सांवरी–६
सांवरी – ६
गतांक से आगे –
वो रात सांवरी ने आंखों आंखों में ही गुजार दी, बार बार कुंवरानी का चेहरा उसके सामने घूमता रहा,बार बार उनकी नम आंखें उससे विनती करती रही। कितनी बेबस लाचार और बेचारी दिख रही थी वो, उनकी बड़ी बड़ी उदास आखें उसके दिलो दिमाग से जा ही नही रही थी, मुंह से भले उन्होंने कुछ न कहा हो पर ऐसा लगता था मानो वो मन ही मन कह रही सांवरी मुझ पर ये अहसान कर दो, मेरी सूनी गोद भर दो।
फिर उसे कबीले का, बापू का मां का ख्याल आ जाता। कबीले में किसी को भी पता चला कि वो बिना ब्याह मां बन रही है तो कहर टूट पड़ेगा, बापू का हुक्का पानी बंद हो जायेगा, लोग उनको कबीले से निकाल बाहर फेंक देंगे, हो सकता है धीरू का बापू भी उनकी शादी न होने दे, हो सकता है मुखिया उसको कबीले में कदम ही न रखने दे, और मां वो तो बेचारी सोच सोच कर ही मर जावेगी।
फिर ख्याल आता अरे, मुंह मांगे दाम भी तो मिलेंगे, वो धीरू और अपने परिवार के साथ दूर चली जावेगी। कुंवर सा तो इतने अमीर इतने रसूख वाले आदमी सै उनके एक इशारे पर कुछ भी हो जावेगा।
पर बार बार उसे एक ही बात ख्याल आ रही थी, धीरू क्या सोचेगा, अगर उसने उसका साथ ना दिया तो। अगर धीरू ने ब्याह से इंकार ही कर दिया तो..... वो के करेगी, मां – बापू और धीरू के अलावा कौन है उसका इस दुनिया में......
यही सब सोचते सोचते कब रात गुजर गई पता ही न चला.... और भोर का चांदना सा होने लगा.... और फिर अपने ही बैचेन सपनो में खोई सांवरी को सुबह की ठंडी हवा ने थपकी देकर सुला दिया।
दिन चढ़े आंख खुली देखा मां चूल्हे पर चा बना री थी.... रात कि बात को भूल कर सांवरी झटपट हाथ मुंह धो कर आ गई और गरमा गरम चा सुडकने लगी।
बापू की तबियत थोड़ी संभली थी, अंग्रेजी दवा असर दिखा रही थी, वो आराम से खाट पर बैठा चा के साथ रोटी खा रहा था।
अचानक कजरी ने सांवरी से पूछ लिया, कल किस की हवेली पर गई थी, के बात हुई वहां, कोई पिरोग्राम सै के...., अरे कुछ न मां तू तो जाने बड़े लोगों की बड़ी बड़ी बातें, धीरू ते ही हुई सै बात उसको ज्यादा पता.... मने को ना पता...... कह कर सांवरी ने कजरी के सवाल को गोल कर दिया।
साथ ही उसने सोच लिया, जब तक धीरू कुछ नही पूछेगा वो बच्चे वाली बात अपनी जुबान से न कहेगी।
ये सोच कर उसने खुद को आश्वस्त किया और आने वाले दिन की तैयारी में जुट गई।
नियत समय पर धीरू और दोनो सहेलियां आ गई, और सांवरी सब कुछ भूल कर अपनी कला और रोजी रोटी कमाने में मशगूल हो गई।
दिन के दौरान कई बार उसने धीरू के मन को टटोलना चाहा पर वो तो जैसे कल की सारी बातें ही भुला बैठा था। शायद उसे भी मंजूर नहीं था कि उसकी होने वाली लुगाई किसी और का बच्चा अपनी कोख में पाले। उसकी उदासीनता देख कर सांवरी ने सोच लिया की वो इस बारे में अब कुछ नही सोचेगी, आखिर उसका मरद नही चाहता तो ना सही। ये सोच कर उसने भी कुंवर और उनकी लुगाई का ख्याल मन से झटक दिया और दोबारा पूरे मनोयोग से अपने काम में खुद को समर्पित कर दिया।
अगले दिन, मुखिया सुबह 7 बजे भंवरलाल के डेरे के बाहर आ खड़ा हुआ और थोड़ी देर में मुखिया और भवरलाल, अस्पताल की तरफ चल दिए, सांवरी ने फिर जोर देकर कहा था की वो भी अपने बापू के साथ जाना चाहती है पर मुखिया जी ने प्यार से उसे झिड़क दिया, ये कह कर की अभी उसकी कोई जरूरत नही, डागदर साहब से दवा ही तो लानी है, वो हम कर लेंगे। तू अपने काम पे ध्यान दे।
अस्पताल में डॉक्टर श्रीवास्तव के कमरे के बाहर रोज की तरह मरीजों का मेला लगा हुआ था।
मुखिया ने जा कर नर्स को भंवरलाल का नाम लिखवा दिया और अपनी बारी का इंतजार करने लगे।
करीब दो घंटे बाद भंवरलाल का नंबर आया, वो और मुखिया डॉक्टर साहब के कमरे में पहुंचे।
डॉक्टर साहब ने हल्के से मुस्कुरा कर दोनो का अभिवादन स्वीकार किया, उनके इशारे पर उनके असिस्टेंट ने भंवरलाल की सारी रिपोर्ट उनके सामने रख दी, और डॉक्टर साहब ने एक एक रिपोर्ट को पढ़ना और देखना शुरू किया। जैसे जैसे वो रिपोर्ट देखते जा रहे थे उनके चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे।
मुखिया और भंवरलाल चुपचाप उनके कुछ कहने का इंतजार कर रहे थे।
सारी रिपोर्ट देख कर, डॉक्टर श्रीवास्तव ने एक गहरी सांस ली और कुछ सोच की मुद्रा में लीन हो गए......
