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नज़राना इश्क़ का (भाग : 13)





शाम ढलती जा रही थी, निमय छत पर टहलते हुए गीत गुनगुना रहा था। अपने बसेरे को वापस जा रही पंछियो को आवाज लगा रहा था, उनको ऐसे ही कोई भी नाम देकर पुकार रहा था। आज वह बेहद खुश नजर आ रहा था मगर उसकी हरकते उतनी ही उलूल जुलूल लग रही थीं। वह बस छत पर इस ओर से उर ओर तक बेवजह चलता जा रहा था।

"ओये क्या कर रहा है?" जाह्नवी सीढ़ियों को चढ़ती हुई उसको आवाज लगाते हुए बोली।

"पकौड़े तल रहा हूँ, तुझे भी खाना है?" निमय ने बेपरवाही से जवाब दिया।

"सच बता क्या कर रहा है?" जाह्नवी उसको छत के चक्कर लगाते देख बोली।

"तेरे लिए भाभी ढूंढ रहा हूँ!" निमय ने सिर खुजाते हुए कहा।

"यहां छत पे?" जाह्नवी आँखे फाड़े उसे घूर घूर कर देखने लगी।

"अरे नहीं! सच में….!" निमय वही बैठता हुआ बोला।

"अच्छा सुना सुना कहा मुलाक़ात हुई फिर तेरी उससे?" जाह्नवी उसके सामने पालथी मारकर बैठते हुए चेहरे को हाथ पर टिकाकर बड़े आराम से सुनने बैठ गयी।

"अरे बहुत लंबी कहानी है, पूरी कहानी में दुख ही दुख है…!" निमय ने लंबी साँस भरते हुए कहा। "हुआ ये कि आज मैं….!"

"आज तू मेरे साथ कॉलेज गया था घोंचू!" जाह्नवी उसकी बात काटते हुए बोली।

"अरे हां यार!" निमय ने अपना सिर पिट लिया। "तभी तो कहानी दुखद है बे…!" अचानक उसके दिमाग में कोई खुराफात सूझी और वो तेजी से उठकर खड़ा होते हुए चिल्लाया। जाह्नवी दोनो हाथों की हथेलियों को जोड़कर उसपर ठुड्ढी टिकाये नजर उठाकर उसके चेहरे की ओर करते हुए गौर से देखने लगी।

"हाँ! तुझे आज पागल कुत्ता काट गया।" जब निमय कुछ न बोला तो जाह्नवी ने धीरे से कहा।

"नहीं, मुझे पता चल गया कि मेरी प्यारी बहना को कोई भाभी वाभी नहीं चाहिए..!" निमय ने हीही कर हँसते हुए कहा।

"हुंह…! इसमें दुखद क्या है मिस्टर पकौड़ेलाल?" जाह्नवी ने यूँ पूछा मानो एग्जाम में दस नंबर का यही आने वाला हो!

"यही कि अब से मेरा थिएटर जाना बंद हो जाएगा.. क्या करूँ जब कुछ करना ही नहीं है तो…!" निमय ने दाँत दिखाते हुए अपने चेहरे को दोनों हाथ से छिपाते हुए कहा।

"तो मुजरा कर, तेरे एक्शन तेरे एक्सेंट से मैच नहीं कर रहे!" जाह्नवी उठकर मुड़ते हुए बोली।

"तेरे तो जैसे बड़ा मैच करते हैं नकचढ़ी घोड़ी गधी…!" निमय ने मुँह बनाते हुए कहा।

"जा जा लाखों आये तेरे जैसे और गए…!" जाह्नवी ने नीचे उतरते हुए कहा।

"मगर उन लाखों में से किसी के पास तेरे से तीन मिनट पहले से आकर तुझे झेलने की हिम्मत नहीं रही होगी! मेरी ही किस्मत खराब थी…!" निमय चिल्लाते हुए उसके पीछे पीछे उतरने लगा।

"हाँ मेरी तो बड़ी अच्छी है ना जो तुझे झेलना पड़ रहा है।" जाह्नवी ने मुँह बनाते करते हुए कहा।

"अरे कभी तो शांत रह लिया करो तुम दोनों, ये घर घर कम, अजायबघर ज्यादा लगता है!" मिसेज़ शर्मा ने दोनों को चुप कराते हुए कहा।

"तो आप से किसने कहा था इस घर में इस जानवर जनने को..!" दोनो ने एक साथ एक सुर में एक दूसरे की ओर इशारा करते हुए कहा।

