सांवरी–४

सांवरी


गतांक से आगे–

अगली सुबह मुखिया 8 बजे ही भंवरलाल के डेरे पर आ गया, और आवाज लगाई, भंवरे, तयार सै ना, चालणा है बड़े हस्पताल।
भंवरलाल जल्दी से पगड़ी बांधता हुआ बाहर आया, बोला मुखिया जी थम पधारो, हुक्का सुलगा रखा है, दो कश लो, तब तक कजरी चा बना के ले आवे, एक टुकड़ा खा के चालूं थारे कने।
मुखिया जी खाट पर बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाने लगे, कजरी जल्दी से दो गिलासों में चाय और थाली में रोटी सब्जी रख कर ले आई, थोड़ी देर में खा पीकर दोनो चलने को तैयार हुए तो सांवरी बोली, बापू मैं भी चल री थारे कने, दो मिनट दो मने।
मुखिया जी बोले बेटा तू अपने काम देख मैं जा रिया ना भंवरे के साथ, तू चिंता न करे, वापस आके सब हाल बता दूंगा। भंवरे को कुछ न हुआ कुछ दिन अंग्रेजी दवा खावेगा, वापस बैल सा तगड़ा हो लेगा। तू फिकर ना करे, में हूं ना। वैसे भी वहा बढ़े डागदर साहब मने जाने सै।
ठीक सै मुखिया जी..... जैसा थम बोलो। कह कर वो डेरे के अंदर चली गई।
सवाई मान सिंह अस्पताल के डॉक्टर श्रीवास्तव को मुखिया बहुत दिनो से जानता था, उसने पहले ही डॉक्टर साहब से बात कर ली थी की वो भंवरलाल को उनके पास  दिखाने ला रहा है। डॉक्टर श्रीवास्तव बहुत ही अनुभवी थे उन्होंने जीवन के करीब 30 साल लोगों की सेवा में गुजार दिए थे, लोग कहते उनके हाथों में जादू है, कठिन से कठिन रोग उनके अनुभव से चुटकियों में ठीक हो जाते हैं, वो एलोपैथी के अलावा आयुर्वेदिक और होम्योपैथी में भी बहुत कुशल हैं, इसी वजह से वो समय समय पर बंजारों से अलग अलग जड़ी बूटियां खरीदते थे।
अस्पताल में तो लोगों की भारी भीड़ थी, राजस्थान का प्रमुख अस्पताल होने की वजह से दूर दूर से लोग वहां इलाज करवाने आते हैं। मुखिया के साथ साथ भंवरलाल डॉक्टर श्रीवास्तव के कमरे के बाहर अपनी बारी का इंतजार करने लगे, उनके कमरे के बाहर भी लोग बहुत बड़ी तादाद में उनसे मिलने के लिए बैठे थे। मुखिया ने बाहर बैठी नर्स को अपना नाम लिखवा दिया था, और संदेश भी भिजवा दिया था।
करीब एक घंटे बाद डॉक्टर श्रीवास्तव ने बाहर निकल कर मुखिया को आने का इशारा किया, दोनो ने डॉक्टर साहब के रूम में प्रवेश किया। कुशल क्षेम और भंवरलाल से कुछ प्राथमिक सवाल करके डॉक्टर साहब ने उसका बारीकी से निरीक्षण किया, करीब 15/20 मिनट जांच करने के बाद वो अपनी कुर्सी पर आ कर कुछ गहन सोच में डूब गए।
आखिर मुखिया ने पूछ ही लिया, डागदर साहब, कोई डरने की बात तो ना है।
हम्म्म.... बात तो चिंता की है, लक्षण अच्छे नहीं हैं, फिर भी मैं कुछ दवाएं और टेस्ट लिख रहा हूं, आप ऐसा करो इनके सारे टेस्ट आज ही करवा दो, इसमें से ज्यादातर टेस्ट यहीं हो जायेंगे। एक या दो दिन में सभी टेस्ट की रिपोर्ट आ जायेगी फिर कुछ बताना ठीक होगा।
कह कर डॉक्टर साहब ने एक पर्चे पर सारी दवाएं और टेस्ट लिख दिए।
जिसमे खून जांच, बलगम की जांच, x ray, और बहुत सारे टेस्ट थे।
डॉक्टर साहब ने एक वार्ड बॉय को उनकी मदद करने की ताकीद की और फिर मुखिया को मुखातिब हो कर बोले, ये टेस्ट रिपोर्ट जब मेरे पास आ जायेगी तब आप इनको एक बार फिर लेकर आना।
फिर भंवरलाल को पूछा, तुम बीड़ी पीते हो क्या?
ना हुजूर हम तो हुक्का ही पीवें, वो बोला
देखो आज से हुक्का बिलकुल बंद, तंबाकू जहर है तुम्हारे लिए। अगर ठीक होना है तो हुक्के को हाथ भी नहीं लगाना। ठीक है, जाओ अब। इतना कह कर वो दूसरे मरीज को देखने लग गए।
मुखिया और भंवरलाल ने डॉक्टर साहब को खम्मा घणी, कह कर वार्ड बॉय के साथ बाहर का रुख किया, दवा लेते टेस्ट करवाते करवाते शाम हो आई, फिर दोनो डेरे की तरफ चल पड़े।