भंवरलाल ने इशारे से मुखिया को बोला.....…
मुखिया भी थोड़ा घबरा सा गया था, उसने पूछा, डागदर साहब, के आयो रिपोट मा, सब ठीक सै ना.....
नहीं...... ठीक नही है.....जिसका डर था वही हुआ, भंवर लाल को गले का कैंसर है, ऐसा रिपोर्ट से पता चलता है, पर कैंसर कितना फैल चुका है ये जानने के लिए हमें इनको हॉस्पिटल में दाखिल करना होगा और एक छोटा सा ऑपरेशन कर के देखना होगा।
फिर उन्होंने सामने दीवार पर टंगे मनुष्य के अंदरूनी ढांचे की तस्वीर की तरफ इशारा कर के बताना शुरू किया, भंवरलाल, तुम्हारा रोग अभी तुम्हारे ध्वनि तंत्र में फैला है और इसको यहीं रोकना जरूरी है, ये देखो इसके साथ हवा और खाने की पाइप यानी नालियां हैं यदि कैंसर इनमे से किसी भी नाली तक पहुंच गया तो रोग लाइलाज हो जायेगा।
इसलिए हमें तुम्हारे गले की बायोप्सी, यानी जिस हिस्से में कैंसर है उसका छोटा सा हिस्सा निकाल कर देखना होगा की बीमारी का विस्तार कहां तक है, इस जांच के बाद ही हम आगे का इलाज क्या होगा उसके बारे में फैसला ले पाएंगे।
पर ध्यान रहे, हमारे पास समय ज्यादा नहीं है, इस लिए तुम जल्दी से अपना छोटा ऑपरेशन तुरंत करवा लो, ये काम अगले हफ्ते में ही हो जाना चाहिए।
आप लोग इनका नाम लिखवा कर ऑपरेशन की तारीख ले लो।
और एक बात और, बायोप्सी के बाद कैंसर के फैलने की रफ्तार कई गुना बढ़ जाती है इसलिए आगे का इलाज भी तुरंत शुरू हो जाना चाहिए।
डागदर साहब, ये सब में पीसो कितने लाग जा सी, मुखिया ने पूछा।
देखो मुखिया ये तो सरकारी अस्पताल है, यहां ज्यादा खर्च नही आयेगा, दोनो ऑपरेशन का खर्च सरकार उठाएगी, पर यहां समय पर जगह मिलने में बहुत मुश्किल आती है।
अस्पताल एक है और लोग पूरे राज्य से आते हैं।
हां अगर किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में करवाओगे तो कम से कम 3/4 लाख रुपए तो खर्चा आ ही जाएगा।
अब तुम ये पर्चा लेकर बाहर ऑफिस से ऑपरेशन की तारीख ले लो, और हां दोनो ही ऑपरेशन का लिखा है तो आप लोग एक साथ दोनो तारीख ले लेना।
इतना कह कर डॉक्टर साहब ने पर्चा मुखिया के हाथ में थमा दिया, और कंपाउंडर को उनकी मदद करने को कह कर दूसरे मरीज को देखने लगे।
अस्पताल के एडमिशन वाले कक्ष के आगे बहुत लंबी लाइन लगी थी।
करीब 2 घंटे बाद जब नंबर आया तो क्लर्क ने रजिस्टर खोल कर उनका नंबर लगा दिया, और पर्चे पर दो तारीख लिख दी।
एक नंबर पर 25 दिन बाद की तारीख थी और दो नंबर पर एक साल बाद की तारीख थी।
इस से पहले मुखिया कुछ कह पाता, बाबू ने खिड़की बंद कर दी, पीछे लाइन में अभी भी करीब 200 लोग अभी भी अपनी बारी के इंतजार में खड़े थे।
क्रमश:
आभार – नवीन पहल – १६.०१.२०२२ 💐🌹🙏🏻👍
अगले अंक में, अब क्या करेगा भंवरलाल और क्या करेगी सांवरी, जानने के लिए जरूर पढ़िएगा, सांवरी भाग –७
# लेखनी उपन्यास
Barsha🖤👑
01-Feb-2022 08:34 PM
👌👌well written
Reply
Seema Priyadarshini sahay
17-Jan-2022 05:40 PM
बहुत ही रोचक भाग।
Reply
Punam verma
16-Jan-2022 11:56 PM
Ha bilkool
Reply