सांवरी–१३
सांवरी – १३
गतांक से आगे –
सांवरी का मन तो नहीं था की वो अपने बापू को इस हाल में छोड़ कर अभी कहीं जाए, पर फिर भी उसका कर्म उसे पुकार रहा था। जो करार उसने किया था जिसकी वजह से उसके बापू का इलाज हो पाया था उस को पूरी जिम्मेदारी से निभाना अब उसका धर्म था। इसलिए न चाहते हुए भी उसे अपने मां बापू से जुदा होना ही था, डेरे के बाहर भानसिंह गाड़ी लेकर आ चुका था, और धीरू भी अपने मां बापू से इजाजत लेकर सांवरी के डेरे पर आ चुका था। आखिर, सांवरी ने जी कड़ा कर के मां और बापू से भर्राइ हुई आवाज में विदा मांगी, और अपनी गीली आंखों को पोंछते हुए, बिना पलटे डेरे से बाहर निकल गई।
वो जानती थी अगर उसने एक बार भी पलट कर देखा तो बापू और मां का प्यार उसके पैरों में ममता की बेड़ियां डाल देगा और उसका खुद पर विश्वास कमजोर पड़ जायेगा। वो बापू और मां की आंखों की नमी को नही देखना चाहती थी। उसे ये भी मालूम था कि मां और बापू की तरह और भी कितनी निगाहें उसको रोकना चाहती थी। इसलिए अपने समान की पोटली लेकर वो तेजी से गाड़ी की ओर बढ़ चली और कार का दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गई, मानो वो गाड़ी उसके पीछे छूटे अहसास और पीड़ा को उस से दूर कर देगी।
गाड़ी में बैठ कर वो फफक फफक कर रो पड़ी, धीरू उसके पास वाली सीट पर बैठा उसके दिल के गुबार को सैलाब बन कर बहते हुए देखता रहा। उसने सांवरी को रोने दिया, जानता था रो लेगी तो मन हल्का हो जाएगा।
धीरू के इशारे पर भान सिंह ने गाड़ी स्टार्ट कर ली और सांवरी को लेकर गाड़ी एक नई मंजिल की तरफ दौड़ चली।
करीब एक घंटे का सफर करके गाड़ी कुंवर साहब के शाहपुरा स्तिथ बंगले पर पहुंच गई। ये बंगला एक बड़े से जमीन के हिस्से पर बना हुआ था, हवेली के मुकाबले ये बहुत छोटा था पर फिर भी बहुत बड़ा था। सारी सुखसुविधा से लैस ये बंगला था, जिसके चारों तरफ करीब 10 फुट ऊंची चारदीवारी थी, बंगले के बड़े लोहे के गेट पर एक हट्टा कट्टा बंदूक धारी सुरक्षा जवान मौजूद था।
बंगले के सामने की तरफ एक सुंदर बगीचा था जिसमे तरह तरह के फूलों के पौधे लगे हुए थे, जिन पर गुलाब, गेंदा, चमेली इत्यादि खूबसूरत फूल खिले हुए थे।
बंगला दो मंजिला था जिसमे, नीचे एक बड़ा स्वागत कक्ष था साथ ही रसोई और खाना खाने का स्थान था। पांच बड़े बड़े शयनकक्ष दूसरी मंजिल पर बने थे।
बंगले के पीछे एक तरणताल और एक व्यायामशाला भी बने थे।
धीरू और सांवरी ने इतना सुंदर और आरामदायक बंगला अपने जीवन में नही देखा था।
भान सिंह ने दोनो को अपना अपना कमरा दिखा दिया जिसमे एक विशालकाय पलंग नर्म गद्दों के साथ विद्यमान था। दोनो ही के कमरे में एक बड़ी सी अलमारी एक दीवार के साथ बनी हुई थी, जिस में धीरू और सांवरी के नाप के बहुत सारे कपड़े, जूते इत्यादि रखे हुए थे।
