सांवरी–२
सांवरी – २
पिछले भाग से आगे:
रोज़ सुबह खाना पीना खाकर सांवरी, धीरू और २/३ कबीले की लड़कियों की एक टोली जयपुर की गलियों की खाक छानने निकल पड़ते, और किसी मोहल्ले या बाजार में अपना डेरा जमा लेते। धीरू एक ढपली पर थाप देता, सांवरी और लड़कियां मिल कर या तो कोई लोकगीत या फिर कोई नागिन का फिल्मी गीत पूरे जोश ख्ररोश से गाती और फिर अपने लोचदार बदन को लहराते हुए खूबसूरत नागिन नृत्य प्रस्तुत करती।
एक तो सांवरी की मधुर कोयल सी आवाज, बरबस लोगों का ध्यान उनकी तरफ खींच लेती फिर उसका तन्मय होकर गाना और साथ ही साथ पूरी लय ताल के साथ नाचना कुछ ऐसा समा बांध देता की देखने वाले सुधबुध खो कर सब काम छोड़ छाड़ कर उसकी नृत्य कला, उसकी खूबसूरती और उसकी मीठी आवाज में खो ही जाते।
2/3 गाने और नृत्य दिखा कर धीरू अपनी डफली लेकर सबके सामने फैला देता, लोग खुशी खुशी 5/10 रुपए उसे दे देते।
शाम तक पूरी टोली के पास करीब 1000/1200 रुपए इकट्ठे हो जाते जिन्हे वो आपस में मेहनत के हिसाब से बांट लेते। सांवरी और धीरू ने एक नियम बना रखा था, जैसे ही जरूरत के मुताबिक पैसा इकट्ठा हो जाता तो वो ज्यादा लालच नही दिखाते और सब मिल कर या तो किसी होटल में जा कर भर पेट खाना खाते या अगर समय मिलता तो सांवरी की कोई पसंदीदा फिल्म देख लेते।
उनका ये पक्का विश्वास था कि कुल देवता हमेशा उनकी जरूरत पूरा करते ही रहेंगे, और साथ ही ज्यादा लालच से वो नाराज़ भी हो सकते हैं। इसलिए जितनी जरूरत हो उस से ज्यादा नहीं मांगना चाहिए। शायद कुछ उनकी अपनी कला के प्रति समर्पण की भावना कुछ उनका विश्वास और कुछ उनकी अपने कुल देवता में अगाध श्रद्धा उन्हें कभी खाली हाथ लौटने नहीं देती, अपितु कबीले की सारी टोलियों से हमेशा उन्हें अधिक ही प्राप्त होता।
सांवरी और धीरू की जोड़ी भी बहुत खूबसूरत थी, दोनो को देखते ही समझ आ जाता कि दोनो एक दूसरे के लिए ही बने हैं। बचपन से दोनो एक साथ पले बढ़े, साथ खेले तो बिना कहे ही दोनो ने एक दूसरे को अपना जीवनसाथी भी मान लिया। वहीं सांवरी के बाप भंवरलाल और धीरू के बाप खैरू के बीच भी पक्की दोस्ती थी, सांवरी के जन्म से पहले ही खैरु ने भंवरलाल से वादा ले लिया था कि अगर छोरी हुई तो उसका लगन वो धीरू से करवा देगा। बंजारों में वैसे भी जुबान देकर कोई टालता नहीं, इसीलिए धीरू को बचपन से ही पता था कि सांवरी ही उसकी बिंदणी बनेगी सांवरी भी जानती थी कि धीरू ही उसका मरद होगा।
कल ही सांवरी और धीरू ने मिल कर सोचा था कि आज वो पहला डेरा राजमंदिर सिनेमा के सामने लगाएंगे, उनको पूरा यकीन था की बहुत सारी बक्शीश मिलेगी और फिर वहीं अपनी मनपसंद पिक्चर भी देखेंगे। धीरू ने तो हाल के बाहर पान वाले से दोस्ती भी कर ली थी की वो नाच के बाद उसकी ढपली और बाकी समान संभाल लेगा वैसे भी वो सांवरी को डांस के बाद स्पेसल मीठा पान भी खिलाने वाला था।
ठीक 11 बजे के करीब सांवरी, धीरू, मीनू और छुटकी की टोली सिनेमा हाल के सामने आ गई और अपनी तैयारी शुरू कर दी सब अपने अपने पैरों में घुंघरू बांध रहे थे और धीरू अपनी ढपली सही कर रहा था।
