ताले

ताले


ताला और चाभी, अजब विषय है, सोचा आज क्यों न इसी विषय पर कुछ बातें की जाएं
विषय पढ़ते ही पड़ गया ना अक्ल पर ताला , भाई मेरी अकल पर तो पड़ ही गया, सोचने लगा कहां मिलेगी वो चाभी जिस से खुलेगा दिमाग का ताला। 

फिर अचानक याद आया, अरे अलमारी में बन्द वो चिराग किस दिन काम आएगा, कब तक वो जिन्न उसके अंदर बैठ कर सुस्ताएगा। या फिर अलीबाबा और चालीस चोरों का सरदार, उसे बुला कर कहता हूं कि दे वो मंतर मार - खुल जा सिम सिम पर बहुत कोशिश की पर उसका नाम याद नहीं आया, किस नाम से सेव किया था ये भी गया भुलाया।
जब ढूढने चला चिराग तो धर्मपत्नी से याद दिलाया पिछले ही हफ्ते बेचा कबाड़ में, उसे बेच कर तेल था घर में लाया।
अब मैं हताश परेशान कैसे लिखूंगा आज का ये किस्सा मेरी किस्मत दे रही मुझको घिस्सा, लटका दिमाग पे एक ताला और चाभी का ये किस्सा।
खैर साहब, फिर एक नया आइडिया मेरे मन में फूटा, क्यूं ना पढ़ के रचना सबकी थोड़ा थोड़ा ले लूं और बना के नया पकवान सबके दिल में ठेलूं।
पर इसमें भी तो है एक लोचा भारी, सबकी रचना पढ़ कर मुझको करनी होगी तारीफ भी ढेर सारी। यूं तो मुझको बहुत है आता बातें खूब बनाना, पर लोगों की शान में नहीं सुहाता पुल तारीफों के सजाना।
सबके अपने अपने किस्से, सबके अपने नखरे। कोई कहे तुम दोस्त न समझो हम हैं तुम से छोटे। कोई कह रहा ह्रदय दिखा रहे तुम हो बहुत ही खोटे।
चलिए बहुत हुआ करना मेरा बातें इधर उधर की।
अब बात करें तालों की और उनकी की(अंग्रेज़ी वाली) की।

तो साहब यूं तो दुनिया में है ताले किस्म किस्म के, हर ताले की चाबी जरूर है होती। न न मैं नाम तालों की बात नहीं कर रहा, मैं बात कर रहा हूं उन तालों की जो दिखते नहीं पर होते बड़े ही मजबूत।
किस्मत का ताला, जिसकी चाबी कोई कहता मेहनत तो कोई लगन तो कोई कह रहा स्वपन।
शर्म हया का ताला, जिसकी चाबी उसके पास भी नहीं जो खुद को उस ताले में कैद कर के बैठा है।
लोक लाज का ताला, जिसके साए में कितने अरमान दबाए जाते है, कितने मासूम जीते जी दफनाए जाते हैं।
अज्ञान का ताला, कहते हैं ज्ञान उसको खोलने की चाबी है पर जब ज्ञानी ही अज्ञानी हो जाए तो उसकी अक्ल का ताला कोई न खोल पाए।
शक का ताला, जिसके दिल और दिमाग पर ये ताला लग जाए, वो तो खुद इसकी चाबी खुद से बहुत दूर छुपा आता है और फिर चाहे उसे कितने भी सबूत के हथौड़े मारो ये ताला खुलता नहीं।
ये सारे ताले और न जाने कितने और ताले हम लोगों  ने अपने अपने दिलों पर लगा रखे हैं, और चाबी फेंक दीं है किसी गहरी अज्ञान की नदिया में जिसका न कोई ओर है ना छोर।
तो दोस्तों अपने अपने दिलों के ताले खोलो। अपनी आंखों से काली पट्टियां खोल दो। अपने मन से रूढ़ियों की जंजीरें हटा दो।
खुली हवा में, नई फिज़ा में सांस लो।

जानता हूं बहुत अनर्गल लिखा है, पर आज मैंने अपने समझदार दिमाग को ताले में बन्द कर के लिखा है।
आप भी दिल का ताला खोल के बताइएगा, कुछ समझ में आया।
मेरे तो कुछ पल्ले नहीं पड़ा। आपके पड़ा हो तो समीक्षा करके मुझे भी बतााााइएगा और अगर न भी समझ आए तो कृपया अपना वाला ताले में बंद करके मत आइएगा 😂😂😂😂

मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

 
शुक्रिया 

क्षमा याचना सहित - नवीन पहल - १३.०१.२०२२😂😂😂😂

# प्रतियोगिता हेतु



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6 Comments

Shrishti pandey

15-Jan-2022 11:34 PM

Nice

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Abhinav ji

14-Jan-2022 09:33 AM

Nice

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Punam verma

14-Jan-2022 08:53 AM

Bahut sundar

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