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गणतंत्र दिवस


तोड़कर सबसे नफरत की जंजीरें 
प्रेम का ऐसा पवित्र बंधन बाँधेंगे 
राग-द्वेष अपने दिल से मिटाकर
समाज में एक नयी चेतना लाएँगे 
राष्ट्रीय एकता का दीप जलाकर 
हम नया गणतंत्र दिवस मनाएँगे।

लाल किले पर जब लहरा तिरंगा
देश की आन-बान-शान बढ़ाएगा
हम अपने सत्कर्मों की खुशबू से
देश की कीर्ति चहुँ ओर फैलाएँगे
विश्वबंधुत्व भावना का प्रसार कर 
हम नया गणतंत्र दिवस मनाएँगे।

कब तक रहेंगे रूढ़ियों के शिकार
छूत-अछूत के दुष्चक्र में जकड़ेंगे
दिल से समस्त भेदभाव मिटाकर
आपसी वैमनस्य को भी दफनाएँगे
भारतीय संविधान को देंगे सम्मान
हम नया गणतंत्र दिवस मनाएँगे।

भिन्न-भिन्न हो चाहें हमारी वेशभूषा
अलग हो हमारी खान-पान व भाषा
भिन्नता के फूल एक साथ गूँथकर 
हम भव्यता का सुंदर हार बनाएँगे
गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान कर 
उल्लास से गणतंत्र दिवस मनाएँगे। 

ऊँच-नीच का फैला तमस मिटाकर 
समत्व रुपी दिव्य ज्योति जलाएँगे
प्रेम और सौहार्द की बाती बनाकर 
राष्ट्र को सर्वदा ही उज्ज्वल बनाएँगे 
रहेंगे अमन से, पराई पीर अपनाएँगे
हम कुछ ऐसे गणतंत्र दिवस मनाएँगे। 


 स्वरचित एवं मौलिक रचना
 डॉ. अर्पिता अग्रवाल
 नोएडा, उत्तर प्रदेश

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10 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

27-Jan-2022 09:32 PM

Wah bahut khoob

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Shrishti pandey

27-Jan-2022 08:28 AM

Nice

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Dr. Arpita Agrawal

27-Jan-2022 09:47 AM

Thank you for your motivation

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Sudhanshu pabdey

27-Jan-2022 06:38 AM

Very nice 👌

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