"चुप! एकदम चुप! हर चीज की एक सीमा होती है बच्चों, मजाक की भी! अब तुम लोग बड़े हो रहे हो, बढ़ती उम्र के साथ जिम्मेदारियां बढ़ती हैं और बढ़ती जिम्मेदारियों के खुद को भी बड़ा करना बहुत जरूरी होता है।" मिसेज़ शर्मा ने उन दोनों को डाँटते हुए समझाया। दोनो का सिर झुक गया, दोनो एक दूसरे को कातर निगाहों से देख रहे थे।

"जानी! जाओ दो कप चाय बना लाओ..!" मिसेज़ शर्मा ने जाह्नवी से कहा।

"बस दो कप? मेरे लिए भी बना देना!" निमय ने अपनी मम्मी की ओर ताकते हुए कहा।

"दोनो कप मैं पियूंगी..! तुम्हारे बेकार के झगड़ों के कारण मेरे शरीर में चाय की बेहद कमी हो गयी है।" मिसेज़ शर्मा ने अपने हाथ को सहलाते हुए कहा।

"क्या यार मम्मी कोई ढंग का रीज़न तो बता देती, कसम से बायोलॉजी आत्महत्या कर लेगी तेरे प्रवचन सुन के..!"  जाह्नवी ने पैर पटकते हुए कहा, मिसेज़ शर्मा ने उसे थोड़ी देर घूरा फिर उसके कदम ऑटोमैटिकली किचन की बढ़ चले।

"तुम यहाँ क्या खड़े हो?" मिसेज़ शर्मा ने अब तक वही खड़े निमय से पूछा, तभी उसके मोबाइल में रिंग होने लगा वह जेब से मोबाइल निकालता हुआ तेजी से छत की ओर भागा।

"हाँ बोल विक्की..!" निमय ने इयरफोन कान में घुसेड़ते हुए बोला।

"तो क्या लड़ाई झगड़ा कर चुके शाम का?" विक्रम ने हँसते हुए पूछा।

"तुम्हें नहीं लगता तुम कुछ ज्यादा पर्सनल होते जा रहे हो?" निमय ने उखड़ते हुए कहा।

"अच्छा छोड़ ये बता पार्टी कब दे रहा है?" विक्रम ने मुद्दा बदलते हुए कहा।

"अच्छा पार्टी..! वो किसलिए…!" निमय ने अनजान बनते हुए कहा।

"अच्छा अब इतने भोले भी ना बनो..! दिल के तार जुड़ने लगे हैं, अब तो बस गिटार बजने को है… फिर होगा नागिन डांस!" विक्रम मसखरी करता हुआ बोला।

"नागिन डांस क्यों?" निमय ने ऐसे कहा, मानो उसे कुछ भी समझ ही न आया हो।

"शादी में नागिन डांस नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे!" विक्रम हँसते हुए मसखरी कर बोला।

"बहुत सारे डांस होते हैं इसके अलावा, पर शादी किसकी है?" निमय ने किसी मासूम बच्चे की भांति पूछा।

"वाह गजब निम्मी! ऐसे मासूम तो मत बन भाई…! जानी बिल्कुल सही बोलती है, फ़िल्म देख देख के तुझे भी एक्टिंग का बहुत चढ़ गया है।" विक्रम रूठे स्वर में बोला।

"हाँ बताएगा तब तो जानूँगा न, और जानी ने ऐसा कब कहा?" निमय थोड़े जोर से बोला।

"मतलब बोल देगी न कभी न कभी!" विक्रम झुंझलाते हुए बोला। "बात बदलने में तो माहिर हो गुरु, कहाँ की बात कहाँ ले जाकर उलझा दिए हमको, पर याद रखना पार्टी तो चाहिए हमें!" विक्रम हीहीही करते हुए बोला।

"हाँ चल चल पार्टीखोर आदमी, मिल जाएगी पार्टी अभी भेजा मत खा!" निमय ने मुँह बनाते हुए कहा।

"वाह जी जब से लड़की आयी लड़का बदल गया, सही बात कहते हैं लोग… अभी एक दिन बात हुई और इतना चैंजिंग…! हाऊ… इट्स वॉन्ड्रिंग..!" विक्रम ने मुँह बनाते हुए कहा, जिसे सुनते ही निमय जोर जोर से हंसने लगा, निमय को हँसते देख विक्रम भी हाहा.. करने लगा।

