सांवरी–९

सांवरी


गतांक से आगे

उस दिन सांवरी का मन काम में नहीं लग रहा था, रह रह कर उसकी सोच बापू की तरफ चली जाती, वो सोचती कैसे भी हो उसके बापू को अच्छे से अच्छा इलाज मिले, वो उसके लिए कोई भी कीमत देने को तैयार थी।
उसके मन में उथल पुथल चल रही थी। क्या होगा, कैसे होगा, क्या कुंवर साहब उसकी मदद करेंगे, उसे पैसे का लालच नही बस बापू ठीक हो जावे ओर मने कुछ न चाहिए।
धीरू भी बहुत ध्यान से सांवरी को देख रहा था, उसे भी सांवरी के हृदय में चलते द्वंद का पूरा आभास था।
वो जानता था सांवरी अपने बापू से कितना प्यार करती है, उसे समझ आ रहा था आज सांवरी के नृत्य में वो लोच, वो मस्ती क्यों नही दिख रही थी, क्यों उसके सुर रह रह कर भटक रहे थे, क्यों बार बार वो चिरपरिचित शब्दों में गड़बड़ा रही थी।
धीरू ने सुबह ही कुंवर साहब के मनेजर को फोन कर दिया था, कि वो कुंवर साहब से भेंट करना चाहता है, उसने उन्हें बता दिया की उनका शो किस जगह है। अब उसे इंतजार था कुंवर साहब के जवाब का, उसके पास इंतजार के अलावा कोई चारा नहीं था। बार बार उसकी नजर सामने की सड़क पर चली जाती, हर आने वाली काली गाड़ी को वो ध्यान से देखता, सोचता शायद अभी आएगी गाड़ी। सूरज सर पर चढ़ आया था, जयपुर की गर्मी अब अपने पूरे शबाब पर थी।
धीरू के इशारे पर चारों अपना सामान समेट कर पास के पेड़ के नीचे बैठ गए।
धीरू पास की दुकान से कुछ खाने को ले आया और चारों लोग बैठ कर जलपान करते हुए सुस्ताने लगे, पर धीरू की नजर बार बार सड़क की तरफ चली जाती। अब तो खासी देर हो चुकी थी, उसका मन थोड़ा विचलित होने लगा था, कहीं ऐसा तो नहीं कुंवर साहब को कोई और लड़की मिल गई, फेर के होगा.....
धीरे धीरे दोपहर ढलने लगी और सूर्य पश्चिम दिशा की ओर जाने लगा, जैसे जैसे सूरज ढलता जा रहा था धीरू की आशाएं भी धूमिल पड़ती जा रही थी।
अब तो डेरे की तरफ जाने का वक्त भी हो चला था, शाम के साए दुगने होने लगे थे।
चारों दोस्त मिल कर डेरे की तरफ बढ़ चले, धीरू और सांवरी के मन में अपने अपने विचारों का उमड़ घुमड़ चल रहा था, दोनों की चिंता का केंद्र भंवरलाल ही था, जैसे जैसे डेरा नजदीक आता जा रहा था कदम भारी और भारी होते जा रहे थे।
शाम के साए गहराने लगे थे साथ साथ  चिंताओं के बादल भी छाने लगे थे, तभी डेरे के सामने खड़ी लंबी काली गाड़ी मानो आशा की बिजली की तरह चमक उठी। गाड़ी पर नजर पड़ते ही धीरू और सांवरी के उदास मन में उम्मीद की नई किरण अपनी रोशनी बिखेरने लगी। दोनो ने मुस्कुरा कर एक दूसरे के तरफ देखा। अचानक कदमों में एक नई स्फूर्ति आ गई और वो दोनो मुस्कुराते हुए गाड़ी की तरफ चल पड़े।
गाड़ी के पास वही पहलवान नुमा ड्राइवर खड़ा था, उन दोनो को आता देख उसके सपाट चेहरे पर भी एक पहचान की हल्की सी मुस्कुराहट खिल उठी।
दोनो के पास आते ही उसने मुस्कुरा कर कहा, कित थे थम लोग, मैं कब से बाट देख रहा था। चलो कुंवर साहब थारा इंतजार कर रहे।
दोनो अपना सामान दोनो लड़कियों को थमा कर झटपट कार में सवार हो गए, जाते जाते धीरू बोला बापू और काका को बता दियो हवेल्ली जा रे, कुंवर साब ने बुला रखा, आ जावेंगें थोड़ी देर मा।
उन दोनो को लेकर कार वापस अपने गंतव्य स्थल की ओर चल दी।
कुछ ही देर गाड़ी कुंवर साहब की महल नुमा हवेली में दाखिल हो रही थी।
ड्राइवर ने गेट के सामने उन्हें उतार दिया और दरबान ने तत्परता से गाड़ी का दरवाजा खोल कर उन्हे शीघ्रता से हवेली के मेहमानखाने में प्रवेश करवा दिया।
आज मेज पहले से ही पकवानों से सजी हुई थी और दोनो नौकर और सुरक्षा कर्मी अपनी अपनी जगह तैनात थे। सांवरी और धीरू का स्वागत एक बार फिर लजीज पकवानों और खस खस के शरबत  से हुआ।
जब दोनो ने जी भर कर नाश्ता कर लिया तो ऊपर से कुंवर साहब और कुंवरानी हाल में आ गए।
अभिवादन के बाद सभी आमने सामने बैठ गए।
तो सांवरी क्या फैसला किया तुमने, कुंवर साहब ने पूछा।
सांवरी के जवाब देने से पहले ही धीरू बोल पड़ा, कुंवर हुकुम, सांवरी आपके बच्चे को जन्म देने को तैयार सै, हमने पीसो.....
उसकी तुम चिंता न करो मैं आप दोनो का मुंह मोतियों से भर दूंगा.... धीरू की बात काटते हुए कुंवर साहब जल्दी से बोले।
