Jaane Kahaa ??? The Revolution भाग 21
अपडेट 21
सुबह के 6 बजे थे, अचानक उसकी आँखे फिर खुल गयी और उसने अपनी खोली मे सूर्योदय का उजास देखा। अभी अहमदाबाद, गुजरात मे ठंडी का मौसम चल रहा था। जन्वरी 26, 2010 का सूर्योदय हो रहा था। प्रजासत्ताक दिन का माहोल आज छाया हुवा था।
जी हा, जय को आज मुक्ति मिलने वाली थी 26 जन्वरी 2010। अच्छा केरक्टर की वजह से जय की सज़ा दो साल कम कर दी गयी थी। जय उठा और नित्यक्रम निपटाकर फिर रोज की तरह मेडिटेशन मे बैठ गया। आंखे बंध की और श्लोक शुरु किया....
” गुरु र ब्रह्मा, गुरु र विष्णु, गुरु र देव महेश्वर,
गुरु र साक्षात पर ब्रह्म,
तस्मै श्री गुरुवे नमः,
तस्मै श्री गुरुवे नमः,
तस्मै श्री गुरुवे नमः।”
इतना बोलकर अपने गुरुदेव प.पु. श्री ब्रह्मानंद जी को अपने सहस्त्रार (मष्तिष्क) पे रख के नमस्कार किया और आँखे बंध कर के परमात्मा की अनुभूति मे बैठ गया। कुछ ही क्षण मे उसका शरीर ठंडा हो गया और अनुपम चैतन्य की अनुभूति उसे होने लगी। उसने अपना चित ब्रह्मांड मे खुला छोड़ दिया और सबकुछ भूलकर एकचित होकर मेडिटेशन करने लगा।
पीछले 5 सालो मे अगर इस जगह उसे VIP ट्रीटमेन्ट दी जा रही थी तो साथ मे उसका भाग्य परिवर्तन भी शायद हो रहा था क्युकी उसको साबरमती जैल के अब तक के सबसे अच्छे जेलर श्री इस्माईल मोहम्मद ख़ान का बहुत अच्छा सपोर्ट मिला था।
इस्माईल मोहम्मद ख़ान पक्का मुस्लिम था और पक्का नमाज़ी। दिन की 5 नमाज़ वो कभी भी नही चुकता था सिवा ड्यूटी के। उसने ही जय को कहा था की अगर ज़िंदगी मे कुछ पाना है तो सिर्फ़ अल्लाह के करमो रहम के सिवा इस जगत मे कुछ नही है। और इसीलिये पाक मुसलमान होते हुवे भी उसने जय को दो साल पहले जैल मे हुई स्वामी ब्रह्मानंद की मेडिटेशन की शीबीर अटेंड करवाई थी| वैसे तो जय सब साधु और स्वामी के नाम से ही दूर भागता था, क्यूकी आज जो उनकी हालत थी या तो उसे जो 12 साल की जैलयात्रा हुई थी उसका एक कारण था स्वामी रामानंद।
लेकिन स्वामी ब्रह्मानंद की पवित्र वाणी और संमोहक शक्तियो ने उसे मजबूर कर दिया की ये वोही परमात्मा है जिन की खोज वो बचपन से कर रहा था।
हालकी उसे अब तक उस बाबा की खोज थी जो बार बार उसे सपने मे आते थे, 9 साल की उम्र से जब जब भी उसे वो तीन सपने
• पहले आँखो के आगे अंधेरा छा जाना फिर
• एक समाधिष्ठ साधु का दर्शन
• एक औरत की छाती।
आता था तब तब उसका चित खराब हो जाता था, लेकिन जिस दिन से ब्रह्मानंद की बताई गयी साधना मे वो जुड़ गया तब से उसकी मानसिक स्थिति अच्छी होने लगी और वो तीन सपने काम आने लगे। जय हमेशा पीछले दो साल से ब्रह्मानंद बाबा को याद कर के आँखे मिच लेता था, तुरंत उसके सिर पर ठंडी शांति छा जाती और हमेशा उसे सुकून की नींद आ जाती। शायद इसीलिये पीछले दो साल मे जय ओर भी स्ट्रोंग चितशक्ती वाला आदमी बन चुका था।
आधे घंटे का ध्यान समाप्त कर के उसने पूर्णतः समर्पित होकर अपने गुरु को नमस्कार किया| सुबह सात बजने को आये थे। वो खड़ा हुवा और कोने मे पड़ी हुई एक फाइल मे रखे हुए कई लेटर्स को देखता रहा।
जिस तरह उसे ये मालूम नही था की कौन उसे पीछले 5 सालो से VIP ट्रीटमेन्ट दिला रहा है, उसी तरह उस फाइल मे रखे गये कई लेटर्स किसने लिखे थे और वो कौन है जो उसे एक नॉवेल की तरह एक कहानी लिख रहा था वो आज तक जान नही पाया था। वो लेटर्स पहले तो पोस्ट से आते थे। बाद मे कुरियर मे आने लगे। उसने कई बार कवर पे पोस्ट स्टेम्प पढ़ी थी। लेकिन अलग अलग शहरो के स्टेम्प होते थे। वो कौन ऐसा आदमी है जो पूरे साल मे पूरे इंडिया ही नही विदेश मे घूमते हुवे भी जय को लेटर्स लिखता था। टाइप किये हुवे लेटर्स थे, इसीलिए हेंड राइटिंग भी पहचानी नही जा रही थी। सिटी स्टेम्प कभी दील्ही के तो कभी लोकल अहमदाबाद के, कभी जयपुर के तो कभी लंडन से, कभी बोस्टन से तो कभी सिंगापुर से, कभी वाराणसी से तो कभी शिमला से। ये आदमी भी कौन है जो उसके फॅमिली, मा, बाप और कोई विक्रम सोहनी, क्रिष्ना उसके बच्चे, कोई बंसी नाम का नौकर, कोई रामेश्वर नाम का आदमी के बारे मे लिख रहा था। वैसे जय ने बचपन मे जोधपुर के बारे मे सुना तो बहुत था, अपनी मा से बहुत बार जिक्र हुवा था जोधपुर के बारे मे।
और जय को अपनी मा याद आई तो आँखो मे आँसू ओ के बादल छा गये। राजेश्वरीदेवी सचमुच एक देवी थी, जिसने अकेले, बिना अपने पति के अपने बेटे जय को बड़ा किया था और वो सब संस्कार दिये थे जो एक परम आत्मा मे होने चाहिये। वो हमेशा से कहती थी की जय का जन्म कुछ अलग उदेश्य से हुवा है, वो कोइ आम आदमी नही । और उसके हाथो से पूरे विश्व मे कोई बड़ा अच्छा कार्य होनेवाला है। इसीलिये जय पहले से ही धार्मिक था। महादेव का तो वो भक्त ही था, वैसे भी हर ब्राहमिन भोलेनाथ का पुजारी होता ही है।
जब उसे जैलयात्रा हुई,तब से जय अपनी मा से नाता तौड बैठा था। राजेश्वरीदेवी को मृत्यु के समान सदमा पहुचा था और उसकी जिहवा चली गयी थी। उसे गहरा सदमा वो हुवा था की वो अपने बेटे को कोई अलग मकसद से पाल पोसकर बड़ा कर रही थी और उसका बेटा कोई ऐसा संगीन जुर्म करे ये तो उसे बिल्कुल अंदाज़ा ही नही था।