कुछ देर में सांवरी ने अपनी मीठी तान छेड़ी, देखते ही देखते वहां लोगों की एक बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई, धीरू और पूरी टोली ने सब को प्रणाम करके अपना नाच शुरू किया, नाच देखने के लिए एक बड़ा हुजूम इकट्ठा हो गया सब लोग हमेशा की तरह सांवरी के जादू से जड़वत होकर उसका गायन और नृत्य देख रहे थे। धीरू की ढप भी निरंतर उसका लयबद्ध साथ दे रही थी। ऐसा लगता था की साक्षात स्वर्ग की कोई अप्सरा नृत्य कर रही है। आज सांवरी के पांव बिजली की तेजी से थिरक रहे थे, उसके गले से भी साक्षात सरस्वती देवी प्रकट हो रही थी। एक के बाद एक लोकगीत और फिल्मी धुनों पर तीनों सहेलियां थिरक रहीं थी।
सड़क के दूसरी तरफ एक लंबी सी काले रंग की कार आ कर रुकी, उसके काले शीशों के पीछे कौन बैठा था ना तो किसी को दिखाई दिया ना ही सांवरी के जादू में मुग्ध लोगों को ध्यान ही आया।
करीब 45/50 मिनट तक किसी देवी के वशीभूत सांवरी नाचती गाती रही, उसकी दोनो सहेलियां थक कर बैठ चुकी थी पर सांवरी पर तो मानो कोई जुनून सा तारी था।
आखिर कुछ देर बाद सांवरी को होश आया और उसने धीरे धीरे अपना नृत्य समाप्त किया, धीरू और सांवरी दोनो ही अपनी उखड़ी सांसों को काबू कर रहे थे। लोग बहुत देर तक तंद्रा में डूबे खड़े थे, फिर सबने एक साथ तालियों से पूरी टोली का अभिनंदन किया। धीरू की ढपली नोटों के ढेर से लबालब भर चुकी थी। सब को प्रणाम करके धीरू और पूरी टोली ने अपना सामान समेटना शुरू किया। सबके चेहरे खुशी से दमक रहे थे।
तभी काले रंग की कार से एक व्यक्ति निकला वो सूरत से और कद काठी से किसी बॉक्सर जैसा लग रहा था। पर उसके बदन पर ड्राइवर का लिबास और सर पर चमकती हुई टोपी बता रही थी की वो किसी बहुत रईस आदमी की कार है।
वो बहुत सधी चाल से चलता हुआ धीरू के पास आया और उसके हाथ पर 500 के दो नोट रख कर, कार की तरफ इशारा करके उसने कुछ धीरे से धीरू को कहा, फिर अपनी जेब से एक कार्ड निकाल कर धीरू के हाथ में थमाया और वापस कार की तरफ चल दिया।
धीरू हतप्रभ, कभी अपने हाथ में रखे उन दो 500 के नोटो को देखता और फिर उस कार्ड को और फिर उस लंबी गाड़ी को।
जब तक वह कुछ सोच पाता कार जिधर से आई थी उधर ही मुड़ कर चली गई। धीरू बहुत कोशिश के बाद भी उस धन्ना सेठ को नहीं देख पाया।
उसने वो कागज का छोटा टुकड़ा संभाल कर अपनी जेब में रख लिया।
आज तो गजब हो गया था एक ही बार में 3500 से ज्यादा रुपए हाथ आए थे।
पूरी टोली के चेहरे पर खुशी छलक रही थी।
धीरू ने पान वाले को कहा भाया जी 4 ठो मिट्ठा पान लगा दो इस्पेसल। और ये समान बोलो किदर राख दूं।
इतना कह कर वो सामने राजमंदिर के टिकट काउंटर से 4 बालकनी की टिकट ले आया।
आज का दिन खास जो था, सांवरी की किस्मत बदलने वाली थी.......
क्रमश:
आभार – नवीन पहल – ११.०१.२०२२ 🙏👍💐🌹
अगले भाग में जानिए उस काली गाड़ी में बैठे धन्ना सेठ को, और वो क्या चाहता है।
# लेखनी उपन्यास प्रतियोगिता हेतु
Barsha🖤👑
01-Feb-2022 08:32 PM
Nice part
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Seema Priyadarshini sahay
17-Jan-2022 05:17 PM
बहुत ही खूबसूरत लेखन
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Adeeba Nazar
11-Jan-2022 11:50 AM
nice
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नवीन पहल भटनागर
11-Jan-2022 04:11 PM
Thanks
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