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नज़राना इश्क़ का (भाग : 09)




फरी के मुस्कुराते चेहरे को देखते ही जाह्नवी का पारा चढ़ने लगा, कल जो कुछ हुआ उसे याद कर उसकी भौंहे तन गई, तन बदन में आग सी लग गई, वह मन ही मन उसे फिर से कोसने लगी।

'बड़े बाप की बेटी है तो क्या! पूरा क्लास खरीद लेगी क्या? अपने बाप के दम पर तो कोई भी उड़ सकता है, एक बार फर्स्ट आ गई तो क्या हुआ, फेंका हुआ पासा बार बार सही नहीं आता। आज इसके पीछे पूरा क्लास लगा हुआ है पर कभी तो ऐसा दिन आएगा जब इसे अपनी असली औकात पता चलेगी।' जाह्नवी मन ही मन कुछ भी अनाप शनाप सोंचे जा रही थी। तभी फरी उसके बिलकुल पास आ गई।

"हे सॉरी मिस शर्मा! अगर आप बुरा ना माने तो मैं आपके पास थोड़ी देर के लिए बैठ सकती हूं!" फरी बड़ी ही विनम्रता से मुस्कुराते हुए पूछी।

"या श्योर, व्हाय नॉट! सीट हेयर।" जाह्नवी ने अपने जगह से थोड़ा साइड हटकर उसको बैठने की जगह देते हुए बोली। जबकि उसके मन में अब भी वैसे ही अजीबोगरीब ख्यालात चल रहे थे।

'हिम्मत तो देखो लड़की की, हे सॉरी मिस शर्मा, क्या मैं यहां बैठ सकती हूं! अब तक तूने जो किया वो कम है क्या? अब और क्या करना चाहती है।' जाह्नवी न चाहते हुए भी मुंह बना गई।

"मुझे नहीं पता कि बातें कैसी कही जाती हैं, मैंने कभी दोस्त नहीं बनाया, कभी किसी से बात तक भी नहीं की इसलिए मुझे नहीं पता कि अपनी बात कैसे कही जाती है। मैं बस इतना कहूंगी कि मेरी वजह से अगर आपको कोई तकलीफ़ हुई हो तो माफ करिएगा।" फरी बड़े विनम्र स्वर में बोले जा रही थी, जाह्नवी बस उसकी आंखो में झांककर सच्चाई ढूंढने की कोशिश करने लगी हुई थी। फरी ने आगे कहना जारी रखा। "मैंने कभी किसी से कोई बात नहीं की, ना ही किसी को कुछ कहा, पर मुझे लगा कि जैसे आपको मेरे वजह से हर्ट हुआ है कुछ, इसलिए अगेन आई एम सॉरी!" जाह्नवी बस फरी को देखे जा रही थी, निमय फरी को जाह्नवी के साथ बैठा देख थोड़ा हैरान तो हुआ पर वह अपने आत्मद्वंद में डूबा, जाकर अपनी सीट पर बैठ गया।

"इट्स ओके मिस फरी! कोई बात नहीं, फर्स्ट सेकंड आना तो चलता ही रहता है..!" जाह्नवी ने मुस्कुराते हुए कहा। जैसे ही जाह्नवी ने ऐसा कहा पूरी क्लास में हँसी की लहर सी फैल गई, फरी को कुछ भी समझ नहीं आया। वह जाकर अपनी सीट पर बैठ गई! जबकि जाह्नवी का शांत पड़ा चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा।