जिस दिन कोर्ट ने फ़ैसला दिया, वो दिन जय का आखरी दिन था अपनी मा का चेहरा देखने का। जय को पहले पुने की जैल मे रखा गया था जहा उसने नर्क के समान ज़िंदगी गुजारी थी, लेकिन बाद मे जब उसे अहमदबाद मे शिफ्ट किया गया तो उसे जेलर अच्छा मिल गया और वैसे भी पीछले दो सालो मे स्वामी ब्रह्मानंद के सान्निध्य ने उसे और मक्कम बना डाला था। लेकिन उसी जेलर की वजह से उसे न्यूज़ मिले थे की उसकी मा लाचार हो चुकी है, गूंगी हो चुकी है और जूनागढ़ छोड़कर छोटे से सिटी तालाला मे रह रही है। (तालाला, जूनागढ़ डिस्ट्रिक्ट मे लायन्स की नगरी सासन गिर का तालुका है और वहा की केरी (मेंगो) वर्ल्ड फेमस है)।
जब जय को सज़ा सुनाने के बाद ले जा रहा था तब जय पुलिस वान मे बैठने से पहले पुलिस से परमिशन ले के अपनी मा के पैरो को छुने गया था। सब फोटोग्राफर्स वहा मौजूद थे। क्यूकी ये केस हॉट केक की तरह था और सब की निगाहो मे जय हॉट केक था, सब का यही अंदाज़ा था की थर्ड डिग्री से जय वो सबकुछ बोलेगा जिस से पूरे इंडिया की पोलिटिक्स की शक्लो सूरत बदल जायेगी।
लेकिन सब की धारणाओ से विरुध जय जब मा के पैर को छुने गया। राजेश्वरीदेवी ने आखो से अंगारे बरसाकर बोला “तू… मेरा बेटा खूनी, डकैत और बलात्कारी नही हो सकता, आज से तू मेरा बेटा नही और हो सके तो ज़िंदगी मे अपनी सूरत कभी मूज़े मत बताना। मैने तुजे मरा हुवा मान लिया है और तू भी समज ले आज से तेरी कोई मा इस दुनिया मे नही है। ये एक पवित्र मा की हाय है जो तुजे कभी चैन से ज़िंदा रहने नही देगी” एक एक शब्द जैसे अभिशाप था जय के लिये|
और सब पत्रकारो की फ्लेश एक साथ हुई और फ्रंट पेज पर छप गयी की ‘एक मा का अपने बेटे से रिश्ता टूट गया’, ‘एक बेटे ने अपनी मा को धोखा दिया’, ‘एक पवित्र मा का बेटा बलात्कारी, पापी, लुटेरा’। राजेश्वरीदेवी तो चली गयी और आज 10 साल हो गये थे उसे देखे हुये। इन दीनो मे जय को बिल्कुल हिम्मत नही हुई थी की वो पेरोल पे छुटकर अपनी मा से मिले। हालाकी कोई अंदर की शक्ति उसे ज़िंदा रखे हुये थी और उसका चित स्ट्रोंग बनाये हुये थी।
जय ने अपना सीना पत्थर का कर लिया था। बस जितनी भी गालिया उसने सुनी, लाते खाई, मार खाया, थर्ड डिग्री मे तो क्या क्या उसके साथ नही किया गया। डंडे घुसाये गये। कई रात तो वो दर्द से सो नही सका। हर दर्द वो इसीलिये सह गया की एक सब से गहरा दर्द उसकी छाती पर बैठ चुका था और वो था अपनी मा की नफ़रत। वो हर बार दर्द सहने के बाद अपने आप ही हस देता था की ज़िंदगी मे इस से भी ज़्यादा कोई दर्द होता है क्या?
एक बार तो उसका मूह खुलवाने के लिये उसे एक रूम मे उसे अकेला एक कुर्सी पर रस्सी से बांधकर छोड़ दिया गया और उपर एक बड़ी रस्सी के साथ एक बड़ा बर्तन जिसके नीचे छोटा सा छेद था, वो रस्सी के साथ बांधकर उस रस्सी को धीरे से हिला के छोड़ दिया गया और खोली को लॉक कर दिया गया। कभी क्षण मे तो कभी सेकेंड मे कभी मिनिट के बाद तो कभी दो तीन मिनिट्स के बाद, कभी एक साथ तो कभी बारी बारी पानी की बूंदे उस बर्तन से उसके सिर पर तो कभी गाल पर,कभी नाक पर तो कभी गले पर, कभी वो जुक्ता तो पीठ पर,कभी वो पिछे जुक्ता तो छाती पर, कभी जाँघ पर तो कभी पैरो पर गिरता और हर बार वो वेइट करता की अगली बूँद कहा गिरनेवाली है। लगातार उसे कई घंटो तक ऐसी मानसिक यातनाये दी गयी जिस के कारण जय न तो सो सकता था या नही तो कुछ और सोच सकता था। कोई और होता तो बूँद कहा गिरनेवाली है वो सोचकर ही पागल हो जाता। लेकिन जय नही जुका और वो बूंदे गिरने से पूरा शरीर इतना सेंसीटीव हो जाता है की आदमी पागल ही हो जाये और जय का भी शरीर सेंसीटीव हुवा फिर भी वो नही जुका। उसे आगे जेलने की ताक़त भी नही रही थी। मगर ये सबकुछ अपनी मा की नफ़रत के आगे कुछ नही था। जय को आश्चर्य तब हुवा था की वो अब तक ज़िंदा क्यू है, किस लिये था और अगर है तो अब वो क्या करेगा ?
क्यूकी दुनिया की नज़रो मे वो खूनी था, डकैती था, बलात्कारी था, स्केंडल चलाने वाला बुलडॉग था। अगर मुक्त होकर जेल के बाहर भी जायेगा तो कहा जायेगा, क्या करेगा? क्यूकी बाहर अभी भी कई कुत्ते उसकी राह मे बैठनेवाले थे। जो मूह पीछले 10 सालो मे उसने मौन का ताला लगाकर बाँध रखा था वो मूह खुलवाने के लिये कई ताक़त बाहर साम, दाम, दंड और भेद रूपी मायाजाल खोल के बैठे ही होंगे। इस माहोल मे क्या होगा, कौन जाने कहा…...
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सुबह के 10 बज गये थे और सिपाइ का बुलावा आ गया और बोला,”क़ैदी नंबर 222, आप को साहिब ने बुलाया है, कपड़े बदलकर आ जाओ।”
जय खड़ा हुवा और अपने कपड़े बदल के खोली से बाहर निकाला और धीरे धीरे चलकर जेलर की ऑफीस मे आया। इस्माईल मोहम्मद ख़ान ने उसे देखकर बोला,”आओ आओ जय कैसे हो?”
जय के मूह से आवाज़ निकली,”ठीक हु सर”|
“तैयार हो स्ट्रग्लिंग के लिये?” ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा।
जय बेरूख़ी से हसा और कहा,”पता नही सर”
“एक सलाह मानोगे?” ख़ान ने गंभीरता से पहली बार बोला।
जय ने सिर हा मे हिलाया।
“मुज पर एक लेडी का कॉल आया है की अगर मैने आज तुम्हे छोड़ दिया तो तुम्हारी जान को ख़तरा है” ख़ान ने कहा।
आश्चर्य से जय ख़ान को देखता रहा। थोड़ी देर के बाद बोला,”सर पुछ सकता हु की कौन है?”
