Sonia Jadhav

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हम तुम- भाग 7

भाग 7
अदिति की आँखों से आँसू झर-झर बहे जा रहे थे जिसका कारण खुद उसे भी समझ नहीं आ रहा था। दोनों के बीच ऐसा कुछ भी गहरा रिश्ता नहीं था जिसके कारण इतने आंसू बहाए जाये। कोई कसम-कोई वादा कुछ भी तो नहीं था। पता नहीं फिर भी दिल ने इतनी हाय तौबा क्यों मचा रखी थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था।

घर जाते ही अदिति ने अपने बैग से हनुमान चालीसा निकाली और हनुमानजी से पूछा….अगर उसने यूँ जाना ही था छोड़कर तो उसे फिर मेरी जिंदगी में लाए ही क्यों? हनुमान जी से ना कहती तो आखिर किससे कहती अपने मन की बात, आदित्य भी तो हनुमानजी का ही भक्त था उसकी तरह। उसका रो-रोकर बुरा हाल था। आदित्य भी कहाँ खुश था? अब उनके रिश्ते की डोर भगवान के हाथ में थी।

बड़ी मुश्किल से संभाला था, अदिति ने अपने आपको। किसी से कहती भी तो क्या? ना उनके बीच प्यार का इज़हार था, ना प्यार निभाने का कोई वादा, कुछ भी तो नहीं था। था तो सिर्फ आदित्य का अदिति को प्यार से देखना, उसकी परवाह करना और उसका वो लव लैटर।
सब कुछ शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया था।

आदित्य ने अब ऑफिस जल्दी आना छोड़ दिया था। ना वो अदिति की तरफ देखता था, ना ही अदिति से बात ही करता था। आदित्य के व्यवहार से अदिति को बहुत तकलीफ हो रही थी, लेकिन वो इतनी भी कमज़ोर नहीं थी कि वो आदित्य की एक नजर के लिए उसके आगे गिड़गिड़ाए।

अदिति ने भी आदित्य की तरफ देखना बंद कर दिया। उसके लिए वो जैसे ऑफिस में था ही नहीं। उसने उसे पूरी तरह से नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था। सुमित के जाने के बाद से बॉस और अदिति के बीच में बातचीत बढ़ गई थी। वैसे भी सर ज़्यादा बड़े नहीं थे उम्र में तो, कई बार उनके बीच में सामान्य विषयों पर बातें और हंसी मजाक भी होता था। जिसे देखकर आदित्य को बहुत गुस्सा आता था, लेकिन वो चाहकर भी कुछ कर नहीं सकता था। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी तो खुद ही मारी थी उसने, दर्द भी अब उसे ही सहना था।

एक हफ्ता पूरा हो गया था आदित्य को और वो जॉब छोड़कर चला गया था। जॉब तो छूट गयी थी पर दिल से अदिति नहीं छूट पा रही थी। कितने दिन हो गए थे, ना उसने अदिति को फोन किया था, ना अदिति ने उसको। ऐसे ही एक बार आदित्य से रहा नहीं गया, उसने अदिति को फोन मिला दिया।

उसे लगा अदिति उसका फोन सुनकर ख़ुशी से उछल पड़ेगी लेकिन अदिति की आवाज़ सामान्य थी।
अदिति में बताया कि कल उसे इंटरव्यू के लिए जाना है शाम 5 बजे कनॉट प्लेस में, बस इसी कारण थोड़ी फिक्रमंद है कि इंटरव्यू अगर देर तक चला तो वो अकेली घर कैसे वापिस आयेगी?

आदित्य ने कहा ....दिल्ली में रहती हो तुम किसी गाँव में नहीं जो इतना घबरा रही हो अकेले आने के नाम से।

अदिति ने कहा इसलिए तो घबरा रही हूँ कि दिल्ली में रहती हूँ। खैर मैंने सुमित से बात की है, उसने कहा है कि अगर उसे छुट्टी मिल गयी तो वो चलेगा साथ में।

सुमित का नाम सुनते ही आदित्य का दिमाग घूम गया, दिल में बेचैनी बढ़ने लगी और मन ही मन सोचने लगा एक बार भी नहीं बोला अदिति ने मुझे साथ चलने के लिए। लेकिन फिर ख्याल आया मुझे क्यों बोलेगी भला, मैंने काम भी तो ऐसा किया है, दिल दुखाया है मैंने उसका।

आदित्य ने भूमिका बांधते हुए कहा… जो कुछ भी हुआ हो हमारे बीच लेकिन हम दोस्त तो हैं ही। अगर सुमित को छुट्टी ना मिले तो मुझे फोन कर देना। मैं चल पड़ूँगा तुम्हारे साथ।

