नज़राना इश्क़ का (भाग : 01)
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शाम होने वाली थी, सूर्य महाराज पश्चिम की दिशा में ढलते हुए बादलों की ओट में छिपने को बेकरार नजर आ रहे थे। मुख्य सड़क से अलग निकलती हुई एक पतली सड़क, जो शहर से दूर जा रही थी, जहां वाहनों के आवागमन के कारण होने वाला शोर नहीं था। संध्या को घिरता देख पशु पक्षी भी अपने बसेरे की ओर लौटने लगे थे। सूरज की नरमी के साथ वातावरण में काफी शान्ति का माहौल पसरा हुआ था, जिसमें वहां गूंजती आवाजें स्पष्टया सुनाई दे रहीं थी।
"तुझे बिलीव ही नहीं होगा क्या बताऊँ? जानती है क्या हुआ? आज सुबह सुबह की बात है, मैं ऐसे कॉलेज के लिए निकला, तेरी तरह पापा तो छोड़ने जाते नहीं मुझे!" लड़के ने मासूमियत भरे स्वर में कहा।
"जाते नहीं या तू टाइम से तैयार नहीं हो पाता?" लड़की ने ताना मारते हुए कहा। "छोड़ अच्छा आगे बता क्या हुआ?"
"हाँ तो मैं कहाँ था? अच्छा याद आया बस स्टैंड पर! तभी वहां एक लड़की उतरी, हल्के पीले सूट में वो क्या कमाल लग रही थी, एकदम परी जैसी! उसके बाल यूँ लहरा रहे थे मानो नागिन लहराते हुए दौड़ रही हो, उसने जब मेरी ओर कदम बढ़ाया तो फिर बस मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयी, एक के बाद एक कदम बढ़ाते हुए जैसे वो मेरी ओर आने लगी, हमारे बीच की दूरियां घटने लगीं। अब उसके और मेरे बीच कुछ ही फासला था, ये शायद रब का फैसला था मेरे को हम दिल दे चुके सनम वाली जोर की फ़ीलिंग आई। मगर ये सब मेरी आँखों का वहम था, मुझे तो इश्क़ हो चुका था हाये रब्बा! बस फिर क्या तेरा बहादुर भाई लग गया काम पे, मन ही मन दुआ मांगी कि हे भगवान! थोड़ी देर वो यहीं रुक जाए, और फिर मैं किसी तरह गिरते पड़ते गुलाब का फूल लेने भागा।
मैं जब वापिस आया तो मुझे लगा देर हो गयी, क्योंकि मुझसे पहले एक कतई जहर वाले आशिक़ वहां अपना दिल फेंककर मेरा मतलब वही गुलाब लेकर अपने घुटनों पर बैठे, बाहें फैलाये.. तुम मेरी हो वाले स्टाइल में प्रपोज मारने बैठ चुका था, मुझे लगा मैं इश्क़ का पहला दांव हार गया पर तभी.. वो लड़की जो थोड़ी देर पहले शीतला माता की भक्त बनी परियों सी मासूमियत सजाई थी, उसने एक ही पल में काली माता का कालरात्रि वाला अवतार ले लिया। बाहों में भरने के इंतज़ार में बैठे हुए आशिक़ के सीने पर उसने हाई हील वाली सैंडिल पहने जोरदार लात मारी, वह बिचारा नीचे जा गिरा, फूल तो न जाने कहाँ गए मगर उस ब्यूटीफूल, उस फूल की साँसे फूला दी, बेचारे की एक दो पसलियां भी शहीद हो गयी। जैसे ही मैंने ये सब देखा मेरा इश्क़ मेरे सीने से निकलकर बगल के नाले में बह गया, और मैं सिर पर पैर रखकर भगा, मेरा मतलब इतना तेज भगा कि मेरे जूते घिस गए। ये देख…!"