"हाहा…! देखो खुद को कैसे दिलासा दिला रही बेचारी..!" लड़कियों की ओर से कई लड़के लड़कियों का मिला जुला  हास्यात्मक पुट से भरा हुआ स्वर उभरा, जो पूरी क्लास में फैलता ही चला गया। यह सब जाह्नवी के कानो में सुपरसोनिक ब्लॉस्ट की तरह असर कर रहा था। उसे लगने लगा था कि फरी उसके पास बस अच्छी बनकर आई थी ताकि वो उसे मजाक का पात्र बना सके। जाह्नवी का गुस्सा सातवां आसमान पर कर चुका था, निमय ने उसके चेहरे पर उभरे दर्द को पढ़ा, उसका दिल उसे कचोटने लगा, उसका मन बुरी तरह चिल्लाने का हुआ मगर इससे पहले वह कुछ कर पाता प्रोफेसर आ गए। सभी ने जाह्नवी का मजाक उड़ाना बंद कर प्रोफेसर की ओर देखने लगे। थोड़ी देर बाद पूरी क्लास शांत हो चुकी थी, अचानक उनका ध्यान जाह्नवी की तरफ गया, वह उनकी बेस्ट स्टूडेंट थी, उन्होंने सोचा था कि शायद वह एक दो दिन कॉलेज नहीं आने वाली, मगर उसे क्लास में देखकर वो खुद हैरान थे, क्योंकि वे जाह्नवी के स्वभाव को बहुत अच्छी तरह से जानते थे, उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर वो उसके पास गए।

"क्या हुआ जाह्नवी! इस बार तुमने छोटी सी मिस्टेक कैसे कर दी, खैर जाने दो गलतियां तो होती रहती हैं पर तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है?" प्रोफेसर ने बड़े प्यार से पूछा। पूरा कॉलेज स्टॉप जाह्नवी पर अपनी जान छिड़कता था, वह इतनी सरल, साधारण और कुशल थी कि सभी उसे बेहद प्यार करते थे, यही कारण था कि क्लास के अन्य बच्चे उससे जलन के कारण दूरी बनाए रखते थे, वैसे भी उसे अपने भाई के अलावा कोई दोस्त नहीं चाहिए था इसलिए उसने कभी उन लोगों पर ध्यान नहीं दिया, धीरे धीरे यही जलन नफरत में कब बदल गई किसी को पता नहीं चला पर जब क्लास में फरी आई तो सभी को जाह्नवी को नीचा दिखाने का मौका मिल गया क्योंकि जाह्नवी हर बात को खुद के सेल्फ रिस्पेक्ट से जोड़कर देखती थी।

"कुछ नहीं सर! बस थोड़ा सिर दर्द कर रहा है!" अपनी तंद्रा भंग करते हुए जाह्नवी ने सफेद झूठ बोला।

"अगर ऐसा है तो तुम्हें आज कॉलेज नहीं आना था, जाओ रेस्टरूम में जाओ और दवा लेकर आराम करो।" प्रोफेसर ने बड़े प्यार से कहा।

"नहीं सर! इतना भी दर्द नहीं….!"

"मैंने कहा ना! निमय इसे रेस्टरूम तक ले जाओ, मैं अपने डॉक्टर को वहां जाने को बोल रहा हूं!" प्रोफेसर ने निमय की ओर घूमते हुए कहा।

"मगर राव सर…!"

"मुझे तुम दोनो भाई बहनों की यही आदत सही नहीं लगती, जब देखो अगर मगर लगाए रहते हो, बोला ना लेकर जाओ..!" प्रोफेसर राव ने निमय को घूरते हुए कहा।

"ओके सर!" कहते हुए निमय जाह्नवी के साथ क्लास से बाहर निकल गया।

"मैंने इतना जोर से भी नहीं मरोड़ा था जो अब तक मुंह लटकाएं बैठी है!" निमय ने उसके मुंह की ओर झांकते हुए कहा।

"तू तो जाने दे भाई! तुझे बात करना मतलब समय और भेजा दोनो की बरबादी, जो कि मेरे पास फिलहाल है नहीं!" जाह्नवी ने पैर सुर्ख लहजे में जवाब दिया।

"ये तो बिलकुल सही कहा तूने, भेजा तो है नहीं तेरे पास!" निमय ठिठोली करता हुआ बोला।

