सांवरी–१२

सांवरी १२


गतांक से आगे–

अगले दिन सुबह ही काली गाड़ी लेकर भान सिंह डेरे के सामने पहुंच गए, सांवरी और धीरू को बिठा कर गाड़ी तेज़ी से जीवन ज्योति आशा क्लिनिक की तरफ बढ़ चली। कुंवर साहब ने पहले से ही सांवरी के लिए स्थान सुनिश्चित कर रखा था। क्लिनिक पहुंचते ही मुख्य डॉक्टर के केबिन में सांवरी को ले जाया गया, डॉक्टर माधुरी, एक बहुत अनुभवी डॉक्टर हैं जिन्होंने हजारों निसंतान दंपतियों का जीवन ivf प्रक्रिया द्वारा खुशियों से खिला दिया है।
सांवरी ये देख कर हैरान थी की कुंवर साहब और कुंवरानी भी वहां पहले से ही मौजूद थे।
प्राथमिक जांच के बाद सांवरी के कुछ टेस्ट भी करवाए गए।
डॉक्टर साहिबा ने परीक्षण के बाद मुस्कुराते हुए कहा कि उनकी नजरों में सांवरी गर्भ धारण के लिए हर तरह से तैयार लगती है, फिर भी जब तक सारे टेस्ट की रिपोर्ट नही आ जाती तब तक पुख्ता तौर पर कहना सही नहीं होगा।
टेस्ट की रिपोर्ट कब तक आ जायेगी, कुंवरानी जी ने पूछा, और टेस्ट के बाद हम कब आगे की कारवाही शुरू कर सकते हैं।
जी, टेस्ट रिपोर्ट तो कल तक आ जायेगी, पर हमको सांवरी की महावारी गुजर जाने का इंतजार करना होगा, और जैसा सांवरी ने मुझे बताया है शायद अगले हफ्ते हम  ivf की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं, आप दोनो के egg और स्पर्म हमारे पास सुरक्षित हैं ही बस अब सांवरी तैयार हो जाए तो आगे की प्रक्रिया को शुरू करते हैं।
ठीक है, डॉक्टर माधुरी, आप हमे टेस्ट रिपोर्ट के बारे में बता दीजिएगा ताकि हम सारी कागजी कारवाही पहले ही पूरी कर लें, कुंवर साहब बोले, तो अब हमको इजाजत है ना।
जी हां, बस अगर सांवरी के मन में कोई सवाल है तो वो भी पूछ ले, कुंवरानी जी बोली, है कोई सवाल तुम्हारे मन में सांवरी।
ना हुकुम, हम तो थारे हुकुम का इंतजार कर रहे, सांवरी बोली, जो आपको सही लगे वो ही म्हारे लिए भी सही।
चलो फिर ठीक है, जब तुम महीने से फारिग हो जाओ तो बताना, तब तक अपने बापू का ख्याल रखो, कल जब रिपोर्ट आ जायेगी तब हम आप दोनो को कागजात पर हस्ताक्षर के लिए बुला लेंगे, कुंवरानी जी बोली।
जी हुकुम, खम्मा घणी, हम जारे इब हस्पताल बापू के पास.... कह कर दोनो बाहर निकल आए।
अगले दिन डॉक्टर माधुरी ने खुशखबरी सुना दी, सभी टेस्ट का परिणाम वही था जैसा उन्होंने सोचा था। सांवरी हर तरह से गर्भ धारण करने में सक्षम थी।
ना केवल वो सक्षम थी उनके अनुसार उनके यहां गर्भ धारण करने वाली महिलाओं में वो शायद बहुत अनुकूल थी। खबर मिलते ही, कुंवर साहब ने सांवरी और धीरू को  हवेली पर बुला भेजा और वकील साहब के द्वारा तैयार किया गया करारनामा भी सबके हस्ताक्षर से तैयार करवा लिया। मुंह मीठा करते हुए सांवरी और धीरू के सामने 10 लाख का चेक रख दिया गया।
चेक देख कर धीरू और सांवरी एक साथ बोले, यो के सै हुकुम।
ये तुम्हारी पेशगी, यानी वादे के मुताबिक 10 लाख का चेक है, इसे आप अपने खाते में जमा करवा दो।
पर हुकुम म्हारा तो कोई खाता न सै..... हम तो बंजारे हैं हम ने तो कभी बैंक के अंदर जा कर भी न देखा।
हाथ के हाथ, भान सिंह के साथ जा कर बैंक में दोनो के नाम का एक खाता खुलवा दिया गया और चेक उस खाते में जमा करवा दिया गया।
हर तरफ खुशी का माहौल था। उसी दिन सुबह सुबह भंवरलाल की बायोप्सी भी हॉस्पिटल में हो चुकी थी और उसे वार्ड में वापस भेज दिया गया था।
मुख्य डॉक्टर ने बताया था की अगले दिन रिपोर्ट आ जायेगी जिसके बाद आगे का इलाज किया जाएगा।