"झूठा!" उस लड़की ने बस एक ही शब्द कहा।
"सच में यार!" लड़के ने मासूमियत भरे स्वर में कहा।
"हट्ट..! तेरी तो..!" लड़की ने कहा, फिर वहां कुछ गिरने का स्वर सुनाई दिया।
"अबे यार! तुझे अपने इस मासूम भाई पर तनिक दया न आती! सुबह सुबह दिल टूटा है अब क्या जान ले के मानेगी!" लड़का बोलता रहा, कमरे से धप्प, धम्म की आवाजें बाहर आती रहीं।
वह एक मध्यम आकार का कमरा था, जहां वे दोनों आपस में तकिए को हथियार बनाकर लड़ रहे थे। चारों ओर किताबें बिखरी हुई थी, देखने से प्रतीत होता था कि दोनों या दोनों में से कोई एक पढ़ाकू ही नहीं महापढ़ाकू था। मगर ये किताबें उनके तकिया युद्ध में गेंहू में घुन के जैसे पिस गयी थी।
"मम्मी देख लो इसका! बोल दे अब से इसका मूवी देखना बंद! जब देखो तब किसी न किसी मूवी की स्टोरी सुनाते रहता है।" वह लड़की उछलकर लड़के के सिर पर तकिया मारते हुए बोली।
"अबे मरवायेगी क्या?" लड़का अपने दोनों हाथों से तकिए को रोकता हुआ अपने निचले होंठ चबाते हुए बोला।
"पढ़ाई भी नहीं करने देता, जब देखो तब डिस्टर्ब करता रहता है।" लड़की पूरे जोर से चीखी। उस कमरे से सटे हुए कमरें में किचन था जहां एक औरत खाना बनाने में लगी हुई थी, उन्हें उन दोनों की आवाज स्पष्ट आ रही थी।
"भगवान जाने ये दोनों बड़े कब होंगे!" अपने आप से बोलते हुए माथे पर आया पसीना पोंछते हुए वे पुनः अपने काम में ऐसे लगी रहीं जैसे ये रोज की आदत हो गयी हो।
"बड़ा हूँ मैं तेरे से, थोड़ा तो भगवान से डर, कितना झूठ बोलती है? राम! राम! राम!" लड़का अपने दाहिने हाथ से मुँह को ढकते हुए बोला।
"बस तीन मिनट बड़ा कपरचिमकट्टू!" लड़की ने मुँह बनाया।
"ये क्या होता है?" लड़का आँखे फाड़कर उसे घूरने लगा।
"वही जो तू है..!" कहते हुए लड़की हँसने लगी। वह लड़का बुरी तरह झेंप गया, और उसे फाड़ खाने वाली नजरों से घूरता रहा। तभी...
"जाह्नवी, निमय, तुम दोनों लड़ना बंद करो, मेरी आधी उम्र के होते जा रहे तुम दोनों, आखिर कब बड़े होंगे..!" बाहर से गेट खोलकर आते हुए एक व्यक्ति ने कहा, उनकी शक्ल उस लड़की से मिलती जुलती नजर आ रही थी, जिसे उन्होंने जाह्नवी के नाम से पुकारा था।
"पापा आ गए चुप हो जा!" जाह्नवी ने अपने होंठो पर उंगली रखते हुए कहा।
"देख लो बोल भी कौन रहा है!" निमय ने मुंह बनाया।
"तुम दोनों की ये हरकते कब बन्द होंगी? कम से कम अपने लड़ाई में इन तकियों और किताबों पर तो जुल्म ना करो!" उन्होंने बिना कमरे में भीतर देखे ही कहा, मानों उन्हें सब पहले से ही पता हो।
"लो आ गए शर्मा जी! अब आप ही संभालो इन बच्चों को!" जाह्नवी की मम्मी ने ठिठोली करते हुए कहा।
"अब क्या करें शर्माइन जी! बच्चे हैं, एक न एक दिन बड़े हो ही जायेंगे।" मिस्टर शर्मा ने हँसते हुए मजाकिया अंदाज में कहा, उनकी बात सुनकर मिसेज़ शर्मा की भी हँसी निकल गयी।
"अच्छा ये पकड़िए! हम थोड़ा फ्रेश होकर आते हैं, अभी सांध्यपूजन भी तो करनी है।" शर्मा जी ने उन्हें अपना शर्ट पकड़ाते हुए कहा।
"पापा आ गए, अब तेरी स्टोरी नहीं चलेगी रूल में रहना सीख ले खच्चर!" जाह्नवी ने निमय के पैर पर घुटना मारते हुए कहा।
"तेरी तो गधी! तुझे ही पड़ी है भाभी की.. तो मैं क्या करूँ? मुझसे नहीं होने वाला ये सब!" निमय ने मुँह बनाते हुए कहा, उसे ऐसा करते देख जाह्नवी चिढ़ गयी।
"चल अब जल्दी से कमरा सही कराने लग, वरना बैंड बज जाएगी!" जाह्नवी नीचे गिरी एक बुक उठाते हुए बोली। "थोड़ी सी भी रेस्पेक्ट नहीं है तुझमें किसी चीज को ले के!" वही निमय झुककर कुछ नोट्स उठा रहा था, जाह्नवी उसके पास चली गयी और उसके सिर पर हाथ रख दी।
