गरीब
गरीब - - दो शब्द(1)
राजीव रावत
गरीब हमारी नजरों में
अक्सर धन के पलड़े में तोले जाने वाले
वह शख्स होते है--
जिनके
जो दो रोटी, दो कपड़ों, झोपड़ी में रहने
और
जिंदगी की जद्दोजहद में हर पल सुकून को तलाशते, निस्तेज सी आंखे लिए
दयनीय अक्स होते हैं-
उनकी औरतों - लड़कियों की
इज्जत, आबरू के मायने इतने बौने होते हैं-
कि फटे कपड़ो से झाकते अंग
कुछ लौलुप नजरों में कुछ पैंसौ से खरीदे खिलोनें होते हैं-
जिनके बच्चों की आंखों में
पलते हुए दिवा स्वपन नहीं
बल्कि
स्वपनों की चाहत बहुत छोटी होती है-
खेलने के दिनों भी
ठंड में सिकुडते, गर्मी में जलते
और बरसात में भींगते बदन लिए
बस, दो जून की रोटी की जुगाड़ होती है-
उनके फैले हुए हाथ
दयनीय हालात में वक्त के सितम से
भींगें होते आंख की कोर-
कभी कभी चंद सिक्के उछाल कर
उनकी ओर
पैसे के दंभ में नजर आते हैं चोर-
और जब अधिक प्यार जागता है उनके हालात पर
हम बिना चूकें कह देते हैं
अरे! ये तो हैं हरामखोर-
गालियाँ, धक्के, भटकना
जिनका नसीब होता है-
शायद हमारी नजरों में वह गरीब होता है-
राजीव रावत