कुंवरानी के चेहरे पर खिली मुस्कुराहट, उनके मन के भावों को जगजाहिर कर रही थी। उन्होंने आगे बढ़ कर सांवरी को अपने गले से लगा लिया, तुम सोच भी नही सकती, तुमने हां कह कर हम पर कितना बड़ा उपकार किया है, वो बोली, मैं जीवन भर तुम्हारी अहसान मंद रहूंगी, तुम आज से मेरी बहन जैसी हो, सांवरी..... कहते कहते उनकी आंखों से अश्रु धारा बह चली, और गला भर आया।
पर म्हारी एक विनती ओर सै, धीरू ने कहा।
कैसी विनती, कुंवर साहब ने पूछा।
हुकुम, सांवरी के बापू को एक लाइलाज सी बीमारी, का कहवे हैं उसको, हां, कंसर हो गई सै। इब म्हारे पास तो इतने रुपए सै ना की हम पिराइवेट मा उनका इलाज करा सकें और सरकारी हस्पताल वाले एक साल बाद की बोल रहे, तो अगर थम म्हारी इसमें कुछ मदद करो.... तो ही सांवरी......
बस इतनी सी बात, चिंता न करो, मैं कल ही मंत्री जी से बात करके, सांवरी के पिता के पूरे इलाज का बंदोबस्त करवा देता हूं, कुंवर साहब बोले।
और एक बात हुकुम, म्हारे कबीले में किसी को यो पता नी चलना चाइये की हम थारे बच्चे को जन रहे, वरना कबीले वाले हम दोनो परिवारों को कबीले से बाहर कर देंगे।
उसकी चिंता तुम मत करो, कुंवरानी मुस्कुराते हुए बोली, हमने सब इंतजाम कर लिया है, वैसे हम भी नही चाहते की किसी को भी ये पता चले की हमारी होने वाली संतान किसी और की कोख में पल रही है।
इसलिए हमने सोचा है की गर्भ के दौरान सांवरी और तुम दोनों ही यहां से दूर रहोगे, ताकि ना तो इस बात का पता तुम्हारे कबीले में किसी को हो ना ही हमारे परिवार में। पर सवाल ये भी है कि तुम और सांवरी अपने कबीले से दूर क्या बोल कर जाओगे, कुंवरानी ने पूछा।
हम्मम, यो तो बात सै, धीरू गंभीर हो गया।
उसका एक आसान उपाय है मेरी नजर में, कुंवर साहब बोले, तुम अपने कबीले में बताओगे कि सांवरी को हमने एक डांस शो के लिए चुन लिया है, और हम तुम्हारे नाच का प्रोग्राम अपनी कंपनी के द्वारा पूरे देश और विदेशों में करवाएंगे जिससे तुम्हारी कला का प्रदर्शन दूर दूर तक होगा और उसी की पेशगी से सांवरी के पिता का इलाज भी होगा। इस तरह तुम्हारे कबीले से दूर रहने का रास्ता भी मिल जायेगा और सांवरी के बापू का इलाज भी हम किसी अच्छे प्राइवेट हॉस्पिटल में करवा देंगे।
यो सही रहेगा.... धीरू उत्साह से बोला।
अब बस एक ही काम करना है, सांवरी तुम्हारी मेडिकल जांच, जिसके द्वारा पता चलेगा क्या तुम शारीरिक रूप से संतान पैदा करने में बिल्कुल सक्षम हो, जिसके बाद आगे की कारवाही पूरी करेंगे, कुंवर साहब बोले।
और हां, एक दो दिन में हम तुम्हारे पिता के इलाज का बंदोबस्त कर देते हैं, ईश्वर ने चाहा तो वो बिलकुल स्वस्थ हो जायेंगे, कुंवर साहब की बात सुन कर सांवरी के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान खिल उठी।
अच्छा तो हुकुम, हमने इजाजत दो इब, धीरू बोला।
ठीक है, हम एक दो दिन में, तुमसे संपर्क करते हैं, कुंवर साहब मुस्कुरा कर बोले, सांवरी पहले तुम्हारे पिता के इलाज का बंदोबस्त हो जाए, फिर तुम तैयार रहना अपनी जांच के लिए और कुछ कागजी कारवाही के लिए।
जी हुकुम, सांवरी ने सर झुका कर अभिवादन किया।
कुंवरानी जी ने एक बार फिर आगे बढ़ कर सांवरी को गले लगाया, और आश्वासन दिया, चिंता मत करो तुम्हारे पिता का इलाज जल्दी ही होगा और अच्छे से अच्छा होगा।
कुछ देर में काली गाड़ी, उन्हें लेकर कबीले की तरफ दौड़ी जा रही थी।
धीरू और सांवरी दोनो ही खुश थे.......

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – 👍🌹💐🙏🏻


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4 Comments

Gunjan Kamal

27-Mar-2022 12:23 PM

Very nice 👍🏼

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देविका रॉय

28-Jan-2022 11:25 PM

Part adha Aya h sir. I think please check or upload soon

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Seema Priyadarshini sahay

19-Jan-2022 11:45 PM

बहुत ही खूबसूरत धारावाहिक है यह

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