सांवरी–३
सांवरी – ३
पिछले भाग से आगे –
पिक्चर देख कर चारों बड़ी मस्ती में हीरो हीरोइन की बाते करते हंसी ठिठोली करते डेरे की तरफ चल दिए। आज़ का दिन खास था, सांवरी तो खुशी से आसमान में उड़ रही थी, धीरू और बाकी दोनों लड़कियां भी इतने सारे पैसे देख कर बहुत खुश थे। सांवरी को पूरी उम्मीद थी इतनी बड़ी भीड़ थी कोई तो होगा जो उसका डांस देख कर उसको आगे फिल्मों में चांस दिलवा सकता होगा, फिर वो भी आज वाली फिल्म की हीरोइन जैसे बड़े परदे पर डांस करेगी, लोग उसका डांस देख कर सीटियां बजाएंगे।
कौन जाने वो लंबी गाड़ी में कौन था जो धीरू को इतने बड़े बड़े नोट दे गया और फिर उसने एक कागज भी तो दिया था, के लिखा है उसमें पर धीरू को और उनको तो पढ़ना आवे कोई ना।
धीरू बता रिया, मिलने की कैवे सै, क्या सच्ची उसको म्हारा डांस पसंद आ गया।
तभी सामने छोले भटूरे की रेड़ी दिख गई, फट धीरू का हाथ थामा और बोली, चलो जी, हमने तो भूख लागरी सै, कोण कोण खावेगा भटूरे छोले, फिर बिना किसी का जवाब सुने झट से रेड़ी वाले को बोली, भाई 4 प्लेट बढ़िया से तीखे छोले भटूरे लगा दे। चारों दोस्तों ने मिल कर छक के छोले भटूरे खाए, फिर थोड़ा आगे से बर्फ की स्पेसल काली खट्टी चूसनी भी खाई।
ये सब खा कर आराम से बाजार की रौनक का मजा लेते बस्ती की तरफ चल दिए।
चारों थोड़ा आगे बढ़े ही थे, कि एक जीप उनके थोड़ा आगे आ कर रुक गई। उसमे सवार 4/5 लड़के घूर घूर के सांवरी और उसकी सखियों को देखने लगे। जैसे ही सांवरी जीप के पास से गुजरी, एक लड़के ने सीटी मार कर कहा, आए हाय कहां जा रही हो नागिन आ जाओ बंगले पे नागिन डांस करेंगे और मजे भी लेंगे।
अचानक सांवरी वापस मुड़ी, और बोली, एक बार फिर से बोलना बाबू जी, क्या बोल रहे थे, उसको मुड़ता देख धीरू और बाकी दोनों लड़कियां भी घूम कर खड़ी हो गई।
जीप में बैठे लड़के किसी बड़े घर की बिगड़ी औलाद दिख रहे थे। शरीर से हट्टे कट्टे थे और चेहरे से ही कुछ बदमाश से दिख रहे थे।
उनमें से एक जीप से कूद कर सांवरी के सामने आ खड़ा हुआ, उसका पहाड़ सा गठा बदन और 6 फुट की काया किसी भी आम लड़की को विचलित कर सकती थी।
उसने आंख मारते हुए कहा, हमने कहा नागिन रानी हमारे बंगले पर चलो, पूरी रात मौज करेंगे, तुम जो कीमत चाहो.... बाकी के शब्द अभी उसके मुंह में ही थे, सांवरी ने बिजली की तेजी से कमर से कटार निकाल कर उसकी गर्दन पर टिका दी, ये सब इतना अचानक हुआ कि किसी को सोचने समझने का मौका ही न मिला।
सांवरी ने तीखी आवाज में कहा, बाबू जी, हम नाचने का धंधा करने वाले लोग हैं, ऐसी बातें अपने घर की लुगाइयां से करियो, इब एक शब्द भी होर बोला ना तो यो कटारी थारी गर्दन को ऐसे साफ कर देगी जैसे गाजर मूली। थारे जैसे लोगों को मैं खूब जाणु थमको सड़क पे चलती हर छोरी रांड सी दीखे।
पर हर कोई अपना जिस्म ना बेचता, समझे की ना..
