सांवरी–८

सांवरी


गतांक से आगे –

अगले दिन भोर में ही सांवरी उठ गई, कजरी को बड़ी हैरानी हो रही थी कि आज सूरज पछम से कैसे निकल आया, रोज दिन चढ़े तक सोने वाली उसकी बेटी आज पौ फटते ही कैसे उठ गई।
पर उसने सांवरी से कुछ नही कहा, वरना सुबह सुबह ही सांवरी पता नही क्या क्या बोल दे। इस छोरी के जी का भी कोई भरोसा ना सै, पल में तोला पल में माशा।
सांवरी झटपट जंगल पानी से फारिग हो कर मुंह हाथ धो कर तैयार हो गई, और तो और उसने तो अपनी काम वाली पोशाक भी पहन ली, और पूरी तरह तैयार भी हो गई,  फिर आराम से खाट पर बैठ कर चा के साथ रोटी खाने लगी।
सब कुछ करने के बाद वो बेसब्री से धीरू के आने का इंतजार करने लगी, उसके चेहरे पर उतावलेपन के भाव कोई भी आसानी से देख सकता था।
एक पल खाट पर बैठती, दूसरे ही पल उठ कर टहलने लगती, और बार बार धीरू के डेरे की तरफ नजर दौड़ाती और फिर वापस आकर खाट पर बैठ जाती।
आखिर कजरी से रहा नही गया, तो उसने पूछ ही लिया, के हो गया छोरी आज तो सुब्बा सुब्बा ही जाने को उतावली हो गई सै, बात कै से......
धीरू ते कोई लड़ाई तो ना कर ली.....तने, देख ढंग से पेस आया कर वो थारा होन वाला मरद सै..... मरद की तरियां बात किया कर।
अरि अम्मा ऐसा कुछ न सै, वो तो मैं सोच री आज से टैम से काम पे जावेंगे तो कमाई अच्छी हो जा सी..... कह कर सांवरी ने कजरी को टाल दिया।
वो किसी भी कीमत पर मां बापू को अपने मन में चल रहे विचारों की भनक भी नहीं पड़ने देना चाहती थी। उसे मालूम था अगर गलती से भी धीरू या उसके अलावा किसी को भी कानोंकान भी खबर हुई तो उसका बस्ती में जीना मुहाल हो जायेगा।
यूं लगता था समय गुजर ही नही रहा, जाते हुए एक एक पल के साथ सांवरी के मन की उथलपुथल तेज होती जा रही थी।
कई सवाल काले नाग से मन में सर उठा रहे थे, पर हर बार सांवरी उन सवालों का सर कुचल देती। उसे भरोसा है धीरू पर, उसे पूरा विश्वास है अपने प्यार पर, धीरू समझेगा उसके फैसले को, बचपन का सखा है वो जानता है सांवरी के लिए मां और बापू की क्या अहमियत है।
फिर भी शक के सांप सर उठा लेते, अगर धीरू न माना तो, उसे ये भी पता था जहां धीरू उससे बेपनाह प्यार करता था, वहीं उसे कबीले की इज्जत भी बहुत प्यारी थी, उसके लिए कबीले के नियम कानून और उसके खुद के माता पिता भी बहुत पूजनीय हैं।
हे नाग देवता, कुछ तो कृपा करना.... थम तो जानो हो मैं अपने बापू की खातिर यो सब करने जा री.... मां बापू भी तो भगवान सरीखे ही होवे ना.....
री सांवरी, सवेरे सवेरे के बडबडा रि तू...... आज तो गजब हो लिया, पेले से ही तयार बैठी तू तो..... धीरू अपने चिरपरिचित मुस्कुराते अंदाज में सांवरी को देख रहा था।
कितनी देर कर दी तने, मैं तो घंटों पेले ही तयार हो गई थी, तू ही देर ते आया..... इब चल.... आज ते रोज जल्दी जाया करेंगे.....।
बावरी होरी के इब्बी बाजार भी न खुले होंगे, बाजार खुलेंगे, लोग आवेंगे तब तो कोई म्हारा पिरोग्राम देखेगा, धीरू बोला।
अच्छा इब चल चल, टैम घणा हो लिया, सांवरी उसे धिकियाते हुए बोली......
चाल रिया चाल रिया, धक्का क्यों देन लगरी.... धीरू हंसता हुआ बोला। आज इकली ही नाचेगी के, अपनी सखियाें को तो आ जान दे....
हम चल रे़ आगे आगे, तू उनको बोल पीछे पीछे आती रवेंगी, तब तक हम नुक्कड़ की दुकान पे चा पिवेंगे, सांवरी बोली।
इब यो के घर मा ही पी लेते चा चाची के हाथ की, धीरू चौंक कर बोला।
इब तू चल ना, सांवरी धीरू की बाजू पकड़ कर उसे खेंचती हुई ले जा रही थी, धीरू समझ गया जरूर सांवरी कुछ ऐसी बात करना चाह रही है जो सबके सामने नहीं करना चाहती।
चाय के ठिए पर आकर उसने दुकानदार को दो चा इस्पेसल बनाने को बोला और सांवरी को लेकर थोड़ी दूर एक पेड़ के पास ले जा कर बोला, इब बोल बात क्या सै।
सांवरी ने उसकी आंखों में आंखें डाल कर पूछा, धीरू तू म्हारे ते प्यार करे सै ना...
बावरी यो भी कोई पूछन की बात सै, सारे कबीले को पता सै, वो बोला.......
ना तू म्हारे सर पे हाथ रख के बोल तू मने प्यार करे सै ना....
हां री बावरी, मैं तने अपनी जान ते ज्यादा प्यार करूं..
तू म्हारा साथ निभावेगा ना.... सांवरी ने फिर पूछा।
यो के हो गया तने आज, तू बोल तो आज लगन करवा दूं थारा म्हारा... धीरू ने कहा।
ना ...ना..… लगन की जल्दी ना सै मने.....सांवरी बोली।
तब फेर, तू के चाहवे सै, धीरू ने पूछा।
पहले तू वादा कर यो बात सिर्फ तेरे मेरे बीच रवेगी..सांवरी ने धीरू का हाथ थाम कर कहा, किसी भी कीमत पर यो बात तेरे मां बापू या म्हारे मां बापू तक न जावेगी, न कबीले में किसी और को पता चलेगी।
सांवरी बोल ना, भरोसा राख अपने धीरू ते.. वो बोला।
तो चल आज के आज कुंवर जी के पास, और बोल दे, मैं उनके बच्चे की मां बनने खातर तयार सूं...... सांवरी ने एक सांस में कह दिया।
बावरी होरी के, कुंवर के पिसे के लालच में थारी मति मारी गई के..... धीरू उसका हाथ झटक कर बोला।
तने अपने धीरू को पिसे का इतना भूखा समझ लिया के अपनी लुगाई के पेट में कोई ओर का बच्चा जनने देगा.... अरे इज्जत भी कोई चीज होवे के ना.... हम बंजारे सै, हमारे कबीले के नियम कानून के आगे पीसो कुछ न सै....बात कर री......
धीरू, तू इतना ही जाने अपनी सांवरी ने......, सांवरी की आंखें नम हो गई थी, इतना ही भरोसा तने अपने प्यार पे, तने लागे थारी सांवरी पिसे खातर बिक जागी।
फेर तने आज तक अपनी सांवरी को जाना ही ना.. अरे बंजारों का खून मारे सरीर मा भी उतना ही दौड़े जितना थारे मा..... पर आज मने इस सरीर की ना इस सरीर को देने वाले की फिकर होरी सै, वो जो म्हारा भगवान सै, जिन्ने मने जन्म दियो, वो जो म्हारी खातर सारी उमर मेहनत किया उसको म्हारी जरूरत सै..... उसका कर्ज चुकाने का टैम सै..... उसकी खातर अगर मने कुंवर या किसी और के साथ सोना भी पड़े तो भी मैं पीछे न हटूंगी।