अदिति के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गयी और सोचने लगी आदित्य की चाबी हाथ लग गयी है। अदिति को यह यकीन हो गया था कि आदित्य उससे प्यार करता है और उसे किसी और के साथ देखना उसे मँजूर नहीं है। उसने सामान्य आवाज़ में कहा….ठीक है सुमित रात तक बतायेगा मुझे, जैसा भी होगा मैं तुम्हें फोन करके बता दूंगी।

आदित्य की बेचैनी बढ़ती जा रही थी…..सुमित तुम्हें रोज़ फोन करता है क्या?
अदिति मुस्कुराते हुए जवाब देती है….नहीं इतना भी नहीं, पर कर लेता है बीच-बीच में मेरी खैरियत पूछने के लिए।  खैर हमारे बीच जो भी था, उसके बारे में मैंने सुमित को नहीं बताया है और तुम भी मत बताना। मैं नहीं चाहती मेरा मज़ाक बने उसके आगे।

आदित्य दुखी होकर सॉरी बोलता है अदिति को, लेकिन अदिति बिना कोई जवाब दिए फोन रख देती है।
इधर अदिति की आँखों में आंसू होते हैं, उधर आदित्य की आँखें भर आती हैं।

अदिति और आदित्य दोनों को ही नहीं समझ आ रहा कि उनके दिल में इतनी बेचैनी क्यों है एक दूसरे को लेकर, जबकि अब तक तो प्यार का इज़हार भी खुलकर नहीं हुआ है। पता नहीं यह कैसा प्यार है जो शुरू होने से पहले ही जान लेने पर तुला था दोनों की।

पहला प्यार था दोनों का ही, पहली बार दिल ने तेज़ होती धड़कनों को सुना था। हर भावना को शब्दों में ढाला जाए, यह जरुरी नहीं है। प्यार में बहुत कुछ अनकहा होता है, जो व्यक्ति बिना कुछ कहे, सिर्फ एक दूसरे की आँखों में देखकर दिल की बात समझ जाता है। आदित्य और अदिति के साथ भी तो यही हो रहा था। एक दूसरे को आइ लव यू कहे बिना ही प्यार का इज़हार हो चुका था।

आदित्य मन ही मन प्रार्थना कर रहा होता है कि काश! सुमित को छुट्टी ना मिले और अदिति उसे कहे साथ चलने के लिए। बहुत दिन हो गए थे उसे अदिति को देखे हुए, उससे बात किए हुए। वो मन ही मन अदिति को देखने के लिए तरस रहा था। पता नहीं भगवान की क्या मर्जी छिपी थी इसमें, जिससे ब्रेकअप करके बैठा था, मन उसी के लिए मचल रहा था।

अदिति ने सुमित से इस बारे में कोई बात नहीं की होती है। उसने तो सुमित का नाम सिर्फ आदित्य के दिल को टटोलने के लिए लिया था। वो जानना चाहती थी आदित्य के मन में अभी भी उसके लिए भावनाएं है कि नहीं?

आदित्य रात भर अदिति के फोन का इंतज़ार करते-करते सो जाता है। अदिति जानबूझकर आदित्य को सुबह फोन करके बताती है कि सुमित को छुट्टी नहीं मिल पायेगी।  अगर आदित्य साथ चलना चाहता है तो चल सकता है। वरना वो अकेली ही चली जायेगी।

आदित्य यह सुनकर चैन की साँस लेता है और कहता है कि उसे अकेले जाने की जरूरत नहीं है, वो साथ चलेगा।वो उसे ऑफिस के पास वाले बस स्टॉप पर मिलने के लिए कहता है।

अदिति यह सुनकर खुश हो जाती है। लेकिन उधर आदित्य थोड़ा परेशान होता है। उसके मन में कहीं ना कहीं डर था यह सोचकर कि नौकरी उसने अदिति से दूर जाने के लिए छोड़ी थी और अब वो फिर से उसके करीब जा रहा है। ऐसा न हो कि कहीं वो दुबारा से अदिति की तरफ आकर्षित हो जाए और कहीं अदिति भी यह न समझ ले कि मेरे मन में अभी भी उसके लिए भावनाएं बाकी हैं। दिमाग आदित्य को दूर जाने के लिए कह रहा था और दिल उसके पास रहने के लिए। अजीब सी कश्मकश थी दिल में। ऐसा तो उसने कभी महसूस नहीं किया था, दिल और दिमाग दोनों उसे अलग-अलग दिशा में दौड़ा रहे  थे। उसने अब सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया था।

❤सोनिया जाधव

#लेखनी उपन्यास

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2 Comments

Simran Bhagat

12-Jan-2022 07:20 PM

Very good 👍👍

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Seema Priyadarshini sahay

11-Jan-2022 05:59 PM

बहुत ही बढ़िया👌👌

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