"ऐसा कुछ ना है भाई, पर तुझे तेरी पार्टी मिल जाएगी…!" निमय ने हँसते हुए ही कहा।

"बदल तो तू गया है लड़के… संभाल ले खुद को!" विक्रम ने हंसते हुए कहा।

"अरे हां, बाद में बात करता हूँ!" कहते हुए निमय ने फ़ोन रख दिया।

'कैसे संभालूं खुद को यार, मैं चाहकर भी मेरे और अपनी बहन के बीच किसी को नहीं आने दूंगा, इससे वो बहुत हर्ट होगी जो कि मैं बिल्कुल नहीं कर सकता! मगर उसे देखने, उसके साथ होने, उससे बातें करने में अजीब सा सुकून है, मानो जैसे वो मेरे लिए ही बनी हो, उसकी आंखें ऐसी की गजलें लिखते लिखते दुनिया की सारी कलमों की स्याहियां खत्म हो जाये मगर उन आँखों की खूबसूरती बयां न कर सकते, लफ़्ज़ों में दिलकशी, उफ्फ उसका तेवर, उसका सादापन उसकी हरेक अदा मेरे दिल को मेरे सीने से निकलकर उसके पास चले जाने को विवश कर देती है। मैं खुद को संभालना चाहता हूँ पर जितना कोशिश करता हूँ, उससे कई गुना ज्यादा प्यार होते जा रहा है, दिन ब दिन उसे देखने, उससे बातें करने, उसे चाहने, उसे पाने की ख्वाहिश बढ़ती जा रही है, मैं अपने दिल को लाख समझाऊं मगर ये मानेगा नहीं! मगर प्यार कितना भी ज्यादा हो जाये, मुझे वो बिल्कुल मंजूर नहीं अगर उससे मेरी बहन को रत्तीभर भी तकलीफ पहुँचे…! मैं क्या करूँ? कैसे संभालूं खुद को..? आखिर कौन सा फैसला लून जिसपर मेरा दिल दिमाग दोनो टिक सके…?"   निमय का मुस्कुराता हुआ चेहरा मुरझा चुका था, सिर में हल्का सा दर्द उठने लगा था उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे..! वह तेजी से नीचे उतरता गया।



रात को डायरी में अपने यही ख्यालात लिखते हुए वह गहरी सोच में डूबा हुआ था। जाह्नवी पढ़ते पढ़ते टेबल पर सिर रखकर चेयर पर सो गई थी। निमय उसके चेहरे को देखकर मुस्काया, मगर आँखे बंद करते ही उसके सामने फरी का मासूम चेहरा उभरने लगा।

"काश! काश! कोई इस वक़्त मुझे एक सच्ची सी राय देता डायरी, मुझे नहीं पता कि मैं सही गलत क्या कर रहा हूँ पर सच तो ये है कि मैं लाइफ में पहली बार इतना अधिक उलझा हूँ, मुझे समझ नें नहीं आ रहा है कि इतनी उलझन क्यों है। एक बार दिल कहता है कि जो करना है कर जो होगा देखा जाएगा, फिर दुबारा वही दिल डरते हुए कहा है नहीं, इस चीज से बचकर रहो, बड़ी जुल्मी है  ये इश्क़ की राह, अपनो को पराया कर देती है। अब तुम ही बताओ मैं कौन से वाले दिल की बात सुनूँ, क्योंकि दिल तो एक ही होता है ना?

ये उतनी बड़ी मुश्किल भी नहीं है, दुनिया की किसी भी चीज को मेरे बहन के साथ दो में से एक चुनना हो तो मेरा हमेशा क्लियर है कि मैं जानी को ही चुनूँगा मगर इस बार मेरे दिल को दोनो चाहिए, दोनों ही दिल की सुकून बन गयी हैं। मैं खुद ही खुद को झुठलाते जा रहा हूँ, रोज पन्ने भरते जा रहा हूँ, हर बात जानी से कह देता हूँ मगर ये बात उससे भी छिपा रहा हूँ, माफ् करना जानी..! अभी तो मैं कंफ्यूज़न में हूँ पर इतना क्लियर है कि पहले तू, फिर बाकी दुनिया… मगर दुनिया से पहले फरी..! मुझे नहीं पता कौन कहाँ चाहिए पर मुझे चाहिए…! बहुत रोकता हूँ मैं खुद को मगर कितना मजबूर हूँ… बता नहीं सकता।

गुड नाईट डायरी…!
उम्मीद करता हूँ कल सूरज मेरी परेशानियों को हल कर सकने की उम्मीद की किरणों को लाये..!"

