नज़राना इश्क़ का (भाग : 18)
शाम ढल रही थी, फरी टेरिस पर खड़ी नजर आ रही थी। उसके साइड में रखे टेबल पर एक कप चाय और डायरी रखी हुई थी। डायरी के ऊपर उसका फ़ोन रखा हुआ था। फरी काफी उदास नजर आ ही थी, वह अंदर से बेहद परेशान थी जिस कारण उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था।
"ओफ्फो! मुझे बाबा को भी कॉल करना था, ये सब मेरे साथ ही क्यों होता है!" फरी ने अपना माथा पीटते हुए झुंझलाकर कहा। "मेरे साथ हमेशा से यही होते आया है, जैसे ही कुछ थोड़ा सा अच्छा होता है फिर हद से ज्यादा बुरा हो जाता है, पता नहीं विक्रम भाई कैसे होंगे।" फरी अपने ख्यालों के जाल में उलझती जा रही थी। उसने अपना मोबाइल निकाला और किसी को कॉल लगाने लगी। काफी प्रयासों के बाद भी कॉल अटेंट नहीं हुआ तो वह परेशान हो गयी।
"अब बाबा कहाँ चले गए, वे शायद मुझे कुछ बताने वाले थे पर….!" फरी झुँझला उठी, उसने चाय का कप उठाया और एक ही सांस में पूरी चाय गटक गयी। मगर उसके चेहरे से परेशानी रत्तीभर भी कम न हुई.. वह वहीं बैठ गई।
रात में….
रात हो चुकी थी, चारों तरफ गहरा अंधेरा छाया हुआ था, रात बढ़ने के साथ साथ ठंड भी बढ़ती जा रही थी। फरी अभी भी वही बैठी हुई थी। वह काफी देर तक सोचती रही फिर उसने टेबल लैंप जलाकर अपनी डायरी उठाई औरकुछ लिखने लगी।
"शायद नहीं हैं खुशियां मुकम्मल इस जनम में
गम के हर रास्ते अक्सर मुझे तलाश लेते हैं…!
#Fari
हे डायरी!
तुम्हें लग रहा होगा न कि आज मैं किसी पागल की तरह फिर उदास सी बातें करने लगी न..! हां मैं जानती हूँ कान्हा जो भी करते हैं सब अच्छे के लिए करते हैं मगर अब और कितनी तकलीफ सहूं यार..! एक तो सही नहीं जाती ऊपर से कहने के लिए मेरे पास सिर्फ तुम हो।
कल की बातें भूलने की नाकाम कोशिश कर मैं आज फिर कॉलेज गयी। मगर मेरे उस दर्द और न खाने पीने की तकलीफ को कोई पहचान पायेगा मैंने कभी सोचा तक भी न था। और मुझे एक प्यारा सा भाई मिल गया..! उसने मुझे अपने हाथ से खिलाया। पहली बार माँ और बाबा के अलावा किसी और के हाथ से खाना खाया, उसकी जिद और प्यार ने मुझे झुकने पर मजबूर कर दिया। मैं बेहद खुश थी कि जो हुआ सो हुआ पर मुझे कोई अपना तो मिल गया न..! पर मेरी खुश कुछ पलों की मेहमान थी, जैसे ही जाह्नवी आयी वो और विक्रम भाई आपस में लड़ पड़े। उनकी लड़ाई बहुत आगे तक बढ़ जा रही थी तभी वो लड़का निमय आ गया। उसने अपने दोस्त की बिना किसी बात को सुने अपनी बहन के बात को सही ठहरा दिया और उसे अपने लाइफ से निकल जाने को कह दिया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वो जैसा है कभी ऐसा कुछ करेगा मगर उसके लिए उसकी बहन के आगे सारी दुनिया कुछ भी नहीं है।
यही नहीं उसने विक्रम भाई को बहुत कुछ बोला, पता नहीं अभी वो कैसा महसूस कर रहे होंगे। मैं तो उनका मोबाइल नंबर तक लेना भूल गयी, उफ्फ कैसी बहन हूँ मैं…! पहली बार मुझे ऐसा लगा कि मुझे एक सच्चा इंसान मिला है, बताओ न डायरी क्या मैं एक अच्छी बहन बन पाउंगी?
