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नज़राना इश्क़ का (भाग : 11)




फरी तेज तेज कदमों से चलते हुए जा रही थी, हालांकि उसने सारी तैयारियां बिलकुल समय पर की थी मगर फिर अचानक उसे याद आया कि वह अपना चश्मा तो लेना ही भूल गई, वह तेजी से वापिस अपने कमरे की ओर जा रही थी। अब तक वह काफी दूर निकल आई थी, वह दौड़ना चाहती तो चाहती थी मगर उसे इस वक्त चलते हुए भी बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था, दौड़ने की तो हिम्मत जैसे खत्म हो चुकी थी। जल्दी जल्दी चलते हुए उसने अपना चश्मा उठाया और वापिस मुड़ी, मगर उसने देखा कि कमरे से अजीब सी बदबूदार गंध आ रही थी, वह बैग बिस्तर पर पटककर किचेन में भागी, वहां उसने देखा कि गैस लीक कर रहा था, शायद वह बंद करना भूल गई थी। ये देखते ही फरी ने अपना माथा पीट लिया।

"हे भगवान! ये सब आज ही होना होना था क्या..!" चिल्लाते हुए उसने गैस सिलेंडर की नॉजल बंद कर दिया। "अच्छा हुआ जो चश्मा भूल गई थी वरना आज तो…!" बड़बड़ाते हुए वह ताला बंद कर तेजी से नीचे की ओर भागी। वह तेज तेज कदमों से चलते हुए बस स्टॉप की ओर भागी, बस स्टॉप (सड़क किनारे वह स्थान जहां बसें थोड़ी देर के लिए रुकती हैं!) अब बिल्कुल नजदीक था, वहां उसकी बस खड़ी नजर आ रही थी, फरी की चाल में तेजी आ गई अब वह बस से मात्र चंद फासले की दूरी पर थी, तभी बस चल पड़ी वह दौड़ते हुए उसके पीछे भागी मगर तब तक बस काफी दूर निकल चुकी थी, वह थककर वही बैठ गई, दूसरी बस की इंतजार करती तो कॉलेज जाने में लेट हो जाता।

"अब और कुछ होने को बचा है क्या…!" फरी दोनो हाथों से अपना सिर पकड़कर बैठते हुए चिल्लाई। "शांत फरी..! तुमने जिंदगी में इससे बहुत ज्यादा कीमती चीजों को खोया है, बहादुर लोग किसी चीज का शोक नहीं करते!" मन ही मन बड़बड़ाते हुए वह खुद को समझाने लगी।

"तो क्या मैं यहीं बैठकर वैट करूं? अरे नहीं यहां से थोड़ी दूर पर भी तो एक और बस स्टॉप है, और वहां की बस इससे पंद्रह मिनट बाद की होती है, इतनी देर में तो मैं आराम से वहां पहुंच जाऊंगी।" खुद से बातें करते हुए फरी वहां से पास वाले स्टॉप पर जाने लगी।

◆◆◆◆◆

"क्या भाई! आज पहले ही दिन लेट करा दिया तूने मेरा?" तेज चलते हुए जाह्नवी निमय से आगे निकलती हुई बोली।

"अरे नहीं, अभी तो बहुत टाइम है देख अब हम स्टॉप पर पहुंचने ही वाले हैं!" निमय उससे तेज चलता हुआ उसके बराबर में आ खड़ा हुआ।

"हुंह..! पता है मेरे को..!" पैरों को घसीटकर निमय पर धूल उड़ाते हुए जाह्नवी बोली। ये देखते ही निमय जबड़ा भींचकर उसके पीछे भागा। जाह्नवी हँसते हुए उससे भी तेज दौड़ी, अब तक दोनों बस स्टैंड तक आ चुके थे। अचानक निमय को समय ठहरता हुआ सा महसूस हुआ, सब रुका रुका सा लगने लगा, उसे काफी धीरे से एक अपनी ओर आती हुई एक बस दिखी, सामने की गली से निकलकर तेजी से आती हुई फरी की एक झलक दिखी, और अगले ही पल वह बस के पीछे छिप सी गई, निमय वहीं का वहीं खड़ा अपलक निहारता रहा, उसके लिए मानों समय रुक गया था मगर जाह्नवी ने अब तक फरी की ओर ध्यान न दिया था।

