भिखारी
मैं दिन में ट्रैफिक सिग्नल पर मिलता हूँ,
रात में किसी पुल के नीचे सोया हुआ दिखता हूँ।
मुझे धर्म में कोई रूचि नहीं है,
रोटी ही मेरा धर्म है, चाहे वो मुसलमान से मिले या हिन्दू से।
क्या फर्क पड़ता है?
मुझे डर लगता है तो सिर्फ भूख से,
खाली पेट बहुत दर्द करता है।
आजकल लोग तरस तो खाते हैं,
पर भीख नहीं देते।
"भीख मांगता है,काम क्यों नहीं करता" ,कहकर मुफ्त का ज्ञान देते हैं।
काम देने का साहस नहीं है, व्यर्थ के उच्च विचार व्यक्त करते हैं।
कभी सोचा है टपकते हुए पुल के नीचे,रात भर हम कैसे गलते हैं।
तपती धूप में जलते हैं दिन भर,
सर्दी के दिनों में हमारे जकड़े हुए शरीर, सुबह मृत मिलते हैं।
हाँ माँगते हैं हम भीख, पर अपनी मर्ज़ी से नहीं,
मजबूरी में भिखारी बनते हैं।
माँ के पेट से भिखारी पैदा नहीं होते,
कुछ खुद बनते हैं,
कुछ चाकू की नोक पर जबरन बनाए जाते हैं।
एक रुपया देकर हमें, आप अपनी नज़र में अमीर बनते हैं।
सच पूछिए तो आपसे ज़्यादा गरीब कोई नहीं,
देश सुधारने की बातें करते हैं और भिखारी को एक वक्त की रोटी खिलाने से डरते हैं।
❤सोनिया जाधव
#लेखनी प्रतियोगिता
Shrishti pandey
22-Jan-2022 03:23 PM
Nice
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Punam verma
22-Jan-2022 09:21 AM
Very true mam
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Sudhanshu pabdey
22-Jan-2022 01:41 AM
Awesome
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