मैं जिसके लिए खुश हूं उसी के लिए उदास भी..! तुम तो जानती हो न डायरी अपनी फरी को..! मैं कभी भी उदास नहीं होना चाहती मगर..
खैर छोड़ो.. कान्हा जी करें मेरा भाई ठीक रहे, अब सोते हैं डायरी! दुआ करना मेरा भाई ठीक रहे..!
'आँखों में भरकर जरा सा प्यार, आ भाई तुझको निहार लूँ
हर जख्म को भर दे मरहम बनूँ, भाई मैं तुझको इतना प्यार दूं।'
मुझे भी एक मौका मिला है, अच्छी बहन बनने का.. और मैं ये मौका नहीं गवाऊंगी डायरी..!
गुड नाईट
राधे राधे….!"
लिखकर डायरी उठाते हुए लैंप ऑफ करके फरी अपने कमरे में चली गयी।
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अगले दिन कॉलेज में…
आज निमय रोज से काफी पहले आ चुका था, वह गेट के पास मैदान में बैठा हुआ था। निमय आते जाते हर किसी को ऐसे देख रहा था मानो उसकी आंखें किसी को ढूंढ रही हो। थोड़ी ही देर बाद विक्रम गेट से इंटर हुआ, उसे देखते ही निमय उसकी ओर भागा चला आया, मगर विक्रम ने जैसे उसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया था। वह उससे आगे निकल गया।
"विक्रम… विक्की मेरी बात सुन…!" निमय ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख उसे रोकते हुए कहा।
"सॉरी मिस्टर! मैं आपको नहीं जानता!" विक्रम ने अपने कंधे से उसका हाथ हटाते हुए बोला।
"ठीक है यार मानता हूँ कि कल मेरी गलती हो सकती है, मैंने गुस्से में कुछ बोल दिया हो पर एक ही पल में मुझसे मेरी बहन, मेरा दोस्त, मेरा प्यार अलग मत कर न यार…!" निमय की आँखों में आँसू उतर आये थे।
"सॉरी सर! मुझे लगता है आप किसी और से किसी और की बात कर रहे हैं, मैं सचमुच आपको नहीं जानता!" विक्रम ने किसी मासूम बच्चे के समान मुस्कुराते हुए कहा।
"प्लीज विक्की…! मुझे पता नहीं था वो तेरी बहन है…! पर तुझे तो पता है न मैं उससे प्यार करता हूँ!" निमय ने उसके दोनों कंधो पर हाथ टिकाते हुए उसकी आँखों में झाँककर बोला।
"ये आप क्या बात कर रहे हैं सर? मुझे किसी भी चीज के बारे में कुछ नहीं पता!" विक्रम बिल्कुल अनजान बनते हुए बोला।
"तुम जानी से इसीलिए लड़ रहे थे न क्योंकि परसो उसने तुम्हारी बहन को बुरा भला बोला था..!" निमय ने सीधे शब्दों में स्पष्ट तौर पर कहा।
"ये जानी कौन है सर?" कहता है विक्रम फिर से गेट की ओर बढ़ गया। उसे फरी गेट पर दिखाई दी, वह खिलखिलाता हुआ उसके पास जा खड़ा हुआ। निमय हतप्रभ सा उसे जाते हुए देख रहा था, वह अपनी भावनाओं की उलझन में सोचना समझना भूलता जा रहा था।
"हे भाई…!" फरी ने हाथ लहराते हुए विक्रम को पुकारा।
"बोल मेरी बहना, खाना खा के आयी है या खिलाना पड़ेगा!" विक्रम ने हँसते हुए पूछा।
"वैसे तो आपके हाथ से ही ज्यादा स्वाद आता पर अब रोज रोज आपसे मेहनत तो नहीं करवा सकते न..!" फरी किसी मासूम बच्ची की तरह हँसते हुए बोली, जिसे सुनकर विक्रम अपना मुँह ढक कर हँसने लगा, जिसे देखकर फरी ऊना मुँह ढँकते हुए और जोर से हँसने लगी।
"क्या तुम भी पागल लड़की..!" विक्रम ने मुँह बनाया।
"क्या भाई.. कल बहन बनाया आज पागल बना दिया..!" फरी उससे रूठने की एक्टिंग करती हुई बोली।