"ओए कनखजूरे! जाना है कि नहीं, या आज इसी सड़क पे खड़े होकर सपने देखना है!" जाह्नवी ने उसके सिर पर धीरे से ठोकते हुए कहा। मगर निमय को यह सब स्लो मोशन में लग रहा था जिस कारण उसे चोट का एहसास तक न हुआ। वह बस के दूसरी ओर से निकलती फरी को निहारने में लगा हुआ था।

"अबे गधे! तुझे कॉलेज जाना है कि नहीं! मैं ही बेवकूफ थी जो तेरे साथ आने का बोली, एक तो रातभर मुझे सोने नहीं देता ऊपर से दिन में भी खुद ही सपने देखने हैं। बहुत सही..! अभी कॉलेज में दिमाग चाटने के लिए बहुत सारे पहले से ही रेडी बैठे होंगे।" जाह्नवी ने झुंझलाकर उसको खींचते हुए कहा। "बस जाने के बाद जागेगा क्या..!?" जाह्नवी ने उसे खींचते हुए कहा।

"अरे नहीं! चल ना त.. तू अभी यहां क्या कर रही है, बस चली जायेगी तो..!" निमय उसे वहां खड़ा देखकर बेहद हैरानी से बोला।

"हे भगवान! किस जानवर से पाला पड़ गया है मेरा..! मैंने कौन सा तेरे घर में डाका डाला था भगवान जिसकी ये सजा दे रहा है!" जाह्नवी तेजी से बस की ओर भागी, दोनो जल्दी जल्दी बस में चढ़ गए। पूरी बस लगभग पूरी तरह भरी हुई थी, यहां कुछ लोगों के उतरने के कारण बस एक सीट खाली थी जिसपर एक लड़की बैठी हुई थी और जिसने अपना चेहरा दुपट्टे से ढक रखा था। निमय ने जाह्नवी को वहां बिठा दिया और खुद उसके बगल में खड़ा हो गया। बस हिचकोले खाती हुई तेजी से आगे बढ़ी, खिड़की खुली हुई थी, हल्की हवा के कारण उस लड़की का दुपट्टा चेहरे से सरक गया, उसके चेहरे को देखते ही जाह्नवी शॉक्ड रह गई!

"त..तुम" जाह्नवी के मुँह से बस इतना ही निकला। वह खड़ी होने वाली थी मगर किसी तरह उसने खुद को संभाल लिया।

"हे हाय! माफ करना मैं बाहर की तरफ देख रही थी इसलिए आप पर ध्यान नहीं गया।" फरी ने बड़े ही मधुर स्वर में कहा। आवाज सुनकर निमय स्वप्न से जागा उसने देखा फरी उसके बहन के साथ उसी सीट पर बैठी हुई थी। उसके दिल के धड़कनो की रफ्तार बढ़ने लगी, मानो आज उसका दिल उसकी पसलियों के कैद को तोड़कर आजाद हो जाना चाह रहा हो।

"ह ..हे!" निमय अटकते हुए बोला।

"हाय! तुम भी तो हमारे ही कॉलेज में पढ़ते हो न!" निमय के बोलने से पहले ही फरी मुस्कुराते हुए बोली।

"हाँ! भाई है मेरा और कुछ?'" जाह्नवी ने रूखे स्वर में कहा।

"ओह्ह हाँ याद आया! थैंक यू..! पर मुझसे तो कोई बात ही नहीं करता!" अचानक चहकते हुए फरी बिल्कुल शांत हो गयी।

'लो अब इनके अलग नखरे देख लो, पूरा कॉलेज इनके पीछे पड़ा है और ये कहती हैं कि इनसे कोई बात नहीं करता वाह!' मन ही मन तंज कसते हुए जाह्नवी बुदबुदाई।

"अ… अरे ऐसी कोई बात नहीं है जी!" निमय किसी तरह खुद पर काबू पाने की कोशिश करते हुए बोला।