"जीते रह बालक! इसी तरह अपने से बड़ो का सम्मान किया करो!" वह खिलखिलाकर हँसती हुई बोली।
"मुँह तोड़ दूंगा मैं तेरा! चुपचाप जल्दी सही से लगा।" निमय ने उसे धमकाते हुए बोला।
"मम्मी देख लो आज फिर…गूँ गूँ!" इससे पहले वो अपनी बात पूरी कर पाती निमय ने उसका मुँह बन्द कर दिया।
"अबे चुप हो जा, कितना चीं चीं करती रहती है चुहिया की तरह!" कहते हुए वह उसे छोड़कर अपने हाथ झाड़ने लगा। "छी..! मेरे हाथ पे थूक दिया न तूने, गंदा कर दिया, अब तो गंगा स्नान करने के बाद ही मुक्ति मिलेगी।" निमय ने कहा, जाह्नवी ने सटककर थूक निगलते हुए उसे घूरा फिर अपने जल्दी से बुक्स सही करने लगी, क्योंकि पापा को उनका कमरा हमेशा सही मिलना चाहिए। किताबें और बिस्तर उल्टी सीधी बिखरी हुई मिलने पर डांट भी पड़ जाती थी।
"किसे झेलना पड़ रहा है मुझ मासूम को!" सबकुछ सही से लगाकर जाह्नवी ने हाथ झड़ते हुए बुदबुदाते हुए कहा।
"जो झेल रहा है उसे तो मालूम ही है!" निमय उसके पास से खड़े होते हुए बोला। उसने भी अपनी तरफ़ का सब कुछ सही से सहेज लिया था।
"चलो बहुत हो गया, अब जाकर पढ़ाई करो, और टाइम से डिनर करके सो जाना।" पापा ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा।
"जी पापा!" दोनों ने एक ही स्वर में कहा। वे मुस्कुराकर वापिस बाहर टहलने चले गए।
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अगली सुबह कॉलेज में!
निमय अपने में डूबा हुआ, धीमें कदमों से गेट की तरफ बढ़ा जा रहा था, उसे देखते ही एक लड़का उसकी ओर बढ़ा चला आया जो उसी का हमउम्र नजर आ रहा था।
"क्या शर्मा भाई? आज भी लेट! चल तेरा क्या तेरी तो आदत है!" मुँह बनाकर सवाल पूछने के बाद, निमय के चेहरे के भाव देखकर दांत दिखाते हुए बोला।
"बस ऐसे ही यार! चल आज तो सच में काफी लेट हो गया है।" निमय अपने फोन में टाइम देखते हुए बोला।
"मेरे को एक बात बता! मतलब मेरे को कई दिनों से पूछना था कि तेरा घर में कोई लफड़ा - वफड़ा चल रहा है क्या? देख दिल पे नहीं लेना बस ऐसे ही पूछ लिया।" उस लड़के ने निमय के बदलते भावों को देखते हुए बोला।
"अरे नहीं! तू इधर नया नया आया है न भाई, इसलिए तेरे को ऐसा लग रहा होगा। ऐसा कुछ न है!" सीढ़िया चढ़ते हुए निमय बोला।
"तो तेरी बहन हमेशा टाइम पे आ जाती है, तू हमेशा लेट करता है, इसलिए ऐसे ही करके पूछ लिया, क्योंकि जहां तक मैं जानता हूँ तू आलसी तो बिल्कुल नहीं है।" लड़के ने हाथ नचाते हुए कहा।
"छोड़ न विक्रम, देख अब क्लास आ गयी। मेरे चक्कर में तू क्यों लेट करता है?" निमय क्लास की ओर जाने लगा।
"तेरे चक्कर में नहीं यार! यहां बस एक तू है जो दूसरे कॉलेज में से आने के बाद भी मेरे को गैर जैसा बिहेव नहीं किया, बाकी साला सब के सब विलेन बना दिये थे मुझे!" विक्रम ने कुछ सोचते हुए कहा, बाकियों के बिहेवियर का ख्याल आते ही उसके जबड़े भींच गए।
"चल छोड़! अब क्लास में चल!" निमय ने उसका हाथ खिंचते हुए कहा।
"अरे नहीं यार, अब पहला लेक्चर तो खत्म ही होने वाला है, चल कैंटीन में बैठते हैं, नहीं तो गार्डन में!" विक्रम उसके हाथ को खींचते हुए बोला।
"अबे यार हीरोइन नहीं हूं मैं तेरी, साला ऐसे हाथ पकड़कर कौन खींचता है बे!" निमय अपना हाथ छुड़ाते हुए शर्माते हुए बोला।
"ठीक है!" विक्रम ने मुँह बनाया फिर कुछ पलों को चुप रह गया, दोनों गार्डन की ओर बढ़े।