ये सब देख कर सांवरी को अपनी आंखों पर यकीन नही हो रहा था। भान सिंह ने दोनो को उनके कमरे से सटे गुसलखाने की तरफ इशारा कर के कहा, आप दोनो नहा कर आराम करो। कुछ चाहिए तो ये घंटी बजा देना नौकर आ जायेगा।
आज तो कहीं नहीं जाना कल सुबह अस्पताल चलेंगे।
अगले दिन सुबह करीब 9 बजे सांवरी और धीरू को लेकर भानसिंह जीवन ज्योति आशा क्लिनिक पहुंच गए।
एक बार फिर से वहां कुंवर साहब और कुंवरानी जी पहले से ही मौजूद थे, कुंवरानी के चेहरे पर सांवरी को देखते ही एक मीठी सी मुस्कान खिल उठी, उन्होंने आगे बढ़ कर सांवरी को गले से लगा लिया और उसका हाथ पकड़ कर स्वयं डॉक्टर माधुरी के कमरे की ओर ले चली।
डॉक्टर माधुरी ने भी मुस्कुरा कर सांवरी का अभिवादन स्वीकार किया और साथ ही बोली, हां तो सांवरी तुम तैयार हो ना, पूरी तरह।
जी, डॉक्टरनी हुकुम, बोलो मने के करना होगा, सांवरी बोली।
नही कुछ खास नहीं, बस तुमको हमारा साथ देना होगा, आओ पहले एक बार तुम्हारी जांच कर लें, देखें तुम पूरी तरह से तैयार हो या नहीं, कहकर डॉक्टर माधुरी ने सांवरी को पास के निरीक्षण कक्ष की तरफ इशारा किया।
करीब 15 मिनिट बाद डॉक्टर साहिबा बाहर निकल कर आई और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, हां सब कुछ ठीक है।
ये सुन कर कुंवरानी के चेहरे की मुस्कुराहट और खिल गई।
डॉक्टर ने मेज़ पर रखे फोन को उठा कर नर्स को बुला भेजा, और उसके आते ही उन्होंने नर्स को एक साथ कई निर्देश दे डाले।
OT तैयार करवाओ, surrogate mother आ गई है।
Lab से कुंवर साहब वाला Embryo, रेडी करने के लिए कहो।
कुंवर साहब वाली और surrogate mother की फाइल मेरे पास भिजवाओ।
डॉक्टर शिखा को भेजो, surrogate को brief करना है।
हम एक घंटे में ऑपरेशन शुरू करेंगे, पूरी तैयारी करवा दो।
Yes doctor, कह कर नर्स उल्टे पांव लौट गई।
थोड़ी देर में एक और डॉक्टर उनके केबिन में आई और सांवरी को अपने साथ आने का इशारा किया।
उनके जाने के बाद, डॉक्टर माधुरी ने कुंवरानी जी को संबोधित किया, आप अब आराम से विजिटर कक्ष में बैठिए, यहां से आगे अब हमारा और सांवरी का काम है।
आप लोग चाहे तो घर जा सकते हैं।
नहीं नही, मैं विजिटर कक्ष में ही इंतजार करूंगी, जैसे ही ऑपरेशन पूरा होगा मैं एक बार सांवरी से मिल कर ही घर जाऊंगी, कुंवरानी जी बोली।
जैसी आपकी इच्छा, वैसे ये बहुत ही आसान सा पर थोड़ा सा मुश्किल ऑपरेशन है, यानी पेशेंट के लिए आसान हमारे लिए थोड़ा मुश्किल और थोड़ा सूक्ष्म भी, जरा सी चूक सारी मेहनत बरबाद कर सकती है। पर आप निश्चिंत रहें, मैने अब तक बहुत से ऐसे केस सफलता से पूरे किए हैं।
डॉक्टर शिखा अगले आधे पौने घंटे तक सांवरी को बहुत सारी हिदायतें और गर्भ के बारे में जानकारी देती रही।
क्या खाना है क्या नही खाना है, क्या करना है क्या नही करना है, किन किन बातों का ध्यान रखना है, कब कब जांच के लिए आना है, किन परिस्थितियों में क्लिनिक को तुरंत बताना है, इत्यादि इत्यादि......
