उत्तरायणी(घुघुतिया)
जन्म मेरा दिल्ली का है, यहीं पली-बढ़ी हूँ। लेकिन मूलतः मैं उत्तराखंड की हूँ। हमारे यहाँ सक्रान्त को उत्तरायणी के नाम से भी जाना जाता है। कुमाऊं में इसे घुघुतिया और गढ़वाल में खिचड़ी सक्रान्त के नाम से जाना जाता है। सक्रान्त से दिन बड़े और रातें छोटी होनी लगती है, यानि कि सर्दियां थोड़ी नरम पड़ने लगती है।
इस दिन हमारे घर में नहाना अनिवार्य होता है। मम्मी सबके नहाने के पानी में थोड़ा-थोड़ा गंगाजल मिला देती है क्योंकि इस दिन गंगास्नान को बहुत महत्व दिया गया है हमारे शास्त्रों में। अब गंगा स्नान तो मुमकिन नहीं, इसलिए मम्मी गंगा जल मिलाती है नहाने के पानी में।
नहा-धोने के बाद मैं और मेरा भाई नए कपड़े पहनकर घर के बड़ों को प्रणाम करते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं और बदले में हमें बड़े अपनी इच्छानुसार पैसे देते हैं।
मम्मी उस दिन घुघुति बनाती है, जो खाने में बहुत स्वाद लगती है। दरअसल घुघुति आटे, पानी और गुड़ को मिलाकर बनायी जाती है। यह अलग-अलग आकार की होती है जैसे तलवार, कोई फल या फूल इत्यादि। अलग-अलग आकार में बनाने के बाद उनको तला जाता है और एक माला में पिरोया जाता है और वो माला छोटे बच्चों को पहनायी जाती है।
बचपन में एक बार मैंने पहनने से मना कर दिया था, तो मम्मी ने घुघुति की माला की एक बड़ी ही रोचक कहानी सुनाई थी। चलो आज वो कहानी आपको भी सुनाती हूँ, इसी बहाने मेरी भी बचपन की यादें ताज़ा हो जाएंगी।
एक राजा था कल्याण चंद नाम का। उसका कोई पुत्र नहीं था। राजा के मंत्री की उसकी संपत्ति पर नजर थी। भाग्यवश बड़ी मन्नतों के बाद राजा के घर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम निर्भय चंद रखा गया। रानी अपने पुत्र को प्यार से घुघुति बुलाती थी। उसके गले में एक घुँघरू वाली मोतियों की माला थी , जिसे पहनकर वो पूरा दिन इठलाता था। जब भी वो जिद करता तो रानी कहती थी कि तेरी माला काले कौवे को दे दूंगी, तो वो चुप हो जाता था। वो आवाज़ लगाती थी काले कौवे आजा, घुघुति की माला खा जा, और ढेर सारे कौवे इकहट्टे हो जाते थे। इस तरह कौवे और घुघुति के बीच गहरी दोस्ती हो गयी थी।
एक दिन मंत्री घुघुति का अपहरण कर उसे जंगल में छोड़ने के लिए ले जा रहा था कि तभी कौवों ने देख लिया और सबने मंत्री को घेर कर उस पर हमला कर दिया। उसमें से एक कौवे ने घुघुति की माला उतार ली, जिसे देख घुघुति ज़ोर से रोने लगा। कौवे ने वो माला जाकर महल में पेड़ की ऊपर टांग दी। रानी ने माला को पहचान लिया, और कौवा रानी के चारों तरफ मंडराने लगा। राजा और उसके सैनिको ने कौवे का पीछा किया और जंगल में एक पेड़ के नीचे घुघुति रोता हुआ मिला। राजा ने उसे सीने से लगा लिया, कौवों का धन्यवाद किया और घुघुति को लेकर महल की ओर चल दिया।
घुघुति ने अपनी माँ को मीठा बनाने के लिए कहा, जिसे उसने कौओं को खिला दिया। आटे और गुड़ से बने इस पकवान का नाम, इसी कारण घुघुति पड़ा।
शहर में तो आजकल बच्चे घुघति की माला नहीं पहनते, लेकिन गाँव में आज भी माँए अपने बच्चों को घुघुति की माला पहनाती हैं, बच्चे सारा दिन इसे पहनकर घूमते हैं और कौओं को आवाज़ लगाते हुए यह गाना गाते हैं---
काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'।
'लै कौवा भात में कै दे सुनक थात'।
'लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़'।
'लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़'।
'लै कौवा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे'।
माँ आज भी यह गाना गाती है सक्रान्त को। घुघुति की माला तो नहीं पहनती, लेकिन घुघुति मैं बड़े मज़े से खाती हूँ।
गर्व है मुझे अपने पहाड़ की संस्कृति पर, सीधी-सरल लेकिन पहाड़ सी मज़बूत।
❤सोनिया जाधव
# लेखनी मकर सक्रांति
Inayat
22-Jan-2022 11:03 PM
काफी अच्छी यादें....
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AAHIL KHAN
12-Jan-2022 03:28 PM
Very nice
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Swati chourasia
11-Jan-2022 07:19 PM
Very nice 👌
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