मुखिया जी के कहने से सांवरी रुक तो गई पर उसका दिल बहुत उचाट हो रहा था। बार बार उसका ध्यान बापू की तरफ जा रहा था और मन मन ही प्रभु से प्रार्थना करती, हे प्रिभू, म्हारे बापू को कुछ न होना चाहिए। सही सलामत राखियो म्हारे बापू को।
आज उसका नाचने में और गाने में भी मन नहीं लग रहा था, बार बार धीरू को बोलती, चल डेरा पर चालें, बापू और मुखिया आ गिए होंगे हस्पताल से, बड़े डॉक्टर ने पता नी के किया होगा।
आखिर उसकी बार बार की रट के आगे धीरू को भी झुकना पड़ा और वो लोग तकरीबन खाली हाथ ही डेरे की तरफ लौट चले।
वैसे भी सांवरी आज ना तो अच्छे से गा पा रही थी ना ही उसके नाच में हमेशा जैसी धार थी, वो तो अपने बापू के ख्यालों में ही खोई सी थी।
डेरे के पास पहुंचने वाले ही थे, कि अचानक वही लंबी सी काली गाड़ी उनके पास आकर रुक गई। गाड़ी का दरवाजा खोल कर वही पहलवान जैसा ड्राइवर बाहर निकला और धीरू को बोला अगर आज का काम खतम हो गया है तो चलो मेरे साथ।
किदर, धीरू के बोलने से पहले सांवरी बोल पड़ी।
कुंवर साहब की हवेली पर, कुंवर साहब आप लोगों से मिलना चाहते हैं।
आज कहीं ना जारे हम, बापू की तबीत ठीक न सै, बोल दियो अपने कुंवर से।
धीरू ने सांवरी का कंधा दबाया, बावरी होरी के, बड़े लोगों का के किसी ओर को बुला लिया तो फेर देखती रहियो ख्वाब बड़े बनने के, अरे कुछ देर की बात है सुन के आ जावेंगे उनकी बात। कौनसा आज के आज पिरोग्राम हो गा।
फिर ड्राइवर से बोला, भाई साहब इसकी बात का बुरा ना मानियो, थोड़ी बावरी सी है यो, पर दिल की बड़ी मीठी है। इसके बापू की तबियत खराब सी होरी सो बेचारी परेशान सी है, अच्छा ज्यादा टैम तो ना लगेगा।
भाई बड़े लोग हैं उनकी बात वो हो जाने, कितना टाइम लगेगा मैं क्या कहूं, बस मुझे तो तुमको और इसको लाने को भेजा।
अच्छा, चल देखूं के चावे से थारा कुंवर सा.... सांवरी बोली, पर एक बात सोच ले आज म्हारे ते डानस ना होने का, मूड बड़ा खराब सै म्हारा.... बता दिए उसने।
सांवरी और धीरू को लेकर कार वापस शहर की तरफ चल दी....
सांवरी और धीरू के लिए कार में बैठना भी एक अनुभव था। ये तो एक नई ही दुनिया थी, बाहर गर्मी थी पर अंदर ठंडा ठंडा, गाना भी चल रहा था।