उस लड़के का चेहरा इस अत्प्रयाशित हमले से एकदम पीला सा पड़ गया था, उसके बाकी साथी भी जड़वत जीप में बैठे थे। धीरे धीरे लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी।
सांवरी ने उसे जीप की तरफ धकेल दिया, और बोली, म्हारा नाम सांवरी सै, नागिन सी जहरीली हूं, याद राखियो, दोबारा म्हारा रास्ता में आने की कोसिस ना करियो इबकी गर्दन काट के हाथ में धर दूंगी।
चल धीरू आपणे डेरे पे.....
सालाें ने सारा मजा ही खराब कर दिया, अपनी कटार कमर में खोंसती सांवरी अपनी बस्ती की तरफ फिर से अपनी मस्त चाल में चल दी।
डेरे पे पहुंच के देखा तो बापू भी आ चुका था, अपना काम करके और अपनी खाट पे बैठ के हुक्का गुड़गुड़ा रहा था। कजरी भी आराम से पास बैठी बीच बीच में हुक्के के कश मार रही थी।
सांवरी को आते देख के कजरी बोली आ गई लाडो आज तो घणी देर लगा दी।
अरे अम्मा बूझ ना आज तो घणा ही चोखा दिन रिया, यो देख, कहते हुए उसने कजरी के हाथ पर दो पांच सौ के नोट रख दिए
भंवरलाल बोला, रे छोरी कहीं लांबा हाथ मार दिया के, या लाटरी लाग गी, इत्तो सारो पिसो कहां ते ले आई तू।
बापू, यो थारी छोरी का कमाल सै, पता बापू आज घणी चोखी कमाई हो गई, एक बार में ही 400/500 आदमी म्हारा नाच देखे खातर आ गियो और एक बड्डी सी गाडी वाले साब तो इतना खुस हो गिया के ये 1000 रुपिया दे गया, और हमको बुला के भी गियाे उनकी हवेली पे। एक सो में ही हमने 3500 से ज्यादा रुपिया मिल गियो।
बस फिर के था धीरू और हम सब वहीं वो हाल में पिचकर देखे......
अच्छा अच्छा, इब कुछ खा भी ले..... शाम होने आई, और भूखी फिर री.... कजरी बीच में ही बात काट के बोली।
ना अम्मा हम तो छोल्ले भटूरे खा के आए और काला खट्टा भी..... आज घणी मौज करी हमने।
सांवरी ने जानबूझ कर जीप वाली घटना मां बापू को नहीं बताई वो बेकार ही परेशान होते... वैसे भी ऐसे किस्से आए दिन उसके साथ होते थे और वो जानती थी ऐसे लोगों को कैसे सीधा करना है।
शायद ये उसकी किस्मत ही थी, वैसे भी लोगों की नजरों में गरीब बंजारों की इज्जत का कोई खास मोल है भी नहीं, शायद सड़कों पर नाचने गाने वालों को लोग इंसान ही नही समझते, और फिर कुछ दोष उनका भी था जो थोड़े से पैसों के लालच में और ज्यादातर भूख की लाचारी में शरीर की अस्मत का सौदा कर बैठती थीं। शायद इसलिए भी सांवरी बंजारों के इस जीवन से बाहर निकलने के सपने देखती रहती थी।
सांवरी सपना देखती, कब वो इस दुनिया से बाहर निकलेगी, कब ये रोज रोज की सफर की जिंदगी खत्म होगी, हमेशा सोचती, जब महारे पास घणा सारा पिसा आ जाएगा तो हम भी अपनी एक हवेली बनाएंगे, जिसमे बापू, मां, धीरू, धीरू का परिवार, वो और उसके बच्चे रहेंगे।
उसने सोच रखा था वो अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाएगी, फिर उसके बच्चे भी स्कूल की डरेस में स्कूल जायेंगे और खूब गिटर पिटर अंग्रेजी बोलेंगे। हां वो उनको अपनी कला भी सिखाएगी पर उसके बच्चे गली गली भटकेंगे नही।