खुल्ले दिल से हसकर ख़ान ने कहा,”जानता तो भी नही बताता, इतनी प्यारी आवाज़ थी उसकी। सुनोगे तो खड़े खड़े निकाह कर लोगे।”
लेकिन जय के मूह की रेखाये वैसी की वैसी ही रही।
“अरे भाई कम से कम हस तो दिया करो, आज तो तुम्हारी आज़ादी का दिन है, फिर भी चेहरे पे कोई नूर नही, क्या बात है?” ख़ान ने पुछा।
“सर, पीछले पाँच साल मैने शांति मे काटे है और अभी तो मूज़े मुक्ति का लेटर भी नही मिला और नयी मुसीबत के बारे मे आप बता रहे हो, क्या नूर आयेगा चेहरे पर” जय ने कहा।
“चलो थोड़ी सीरीयस बाते कर लेते है” ख़ान ने कहा,”देखो जय मेरा तेरे साथ दिल का रिश्ता बन चुका है, इसीलिये मै जो कह रहा हु उसे ध्यान से सुनो, तुम्हारा जो केस है उसमे पुलिस तो पिछे होगी ही, लेकिन एक सत्संगी समाज के कुछ गुंडे भी शायद तुम पे ध्यान रख सकते है, शायद इसी लिये कोई औरत तुम्हे अभी से अलर्ट कर रही है, इसके अलावा अभी भी जो माल तुम्हारे पास है उसके लिये पॉलिटिशियन्स भी तेरे पिछे लग सकते है। दूसरा जो तुम्हे VIP ट्रीटमेंट पीछले 5 सालो से दिला रहा है वो भी कोई मा का बेटा भाई नही होगा, ज़रूर कुछ मतलब से काम कर रहा है, ऐसे मे तुम जैसे ही बाहर निकलोगे, पूरी कायनत तेरे पिछे लगनेवाली है। शायद तुम्हे सांस लेने का मौका भी ना मिले। इसीलिये मेरा आइडिया ध्यान से सुनो। तुम्हारे यहा से निकलते ही शायद मुज पर फिर से फोन आयेगा, या तो बाहर कोई ना कोई तो तेरा इंतेज़ार कर ही रहा होगा। तुम आज के दिन कही छुप जाओ, दूसरे दिन तक तुम्हे जहा सेफ लगे या तो मै कुछ तुम्हारा बंदोबस्त कर ना लू तब तक कही छुप जाओ।”
जय ने ध्यान से सुना उसकी आँखे तंग हुई, कई सालो के बाद आज उसका अंदर का इन्सान खड़ा हो रहा था। क़ैदखाने के 10 सालो मे जय का बॉडी और कसा हुवा बन गया था। शुरुआत के सालो की सख़्त मज़दूरी ने उसे सख़्त बना डाला था, उस पर उस की आँखो के कोने मे क्रो’स फीट पड चुके थे (क्रो’स फीट याने आँखो के कोने मे चमड़ी की दो तीन लकीरे खिच जाना, जो कौवे के पैरो के पंजे के समान लगती है उसे इंग्लीश मे क्रो’स फीट कहते है और क्रो’स फीट आँखोवाला आदमी विचक्षण होता है। वो बहुत दूर तक की सोच सकता है और जल्दी से गर्मी नही ख़ाता। ठंडे दिमाग़ से सोचता है और फिर कार्य मे जुट जाता है)। जय की सिक्स्थ सेन्स बचपन से ही ख़तरनाक थी। और यही ख़ासियत उसे क्रिकेट खेलने मे काम आती थी। बोलर कौन सी गेंद कहा डालनेवाला है वो जय बोलर की आँखो और हाथो के इशारे से पहले ही समज लेता था और टाइमिंग के साथ बल्ला बॉल के पिछे लगाकर आराम से वो बेटिंग कर लेता था।
आख़िर जय बोला,”लेकिन सर मे छुप के कहा रह सकता हु ?”
“ये अल्लाह के बंदे का घर, या फिर एक होटेल जो मेरा जाना पहचाना है, लेकिन उस होटेल मे लड़किया ज़्यादा आती है दोस्त।” ख़ान ने आँखे मिचकर हस के पान खाते हुये बोला।
“आप को लगता है की मै होटेल मे रुकुंगा तो सेफ रहूँगा?” जय ने पुछा।
“इसका मतलब, होटेल मे ही जाओगे, जाओ मिया कोई बात नही जैसे तुम्हारी मर्ज़ी, लेकिन तुम्हे होटेल से बाहर नही निकलना है। यहा से बुरखा पहनकर मेरी बीवी के साथ पोलिसवान मे निकलोगे और डाइरेक्ट पार्सल टु धी होटेल रूहानी, ओवर टु खानपुर, बीहाइंड फेमस लकी टी, नीयर लाल दरवाजा, अहमदाबाद।” कहकर ख़ान ने जय को गले लगाया और आगे कहा,”मा के पास नही जाओगे क्या?”