"तो अब पागल को पागल न बोलूं तो क्या बोलूं?" विक्रम उसके बाल बिगाड़ते हुए बोला।
"हे देखो भाई… बालो से दुश्मनी नहीं! आप न मेरे बालों से दूर ही रहना।" फरी उसको खुद से दूर करती हुई बोली।
"हाँ तो झूठ क्यों बोला..! वैसे मैं तुम्हारे हिस्से का टिपिन लाया हूँ खाना तो बता..!" विक्रम ने मुँह बनाते हुए कहा।
"सच्ची भाई…!" फरी ऐसे खुश हुई मानो उसे पहले से ही पता था कि विक्रम उसके लिए भी टिपिन लाएगा।
"हाँ चुड़ैल…!" कहते हुए विक्रम आगे भागा।
"हे राम! एक ही दिन में और क्या क्या बना दोगे आप मुझको…!" फरी अपने मुंह पर हाथ रखते हुए बोली। "तौबा तौबा कुछ तो शरम कर लो अब आप.!" कहते हुए वह विक्रम के पीछे भागी।
"जो जो तुम पहले से हो…! और हाँ मुझे इतनी इज्जत ना दो हाजमा खराब हो जाएगा, तुम ही बोला करो!" विक्रम ने दांत फाड़ते हुए कहा। फरी गुस्सा करते हुए उसे पीटने लगी।
"बड़े गंदे भाई हो आप..!" फरी ने नाराज होते हुए कहा।
"ये तो सरासर गलत इल्जाम है भई…! मैं तो रोज सुबह नहाकर आता हूँ, बाकी अपना बता रही होगी तो मुझे नहीं पता।" विक्रम ने फरी को चिढ़ाते हुए कहा।
"भूख लगी है मुझे, चलो अपने हाथों से खिलाओ…!" फरी ने उसे खींचते हुए कहा।
"हाँ मेरी प्यारी बहन…!" कहते हुए विक्रम मुस्कुराया।
"मेरा पगला भाई..!" फरी ने हँसते हुए उसके गालों को खींचते हुए कहा। आपस में बातें करते वो दोनों ऊपर चले गए, निमय उन दोनों की सारी बातें सुन रहा था उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे रियेक्ट करे, वो क्या कहे.. वह चुपचाप वहीं बैठ गया।
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रात को…
रात बहुत गहरी हो चुकी थी मगर निमय और नींद में जैसे छत्तीस का आंकड़ा हो चुका था, नींद उसकी आँखों से सिर्फ कोसों नहीं बल्कि कई प्रकाशवर्ष दूर चली गयी थी। वातावरण बिल्कुल शांत था मगर उसके अंदर हो रही उथल पुथल और शोर ने उसे चैन से कोसो दूर कर दिया था। वो वक़्त जब उसे लगा था कि वह अपना प्यार हासिल कर सकता था, पर अब वो नामुमकिन सा लग रहा था, काफी सारी चीजें उसके समझ से परे थी, वह अपनी डायरी लेकर बैठ गया।
"हे डायरी…!
आज का ये पन्ना शायद मेरी लिखी डायरी का आखिरी पन्ना हो मगर अब दिल में जो कुछ भी है यहां उतार देना चाहता हूँ।
मुझे सच में नहीं पता कि मैंने ऐसा क्या किया जो सब मुझसे इतना नाराज हुए बैठे हैं, मुझे कुछ भी बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा है। ये बार बार के उभरते ख्याल, सवाल सब मेरा जीना हराम कर दे रहे हैं।
विक्रम मेरी बात का इतना बुरा मान गया है कि उसने मुझसे ठीक से बात करना तो छोड़ो उसने मुझे पहचानने से इनकार कर दिया। और मैंने ये गलत समझा था कि फरी उसकी बहन है, क्योंकि उनकी बातों से लगा जैसे वो कल ही भाई बहन बने हों..! पर विक्रम तो अपने दुश्मन तक को माफ कर दिया करता है फिर वो जानी से क्यों लड़ रहा था।
पता नहीं क्यों जब भी जानी को खतरे में देखता हूँ मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता है, उसको खरोंच भर लग जाने से दिल डर जाता है। और उसने तो हाथ उठा दिया था, फिर मैं क्या करता….!