"भाई..!" जाह्नवी पैर पटकते हुए चिल्लाई।

"क्यों दुनिया भर की बातों का असर खुद पे पड़ने देती है बे! जिनको हंसना हंसे, जिनको रोना रोए! हर बार के लिए खुद को तकलीफ देना जरूरी है क्या?" निमय ने उसी के अंदाज में जवाब देता हुआ बोला। अब तक दोनो रेस्ट रूम तक पहुंच गए थे। "तू आराम कर मैं चलता हूं, और अब से बेकार में मुंह मत लटकाया कर, इस मुंह को लटकाने का हक सिर्फ मेरा है खरबूज..!" निमय ने उसकी ठुड्ढी पकड़कर मुस्कुराते हुए कहा।

"मैं तेरा मुंह ना तोड़ दूं कद्दू कहीं का..!" जाह्नवी ने गुस्से से कहा, मगर उसकी भी हँसी निकल गई। निमय ने प्यार से उसके सिर को सहलाया और बालों को बिखेर कर वहां से भाग खड़ा हुआ।

"कुत्ता कहीं का..!" जाह्नवी गुस्से से चिल्लाई।

"जा जा बेड पर लेट जा!" निमय भागकर वापिस आते हुए बोले।

"नहीं जा रही मैं! तू वापस क्यों आ रहा है?" जाह्नवी ने मुंह बनाकर चिढ़ाते हुए कहा।

"अगर ऐसे छोड़ के चला गया, और फिर राव सर को उड़ती उड़ती खबर जा पहुंची तो तेरे प्यारे सर मेरे को ऐसा उड़ाएंगे कि अपना सिर पैर तुड़वाकर हम ऊपरवाले को प्यारे हो जायेंगे।" निमय भौंहे सिकोड़ता हुआ हंसकर बोला।

"बस बस सर के बारे में कुछ ना बोल!" जाह्नवी बेड पर बैठते हुए बोली। बड़े हॉल जैसे पूरे कमरे में कई सारे बेड लगे हुए थे मगर इस वक्त वह हॉल पूरा खाली था। तभी कमरे में डॉक्टर ने प्रवेश किया।

"देखिए तो डॉक्टर साहब इस बंदरिया को क्या हुआ?" निमय ने जाह्नवी को छेड़ते हुए कहा।

"क्या हुआ इन्हें?" डॉक्टर ने जाह्नवी को गौर से देखते हुए कहा। उसका मासूम सा गुलाबी चेहरा धूप में खिले किसी गुलाब की भांति दमक रहा था, हालांकि अब तक उसका गुस्सा शांत हो चुका था मगर चेहरा अब भी सुर्ख गुलाबी ही था।

"कुछ नहीं डॉक्टर साहब! बस कुछ लोगों को आलस वाली बीमारी होती है ना!"

"बोल भी कौन रहा है कुंभकर्ण का सातवां चेला!"

"आएं..!"

"हजार आलसी मरे होंगे तब ये पैदा हुआ होगा, आप इसकी मत सुनो, इसका भेजा थोड़ा खिसका हुआ है।"

जाह्नवी और निमय दोनो एक दूसरे को चिढ़ाने की कोशिश में लगे हुए थे, डॉक्टर यह देखकर बेहद हैरान खड़ा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले।

"आप दोनो चुप करिए प्लीज!"  उसने जाह्नवी की नब्ज जांचते हुए कहा। "इन्हें कुछ भी नहीं हुआ है बस हल्का स्ट्रेस है, जिसकी वजह से थोड़ा सिरदर्द है, इन्हें थोड़ी देर आराम की जरूरत है, ये गोलियां लेकर आराम कीजिए।" डॉक्टर ने निमय को गोलियां थमाते हुए कहा।

"ले दवा खा ले कुपोषित इंसान!" दवाई के पत्ते से एक टैबलेट निकाल कर जाह्नवी के हाथो पर रखते हुए, दूसरे हाथ से पानी का बोतल पकड़ाकर निमय बोला।

"मेरे हिस्से का तो सारा तू खा लेता है भूक्खड़ इंसान! तो मैं कुपोषित ही निकलूंगी ना"  जाह्नवी ने दांत पीसते हुए कहा।