करीब 40 मिनट के सफर के बाद कार एक बड़ी महलनुमा हवेली के सामने पहुंच गई, शहर से थोड़ा अलग हट कर इस हवेली की अपनी ही अलग शान थी, ऊंचे ऊंचे पुराने नक्काशी दार बड़े बड़े दरवाजे, दरवाजे के पीछे हरा भरा एक बड़ा सा दालान, जिसमे चारो तरफ कई पेड़ और फूलों की क्यारियां थी बीच में बना पानी का एक फव्वारा, जिसके तालाब में कुछ कमल खिले हुए थे साथ ही कुछ बतख और हंस तैर रहें थे।
बीच में बनी शानदार चमकती इमारत, जिसे देख कर ही राजसी वैभव और शान शौकत दिखाई पड़ रहा था।
सांवरी और धीरू फटी आंखों से सब कुछ देख रहे थे मानो कोई सपना हो। सामने लाइन से बहुत सी लंबी लंबी गाडियां खड़ी थी। पथरीली बजरी की राह से चल कर गाड़ी हवेली के मुख्य द्वार पर आ कर खड़ी हुई, दरवाजे पर खड़े दो कद्दावर दरबानों में से एक ने आगे बढ़ कर गाड़ी का दरवाजा खोला और फिर अदब से सर झुका कर प्रणाम किया।
दूसरे दरबान ने हवेली का मुख्य द्वार खोल दिया और वो भी अदब से प्रणाम की मुद्रा में उनको अंदर आने का इशारा करने लगा।
सांवरी को लग रहा था जैसे वो कोई स्वप्न देख रहीं है, उसने कोहनी मार कर धीरू को पूछा, ये कोण सा सपना  से धीरू..…... मने तो कुछ समझ को नी आवे...
चुप कर बावरी, मने के पता....
मुख्य द्वार से अंदर कदम रखते ही दोनो को लगा की पांव जमीन में धंस गए, पूरे फर्श पर मखमली कालीन बिछा था।
ड्राइवर ने उनको लेजा कर एक बहुत बड़ी आलीशान हाथी दांत की बनी मेज़ के पास रखी दो बड़ी बड़ी कुर्सियों पर बिठा दिया, तभी कहीं से एक नौकर, झक सफेद लिबास में, चांदी की एक ट्रे में चांदी के ही गिलासों में कुछ रंगीन सा शरबत लेकर आ गया।
शरबत थमा कर, पीने का इशारा कर ड्राइवर ये कह कर की अभी कुंवर साहब आकार मिलेंगे, मुख्य द्वार से बाहर चला गया।
हवेली की शान ही निराली थी, ऐसा तो फिल्मों में भी देखने नही मिलता। छत से लटकते झूमर, दीवारों पर नक्काशी, चारो तरफ रखे कीमती सामान, किसी राजसी ठाठ का ही प्रतीक जान पड़ते थे।
सांवरी तो इस सब में खो सी गई....

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – १३.०१.२०२२ 💐💐💐🎉❤️❤️

आगामी अंक में, देखें क्या चाहते हैं कुंवर साहब सांवरी से

,# लेखनी उपन्यास प्रतियोगिता हेतु


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1 Comments

Seema Priyadarshini sahay

17-Jan-2022 05:32 PM

बहुत खुबसुरत चित्रण।

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