और फरी…! उसने तो मेरी तरफ देखा तक नहीं..! जिन आँखों में मैं अपने लिए अपनेपन का एहसास ढूंढा करता था आज उन आँखों को ठीक से देख तक नहीं पाया।
शायद मैं जानी का भी गुनाहगार हूँ.. उसे सही गलत में फर्क समझना चाहिए, वैसे भी वो मुझसे बस तीन मिनट्स ही छोटी है। पर मैं क्या करूँ.. मेरे दिल को उसके लिए इंसेक्युरिटीज फील होने लगती है.., मगर उसे भी सीखना होगा।
मुझे अपनी बहन, अपना दोस्त अपना प्यार सब हासिल करना है.. काश कि वो मुझे समझती…! काश कि मैं उन्हें समझा पाता…! क्या वो बस मेरा अधूरा ख्वाब बनकर रह जायेगी…!
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आँखों में बस गया चेहरा कोई
ख्वाब फिर भी न जाने क्यों अधूरा रहा
मैं फलक तक हरपल रहा उसका
फिर भी जानें क्यों मैं नहीं उसका हुआ
मुकम्मल होती और कई कहानियां तो
एक मेरी भी उनमें कहानी होती
जैसे हीर रांझा की, लैला सी मजनू की
इस दीवाने की भी कोई दीवानी होती
सांसों में लिख गया नाम किसी का
फिर जाने क्यों दम मेरा घुटने लगा
आँखों में बस गया चेहरा कोई
ख्वाब फिर भी न जाने क्यों अधूरा रहा
ख्यालों में बन जाते हैं आशियाने कई
टूटकर बिखर गए ख़्वाब मेरे
मैं हुआ जो तेरा तो क्या गजब हुआ
कुछ भी न रहा मेरा बिन तेरे
ख्वाहिशों को तलब हो रही नाम की
जानें क्यों सब यहां फिर गुमनाम हुआ
आँखों में बस गया चेहरा कोई
ख्वाब फिर भी न जाने क्यों अधूरा रहा।
#NimAY
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मुझे अपने ख्वाब को पूरा करना होगा, चाहे इसमे जितना भी वक़्त लगें लगे, मैं नहीं हारूँगा...! मुझे अपना सब हासिल करना है।
गुडबाय डायरी… इन पन्नो के साथ तुमने मेरे जो साथ दिया उसका शुक्रिया.. हमारा ये सफर बस यही तक था।
राधे राधे…!"
कहते हुए उसने डायरी को किताबों के कबर्ड में फेंक दिया, जहां ढेर सारी किताबे रखी हुई थी, उसकी आँखें लाल हों गयी थी जिस कारण उसे बेहद उन में चुभन और जलन महसूस हो रही थी। काफी देर तक वही बैठने के बाद वह अपने कमरे में चला गया, जाह्नवी भी आज अपने कमरे में ही सोई हुई थी, आज स्टडी रूम बिल्कुल सूना पड़ गया था।
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तकरीबन चार महीने बाद…!