जय ने होठ बिडकर बोला,”शायद वही जाउंगा।”
“एक बात पुछु जय बुरा तो नही मानोगे?” ख़ान ने गंभीरता फिर पकड़ ली।
जय ने फिर हा मे सिर हिलाया।
“माल कहा रखा है तुम लोगो ने?” ख़ान ने बॉम्ब ब्लास्ट किया और फिर आगे बोला,”देखो इसे पर्सनल मत लेना, मूज़े पर्सनली कोई इंटरेस्ट नही है इसमे, ये तो इसीलिये पुछ रहा हु क्यूकी जो तुम्हारे पास है उस से तो तुम आराम की ज़िंदगी गुजार सकते हो।”
“सर, मै आप से जूठ नही बोलूँगा लेकिन मूज़े खुद पता नही है की हमारे हाथो मे क्या है और इस से क्या बेनीफ़िट मिलनेवाला है?” जय ने कहा और आगे बोला,”मैने आख़िर मे अपने दोस्त साजन को दिया था, लेकिन अभी तो वो कहा है वो भी मूज़े पता नही है। पता नही की ज़िंदा भी है या मर गया साला” जय के मूह मे कड़वाहट आ गयी।
“ठीक है भाई तुम्हारी अमानत सम्भालो और फिर खोली मे चले जाओ, दो घंटे के बाद गाड़ी आयेगी और तुम्हे होटेल तक छोड़ देगी, ठीक है?” ख़ान ने एक थेला पकडाते हुवे कहा।
जय ने थेला पकड़ा । अंदर नज़र डाल के सब देख लिया और धीरे धीरे अपनी खोली मे वापस आ गया। लेकीन अब वो क़ैदी नम्बर 222 नही था। एक आम इन्सान के कपड़ो मे था। उसने स्कायबलु शर्ट और नेवी ब्लू जीन्स पहन ली थी। ये कपड़े भी दो दिन पहले उसने ख़ान से मँगवाये थे की जो कलर ख़ान को पसंद हो वैसा ही कपड़ा वो खरीद के ले आये। लेकिन ख़ान जो कपड़ा लाया था वो जीन्स बता रही थी की जमाना बदल चुका है। जब जय कॉलेज मे था तब सिंपल जीन्स आती थी, ये जीन्स स्किन टाइट थी और शर्ट शॉर्ट था। इनसर्ट तो हो ही नही सकता था। लेकिन अभी जय को कहा कपड़ो की पड़ी थी। वो जानता था की अभी बहुत कुछ जेलना बाकी है। उसे आज़ादी का लेटर अब मिल चुका था, लेकिन केवल ख़ान के कहने पर वो यहा रुका था वरना वो जैल की बाहर का सूर्य ज़रूर देखता। वो अपने बेड पर बैठकर अपनी जेलवाली पुरानी यादो मे जुड़ गया।
दो घंटे के बाद एक पुलिस वान मे उसे बुरखा पहनकर मिसीस ख़ान के साथ बिठाया गया और वान चलानेवाले को भी पता नही चला की अंदर क़ैदी नम्बर 222 को रिहा किया जा रहा है। पुलिस वान जैल से बाहर निकली और ड्राइवर ने दाई और एल.आइ.सी. भवन से आगे जाकर सी.जी. रोड पर लिया और आगे से स्टेडियम फाइव क्रॉस रोड पे ले ली और आश्रम रोड से आगे दाइ और लेकर एलिस ब्रिज पास करने के बाद खानपुर मे होटेल रूहानी के पास रुकी। होटेल रुहानी मे ऐसे कइ बार लडकीया आती रहती थी। खान का वो खास खबरी था इसिलिये ये होटेल खान के लिये खास थी।
दोनो बुरखाधारी महिलाये वान से उतरी और होटेल रूहानी मे चली गयी। फर्स्ट फ्लोर पर रूम नम्बर 202 जय को दिया गया और ख़ान की वाइफ थोड़ी देर मे नीचे चली आई तुरंत पुलिस वान मुडकर ख़ान के घर बाजु चली गइ और घर के पास रुकी। पुलिस वान अक्सर यहा आया करती थी तो किसी को आपत्ति नही होनी थी और यही मास्टर प्लान था ख़ान का की किसी अवरोध के बिना जय सुरक्षित होटेल तक पहुच जाये।
यहा जय अकेला रह गया अपनी उलज़न के साथ। ख़ान को मेसेज पहुचा दिया गया और ख़ान सुकून से पैर लंबे कर के बैठ गया, क्यूकी उसको तीन दिन पहले भरोसे वाले का कॉल आ चुका था की जय को केवल एकदिन के लिये अपने पास रखो या कोई सुरक्षित जगह पे पहुचा दो, वहा से जय को अपने मुकाम तक पहुचने मे कोई तकलीफ़ नही होगी। इसीलिये अब उसे किसी की परवा नही थी। उसकी रूह को सुकून मिला वैसा काम आज उसने कर दिया था।
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25th
जनवरी, 2010 ठीक जय के रिहा होने से एक दिन पहले मुंबई के छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डे पर जेट ऐरवेज़ लंडन से मुंबई तक की फ्लाईट ने दोपहर 12.40 पर लेंड किया| एक करीब 25 साल की युवती ने प्लेन से बाहर कदम निकाला और इंडिया की खुली हवाए अपने ठंडी आहो के साथ सास में भर ली|
उस लड़की ने पिंक कलर का टॉप और निचे व्हाइटिश ब्ल्यू कलर स्टोनवोश की स्किन टाईट जीन्स घुटनों तक पहनी हुई थी| घुटनों के नीचे उसकी व्हाईट स्किन सूर्यप्रकाश में चमक रही थी| बिलकुल विदेशी पार्सल थी वो| चेहरा भारतीय और अंडाकार था, बाल घुटनों तक लम्बे, हेयरपिन से सुव्यवस्थित बंधे हुये और आंखे नीली गहरी ब्ल्यू कलर की और पानीदार और उस के ऊपर नेवी ब्ल्यू कलर के बड़े गोगल्स, होठ मस्ती में बीडे हुये, ऊपर का होठ पतला और नीचे का थोड़ा आगे जुका हुवा और थोड़ा सा गालो की और फैला हुवा| व्हाइटिश पिंक कलर की लिपस्टिक लगी हुयी थी होठो पर| कुल मिलाकर इरोटिक होठ थे यौवना के| कमर पतली...जीरो फिगर का ज़माना जो था| लेकिन इस युवती का शरीर डायेटिंग से नहीं बल्की योगा और मेडिटेशन के साथ जीरो फिगर अपने आप बना हुवा था|
कमर पर व्हीटीश ब्राउन कलर का चमड़े का पट्टा जूल रहा था। और सिल्वर कलर की चैन जुल रही थी| नाक तीर की तरह सीधा और जब सासे लेती थी तो नाक के दोनों द्वार पे गुस्से का आवरण छा जाता था| गाल गुलाबी और गरदन सुराहीदार शराब जैसी| चलती थी तो आगे और पीछे लचक सी आ जाती थी| उसे चलते हुये देख कर वहा एयरपोर्ट पर सब की नजरे उस पर तनी हुयी थी| ब्लेक कलर के बीना हीलवाली सेंडल पहनकर वो मादक अदाओं से जैसे एयरपोर्ट के लाउंज में पहुची की उस ने अपनी पर्सनल पिंक कलर के छोटे पर्स से LG KE970 शाइन मोबाइल निकाला और उस का स्लाइडिंग कवर से मोबाइल का टॉप ऊपर किया| नल में से पानी गिरने की आवाज आती है वैसे आवाज से मोबाइल का कवर खुला और उस ने देखा की कोई इनबॉक्स में मेसेज है या नहीं?
कुछ ही पल में उसके मोबाइल में ‘oooooooommmmmm, ooooooommmmmmmm’ का नाद बज उठा| ये उस के मोबाइल की रिंगटोन थी| मेडीटेटर जो थी| इसीलिए अरेबिक्स उस के बोडी का हिस्सा बन चुका था| 5’ 6” की उचाई 55 केजी वजन| बड़ी ब्ल्यू कलर की सफारी एयरबेग लेकर वो एयरपोर्ट से बाहर निकलते हुए फोन को अपने बाल सहलाकर कान पे लगाया| राउण्ड शेइप की कड़ी के साथ ब्ल्यू डाइमन्ड्स जो कानो पे जुल रही थी वो सूर्यप्रकाश में चमक रहे थे| वहा शायद ही कोई ऐसा होगा जिस ने इस लड़की को नोटिस न किया हो|
वो फोन पर चिहुक उठी, ”मै इंडिया पहुच चुकी हु, आगे क्या करना है?” उस की आवाज में ट्रेबल कम और बॉस ज्यादा थी और ‘स’ या ‘च’ बोलते समय मुह से सीटी जैसे आवाज निकलती थी| आवाज मे मधुरता के साथ मादकता थी और सामने से फोन पर आवाज आयी,”अभी तुम मुंबई में इन्तेजार करो, वो कल छुट रहा है| मै बाद में फोन करता हु|” और फोन डिस्कनेक्ट हो गया| नवयौवना ने हर बार की तरह अपने फोन पर छानबीन की लेकिन हमेशा की तरह कोलर का नंबर स्क्रीन पर नहीं आया| वो थोड़ा मुस्कुराई और फिर तेज़ कदमो से बाहर जाकर आवाज लगाईं,”टेक्सी.......”