"आप दोनो प्लीज लड़ना बंद कीजिए, अभी आपको थोड़े आराम की जरूरत है, ऐसे बच्चों की तरह लड़ने से दर्द बढ़ भी सकता है। आराम कीजिए, थोड़ी देर में आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगी।" मुस्कुराकर कहते हुए डॉक्टर वहां से बाहर चला गया। जाह्नवी अब भी एक हाथ में टैबलेट दूसरे में पानी की बोतल ली हुई थी।

"अब तो दवाई खा ले चुड़ैल! चल सो जा। कितना भी कहूं फालतू चीजों पर ध्यान देना बंद नहीं कर सकती।" निमय ने घुड़कते हुए कहा।

"बोल ले जितना बोलना है, कभी तो मेरी भी बारी आएगी!" कहते हुए जाह्नवी ने दवा खाया और चादर डालकर लेट गई। निमय उसके बगल में कुर्सी पर बैठा उसके सिर को बड़े प्यार से सहला रहा था जो अपने ख्यालों के झंझावात में किसी किनारे की तलाश में बेचैन था, मगर अपनी जान से प्यारी बहन का चेहरा देख उसे राहत मिल रही थी।

'मुझे समझ नहीं आ रहा है कि ये क्या हो रहा है जानी! मगर मैंने ऐसा कभी नहीं चाहा, कोई तेरे मेरे बीच आए ये मुझे मंजूर नहीं इसलिए तो मैंने तुझे कभी दोस्त नहीं बनाने दिए, ना ही खुद कुछ खास बनाया।

मगर ये बिलकुल अजीब सा है, कुछ ऐसा जो मेरे समझ से परे है, कुछ ऐसा जो न चाहते हुए भी तुझे छिपाना पड़ता है। ना जाने क्यों मेरा दिल उसकी मुस्कान में अपनी खुशी ढूंढता है, ना जानें क्यों उसे खुश देखकर दिल खुशियों से भर जाता है, उसे देखते ही बस उसे ही देखने का मन होता है..! ये बिलकुल अजीब है, मैंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया, ऐसा लगता है जैसे मैं कोई ख्वाब देख रहा होऊं और वो हकीकत में मेरे सामने आ गया हो।

मुझे नहीं पता मेरी जान कि ये क्या हो रहा है, मगर ये जो भी है मुझे तुझ से दूर ले जाने की कोशिश कर रहा है। मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा है कि मैं तुझ से कैसे कहूं, कैसे खुद को समझाऊं, मगर दुनिया कि कोई भी खुशी जो मुझे तुझ से दूर होने के बदले मिले मुझे मंजूर नहीं!

दिल उसकी ओर खींचा चला जाता है, पर मैं उससे बात तक नहीं करता, इग्नोर करने की कोशिश करता हूं तो दिमाग में और ज्यादा भार बढ़ने लगता है, हर दिन ना चाहने के चक्कर में पहले से और ज्यादा चाहने लगा हूं उसे, मुझे बिलकुल भी नहीं पता मुझे क्या करना है, इस बार तेरा भाई बिलकुल भी क्लियर नहीं है, ना जाने कब तक उससे दूर रहने की नाकाम कोशिशें कर पाऊंगा..!'

निमय बेहद उलझा हुआ था, वह बिलकुल नहीं समझ पा रहा था कि क्या करे, अब तक जाह्नवी गहरी नींद में जा चुकी थी, निमय उसके चेहरे पर आए बालों को पीछे करने लगा, जाह्नवी के चेहरे को देखकर उसके चेहरे पर मासूम सी मुस्कान उभरी!

क्रमशः….


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13 Comments

shweta soni

29-Jul-2022 11:36 PM

Nice 👍

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🤫

26-Feb-2022 02:41 PM

बहुत खूब स्टोरी

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Bahut shukriya aapka 💜

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Pamela

03-Feb-2022 03:03 PM

Kafi achcha likhte hn...

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Dhanyawad aapka

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