"फरी! फरी बोल सकते हैं आप मुझे, अपने ही क्लासमेट्स से जी का सम्बोधन अजीब लगता है!" फरी ने बड़े प्यार से कहा। 'हे भगवान मुझे खुद नहीं पता मैं क्या बोले जा रही हूँ, पर न जाने क्यों इन दोनों से मुझे अलग फील होता है, ये बाकी सबकी तरह दिखावटीपन नहीं रखते..!' मन ही मन फरी उलझी हुई सी थी।

"ज..जी फरी जी!" निमय ने हकलाते हुए कहा।

"लीजिये..! अब मैंने एक बार जी बोलने को मना किया तो आगे पीछे दोनो तरफ जी लगा दिया।" फरी ने हँसते हुए कहा।

"ओह्ह! हाँ..! कभी कभी क्या होता है ना कि समझ नहीं आता क्या बोले इसलिए….!" निमय ने अपना वाक्य अधूरा रहने दिया।

"कोई न! अभी अभी तो बात शुरू हुई है, फिर सब समझ आ जायेगा कि क्या बोलना है!" फरी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाँ! ये बात भी सही है आपकी!" निमय ने भी धीरे से हँस दिया। "मेरा नाम निमय है!" निमय उनकी सीट से सटकर झुकते हुए उनके बिल्कुल क्लोज होकर बोला।

"हाँ जानती हूँ! आप दोनों तो पूरे कॉलेज में मशहूर हैं..!" फरी ने दाँत दिखाते हुए कहा।

'बस करो यार तुम दोनों, आज तो ये दोनों मेरे सिर कहा जाएंगे! और ये लड़की देखो तो कितनी भोली बन रही है, मतलब मुझे इतना हर्ट करके संतुष्टि नहीं हुई तो मेरे भाई के पीछे लग गयी।' जाह्नवी ने मन ही मन फरी को कोसते हुए निमय को घूरा।

"क्या हुआ?'" निमय ने बड़े प्यार से पूछा। आज फरी से बात हो जाने के कारण निमय बहुत खुश नजर आ रहा था।

"कुछ नहीं!" जाह्नवी ने मुँह बनाया।

"बोल तो सही जानी!" निमय ने उसके बालों की चोटी खींचते हुए कहा।

"मैं तेरे हाथ से अपना खून रंग दूंगी, घर तो चल…!" जाह्नवी गुस्से से चिल्लाती हुई बोली, सभी का ध्यान उन दोनों की ओर चला गया, निमय अपना मुंह पकड़कर जोर जोर से हँसने लगा। जाह्नवी को जैसे ही समझ आया कि उसने क्या बोल दिया वह दूसरी ओर मुँह करके बैठ गयी। निमय उसे देखकर हीही करता रहा, पूरे बस में हँसी की लहर गूंज गयी थी।

"चलो अब कॉलेज आ गया।" निमय ने जाह्नवी को उठाते हुए बोला।

"ओह्ह..!" फरी जैसे नींद से जागी, बस रुकते ही वह तेजी से नीचे उतर गयी।

"चल जल्दी नीचे उतर!" निमय ने जाह्नवी का बैग खींचते हुए कहा।

"हुंह जा ना दूसरों से बात कर, मैं कौन लगती हूँ तेरी!" जाह्नवी बस से नीचे उतरते हुए मुँह लटकाकर बोली।

"अबे यार! तुझे पता है ना जानी कि मेरी लाइफ में कोई भी आये तेरी जगह कोई नहीं ले सकता।" निमय ने मुस्कुराते हुए कहा।

"मगर मैं नहीं चाहती कोई आये भी…!" जाह्नवी कहते हुए उससे आगे निकल गयी।

"ये तो गजब लोचा है यार अब इसका क्या होगा.. निमय तेरा तो कल्याण होने वाला है!" निमय का चेहरा उतर गया। अगले ही पल उसे कुछ याद आया और वह तेजी से गेट की तरफ भागा।

क्रमशः….!


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8 Comments

🤫

27-Feb-2022 01:22 PM

इंटरेस्टिंग स्टोरी देखते हैं आगे क्या रंग मिलते हैं।

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Thank you so much ❤️

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Seema Priyadarshini sahay

02-Feb-2022 04:06 PM

मनोज जी बहुत अच्छी पकड़ है आपकि लेखन पर

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Dhanyawad ma'am

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Punam verma

21-Jan-2022 08:58 PM

Nice

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Thank you

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