जरूरत है .अब् तो सोते जागते माँ   की चिंता होती  .  मैं जल्द  जल्द माँँ  से   मिलना चााहती थी .स्कूल में परिक्षा  के आखिरी दिन स्कूल से घर आयी तो याद आया आज तो मै मोबाइल घर पर ही रख कर भूल गई थी .जल्दी से मोबाइल उठा कर  मैसेज देखा तो मेरे भाई का मैसेज था पर ब्लैंक था ,कुुछ भी लिखा न था .मन में बेचैनी सी हुई .मैंने तुरंत  भाई को फोन लगाया  पर  उसने  फ़ोन रिसिव न किया .अब  तो मन की बेचैनी इतनी बढ़ गयी की कुछ समझ न आ रहा था.आज से पहले तो उसने  कभी ऐसा मैसेज नहीं भेजा था. फिर आज यह ब्लैंक मैसेज क्यों ?तभी छोटी बहन का ख्याल आया जिसका ससुराल वहीं था. मैंने उसे फोन लगाया तो फोन पर वह जोर जोर से रोने लगी .मैंने घबराते हुए पूछा मां ठीक तो है न. उसने कहा अब माँ नहींं रही. आज  सुबह हम सब को छोड़ कर चली गयी. मेरे हाथ से  मोबाइल छूट गई और मैं  वही बैठ  जोर जोर से रोने लगी .मेरी पड़ोसिन  मेरी आवाज सुनकर भागते हुए मेरे पास आई और मुझे सहारा दिया घर में तब कोई नहीं था .उसने मुझे पानी पिलाया और समझाने लगी की भगवान की मर्जी केे आगे किसी की नहीं चलती .आपकी मां को ज्यादा परेशानी होती ज्यादा दर्द होता इसलिए भगवान ने उन्हेंं अपने पास बुला लिया.मैंने रोते हुए कहा आपकी बात सही है  पर  मुझसे मिलने का इंतजार तो कर लेती.  मैं भी उनकी तकलीफ से  वाकिफ हूं  . मैं उनकी कोई सेवा तो नहीं कर पाई  पर  अंतिम क्षण में उनसेे मिलने की इच्छा तो पूरी कर देती. मैंने बहन से पूछा तो उसने  बताया कि माँ अंतिम पल में आपको बहुत याद कर रही थी.सच ईश्वर की इच्छा के आगे किसी की नहीं चलती पर अफसोस तो मुझे इस बात का है किमैं पहले चली जाती तो उनसे मिल लेेती .मैंने भाई से बात करके कहा कि तुमलोग  अंतिम  संस्कार के लिए मेरा इंतज़ार मत करना. वैसे  भी दो दिन बाद मैं आने वाली हूं. जैसे तैसे दो दिन काटने के बाद मैं स्टेशन पहुंची तो अंकल ने बताया की टिकट का इंतजाम नही हो पाया .मुझे तो किसी भी तरह से जाना ही था इसलिए मैंने  बिना रिसेर्वेशन वाली टिकेट लिए और रवि के साथ रिसेर्वेशन वाले डब्बे में चढ़ गयी ये सोच कर की टी टी के आने पर बात कर लूँगी किसी बर्थ के लिए. ट्रेन में बहुत भीड़ थी. हमदोनो एक बर्थ पर बैठे ही थे की किसी की आवाज़ आयी आपलोग अपने जगह पर चले जायें ये मेरी जगह है .मैंने  रवि को दूसरी बर्थ पर बैठने का इशारा किया तभी वहाँ बैठे एक सज्जन ने कहाँ बहनजी आप अपने बर्थ पर बैठिये ,अब हमसब सोने वाले है. मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ.मैं टीटी का ईंतज़ार कर रही थी की अब वही कुछ ईंतजाम करेंगे। मेरी आँखों के आँसू थम न रहे थे. तभी दूसरी तरफ बैठे एक सज्जन ने रवि से मेरे रोने का कारण पूछा. रवि ने सारी बात बताई और हमारी रिजेरर्वेशन न होने की बात भी कह डाली .उन्होंने कहा कि मैंने तीन बर्थ बुक कराइ थी पर कुछ कारणवश मेरे रिश्तेदार आ नही रहे तो आपलोग दो बर्थ ले लो और आराम से सो जाओ.मैंने सोचा सच ही कहते हैं लोग ईश्वर हर जगह हर पल हमारे साथ होते हैकिसी न किसी रूप में. मुझे उस सज्जन में ईश्वर का रूप ही नज़र आया. आज  भी इंसानियत जीवित है. उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले ही मैंने भी अपनी माता को खोया है .ये दुःख क्या होता है इसका मुझे अहसास है .मेरे हाथ अनायास ही उनकी तरफ धन्यवाद् के लिए जुड़ गये .   सचमुच दुनिया में आज भी ऐसे न जाने कितने अच्छे लोग हैं जो दूसरों की मदद करने में कभी पीछे नही रहते.

 मैंने भी उस दिन मन ही मन ये निर्णय लिया की मैं भी हमेशा जरूरतमंद की मदद करती रहूँगी.

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