धीरू, एक टक उसे देख रहा था, उसने सांवरी का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाया और प्यार से बोला, तू मने पूरी बात बता हुआ के सै.....
चाय पीते पीते, सांवरी ने पिछली रात अपने बापू से हुई सारी बात अक्षरश बताई..... धीरू चुपचाप उसकी बात सुनता रहा..... उसकी पूरी बात सुनने के बाद, वो थोड़ी देर खामोश सर झुका कर बैठा रहा जैसे कुछ सोच रहा हो।
फिर उस ने सर उठा के सांवरी की तरफ देखा, और मुस्कुरा के उसको अपने सीने से लगा लिया, और बोला, तो यो बात तने पहले क्यूं ना बताई, इब तक खामखा इधर उधर की बातां करण लग री। थारा बापू म्हारा वी तो सुसरा लागे सै और जैसा म्हारा बापू तैसा थारा बापू।
इब तू चिंता न करे, हम मिल के थारे बापू का इलाज करवावेंगे।
आज शाम ने कुंवर जी ते मिलने चालेंगे, तू चिंता न करे।
इब हस दे, देख सामने ते दोनो छोरियां बि आ गई, चल इब थोड़ा काम धंधे की सोच।
दोनो मुस्कुरा के उठ खड़े हुए, सांवरी ने चैन की सांस ली, अब जिंदगी की लड़ाई में वो अकेली नहीं थी.... उसका प्यार उसका धीरू उसके साथ था.....।

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – १८.०१.२०२१२🙏🏻🙏🏻🌹❤️

# लेखनी उपन्यास प्रतियोगिता हेतु


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2 Comments

Gunjan Kamal

18-Jan-2022 03:34 PM

शानदार भाग 👌👌👌

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धन्यवाद जी

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