कहते हैं सुख दुख का चोली दामन का साथ होता है, एक के पीछे दूसरा चला ही आता है।
जहां एक तरफ किसी के सपने पूरे हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर विधाता कुछ और ही खेल रचा रहें थे।
अगले ही दिन सांवरी और उसके परिवार को एक बहुत ही खराब समाचार मिला।
बड़े डॉक्टर साहब ने बताया कि कैंसर का विस्तार भंवरलाल के गले में स्तिथ ध्वनि यंत्र (layrnx) को बुरी तरह क्षति ग्रस्त कर चुका था, इसलिए ऑपरेशन करके उसे बाहर निकालना पड़ेगा, यानी अब बाकी की जिंदगी भंवरलाल को अपनी आवाज से हाथ धोना पड़ेगा।
लेकिन अच्छी बात ये भी थी की कैंसर का असर अभी तक साथ में जुड़ी श्वास नली और भोजन की नली तक नहीं पहुंचा था, इसलिए भंवरलाल की जान को खतरा नहीं था, पर हां भंवरलाल बहुत किस्मत वाला था की समय रहते कैंसर का पता चल गया और नई चिकित्सा प्रणाली के द्वारा अब ऐसे मरीजों का इलाज संभव हो गया था।
डॉक्टर साहब उन्हें ये खबर देकर चलने लगे, और जाते जाते ये भी कह गए, की ऑपरेशन जितना जल्दी होगा खतरा उतना ही कम होगा।
क्योंकि कैंसर के सैल एक बार छेड़े जाने के बाद बहुत तेज़ी से फैलते हैं, इसलिए अगले कुछ ही दिनों में ऑपरेशन करना बहुत जरूरी।
इस खबर ने सांवरी, कजरी और भंवरलाल को एक दम सन्न कर दिया। तीनों को समझ ही नही आ रहा था, खुश हों या दुखी।
हां कहें या ना, एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई।
आखिरकार धीरू से रहा न गया, कमरे में छाई जानलेवा चुप्पी को तोड़ते हुए वो बोला, काका के सोच रहे हो, इलाज तो कराना ही सै, जुबान ही तो जावेगी, जिंदगी तो बच जावेगी।
हां बापू, धीरू सही बोल रहा सै, तो कै हुआ तू बोलेगा ना, हमने तो थारा साथ चाहिए, थारी जान बड़ी कीमती म्हारे और अम्मा के वास्ते....…
सांवरी के बापू..... छोरी सही कहवे सै, म्हारा सुहाग बच जावे कुल देवता का वरदान ही मानू मैं तो.....ओर कोई रस्ता भी तो ना सै..... कजरी भर्राई सी आवाज में बोली।
बिना आवाज का जीना..... समझ को नी आवे कजरी..... पर थम सब बोल रहे तो सुनना तो पड़ेगा मने।
आखिर कार जीवन की जीत हुई, चाहे कोई भी कीमत क्यों न देनी पड़े पर इंसान अपना जीवन और अपनो का जीवन तो हर हाल में बचाना ही चाहेगा ना।
धीरू ने जाकर डॉक्टर साहब को सबका साझा फैसला बता दिया, और डॉक्टर साहब ने बताया कि दो दिन बाद भंवरलाल का ऑपरेशन किया जाएगा।
भान सिंह ने भंवरलाल की खबर कुंवर साहब तक भी पहुंचा दी और साथ ही ये भी बता दिया की तीसरे दिन भंवरलाल का ऑपरेशन किया जाएगा।
कुंवर साहब और कुंवरानी समय निकाल कर हॉस्पिटल आए और उन्होंने भंवरलाल, सांवरी और कजरी को सांत्वना दी और साथ ही भंवरलाल के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना भी की।
इस सब घटना क्रम में एक हफ्ते का समय कब गुजर गया पता ही न चला, भंवरलाल का ऑपरेशन बहुत ही सफल रहा और करीब 10 दिन हॉस्पिटल में गुजार कर वो आखिर कैंसर से अपनी जंग जीत कर वापस अपने डेरे पर आ गया।
अब समय आ गया था सांवरी को अपनी कर्मभूमि में उतरने का। भरे गले से उसने मां बापू, धीरू के माता पिता , कबीले के सरदार और सभी लोगों से विदा ली और चल पड़ी अपने जीवन के एक नए सफर की ओर....

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – २२.०१.२०२२ 🌹🙏🏻❤️❤️

# लेखनी उपन्यास प्रतियोगिता हेतु


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1 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

23-Jan-2022 12:06 AM

Nice

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