Shaba

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मैं स्त्री हूॅ॑

हां ..... मैं स्त्री हूॅ॑।

किसी नदी की तरह,
अविरल और निरंतर 
अपनी धुन में बहती हुई,
सबकी गंद समेटती हुई,
समय और जगह से ढलती हुई,
मेरा मन है उथला,
मेरे किनारों की तरह,
पर मेरा दिल है गहराई में कहीं,
हर कोई उतर नहीं पाता,
नापने को थाह मेरी,
मैं शांत हूॅ॑ जब तक
जीवन तेरा हूॅ॑,
खो दूॅ॑ जो धैर्य,
अपने ही किनारे तोड़ दूॅ॑,
मैं शांत हूॅ॑,
सरल हूॅ॑,
कोमल हूॅ॑,
मैं दया हूॅ॑,
प्रेम हूॅ॑,
जीवन की डोर हूॅ॑,
भूल  कर खुद को,
संवारती हूॅ॑ तेरा जीवन,
उतरकर मुझमें ही,
निखरता है तेरा मन ,
नकार नहीं मेरे अस्तित्व को,
जो सदा तेरी आदत है,
मैं भी रहूॅ॑ स्वच्छ और खिली,
यही सबकी जरूरत है,
मैं आदि हूॅ॑,
मैं शक्ति हूॅ॑,
रौद्र रूप भी धरती हूॅ॑
ना बना रास्ते मेरे लिए,
मैं अपनी मगन में बहती हूॅ॑।।

हां.... मैं एक नदी हूॅ॑।
मैं ही स्त्री हूॅ॑।।


✨✨✨✨✨✨✨✨

Shaba ❤️


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10 Comments

लाजवाब लाजवाब लाजवाब लाजवाब लाजवाब

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Author Pawan saxena

14-Jan-2021 09:30 PM

saba ji .. ab to apko purush ke bare me bhe likhna chahye ,... sabki commnts dekh kar laga

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स्त्री अपनी तारीफ में लिख सकती है लेकीन पुरुष अपनी तारीफ में क्यों नही लिख पाता आपने बहुत ही अच्छा लिखा है आपकी रचना और मकरसंक्रांति पर्व पर आपको ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं

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Shaba

14-Jan-2021 12:50 PM

आपको भी मकर संक्रांति की शुभकामनाएं 💐

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