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मैसूर, वृन्दावन गार्डन, तारीख 15 जनवरी 2010, समय शाम की 5.30 बजे चार साधक गार्डन के एक ब्रिज में से वापस आते हुये बातचीत कर रहे थे:
एक, “हरी,
हरी...., वो 11 दिन के बाद आजाद हो रहा है|”
दुसरा,” हरी हरी...., उसका पीछा करना है, लेकिन याद रखना उसे पता नहीं चलना चाहिये की उस का पीछा हो रहा है, मैंने सूना है की बड़ा चालाक है वो|”
तीसरा,”वो जायेगा कहा? हरी हरी....., सीधा निशाने पर थोड़े ही जायेगा? अगर चालाक है तो पुरी छानबीन किये बिना नहीं जायेगा|”
चौथा जो उम्र में बुजुर्ग था उस ने कहा,”इसीलिये..... तो साधो.... शम्भो...., हरी हरी.... कह रहे है की संभाल के पीछा जो करना है| हरी हरी....आखिर हमें उसे कोई नुकशान नहीं पहुचाना है, वो भी मानव है और मानव को मानव से सिर्फ प्यार करना चाहिये...और यही हमारे गुरुदेव का आशिर्वाद है|”
ऐसी बाते बनाकर चारो साधक नजदीकी केन्द्र पर पहुचे| ये चारो साधक स्वामी रामानंद कृत ‘समाधी ट्रस्ट’ के साधक थे| उपर केशरी कुर्ता और नीचे सफ़ेद ढीली पेंट, ये उस का ड्रेस कोड था| फिर चारो उस केन्द्र में घुस गये|
स्वामी रामानंद का नाम पहले भी था और अब तो देश विदेश में प्रख्यात हो चुका था| लाखो की संख्या में साधक और साधिकाये उस के मिशन में जुड़े हुये थे| स्वामी रामानंद की अमृतवाणी में वो जादू था की हजारो और लाखो नहीं बल्की अलग अलग देश विदेश के करोडो परिवारों ने इसे अपना गुरु माना हुवा था| जीवन की छोटी से छोटी समस्या उस के सान्निध्य में आने के बाद जैसे समस्या नहीं समाधान बन जाता था|
ये चारो साधक सब से होशियार और कीसी भी समय में शांत रहनेवालो में से थे तो ये नया मिशन का काम उन चारो को दिया गया था| जय को शायद मालुम था की और कोई नहीं लेकिन स्वामी रामानंद के आदमी जरुर उसे कही कीसी मोड़ पे मिल ही जायेंगे| लेकिन कब और जाने कहा????....
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26th जनवरी 2010 साबरमती जेल के पास राणिप विस्तार में LIC बिल्डिंग के पास बाई और एक कोने में लक्ज़ुरियस स्पोर्ट्स सेडान ओडी कार खडी थी | जिस का नया मॉडल A-8 जो TDI (टर्बो इंजेक्शन टेक्नोलोजी) विथ एसी, 2698 सीसी और 4.2 V-8 डीज़ल एन्जिन, पावर स्टीयरींग, 6-स्पीड ट्रिप्टोनिक ट्रान्समिशन विथ डायनेमिक शिफ्ट प्रोग्राम विथ एलॉय व्हील्स और सिल्वर क्रोम मॉडल कार जिस की बाजार कीमत 72.75 लाख थी और अभी अभी 4 दिन पहले उस की डिलीवरी लेकर शोरुम से बाहर निकली थी | नंबर प्लेट ‘RJ’ से साफ़ पता चलता था की कार राजस्थान की है|
उस कार में 4’9” की थोड़ी मिडल एज की फेटिश लड़की ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई थी| ब्लेक और रेड ग्लास वाले गोगल्स उस के चहरे को पुरी तरह ढके हुये थे| मेईकअप का बिक्लुल नामोनिशान नहीं था| खुल्ले बॉय कट बाल, सफ़ेद टी-शर्ट और ब्ल्यू जीन्स पहनी हुयी थी| लेकिन येजिन्स स्किन टाइट नहीं थी| पेट पर कुछ चरबी चडी हुई थी| आँखे लगातार रास्ते को देख रही थी और थककर उस ने कार का एक ग्लास बटन दबाकर थोड़ा नीचा किया और डेशबोर्ड से क्लासिक मेन्थोल सिगारेट का पेकेट निकाला और एक सिगरेट लाइटर से जलाई और गेहरा कश ले लिया| उस की निगाहें जय का वेइट कर रही थी| उस ने कोशिश की थी जेलर खान से पूछने की लेकिन जवाब में सिर्फ ये आया की 26th जनवरी को रिहाई है मगर कब वो पता नहीं तो उस ने फैसला किया था की वो इन्तेजार करेगी|
थोड़ी देर के बाद एक पुलिस वान जेल से निकली जिस में कुछ पुलिसवाले और दो महिलाये बुरखा पहने हुये थी| किन्तु उस ओडी कार वाली लड़की को बिलकुल कल्पना नहीं थी की जो दो महिलाये थी उस में एक जय था|
अहमदाबाद के फुल ट्राफिक विस्तार में करीब डेढ़ घंटे से ये ओडी कार पार्क हुयी पडी थी और अब तक 6 सिगारेट वो लड़की पी चुकी थी| आखिर वो थककर कार से बाहर निकली और रिमोट से कार लोक कर के जेल के अन्दर चल दी| जेल के कम्पाउंड से लेकर वो जेलर की ऑफिस तक आयी और वहा जेलर खान आराम से पैर फैलाते हुये बैठा था उस की और बोली,”excuse me, मुझे जय पुरोहित के बारे में कुछ पुछना है|”
“आप कौन है और जय के बारे में क्या पुछना चाहती है?” खान ने सतर्क होते हुये पुछा|
“जी, मै उस की कजिन हु और उसे लेने आयी हु” उस लड़की ने कहा|
खान ने हसकर अपने कदम उठाये और कहा,”मेडम,
आप उस की कजिन है और आज अचानक इतने सालो के बाद आप को अपने भाई की याद आयी है ?”
अब उस लड़की ने अपना आपा खो दिया और गुस्से में बोली,”मी. खान..... अगर आप ने मुझे जय से नहीं मिलाया तो याद रखना कल तक आप की ट्रान्सफर अन्दामान निकोबार में हो जायेगी, आप जानते नहीं मै कौन हु ?”
खान आँखे बड़ी कर के खडा हवा,” ओ मेडम, धमकी किसे दे रही है आप? जो भी है और जो करना है वो बाहर जा के कीजियेगा, वैसे भी जय कब का रिहा हो चुका है| जाइये और इस दुनिया में जहा भी उसे ढूंढना है ढूंढ लेना, लेकिन यहाँ से दफा हो जाइये, वरना धमकी देने के जुर्म में कही आप यहाँ की मेहमान ना हो जाये” पुरे जोश में जवाब दे दिया|
उस लड़की ने तेज कदमो से बाहर निकलते गाली दी,” साले मा.... अगर कही जय गुम हो गया ना तो याद रखना तू जिंदगीभर मुझे याद रखेगा की किस मुसीबत से पाला पडा था” इतना बोलकर वो तूफ़ान की तरफ ऑफिस से बाहर निकली और रिमोट से कार का लोक खोला और कार बैठते ही स्टार्ट कर के तेजी से मेइन रोड पर ले गयी|
वो सोच रही थी की जरुर उन पुलिस वान से ही जय गया था, उस के पास पक्की इन्फोर्मेशन थी की जय कब और कितने बजे रिहा होनेवाला है, लेकिन ये नहीं पता था की जेलर खान उसे इस तरीके से भगायेगा| वो दो दिन से अहमदाबाद खान का पीछा कर रही थी तो जानती थी की आखिरकार पुलिस वान कहा जा सकती थी और उस की एसी कार ने स्पीड से खानपुर की और मोड़ ले लिया| उस के होठ सख्ती से बिडे हुये थे| आज कई सालो के बाद वो जय से मिलनेवाली थी| लेकिन किस मोड़ पर कब और जाने कहा???....
