"बंधन जन्मों का" भाग-11
पिछला भाग:--
ऐसा क्यों बोल रहीं हैं माँ जी...?
बच्चे तो हैं!! भले ही विदेश में हैं तो क्या हुआ...
फोन पर तो बात हो जाती होगी.....
नहीं बेटा मेरा तो नसीब ही खोटा है.....
क्या बताऊं.....
अब आगे:--
कोई बात नहीं माँ जी बताईए!! जी हल्का
हो जाएगा....एक ही बेटा हमारी जान...
वर्षों बाद बड़ी मन्नतों के बाद तो झोली में
आया.....खूब प्यार दुलार... खूब पढ़ाया लिखाया...बड़े नाजों से पाला...बड़ा गबरु
जवान हो गया.....तीखे नैन-नक्श हाँ रंग
थोड़ा दबा हुआ पर बहुत सुंदर हमारा बेटा.....कालेज की पढ़ाई करके बोला-
मास्टर डिग्री विदेश से करनी है.....
हमने जैसे तैसे व्यवस्था करके विदेश भेज
दिया पढ़ने के लिए... रोज फोन करता था...
बात करते करते आँसू भर आए......
क्या हुआ माँ जी रोइए मत... बेटा फिर धीरे
धीरे उसके फोन आना बंद हो गये......
बाद में पता चला उसने वहीं किसी गोरी मेम
से शादी कर ली... वो यहाँ आना नहीं चाहती....
बेटा भी नहीं आता....पहले तो कभी कभार
बात हो जाती थी... पर अब तो फोन आना
भी बंद हो गये......
चल बेटा चलती हूँ रात भी बहुत हो गयी है...
अब फिर कभी... अरे ये बुढ़ऊ भी बातों में
खो गये... कुछ ध्यान नहीं है.....
चलो भी अब रात बहुत हो गयी है.....
फिर कभी बतिया लेना.....
बेटा हम लोग ऐसे ही मसखरी करते रहते हैं...
एक दूसरे को बुड्ढा बुढ़िया बोलते रहते हैं...
यूं नौंक झौंक चलती रहती है.....
विमला को भी थकान बहुत हो गयी थी, सो
बच्चों को सुला कर खुद भी सोने चली गयी,
फिर सबेरे जल्दी भी तो उठना है....
दूसरे दिन रोज की दिनचर्या शुरु हो गयी....
अब विमला को सारे काम जल्दी जल्दी करने
होते हैं,घर के काम, बच्चों के काम, स्कूल का,
बाहर का सभी कुछ देखना पड़ता है....
वैसे तो बाबू जी बहुत अच्छे हैं.....
बहुत कुछ सम्हाल लेते हैं.....
पर अब उनकी उम्र का भी तो तकाजा है...
उन पर ज्यादा भार भी नहीं डाल सकती.....
जबसे भाई की नोकरी लगी सो घर बाहर दोनों
की जबावदारी आ गयी.....
यूं ही समय अपनी रफ़्तार से बढ़ता जा रहा था...
विमला बहुत थक हार जाती थी.....
उसकी जिंदगी तो "कौल्हू के बैल" की तरह हो
गयी थी.... अब दो दिन से बाबू जी की तबियत
भी अनमनी सी है... बुखार भी आ रहा है....
एक तो मौसम भी सर्द गर्म चल रहा है....
डाॅ. के पास जाने तैयार नहीं हैं....
विमला आ बेटा इधर आ बैठ मेरे पास....
आज तुझसे कुछ खास बात करनी है...
बहुत दिन से सोच रहा हूँ तुझसे बात करुं....
पर समझ नहीं आ रहा था... मैं सही हूँ या नहीं...
बहुत सोच विचार के बाद अब इस नतीजे पर
पहुँचा हूँ... अब तुझसे बात करना जरूरी हो
गया है... मैं नहीं जानता तेरा रियेक्शन क्या होगा...
बाबू जी मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा...आप
क्या कहना चाह रहे हैं.......
क्रमशः--
कहानीकार-रजनी कटारे
जबलपुर ( म.प्र.)