निमय ने लिखना बंद कर डायरी एक जगह रख दिया और जाह्नवी को उठाकर उसके बेड पर लिटा दिया। हालांकि दोनों के अलग अलग बेडरूम्स थे मगर उन्होंने स्टडी रूम को ही बेडरूम बना रखा था। जाह्नवी को सुलाने के बाद निमय भी थोड़ी देर में सो गया।

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फरी भी अपने स्टडी टेबल पर बैठी कुछ पढ़ रही थी, टेबल पर कुछ मोटी मोटी किताबें रखी हुई थी, पास में उसका हैंडबैग था, जिसके पास में पेन स्टैंड और एक खूबसूरत सा गुलदस्ता रखा हुआ था। पढ़ते हुए फरी अपने हाथ से पेन नचाते हुए कुछ गुनगुनाने लगी, और अपनी डायरी खोली।

"हाय डायरी!

मेरी दोस्त, मेरी सखी, मेरी बहन…!
तुमने हमेशा मेरा साथ दिया, तुम्हें तो पता ही है आज मेरे साथ क्या हुआ, मतलब इतनी भी बुरी सुबह नहीं थी मगर चलो कोई न! तुम्हें तो पता ही है जो होता है अच्छे के लिए ही होता है।

तुम्हें पता है आज एक लड़के से बात हुई, मतलब बस थोड़ी सी ऐसे बड़ा सकुचाता है वो, मैं भी बात न कर पाती पर उसकी हरकते देखकर बस मन होने लगता उससे बात करने का।

सच बताऊं ना तो मेरा बस इत्तु से नंबर ज्यादा लाकर फर्स्ट आना मेरे ही लिए मुसीबत बन चुका है, क्या अजीब दुनिया है यार! पता है डायरी वो लड़की खुद को सबसे बड़ी अमीरजादी समझ रही थी, लोग इतनी नीच हरकते कैसे कर लेते हैं। लोगो को किसी के जज्बात से ज्यादा अपने दौलत की पड़ी रहती है… जाने क्यों मिल जाते हैं मुझे ऐसे लोग.. एक से भागो तो दूसरा पीछे पड़ जाता है! ये दौलत की भूख और दौलत का नशा.. इंसान की आत्मा को खा जाता है क्या डायरी? जज्बात मर जाते हैं क्या लोगो के…!

काश कि तुम मुझे सबकुछ समझा पाती, कभी कभी मुझे भी महसूस होता है कि काश कोई मेरा भी दोस्त होता जिससे मैं अपने दिल की सब बातें कह सकूँ, आज जब उस लड़की के ऐसे अजीब बर्ताव करने के बाद मैंने अपना सीट छोड़ दिया न तो बाकी सबने मुझे अपने पास बिठाना भी ठीक नहीं समझा.. तुम नहीं जानती यह कितना बुरा लगता है। कितना मुश्किल होता है अंदर से रोते हुए जैसे हो जाने के बावजूद बाहर से खुद को स्ट्रांग बनाये रखना.. वैसे ये बात किसी को कहनी नहीं चाहिए, मैं भी तुम्हारे अलावा किसी से कुछ नहीं कहती…!

पर आज उसका घमण्ड, उसकी अकड़ देखकर मेरा दिल फिर से टूटने लगा था, ऐसे लगा मानो मेरा अतीत मेरे पीछे भाग कर मेरे पास आ गया हो, मगर तब उस लड़के निमय ने, वैसे भी तुम्हें बताती ही रहती हूँ इसके बारे में, उसने मुझे अपने पास बिठाया, यही नहीं उसकी बातें सुनकर मुझे बहुत हँसी आयी! वो सच में बहुत ही अच्छा लड़का है, मैं जानती हूँ दुनिया में सब एक जैसे नहीं होते कुछ मेरे बाबा की तरह भी होते हैं, जैसे ये निमय है.... अरे हां याद आया आज तो बाबा का भी कॉल आया था, पर मैं ठीक से बात न कर पाई, उनसे कल बात करूँगी ठीक से…! मैं भी तुमको कितना पका देती हूं न डायरी, पर मैं क्या करूँ तुम्हारे अलावा मेरा कोई है कि नहीं जिससे दिल में जो आये वो सब कह सकूँ…! अब तक तो तुम भी मेरा ये डायलॉग सुनकर बोर हो चुकी होगी..!

खैर गुड नाईट डायरी…!"

फरी अपनी डायरी एक ओर रखकर अपनी मम्मी की तस्वीर को निहारने लगी, थोड़ी ही देर में उसकी आंख लग गयी।

क्रमशः….


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5 Comments

shweta soni

29-Jul-2022 11:37 PM

👌👌👌

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🤫

27-Feb-2022 01:35 PM

कहानी अच्छी है। निमय खुद में ही उलझता जा रहा है। अब देखना है निमय आखिर क्या चाहता है। किसे चुनता है।

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Dhanyawad aapka 🥰

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Inayat

27-Jan-2022 12:47 AM

Fari kitni nishchl h

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Thank you

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