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दील्ही, ध केपिटल ऑफ़ इन्डिया, लाल किल्ला के पास से दाई साइड कोर्नर पर एक बिल्डिंग “सान्निध्य” का 4th फ्लोर,
समय दोपहर 11.55, तारीख: 16th जनवरी 2010| दिखने में कोई बड़ी कंपनी की ऑफिस लगती थी और बाहर बोर्ड भी लगा था कार्गो ब्रांड ऑफ़ इन्डिया ऑफिस और इस के अन्दर में होल के अन्दर जाते ही बाये सीधा होते हुये एक ए.सी. कोन्फ़रन्स रूम था वहा 5 आदमी बैठे हुये थे और एक लड़की भी थी, लगता था की कोई मल्टीनेशनल कंपनी के एक्जीक्युटीव्स की मीटिंग चल रही है|
हकीकत में वो भारत की सी.बी.आई. की इन्टेलीजन्स विंग की ऑफिस थी| लेकिन बहुत कम लोगो को पता था की ये सी.बी.आई. की ऑफिस है जब की बाहर बोर्ड से कीसी को यही लगता था की कोई मल्टी नॅशनल कार्गो शिपिंग ऑफिस है| नाम के शब्दों के पहले अक्षरों को पकड़ लो तो ही समज में आता था की ये सी.बी.आई. की ऑफिस है| ये ऑफिस को डायरेक्ट प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ इन्डिया की निगेहबानी में चलाई जा रही थी| सी.बी.आई. इन्टेलीजन्स विंग के कमिश्नर मी. जसवन्त सिन्हा एक कार्यदक्ष ऑफिसर थे| 59 की आयु, 6’ 7” की उचाई और पक्का पंजाबी, सेफरन कलर की पगड़ी, सफेद शर्ट, ब्लेक टाई के साथ ब्लेक पेंट और उपर से ब्लेक कोट पर से वो कीसी सुपर एक्जीक्यूटिव जैसे लगते थे| दाढी को नेट में सुव्यवस्थित बांधा हुवा था| आँखों पर सुनहरे फ्रेम के पतले ग्लासेस, जायंट पर्सनालिटी थी और उसे डायरेक्ट पावर दे रखे थे|
चार जेन्ट्स और एक लेडी की टीम उस के पास थी जो ऍफ़.बी.आई. अजेन्ट्स से कम नहीं थे| इन्डिया की ये सुपर इन्टेलीजन्स टीम इन्टरपोल, ऍफ़.बी.आई. या स्कोटलेंड यार्ड की पुलिस जैसी ही इन्टेलीजन्स और खतरनाक थी| ये सब कही भी कीसी भी वेश में पहुच जाते और देश के लिये जान की बाजी लगानेवाले ऑफिसर्स थे|
सब से पहले बड़ा करीब 42 साल की आयु वाला काले रंग का साउथ इन्डियन श्री रंगनाथन स्वामी, उस की दाई ओर 32 साल का मी. सुबोध पांडे, उस की दाई ओर मी. मृणाल गोस्वामी उम्र:35 और लास्ट में मी. सेंन्थेलाइन डीसोज़ा उम्र:36 और आखिर में लेडी थी मिस ग्रीष्मा कॉल उम्र:29 और फ्रेश यानी न्यू कमर थी वो इस विभाग के लिये|
“Well
Gentlemen good morning to all of you” कहकर कमिश्नर ने मीटिंग को संबोधित करना शुरू किया,”As
all of you well aware that we have a another case of super intelligence and The
Prime minister of India has personally taken attention in this case and
instructed us to do the best to solve the case as some political pressure may
arise in the case.”
“Bustard
politicians” ग्रीष्मा फुसफुसाई सब ने उस के सामने देखा और सब हस पड़े|
“My
dear young and beautiful lady, it is our duty to solve the case either
politicians involve it or not” कमिश्नर ने हसते हुये कहा|
“Yes
sir, but you know if they swine’s are involved in the case then definitely they
will not allow us as per our modes operandy and always they try to make a cat’s
paw of one coz they are wet blanket sir” ग्रीष्मा ने तीखी प्रतिक्रया में दलीले पेश की|
सब हसने लगे और डीसोजा बोल उठा, ”well, this is first case for your Grishma,
you’ll be definitely grow up baby.”
“oK
ladies and gentlemen, please calm down, let’s direct come to the point. We have
to follow the young prisoner who will be released on 26th January and get him
chase whenever he goes and trace out all the robberies papers by anyway as it
is fact anybody can do anything if those papers may not come to the safe hands
even though. That prisoner had also never speak out anything about the all
papers or cashflows and now, I’m sure he will pursue it or try to contact some
higher positioner gentlemen to blackmail, So, it is our duty to get stop him to
do anything which may danger to anybody as we are right now instructed, Any
doubt? कमिश्नर जसवन्तसिन्हा ने एक श्वास में बोल दिया और अपनी नजर सब पर घुमाई|
“No
sir” everybody speak out loud.
Then
get ready for operation ‘Youngistaan Revolution’” कमिश्नर ने हसते हुये और चश्मा ठीक करते हुये कहा|
“सर, आप ने तो पेप्सी की एड के स्लोगन को ही मिशन का नाम दे दिया,” मृणाल गोस्वामी ने मुस्कुराते कहा|
“No,
dear Goswami, you have a folder regarding the whole case, read it carefully, it
was really a revolution against the politics, against poorness, against the
system, against the religious ravanas. As per my point of view, they are
revolutionaries, so be careful we have to save that young boy by any way and by
any cost to stop him further involvement in the dirty politics and so that I
have given the mission name-Youngistan Revolution.” Commissioner replied,” now
any doubt? Please study the case carefully and get ready, you will be
instructed time to time and yes, Miss Grishma you please get ready as you have
to depart over to chase that young boy and point to point information should be
reached to me at any time anywhere I am.”