चार महीने बीत जाने के बाद भी सबकुछ नार्मल नहीं हुआ था। हाँ ये था कि इतना सब होने के बाद भी फरी ने जाह्नवी को कभी कुछ नहीं कहा, न ही उसने कभी निमय की ओर देखा। वह अपने भाई यानी विक्रम साथ काफी खुश थी। निमय अंदर ही अंदर पिघलता जा रहा था, मगर उसने जाह्नवी को इसका एहसास तक न होने दिया था, दोनो भाई बहन आपस में रोज की तरह लड़ते झगड़ते और प्यार से रहा करते थे। एकाध दो बार जाह्नवी ने विक्रम से बात करने की कोशिश की थी, विक्रम ने भी सामन्यतः सहपाठी होने के नाते बात कर लिया था, मगर निमय से उसने कभी कोई बात नहीं की।
धीरे धीरे जाह्नवी का फरी के प्रति नजरिया बदल रहा था, उसे शिक्षा जैसी अमीरजादियों और फरी जैसी विनम्रताशील लड़की में स्पष्ट फर्क नजर आ रहा था मगर वह अभी भी पहले के जैसे ही रहती थी, उसे बस अपने भाई से मतलब था बाकी दुनिया की उसे कोई परवाह न थी।
एक दिन….
होली का त्यौहार आने वाला था, पूरे घर की साफ सफाई चल रही थी, जाह्नवी स्टडी रूम के सफाई का काम कर रही थी, उसने देखा कबर्ड में सारी बुक्स उल्टी सीधी तरीके से पड़ी हुई थी, वह सभी बुक्स को निकालकर उसे साफ करने का सोची। बुक्स निकालते हुए उसे निमय की वही डायरी मिली, वह डायरी देख जल्दी जल्दी पन्ने पलटने लगी।
"भाई ने डायरी कब लिखी?" जाह्नवी सोचने लगी। "भाई…!" जाह्नवी ने निमय को आवाज लगाना चाहा पर वह लिखा हुआ पहला पन्ना देखते ही रुक गयी, उसने उस डायरी को एक साइड अलग रखकर छिपा लिया और अपने काम में लग गयी। कबर्ड साफ कर उसने बाकी चीज़ो को करीने से लगा दिया। सब काम करने के पश्चात वह एकांत समय ढूंढने लगी ताकि वह आराम से निमय की डायरी पढ़ सके, उसके अंदर उस डायरी के हरेक पन्ने को पढ़ जाने की उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी, वह सभी काम जल्दी जल्दी से निबटाते हुए फुरसत निकालने की कोशिश करने लगी।
शाम को...
निमय और जाह्नवी का स्टडी रूम!
जाह्नवी, निमय की डायरी के पन्ने पलट रही थी, उसकी आँखों में उमड़ता प्यार आँसू बनकर बाहर आने को बेताब हो गया, हर पलटते पन्ने के साथ सांस थमती सी महसूस हुई, दिल की धड़कन इतनी जोर से धाड़ धाड़ कर बजने लगी, मानो पसलियों को तोड़कर, सीने को फाड़ते हुए बाहर आने को बेताब हो!
'ये गधा! मुझसे कहता है मैं इसकी सबसे बेस्ट फ्रेंड हूँ, अगर इसके दिल में भी कोई बात हो तो इसकी रगो को मालूम होने से पहले मुझे पता चलेगा और इतनी अच्छी लड़की से प्यार होने के बाद भी मुझे बताना ठीक नहीं समझा! क्या अब मैं उसके लिए गैर हो गयी? मुझे इन दोनों को एक करना ही होगा, मैं दो प्यार करने वालों के बीच की दीवार बनाकर ये घुटन भरी जिंदगी नहीं जी सकती!' जाह्नवी ने अपने आप से कहा, कहते हुए उसके जबड़े भींच गए, उसने जो कब से आँसू रोके हुए थे, वे बांध तोड़कर बह निकले। उसे फरी के साथ किया गया अपना व्यवहार याद आने लगा, वो समझने की कोशिश कर रही थी कि क्या इतने सब के बाद भी फरी उसे अपने लाइफ में जगह देगी, क्या वह अपने भाई को उसका प्यार दिला सकेगी..? वह जितना ज्यादा सोचती जा रही थी उलझन भी बढ़ती ही जा रही थी।
क्रमशः….
shweta soni
29-Jul-2022 11:39 PM
👌👌👌
Reply
🤫
27-Feb-2022 02:04 PM
बहुत अच्छी कहानी जा रही है अब
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:07 PM
Bahut dhanyawad Aapko
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अफसाना
20-Feb-2022 04:33 PM
Good story
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:08 PM
Thank You so much
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