Sonia Jadhav

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रिक्शेवाला

जब आपके अपने आपके लिए कुछ करते हैं तो मन को अच्छा लगता है, ख़ुशी होती है। लेकिन जब अंजान लोग जिनसे दूर-दूर तक कोई अपेक्षा नहीं होती, वो आपके लिये कुछ करते है तो मन को सिर्फ अच्छा नहीं बहुत अच्छा लगता है और महसूस होता है कि इंसानियत अभी भी जिन्दा है।

शाम 5 बजे से बारिश बहुत तेज़ हो रही थी। मन ही मन प्रार्थना कर रही थी इंद्र देवता से कि 6:30 बजे तक यह बारिश रुक जाए ताकि मैं आराम से घर पहुँच सकूँ। मैं यानि रेशमा सरकारी स्कूल में शाम की पाली में विज्ञान की शिक्षिका थी। दोपहर 1 बजे से शाम 6 बजे तक मेरा स्कूल लगता था और निकलते-निकलते 6:30 बज ही जाते थे।

बारिश थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी, लगातार हुई जा रही थी। मौसम बाहर काला हो चुका था और साथ ही तेज़ हवाएं चल रहीं थी। ऐसी बारिश सुहावनी कम डरावनी ज़्यादा लगती थीं मुझे। एक अजीब सा डर बैठ जाता था भीतर कहीं रास्ते में अटक ना जाऊँ, कहीं कुछ गलत ना हो जाये रास्ते में।

दिल्ली जैसे शहर में दिन हो या शाम भूखी नजरें शिकार की तलाश में भटकती नज़र आ ही जाती हैं, मौसम चाहे खराब हो या नहीं। खराब मौसम में बस या फिर ऑटो दोनों का मिलना मुश्किल हो जाता है। 6:30 बज चुके थे, बच्चे घर जा चुके थे। जो दूर रहते थे अध्यापक वो भी निकल चुके थे। बस हम दो- तीन शिक्षक ही बचे थे।

6:45 बज चुके थे शाम के, लेकिन बारिश रुकने के बजाय और तेज़ होती जा रही थी। आखिरकार कितना रुकते, हम तीनों जैसे तैसे निकल गए अपने-अपने गंतव्य की ओर। भगवान् का शुक्र था कि मुझे बस मिल गयी थी। लेकिन परेशानी यह थी कि बस स्टॉप से मेरा घर काफी दूर था, घर पहुंचने के लिए रिक्शा लेना पड़ता था। मैं रोज़ एक ही रिक्शे में जाती थी। 
जैसे ही मैं बस से उतरी और सड़क पार की रिक्शा पकड़ने के लिए तो मुझे कोई रिक्शेवाला ही नहीं दिखा। हवा इतनी तेज़ चल रही थी कि छतरी पकड़ना हाथ में मुश्किल हो रहा था, छतरी ही उड़ी जा रही थी। 

जैसे तैसे मैंने पैदल चलना शुरू ही किया था कि मेरे रोज़ के रिक्शेवाले ने मुझे देख लिया और फटाफट वो रिक्शा लेकर आ गया। इतनी तेज़ बारिश में वो मुझे आराम से घर ले गया। पूरा रिक्शा उसने ऐसे कवर किया था कि बारिश की एक बूँद भी मुझे छू ना पाए। खुद पतली सी बरसाती पहन वो इतनी तेज बारिश में रिक्शा चला रहा था। बीच-बीच में वो पूछ भी रहा था…..मैडम आप ठीक हो ना?

मेरे घर के आगे पानी भर गया था और मेरा घर पहली मंजिल पर था। वो रिक्शेवाला इतना अच्छा था कि उसने रिक्शा सीधा मेरे घर की सीढ़ियों के एकदम पास ही उतारा और मुझे गंदे पानी में चलने से बचा लिया।
रोज़ मैं अपने घर 7 बजे तक पहुँच जाती थी लेकिन उस दिन 7:30 के करीब पहुंची थी।

उस दिन तेज़ बारिश और तूफ़ान के कारण कोई भी रिक्शेवाला नज़र नहीं आ रहा था। मैं नियत समय से काफी देर से पहुंची थी बस स्टॉप पर, लेकिन फिर भी वो इंतज़ार करता रहा मेरा। चाहता तो वो जा सकता था लेकिन नहीं गया। 
उस दिन रिक्शेवाले ने जो किया मेरे लिए उसने मेरे दिल को छू लिया। वो रिक्शा चलाते-चलाते बार-बार पीछे देख रहा था और पूछ रहा था कि मैं ठीक हूँ कि नहीं। उसने रिक्शे को ऐसे कवर किया था कि मुझे बाहर का कुछ भी नहीं दिख रहा था।
अगर वो उस दिन मुझे नहीं मिलता तो मुझे बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ता घर पहुँचने में।

जीवन में कई बार ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनसे आपका कोई रिश्ता नहीं होता लेकिन फिर भी वो आपकी मदद करते हैं बिना किसी स्वार्थ के। सच कहूँ तो ईश्वर अपनी उपस्थिति ऐसी छोटी-बड़ी घटनाओं में दर्ज़ करवाता रहता है। भगवान मंदिर में नहीं उसी के बनाये इंसानों में मिलता है।
वो रिक्शेवाला जहाँ भी हो भगवान सदा उसकी सहायता करे, उसे खुश रखे।

❤सोनिया जाधव
#लेखनी प्रतियोगिता

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6 Comments

Abhinav ji

20-Jan-2022 07:51 AM

Nice

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Shrishti pandey

19-Jan-2022 09:08 AM

Nice

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Punam verma

19-Jan-2022 12:15 AM

Very nice

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