“And
yes, don’t fall down in love with him my poor girl” कमिश्नर ने जाते जाते मुस्कुराते हुये कहा|
सब हस पड़े.” No way
sir” खुल्ले मन से हसते हुये ग्रीष्मा ने जवाब दिया| ये वो टीम थी जिसे मरते समय भी हसने-हसाने की आदत थी| और मीटिंग ख़त्म होते ही ‘यंगीस्तान रीवोल्युशन’ शुरू हो गया|
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मुंबई, 24th जनवरी, समय शाम के 7 बजे, किंगसर्कल की चौपाटी पर समुन्दर के किनारे, नेकलेस ऑफ़ मुंबई की रोशनी में एक बेंच पर करीब 65 से 70 साल का एक आदमी बैठा हुवा था| उम्र के हिसाब से गरदन थोड़ी जुकी हुयी थी लेकिन ज़माने की हवाओं से उस की रूह को इतनी मजबूत कर दी थी की वो कीसी भी युद्ध का सामना अकेले कर सकता था।
उस ने इस जीवन में पाया बहुत कम था और गवाया ऑलमोस्ट सबकुछ था| वो ज़िंदा था केवल एक मकसद के लिए और वो इस वक़्त राह देख रहा था एक कोल की|शायद वो गुन्गा था क्युकी इशारो से बाते करता था|उस ने सफ़ेद सफारी पहना था, पैरो में काले बूट और बाये हाथ की हथेली से चेहरा ढके हुये वो समुन्दर के पानी में गिरती हुयी नेकलेस की रोशनी को देख रहा था|(किंगसर्कल में चौपाटी पर जो स्ट्रीट लाइट्स है उस की परछाई समुन्दर पर गिरती है| आप ड्रोन विजन से देखो तो समुन्दर को नेकलेस पहनाया हो ऐसा नजारा दिखता है| इसीलिए उस विस्तार को नेकलेस कहते है|)
वो बुढ्ढा सोच रहा था की कैसा अजीब द्रश्य है की किनारे पर लगाईं हुयी स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी पानी में गिरती है और जैसे समुन्दर ने नेकलेस पहना हो| जीवन में भी ऐसी कई आभासी खुशिया नजर के सामने आती है, लेकिन बाद में पता चलता है की जो दीख रहा है वो तो किनारो से कई दूर है और जो अन्दर है वो तो दिख ही नहीं रहा है|
कुछ देर वो युही बैठा रहा और फिर उठ कर खडा हुवा और धीरे धीरे चलते चलते नजदीकी होटेल रेडरोज की ओर चला गया| ये होटल थोड़ी सस्तीवाली होटलों में से थी| इसीलिए उसने वहा मुकाम रखा हुवा था| अभी उसे और चार दिन मुंबई में रहना था और फिर अपने मकसद को पाने के लिये शायद अहमदाबाद या तो जूनागढ़ जाना पड़ सकता था| उस ने होठ सख्ती में बीड रखे थे और अपने दोनों हाथो को कमर के पीछे ले गया और कमर को हाथो से सहारा दिया और चलता चला गया|उस के कदम कह रहे थी की वो अपने मकसद को पाने के लिये कुछ भी करने को तैयार था|
वो धीरे धीरे रोड क्रोस कर के होटल में पहुचा और लिफ्ट से अपने रूम में जाने लगा तभी रिसेप्शन से आवाज आयी,” एक्स्युज मी सर, आप के लिये फोन|”
वो सीधा काउंटर पर आया और फोन को कानो पर लगाया और “हु...उ...” की आवाज से सुन ने लगा क्युकी शायद वो बोल नहीं सकता था| सामनेवाला उसे कोई सुचनाये दे रहा था की अब उसे उस लडकी जो लंडन से आयी थी उस के पास जाना था| फिर फोन डिस्कनेक्ट हो गया| उस ने आँखों से ही काउंटर वाली लड़की को थेंक यु कहा और फिर चल दिया|
काउंटर वाली लड़की ने तुरंत पुछा,” एक्सक्यूज मी सर, लेकिन क्या मै जान सकती हु की फोन कहा से आया हवा था? प्लीज बुरा मत मानियेगा लेकिन मै इसीलिए पूछ रही हु क्युकी लेंडलाइन फोन के स्क्रीन पर कोई नंबर नहीं दीख रहा|
उस बुजुर्ग ने कुछ जवाब नहीं दिया और सिर्फ आँखों ही आँखों में जवाब दे दिया की ये उस का प्राइवेट मामला है|उस ने चेहरा पलट लिया क्युकी उस की आँखे भीग चुकी थी|
हालाकी जिस लड़की से वो मिलनेवाला था वो लड़की तो उन से बिलकुल अनजान जैसी थी क्युकी एक दो बार मुलाक़ात हुयी होगी शायद लेकिन वो उस लड़की को बराबर पहेचानता था| दोनों का मकसद एक ही था, लेकिन वो सोच रहा था की क्या मकसद कामयाब होगा? और अगर हो भी गया तो आगे की जिन्दगी क्या मोड़ लेनेवाली है? कौन जाने कहा???....
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दीसंबर 25, समय सुबह के 6.30, जय के रिहा होने से ठीक एक महीने पहले, हिमालय की पर्वतमालाओ के बीच खुली हवाओं में स्वामी ब्रह्मानंद ध्यान मुद्रा में बैठे हुये थे| ध्यान में बैठते ही उस ने अपना चित ब्रह्मांड में खुला छोड़ दिया| पिछले 6 महीने से वो समाज से दूर इस हिमालय की पर्वतमाला में एकचित होने आये हुये थे|
चित को ब्रह्मांड में खुला रखते ही अपने गुरुओ से चित से जुड़ गये और उस ने चितशक्ति से ही कई मेसेज रिसीव किये और फिर अपने चित से अपने शिष्यो का संपर्क किया|स्वामी ब्रह्मानंद ने अपने शिष्यों को चित से ही मेसेज दिया की अगले महीने से काम पे लग जाना है| और चितशक्ति से साये की तरह एक घटना का पीछा करना है| जो होनी है उसे कोई टाल नहीं सकता लेकिन कार्य करना हमारा परम कर्त्तव्य है और ये तो वैश्विक कार्य है| अगर अगले कुछ समय के लिये हम संभल जायेंगे तो जरुरु विश्व कल्याण की भावना बढ़ेगी और इस विश्व में जरुरु पवित्र आत्माओ का जन्म होगा| बस कुछ समय के लिये हमें धैर्य रखना होगा और इस विश्व में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना है जिस से पवित्र आत्मा को जन्म के बाद उयुक्त वातावरण मिले जिस से पवित्र आत्माये फले और फुले और इस विश्व का कल्याण कार्य में जुड़ सके|
विश्व के कोने कोने में जितने स्वामी ब्रह्मानंद के शिष्य थे उन्होंने एकचित होकर मेसेज रिसीव किया और ये मिशन को स्वीकार किया| फिर स्वामी ब्रह्मानंद ने पूर्णतः समर्पित होकर अपने गुरुओ और विश्व की परम चैतन्य शक्ती को नमस्कार किया और उठकर अपनी गुफा में वापस आये और अपने एक बूजुर्ग शिष्य को कहा,” आप को आज यहा से प्रस्थान करना होगा| आप का कार्यक्षेत्र आज से गुजरात रहेगा| आप की व्यवस्था कर दी गई है लेकिन आप को मेडिटेशन के साथ साथ आप के जीवनकाल की वो बौधिक साधनों का उपयोग करना होगा जिस से आज की जीवनशैली के साथ आप कदम मिला सके| पराम कृपालु परमात्मा आप को सहायता करे|” इतना बोलकर उन्होंने आँखे बंध कर ली और वो बुजुर्ग शिष्य ने उसे साष्टांग दंडवत प्राणम किया और गुफा से बाहर आया| सुबह सुबह की खीली धुप को साँसों में उतारी और अपने जहन में भरने लगा|