करते करते दोपहर बाद ही सांवरी को OT से बाहर निकाला गया, डॉक्टर माधुरी के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान पूरी कहानी बता रही थी, उन्होंने बाहर आकर सभी को सफल ऑपरेशन की बधाई दी और फिर कुछ आखिरी निर्देश देकर उन्हें विदा किया, जाते जाते उन्होंने सांवरी को कुछ दिनों तक हर हफ्ते क्लिनिक पर आने का निर्देश भी दे दिया।
पूरा काफिला सांवरी को लेकर, शाहपुरा वाले बंगले पर पहुंच गया, जहां पहले से ही एक नर्स और एक डायटिशियन उनका स्वागत करने को तैयार थे।
सांवरी को सबकुछ बहुत नया नया सा अजीब सा लग रहा था। उसे अभी भी समझ नही आ रहा था की उसकी कोख में आज से एक नन्ही जान पलने लगी है। कुछ हॉस्पिटल में दी गई बेहोशी की दवा कुछ ये बात की अब से उसके अंदर एक नई जान और आ गई है उसे अजब सा नशा दे रही थी। उस पर अभी भी एक नशा सा तारी था, इसलिए वो आते ही गहरी नींद सो गई।
बाकी सब लोग भी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए।
अगली सुबह से सांवरी की पूरी दुनिया ही बदल गई। डायटिशियन ने उसके लिए खाने का पूरा एक चार्ट बना दिया था। जिसमे सुबह से लेकर रात तक क्या खाना है कब खाना है निश्चित था।
नर्स समय समय पर उसका तापमान, खून का दबाव इत्यादि नोट करती और उसे रंग बिरंगी गोलियां खिलाती।
एक प्रशिक्षक उसके साथ उसे कब और कितना व्यायाम करना है, कब घूमना है ये सब बताता था।
साथ ही एक दूसरा प्रशिक्षक उसे रोज 1 घंटा नृत्य की नई नई भंगिमाएं सिखाता।
एक अध्यापक जी आकर धीरू और सांवरी को पढ़ाने का काम करते, उन्हें गणित, हिंदी, अंग्रेजी इत्यादि की शिक्षा देते।
दिन शुरू होता और कब चला जाता पता ही ना चलता था।
शीघ्र ही दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलने लगे, सांवरी का गर्भ अब दिखाई देने लगा था, समय समय पर डॉक्टर माधुरी उसे और कुंवरानी को आश्वस्त करती सब कुछ अच्छा चल रहा है।
इस बीच सांवरी और धीरू डेरे पर मां बापू से बात कर लेते। भंवरलाल की तबियत अब बिल्कुल सही हो चली थी।
कुंवर साहब ने उसे एक क्लास में भेज दिया था जहां ध्वनि यंत्र के बिना कैसे बोला जाता है सिखाया जा रहा था। सांवरी से भी भंवरलाल बात कर पाता था। सांवरी को इस बात की बहुत खुशी थी।
देखते ही देखते समय गुजरता गया और आखिर वो समय भी आ गया जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था।
इन नौ महीनों में सांवरी और धीरू का व्यक्तित्व निखरने लगा था, दोनो ही धारा प्रवाह हिंदी और कामचलाउ इंग्लिश बोलना सीख चुके थे।
हालांकि गर्भ धारण के 7 वे महीने से सांवरी ने नृत्य बिल्कुल बंद कर दिया था पर अब उसकी नृत्य कला भी निखरने लगी थी।
अचानक एक रात सांवरी को तीव्र प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। भान सिंह और धीरू तुरंत उसे लेकर क्लिनिक की तरफ आनन फानन में निकल पड़े।
क्लिनिक पर पहुंच कर उसे तुरंत OT में ले जाया गया, रात्रि 12 बजे डॉक्टर माधुरी ने OT से बाहर आकर सबको खुशखबरी दी की सांवरी ने एक सुंदर, स्वस्थ बालक को जन्म दिया है।
ये खबर सुनकर सब खुशी से उछल ही पड़े। कुंवर साहब ने खुशी के मारे जेब से 500 की एक गड्डी निकाल कर वहां मौजूद सारे स्टॉफ में बांट दी, भानसिंह झटपट गाड़ी में से काजू की बर्फी के कई डब्बे लेकर आ गया और सबको एक एक डब्बा दे दिया।
कुंवरानी जी ने डॉक्टर माधुरी से पूछा क्या वो सांवरी और बच्चे से मिल सकते हैं।
जी अभी नहीं, कल सुबह आप दोनो से मिल भी सकेगी और उन्हें घर भी ले जा सकेंगी। दरअसल प्रसव की पीड़ा से सांवरी बहुत थक गई है और अभी सो रही है।
बच्चा तो बिलकुल स्वस्थ है फिर भी हम उसको रात भर निगरानी में रखना चाहेंगे, डॉक्टर बोली।
ठीक है फिर हम कल सुबह आकर सांवरी और छोटे कुंवर को घर ले जायेंगे, कुंवर साहब अपनी व्याकुलता को संभालते हुए बोले।
जी आप सब आराम से जाइए और कल सुबह 9/10 बजे तक आ जाइएगा, तब तक मैं सारी कागजी कारवाही कर के सांवरी को घर जाने के लिए तैयार करवा दूंगी।
हर्ष के साथ सब लोग वापस लौट चले, केवल धीरू क्लिनिक पर ही रुक गया ये कह कर की वो सांवरी को साथ लेकर ही लौटेगा।
आज कुंवर साहब और कुंवरानी की खुशी का कोई ठिकाना न था, जिस खुशी का उन्होंने बरसों इंतजार किया वो आज बाहें फैलाए उनके सामने खड़ी थी.....
क्रमश:
आभार – नवीन पहल – २६.०१.२०२२ 🙏🏻🌹👍💐
# लेखनी उपन्यास प्रतियोगिता हेतु
Barsha🖤👑
01-Feb-2022 08:36 PM
Well part
Reply
Arman
29-Jan-2022 06:09 PM
Kafi intresting kahani h aapki
Reply
Rakash
26-Jan-2022 02:11 PM
Nice
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