शाम होने आई थी, कजरी ने खाना बना दिया था, सब ने साथ बैठ कर बाजरे की रोटी और दाल के साथ मिर्ची, लहसन और प्याज की चटनी का आनंद लिया। और फिर बापू अपनी खाट पे बैठ के हुक्का गुड़गुड़ाने लगा, कजरी चौका चूल्हा समेटने लगी और सांवरी एक बार फिर आसमान के तारों को देख कर अपने सपने सजाने लगी।
आसमान का पूरा चांद हर तरफ रोशनी बिखेर रहा था, धीरे धीरे बंजारों की बस्ती में लोग अपने अपने डेरे में सोने की तैयारी कर रहे थे।
अचानक भंवर लाल को खांसी का एक दौरा सा पड़ा, पिछले कुछ दिनों से भंवरलाल को खांसी ने काफी परेशान किया था, उसने अपनी और कबीले के बुजुर्गों के सलाह से बहुत जड़ी बूटी का इलाज किया पर मर्ज बढ़ता ही जा रहा था।
सांवरी, अपनी खाट से चिल्लाई, बापू तू हुक्का पीना कब छोड़ेगा, यो हुक्का तेरी जान ले के मानेगा, अम्मा री, इब से बापू को चिल्लम न दियो, और न आप पियो, मने देखी न तो चिल्लम ही तोड़ दूंगी थारी।
भंवरलाल की खांसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी, सांवरी दौड़ कर उसकी खाट के पास आई और जोर जोर से उसकी कमर सहलाने लगी, तभी भवरलाल को अचानक उल्टी आई, चांद की हल्की रोशनी में सांवरी ने महसूस किया कि कुछ तो गड़बड़ है। वो जोर से कजरी को आवाज देकर बोली, अम्मा री, लालटेन इदर को ले के आ, देख बापू ने कुछ उल्टी सी करी।
कजरी हाथ का काम छोड़, भुनभुनाती हुई आई, अरे कुछ न तंबाकू का पानी होगा, सारा दिन तो हुक्का पिता रवे है, सुनता भी को नी।
लालटेन की रोशनी में देखा तो दोनो एक क्षण के लिए सकते में आ गई, सामने लाल लाल रंग जमीन पर बिखरा पड़ा था, यो तो खून है, कजरी बोली, जा बेटा दौड़ के मुखिया को बुला ला, मने तो घणी गड़बड़ लाग री सै।
सांवरी भाग कर मुखिया को पकड़ लाई
मुखिया जी ने खून का धब्बा देखा तो वो भी चौंक पड़े।
फिर बोले, बेटा इब लग रा भंवरे का रोग बढ़ता जा रा, तीन महीने से अपना इलाज चल तो रहा पर यो खून आना तो ठीक न है।
क्यों भंवरे पेला भी आयो के खून, मुखिया ने पूछा।
ना मुखिया जी, आज ते पेला तो आयो को नी।
अच्छा, बेटा सांवरी, तू मेरे कने आ, मैं कुछ दवा दूं, और कल को भंवरे को बद्दे डागदर को दिखाने मैं जाऊंगा भंवरे के साथ।
तम मां बेटी फिकर ना करो कुल देवता सब भली करेंगे.....
क्रमश:
आभार – नवीन पहल – १२.०१.२०२२ ❤️🌹🙏👍
# लेखनी उपन्यास प्रतियोगिता हेतु
Barsha🖤👑
01-Feb-2022 08:33 PM
Nice part
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Seema Priyadarshini sahay
17-Jan-2022 05:27 PM
बहुत सुंदर राजस्थानी भाषा शैली में लेखन
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Shivlal sager
12-Jan-2022 02:12 PM
Nice
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नवीन पहल भटनागर
12-Jan-2022 06:44 PM
Thanks
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