"यार कब से एक सवाल है बता दे ना?" विक्रम तो जैसे उसके पीछे ही पड़ गया था।
"यही न कि मेरी बहन टाइम से आती है और मैं नहीं? देख भाई आदमी तू अच्छा है पर तेरी ये आदत बहुत बुरी है, इतने सवालों को जवाब तो मैंने आजतक एग्जाम में नहीं दिए होंगे जितने तेरे को देने पड़ते हैं।" निमय ने मुँह बनाते हुए कहा, विक्रम उसकी बात सुनकर खिसियाकर हँसने लगा। "बचपन की बात है, मतलब इसी जन्म वाली स्टोरी है, अब ध्यान मत भटका वरना बार बार नहीं बताऊंगा।"
"ठीक है!" विक्रम किसी आज्ञाकारी बालक की भांति सिर झुकाकर सहमति पेश करता हुआ बोला।
"हम लोग इस शहर में नए नए आये थे, एक दिन मैं टाइम पे तैयार हो गया, पापा ने हम दोनों को स्कूल बस पर बिठाया और वापिस चले गए। जानी पापा को बहुत प्यार करती है, उसे लगा मेरी वजह से पापा उसे स्कूल छोड़ने नहीं गए, उसने पूरे एक दिन मुझसे बात नहीं की। मेरे लिए ये दर्द दुनिया के हर दर्द से बहुत ज्यादा लगा, फिर मैंने डिसाइड किया कि जब वो पापा के साथ स्कूल के लिए निकल लेगी तभी मैं बस से जाऊंगा, इसलिए लेट करने लगा, पहले पापा ने बहुत डांटा पर आखिर में मेरी जिद के आगे उन्हें भी झुकना पड़ता! तब से बस स्कूल से कॉलेज, मैं अब भी यही करता हूँ ताकि वो पापा के साथ आ सके। वो शायद अब तक ये सब भूल गयी होगी पर मैं कभी नहीं भूल... सकता।" बचपन की यादों को ताजा करती हुई उसकी आँखें नम हो गयी।
"ओह मेरे भाई!" विक्रम के मुँह से बस इतना ही निकला। वे दोनों घास पर बैठे आपस में बातें करते रहे। तभी गेट खुला, उसके सामने एक ब्लैक कलर की कार रुकी।
"अब कौन लेट लतीफ है जो तेरे से भी आगे निकल गया!" गेट की ओर देखता हुआ विक्रम हंसते हुए बोला। कार का गेट खुला, उसमें से पीला सूट पहने हुए बेहद खूबसूरत लड़की बाहर निकली, उसके सिर घुमाते ही लंबे काले बालों ने उसके चेहरे को ढक लिया, जिसे वह अपनी उंगलियो में उलझाकर हटाने लगी, निमय की नजरे बस वहीं ठहर कर रह गयी।
"क्या हुआ मेरे भाई? उठ जा अब दूसरा लेक्चर भी बंक करने का इरादा है क्या?" विक्रम ने उसे झिंझोड़ते हुए कहा, मगर जैसे निमय किसी दूसरी दुनिया में खोया हुआ था। वह लड़की हिरणी की भांति चंचल चाल से चलती हुई, गेट पार कर कॉलेज की ओर बढ़ने लगी, उसके हाथ में बहुत ही खूबसूरत गुलाबी हैंडबैग नजर आ रहा था, जिसपर बटरफ्लाई स्केच बना हुआ था। उसने अपने हैंडबैग से एक ब्लैक फ्रेम वाला चश्मा निकालकर आँखों पर चढ़ा लिया और तेज कदमों से चलती हुई प्रिंसिपल ऑफिस की ओर बढ़ने लगी।
"ओ भाई! रात में जा के सपने देख लेना, अगर अभी क्लास में नहीं पहुँचा ना तो तेरे घर तेरी शिकायत पहुँच जाएगी। फिर तू खुद ही सोच लेना।" विक्रम ने मुँह बनाते हुए कहा।
"उम्म! हाँ, चल चलते है।" निमय ऐसे बोला मानो जैसे वो नींद से जागा हो, दोनों दौड़ते हुए क्लास की ओर भागे।
क्रमशः…..
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#धारावाहिक_उपन्यास_प्रतियोगिता
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आँचल सोनी 'हिया'
14-Oct-2022 11:54 AM
Kafi achha likha hai aapne💐👌🙏
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Pratikhya Priyadarshini
16-Sep-2022 09:12 PM
Achha likha hai 💐
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shweta soni
29-Jul-2022 11:33 PM
Nice 👍
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