वो बुजुर्ग शिष्य पिछले कई सालो से स्वामी ब्रह्मानंद के साथ कई साधनाये कर रहा था फिर भी उस की आँखे आज बरसों के बाद भीग गई, क्युकी आज स्वामी ब्रह्मानंद ने वो स्मृतियों को हिलाया था| उसे गुजरात याद आया और कुछ घटनाये याद आयी| आज तक इस साधक को गर्मी, ठंडी,
बारिश का कोई करिश्मा छू नहीं सका था| लेकिन जैसे ही आज उस ने बौधिक विचारधारा के विश्व में मन से प्रवेश किया की उस के शरीर को हिमालय की ठंडी का एहसास शुरू करा दिया| और वो इसीलिये क्युकी उस के चित ने आज के विश्व के बारे में सोचना शुरू कर दिया था| ये विश्व जो उसे छोड़ना पडा था या उस समय यही उपयुक्त था की वो इस समाज से परे होकर केवल समय की प्रतीक्षा करे|
और उस के कदम धीरे धीरे हिमालय की पहाडियों से इस समाज की और पड़ने लगे|
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जयपुर, पिंक सिटी ऑफ़ इंडिया, केपिटल सिटी ऑफ़ राजस्थान, तारीख: 20 जनवरी,
2010, समय शाम के 7 बजे,
जयपुर की आलिशान होटलों में से एक होटल पेरेडाइज के तीसरी मंजिल पर रुम नमबर 303 में दो आदमी आमने सामने बैठे हुये थे| पास पडी टिपोई पर इम्पीरियल ब्ल्यू व्हिस्की की बोटल पडी हुई थी| दो ग्लास भरे हुये थे| पास में विल्स नेवी कट सिगारेट का पेकेट में से अभी तक तीन पेकेट खाली हुवे थे और चौथा पेकेट तौडकार एक भयंकर चहरे वाले करीब 40 से 45 साल की आयु वाले और कसरती शरीर वाले आदमी ने कहा,” फिर तो साहब, ऐसे आदमी को ख़त्म ही कर देना चाहिये, का हे को अभी तक जिंदा है ये?”|
“नहीं शक्ती, उसे ऐसे नहीं मार सकते, शायद वो जानता है की उसके पास जो है, उस से वो हमारी नींद हराम कर सकता है, हमारी पोलिटिक्स की तपस्या को कुछ ही पल में मिट्टी में मिला सकता है” दुसरे आदमी ने ग्लास मे से चुश्की लेते हुये बोल दिया|
शक्तिसिंह राठोर, राजस्थान का खतरनाक गुंडा था और वो काम करता था राजस्थान के बड़े बड़े पोलिटीशियन्स के लिए| आज सारे पोलिटीशियन्स राजस्थान की पोलिटिक्स में उस का नाम बड़े गर्व के साथ ले रहे थे|किसी का अपहरण, डेकोइट्स, पैसो की वसूली, बलात्कार, स्मगलिंग वगैरह काम उस के बाये हाथ का खेल था|
इस वक़्त वो राजस्थान के होम मिनिस्टर के बेटे के साथ बैठा ठा| उस का नाम था रणवीरसिंह रावत| रावत फेमिली ने कई सालो से राजस्थान की राज्य सरकार में अपना कदम मजबूती से फैलाया हुवा था| सब जानते थे की राजस्थान पर अपना अस्तित्व बनाना है तो रावत फेमिली को खुश रखो और आराम से जो करना है वो करो| रावत फेमिली के कदम भारतीय पोलीटिकल वातावारण में भी एक मजबूत स्थान प्राप्त कर चुके था| क्युकी भारतीय गंदे राजाकारनीयो जानते थे की राजस्थान ही ऐसा राज्य है जहा से कही भी कीसी को भी सलामती मिल सकती थी|
रणवीरसिंह ने कहा,”नही शक्तिसिंह मेरा मान ना है की उसे पहले आजाद होने के बाद उसे मालसामान तक पहुच जाने दो फिर वो अकेला क्या उखाड़ लेगा अपना, आराम से उस को ख़त्म कर सकते है ना|”
“लेकिन जनाब, वो तो वैसे ही एक रफाडा से मान जायेगा” शक्तिसिंह ने अपने बाजुओ के जोर पर कहा|
रणवीरसिंह को हसी आई,”शक्तिसिंह पुलिस ने उसको इतना टॉर्चर किया है की तुम भी होते तो पेंट गीला कर लेते| लेकिन ये साला हरामी का पिल्ला कौन सी नस्ल से पैदा हुवा है की घोड़े की तरह मार खाता गया लेकिन माल के बारे में कुछ नहीं बताया कुत्ते ने|”
“तो हमें क्या करना होगा साहिब?” शक्तिसिंह ने ग्लास खाली करते हुये पूछा|
“सही समय का इन्तेजार” रणवीरसिंह ने भी ग्लास खाली करते हुये बोला, ”शक्ती,
मेरे पास ये भी इन्फोर्मेशन है की इस मामले में डेल्ही से सी.बी.आई. भी पीछे पड़नेवाली है| मै चाहता हु की सी.बी.आई. उन तक पहुचे उस के पहले वो माल के साथ हमारे सामने आ जाये ता की पूरा मामला यही रफा दफा हो जाये|”
शक्तिसिंह ने एक और सिगरेट जलाई और रणवीरसिंह को दी और दुसरी अपने लिये जलाई और पूछा,”साहिब एक बात बोलू, ऐसा क्या है उस लोंन्डे के पास जो आप लोगो का जीना हराम कर सकता है?”
विल्स की सिगरेट से रणवीरसिंह ने लंबा कश खींच लिया और धुवा उड़ाते हुये कहा,” वो तेरा काम नही है शक्तिसिंह,
सच में तो मै भी कुछ नहीं जानता ज्यादा, लेकिन डेडी का इंस्ट्रक्शन है की मै तुजे काम पर लगा दू और अगर काम हो गया तो आज तक का सब से बड़ा इनाम तू पायेगा शक्ति|”
शक्तिसिंह ने हसकर पूछ लिया,”क्या मिनिस्ट्री में सीट दिलाओगे?”
“बिलकुल सही बका है तूने शक्ति”, रणवीरसिंह ने शक्तिसिंह के कंधो पर शाबाशी देते हुये जोर से हस दिया|
और शक्तिसिंह अपना ख़्वाब सच होता हुवा देखने लगा और दोनों ने फिर एक ग्लास भर के चीयर्स किया और सिगरेट के धुओ में प्लान सोचने लगे| उन दोनों को भी कहा ख़याल था की जय से मुलाक़ात कब, किस हाल में और कौन जाने कहा होगी?????....
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Horror lover
01-Feb-2022 12:45 PM
Ab tak next part n aya..kb ayega
Reply
PHOENIX
01-Feb-2022 01:07 PM
very soon. Probably today or late by tomorrow.
Reply
Arman Ansari
31-Jan-2022 01:13 PM
ये ही होता है हम सोचते ही रहते है ना जाने कहाँ होगा कैसे होगा अच्छी कहानी है
Reply
PHOENIX
31-Jan-2022 02:52 PM
धन्यवाद। बने रहिये कहानी पर।
Reply
राधिका माधव
31-Jan-2022 12:54 PM
Are wah... Kya khani h, ab dusre treck par pahunch gyi ye, Jay ikla aur ye itne sb... Baba re baba bada dimag lgaya h khani me aapne
Reply