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लेख बिन पानी सब सून (लेख मंथ)

बिन पानी सब सून (लेख मंथ प्रतियोगिता के लिए)



जल को कम न आंकिए, यह जीवन आधार।

पग-पग पर जल चाहिए, जल जीवन का सार।


जी हाँ - जल हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता है। जल के बिना जीवन असंभव है। आजकल प्रकृति में भी असंतुलन व्याप्त हो गया है। कभी बिना मौसम तेज बरसात होने लगती है। जिन स्थानों पर कभी कम पानी बरसता था वहां अब लगातार कुछ दिनों तक मूसलाधार बारिश होने लगती है, तो कहीं भयानक बाढ़ आ रही है और कहीं सूखा पड़ रहा है। इसका प्रमुख कारण है - आज हम अपनी सुविधाओं के लिए प्रकृति को उजाड़ रहे हैं। जंगलों की अधिकता से वातावरण में नमी रहती थी क्योंकि इससे हमें ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में मिलता था। वर्षा के मौसम में प्रकृति का नज़ारा देखते बनता है लेकिन हमने जंगल काट डाले, बड़ी बड़ी फैक्टरियों और कारखानों ने अपना अस्तित्व कायम कर लिया। फैक्टरियों के धुँए ने , केमिकल्स ने पूरे वातावरण को दूषित कर दिया। बात पानी की हो रही थी। पहले पानी शुद्ध होता था लोग कुएं का पानी और हैंडपम्प का पानी पीते थे।  नदी क़े पानी से लोग दाल बनाते थे यह भी सुना है उसके बाद भी लोग स्वस्थ रहते थे। आज नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं क्योंकि शहर का कूड़ा नदियों में जाता है। लोग तरह तरह की चीज़ें फेंकते हैं।

आज हम फिल्टर का पानी और आर. ओ का पानी पीते हैं इसके बावज़ूद बीमारियां घेरे रहती हैं।

और सबसे चिंताजनक बात यह है कि जल स्तर बहुत नीचे जा चुका है।  इसका कारण पेड़ पौधों को काटना और नए पौधे न लगाना तथा नलकूप खनन भी है।

गाँवो में भी आजकल मोटर चलाकर पानी निकलना पड़ता है शहरों की तो बात ही छोड़ दें।

गर्मी के मौसम में पानी के लिए मारा मारी शुरू हो जाती है। लोग पानी का बर्तन लेकर  कोसो दूर तक जाते हैं तब कहीं थोड़ा पानी मिल पाता है। इन जगहों पर लोग पानी को कीमती वस्तु की तरह सहेज कर रखते हैं लेकिन जहाँ पानी सर्वसुलभ है वहाँ पर लोग इसकी कीमत नहीं समझते व्यर्थ में बहाते रहते हैं। सरकार भी पानी की व्यवस्था करने में लगी रहती है  लेकिन अरब लोगों के लिए पानी की व्यवस्था करना कोई आसान काम नहीं है।

सबसे पहले हमें खुद को सुधारना होगा। पानी बचाने की आदत डालनी होगी। पानी का  सदुपयोग करना सीखना होगा इसके लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा। लोग टोटी खोलकर छोड़ देते हैं घन्टों पानी बहता रहता है। 

घरों में पानी को शुद्ध करने के लिए आज कल वाटर प्यूरीफायर लगाते हैं उसमें जिनता पानी साफ होता है उतना ही पानी नीचे भी गिरता है। लोग उस पानी को यूँ ही बरबाद करते हैं। उसे सफाई के काम में लाया जा सकता है।  कहने का तात्पर्य यह है कि हमें पानी का संचय करना चाहिए न कि हम इसे व्यर्थ बहाएं। इसके लिए हमें जागरूक होना पड़ेगा। हमें प्रकृति को भी संरक्षित करना होगा हरियाली बढ़ानी होगी। संसार में ग्लोबल वार्मिग का जो माहौल बन रहा है उस पर नियंत्रण पाना होगा।

अंत में रहीम दास की पंक्तियों के साथ पानी की महत्ता को स्वीकारते हुए लेखनी को विराम देती हूँ।


"रहिमन पानी रखिये , बिन पानी सब सून।

पानी     गए  न  उबरे, मोती  मानस  चून।"


स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Jan-2022 04:56 PM

बहुत खूबसूरत

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🤫

10-Jan-2022 11:27 PM

Very nice...

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